RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“बहुत अच्छा किया आपने उस बाबत थोबड़ा बन्... चुप न रह कर ।”
“किया न !”
“यस, मैडम ।”
“तुम्हारा एडवाइस को फालो किया ।”
“अच्छा किया । अब बोलिये क्या बात है ?”
“ढीकरा, आई आलवेज माइन्ड माई ओन बिजनेस । मालूम ?”
“सारे रिजॉर्ट को मालूम, मैडम ।”
“रिजॉर्ट में बहुत लोग खुसर फुसर करता है कि मैं दूसरा लोगों के काम में टांग उड़ाता है...”
“अड़ाता है ।”
“अड़ाता है और इधर उधर टांग झांग करता है....”
“तांक झांक करता है ।”
“बट दैट इज नाट ट्रु । मैं ऐसा कभी नहीं करता है । काहे को करेगा । टाइम किधर मेरे पास ऐसा कामों का वास्ते ।”
“यू आर राइट, मैडम ।”
“पण मर्डर का केस में तो बोलना सकता न ! कैसा भी हो सके पुलिस का हैल्प करना सकता । तभी तो मर्डरर पकड़ में आना सकता । नो ?”
“यस ।”
“इसी वास्ते साइलेंट नहीं रहना सकता । ढीकरा, जैसे तुम्हारे को कल मिस्टर घिमिरे की बाबत बोला, वैसे आज फिर बोलना सकता ।”
“आज किसकी बाबत ?”
“जो आज मार्निंग में इधर आया । दैट् फ्लूजी, दैट बटरफ्लाई, दैट् सिंगर...”
“मैडम आप किसकी बात कर रही हैं ?”
“ढीकरा, दीज कॉटेज वाल्स... वैरी थिन । लाइक पापड़ । मालूम ?”
“हां लेकिन...”
“इधर दूसरा साइड में कोई जरा लाउडली बोलता तो इधर सुनाई देता । मैं नहीं सुनना मांगता दूसरा लोगों को टाक करता पण सुनाई देगा तो क्या करेगा ! विंडोज ओपन हो तो और भी अच्छा सुनाई देता ।”
“आपने बगल के कॉटेज में होती कोई बातचीत सुनी ?”
“यू गैस्ड इट, ढीकरा ।”
“कौन है बगल के कॉटेज में ?”
“पाटिल ।”
“पाटिल ! किससे बात कर रहा था ?”
“उस ढीकरी से जो उधर क्लब में वल्गर पॉप सांग्स गाता है ।”
“मीनू सावन्त से ?”
“आई थिंक दैट्स हर नेम ।”
“आपको कैसे मालूम ?”
“क्या कैसे मालूम ?”
“कि अपने बगल के, कॉटेज में पाटिल मीनू सावन्त से बात करता था ।”
“मैंने देखा न मार्निंग में उसको इधर आता ! ऐट अबाउट इलैवन ओ क्लाक ।”
“ग्यारह बजे के करीब मीनू सावन्त इधर पहुंची थी और पाटिल के कॉटेज में गयी थी ?”
“यस । तब मैं बाथरूम में था । बाथरूम का विंडो ओपन था । मैं बाथरूम से देखा उसको पाटिल का कॉटेज में ऐन्ट्री करते ।”
“और फिर उनकी बातचीत सुनी ?”
“टोटल नहीं पण काफी सुना । सुनना नहीं मांगता था पण सुना । कोई दूसरा बोलेगा तो सुनेगा । कान बन्द करना तो डिफीक्लट । नो ?”
“जितनी सुना उससे समझा कि बातचीत का मुद्दा क्या था ?”
“बट आफकोर्स ।”
“क्या ? क्या मुद्दा था ?”
“ब्लैकमेल ।”
“क्या ?”
“ब्लैकमेल ।”
“कौन करता था ?”
“पाटिल ।”
“क्या मांगता था ? रोकड़ा ?”
“यस ।”
ब्लैकमेल तो सनसनीखेज खबर थी ही, ये भी कम महत्तवपूर्ण खबर नहीं थी कि विनोद पाटिल और मीनू सावन्त एक दूसरे से पूर्वपरिचित थे ।
“पाटिल” - प्रत्यक्षतः वो बोला - “उस लड़की से रोकड़ा मांगता था ?”
