RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
फिर वो लहरों की ओर दौड़ चला ।
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मुकेश रिजॉर्ट के परिसर में लौटा ।
खामोशी से वो घिमिरे के कॉटेज के पिछवाड़े में पहुंचा ।
इस बार सायबान के नीचे घिमिरे की सफेद एम्बैसेडर खड़ी थी ।
उसने उसने इर्द गिर्द एक चक्कर लगाया और फिर उसके बायें पहलू में ठिठका ।
रिंकी के एक्सीडेंट में अगर उस कार का दख्ल था तो उसकी कहानी के मुताबिक वो बायें पहलू में कहीं ठुकी होनी चाहिये थी ।
उसे पिछले दरवाजे में बम्फर से जरा आगे डेंट दिखाई दिया ।
लेकिन क्या गारन्टी थी कि कार में वो डेंट पिछली रात पड़ा था ?
उसने उकड़ूं होकर गौर से डेंट का मुआयना किया ।
वहां कहीं लाल रंग की हल्की सी भी परत होती तो ये इस बात का सबूत होता कि कल रात वो ही कार रिंकी की कार से टकराई थी । दो कारों के आपस में भिड़ जाने से एक का पेंट उखड़ कर दूसरी में लग जाना आम और स्वाभाविक बात थी ।
वैसा कुछ सामने न आया ।
उसने पिछले बम्फर का मुआयना किया ।
उस रुख से भी बम्फर थोड़ा पिचका हुआ था लेकिन क्या पता वो कब से पिचका हुआ था !
उसे खेद था कि उस एम्बैसेसडर कार की किसी हालिया एक्सीडेंट में शिरकत का कोई कनक्लूसिव प्रूफ उसे नहीं मिला था ।
या एक्सीडेंट में शरीक कार एम्बैसेडर थी ही नहीं, रिंकी का उस बाबत अन्दाजा गलत था ।
वो सामने कम्पाउन्ड में पहुंचा ।
वहां एक कॉटेज के सामने उसे घिमिरे की ही कार जैसी ही एक एम्बैसेडर कार खड़ी दिखाई दी ।
खामखाह - सिर्फ इसलिये कि वो घिमिरे की कार जैसी थी - उसने उसका भी मुआयना किया तो उसे वो भी बायें पहलू में ठुकी हुई लगी ।
विचित्र संयोग था ।
कार का और बारीकी से मुआयना करने के लिये वो एक बार और उसके गिर्द घूमा ।
तब पिछली नम्बर प्लेट के नीचे उसे एक स्टिकर लगा दिखाई दिया जिस पर लिखा थाः
शिवाजी कार रेन्टल एजेन्सी, पूना
यानी कि वो किराये की कार थी ।
तभी रिजॉर्ट का एक बैलब्वाय उसके करीब से गुजरा ।
“इधर आ ।” - मुकेश बोला ।
बैलब्वाय करीब आया ।
“ये किसकी कार है ?”
“मिसेज सुलक्षणा घटके की ।” - जवाब मिला - “कल ही आयीं ।”
“ओह ! ठीक है ।”
बैलब्वाय चला गया ।
पीछे मुकेश विचारपूर्ण मुद्रा बनाये कुछ क्षण ठिठका खड़ा रहा और फिर वापिस ऑफिस वाले कॉटेज के पिछवाड़े में पहुंचा । उसने सायबान के नीचे खड़ी सफेद एम्बैसेडर का दरवाजा ट्राई किया तो उसे खुला पाया । उसने दरवाजा खोल कर भीतर झांका तो कार की चाबियां इग्नीशन की चाबी के साथ इग्नीशन में लटकी पायीं ।
कमाल है !
उसने दरवाजा वापिस बन्द किया ।
“क्या हो रहा है ?”
वो चौंका, उसने घूम कर पीछे देखा ।
पीछे कूल्हों पर हाथ रखे अपलक उसे देखता घिमिरे खड़ा था ।
“हल्लो !” - वो तनिक खिसियाया सा बोला ।
उसने जवाब न दिया ।
“गाड़ी लॉक नहीं करते हो ?”
पहले उसे लगा कि वो उत्तर नहीं देने वाला था लेकिन फिर वो बोला - “ऐम्बैसेडर कौन चुराता है आजकल ! वो भी ऐसी खटारा !”
“ठोकी कब ?”
“क्या ?”
“डेंट कैसे लगा ?”
“डेंट ! कौन सा डेंट ?”
“परली तरफ है । पिछले दरवाजे में । बम्फर भी पिचका हुआ है ।”
“अच्छा !”