“हां । बोला हैल्प मांगता था, फाइनांशल हैल्प मांगता था । टैम्पेररी फाइनांशल हैल्प मांगता था । रिजॉर्ट में अपना हिस्सा मिलने पर रिटर्न करने को बोलता था ।”
“आपने साफ सुना ये सब ?”
“हां । वो लोग फाइट करता था, इस वास्ते ऊंचा सुर में बोलता था । तब सब इधर क्लियर सुनाई दिया था ।”
“मीनू ने क्या कहा था ?”
“ढोकरी पहले साफ नक्की बोला । फिर ढीकरा बोला, ‘सोच लो । वापिस बड़ोदा जाना पड़ जायेगा’ । फिर बोला ‘मैंने जरा अपनी जुबान खोली तो पिछे बड़ा गलाटा हो जायेगा’ । बोला ‘इस वक्त पोजीशन ऐसा है कि तुम मेरे काम आयेगा तो मैं तुम्हारे काम आयेगा’ । फिर बोला ‘हैल्प नहीं तो लोन समझ कर पैसा दे दो’ ।”
अब एक नयी साम्भावना सामने आ रही थी ।
पाटिल अगर मीनू सावन्त से पुराना वाकिफ था तो उसने उसे मजबूर किया हो सकता था कि वो परसों रात क्लब में मुकेश के ड्रिंक में नींद की दवा मिला दे । मुकेश को मीनू सावन्त की घिमिरे से जुगलबंदी जरा नहीं जंची थी लेकिन उसके पाटिल से ताल्लुकात की बात, न जाने क्यों, उसे फौरन जंच गयी थी ।
लेकिन पूछे जाने पर मीनू ने तो कहा था कि वो पाटिल के बारे में कुछ नहीं जानती थी, वो क्लब में आया था तो जिन्दगी में पहली बार उसने पाटिल की सूरत देखी थी ।
जरूर उसने झूठ बोला था ।
जो शख्स उसके अतीत के इतने अन्धेरे पक्ष से वाकिफ था कि उस बिना पर वो उसे ब्लैकमेल कर सकता था, उसकी बाबत उसका झूठ बोलना स्वाभाविक था ।
“आखिर में क्या हुआ ?” - वो बोला - “मीनू ने पाटिल की मांग पूरी करना कुबूल किया ?”
“आई डोंट नो ।” - मिसेज वाडिया बोली - “ढीकरी को रोकड़ा के लिये यस बोलता मैं नहीं सुना ।”
“फिर ?”
“फिर क्या ! फिर वो सिंगर ढीकरी इधर से नक्की किया ।”
“ओह !”
“ढीकरा, अब मेरे को फिर एडवाइस मांगता है । ये नया बात जो मैं सुना, मैं पुलिस को बोलेगा कि नहीं बोलेगा ?”
“दैट इज नाट ए डिफीकल्ट डिसीजन, मैडम ।”
“क्या बोला ?”
“वही कीजिये जो पिछली बार किया ।”
“क्या किया ?”
“पहले मेरे को बोला और फिर इन्स्पेक्टर को बोल दिया । अब मेरे को बोला तो इन्स्पेक्टर को तो बोलना सकता । नो ?”
उसके माथे पर पड़े और चेहरे पर तनिक अप्रसन्नता के भाव आये ।
मुकेश उठ खड़ा हुआ ।
“आपको आपकी कांशस” - वो बोला - “डिलेड एक्शन में गाइड करती है । इस बार भी ऐसा ही अन्देशा है तो मेरे को बोलियेगा, आपकी बात मैं इन्स्पेक्टर अठवले तक पहुंचा दूंगा ।”
वो खामोश रही ।
“इट इज ऐज ईजी ऐज दैट । नो ?”
“मैं सोचेगा ।”
“जरूर सोचियेगा । छोटी सी बात है, बात के साइज से मैच करता आपका दिमाग है, जोर भी नहीं पड़ेगा ।”
“क्या ? क्या बोला ?”
“नमस्ते बोला, मैडम ।”
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