“हां । देख लो ।”
वो कार के परले पहलू में पहुंचा, उसने कार का मुआयना किया ।
“मुझे इसकी खबर नहीं ।” - फिर वो बोला - “सामने पार्किंग में खड़ी में कोई मार गया होगा ।”
“चलते में नहीं ?”
“चलते में कैसे ? मेरे सिवाय तो इसे कोई चलाता नहीं । ये मेरे चलाते ठुकी होती तो मुझे मालूम होता ।”
“कब से नहीं चलायी कार ?”
“कब से नहीं चलाई क्या मतलब ?”
“मैं और तरीके से पूछता हूं । इस पर सवार होकर कल कहीं गये थे ?”
“कल कब ?”
“कभी भी । मसलन शाम को ।”
“कहां ?”
“कहीं भी ।”
“क्यों पूछ रहे हो ?”
“कल रिंकी जयगढ गयी थी जहां से वो शाम को अन्धेरा होने के काफी देर बाद लौटी थी । रास्ते में किसी ने उसकी कार को साइड मार कर खड्ड में गिराने की कोशिश की थी । बेचारी बाल बाल बची ।”
“और तुम्हारा खयाल है कि वो हरकत मैंने की थी !”
“ये डेंट कहता तो है ऐसा ही कुछ कुछ । इसलिये सोचा...”
“गलत सोचा ।” - वो गुस्से से बोला - “नाजायज सोचा । तुम्हें शर्म आनी चाहिये मेरी बाबत ऐसा सोचते ।”
“किसी ने रिंकी को मार डालने की कोशिश की थी, ये एक गम्भीर मसला है ।”
“तो इसे मेरे सिर क्यों थोप रहे हो ?”
“क्योंकि ताजा डेंट तुम्हारी कार में दिखाई दे रहा है ।”
“तुम्हें कैसे पता है ये ताजा डेंट है ?”
“पुलिस के पास साधन होते हैं ऐसी बातों की तसदीक के ।”
“तो यहां खड़े क्यों वक्त जाया कर रहे हो ? जाओ पुलिस के पास ।”
“मैं चला भी जाऊंगा ।”
“बड़ा तीर मारोगे ।”
“कार खुली थी, चाबियां भीतर थीं, ये भी तो हो सकता है कि किसी ने तुम्हारी जानकारी के बिना कल शाम तुम्हारी कार इस्तेमाल की हो ।”
“ये आइडिया भी पुलिस को देना । शाबाशी मिलेगी ।”
“अभी तो तुम्हें ही दे रहा हूं ।”
“मुझे नहीं चाहिये ।”
“चाहिये होना तो चाहिये बशर्ते कि....”
“क्या बशर्ते कि....”
“तुमने ऐसा जानबूझ कर न किया हो ।”
“कैसे जानबूझ कर न किया हो ?”
“कोई कार यूं खुली नहीं छोड़ता । कोई चाबियां इग्नीशन में नहीं छोड़ता । तुमने जानबूझ कर ये सब किया हो सकता है ताकि ये समझा जाता कि तुमने कुछ नहीं किया, जो किया उसने किया जो कि तुम्हारी कार चुरा ले गया और फिर चुपचाप यहां वापिस खड़ी कर गया ।”
“बढिया । बोलना ऐसा ही पुलिस को ।”
“अभी सुबह भी कार यहां नहीं थी । तुमने शायद ये सोच कर इसे यहां से हटाया था कि अगर इस कार से कोई एक्सीडेंट हुआ था तो वो एक जुदा एक्सीडेंट था जिसका पिछली रात के एक्सीडेंट से कुछ लेना देना नहीं था ।”
“ये भी बोलना पुलिस को ।”
“बहुत दिलेरी दिखा रहे हो ?”
“अब हटो वहां से ।”
“शायद तुम्हें मालूम नहीं है कि पुलिस को पहले से तुम पर शक है ।”
“पुलिस का काम है शक करना ।”
“अब ये तुम्हारी कार वाली बात पुलिस के शक को दोबाला करेगी ।”
“चौबाला करे । शक फिर भी शक ही रहेगा, हकीकत नहीं बन जायेगा ।”
“शायद बन जाये ।”
“खामखाह !”
“तुम्हारी जानकारी के लिये कल मैं मधुकर बहार से मिला था ।”
वो सकपकाया ।
“और मुझे बहार विला वाले डील की खबर है जिसका बयाना भरने की तुम्हें इतनी जल्दी थी ।”
“तु... तुम्हें खबर है ?”
“अब पुलिस को भी । बहुत जल्द इन्स्पेक्टर अठवले इस बाबत भी तुम्हारी खबर लेगा...”
“भाड़ में जाओ । उसे भी साथ ले जाओ ।”
वो घूमा और पांव पटकता वहां से रुखसत हो गया ।
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