RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“ये भी ठीक है ।”
“मुझे तो लग रहा है कि उसका सारा ध्यान हमारी ही तरफ है ।”
“क्यों ?”
“सोचो ।”
“वो समझती है कि हम... कि मैं... तुम...”
“हां । और वो इन्तजार कर रही है कि अभी कोई हरकत हुई कि हुई ।”
“हरकत ?”
“हां । सोच रहा हूं कि उसके इन्तजार को सार्थक कर दूं !”
“कैसे ?”
“तुम्हें किस कर लूं ।”
“तुम्हारी मजाल नहीं हो सकती ।”
“नहीं हो सकती । नहीं होगी । अफसोस ! अफसोस !”
“मैं टैम्पटेशन ही दूर कर देती हूं ।”
“कैसे ?”
“ऐसे ।”
वो उठी और बीच की ओर दौड़ चली ।
***
मुकेश के कॉटेज में कदम रखते रखते शाम हो गयी ।
वो जाकर देवसरे वाले विंग में बैठ गया और मुम्बई से सुबीर पसारी की टेलीफोन कॉल आने की प्रतीक्षा करने लगा ।
सात बजने को हुए तो उसने खबरें सुनने की नीयत से टी.वी. ऑन कर दिया । स्क्रीन रोशन हुई तो उसने पाया कि वो पहले से ही आजतक चैनल पर सैट था ।
मुश्किल से दो मिनट उसने टी.वी. देखा और फिर उसे आफ कर दिया । फिर देवसरे की विस्की की बोतल में से उसने अपने लिये एक ड्रिंक तैयार किया और उस खिड़की के पास, जो कि बाहर कम्पाउन्ड में खुलती थी, एक कुर्सी पर आ बैठा ।
इसीलिए ये संयोग हुआ कि वो विनोद पाटिल के कॉटेज की और बढते दो व्यक्तियों को देख सका । दोनों काले रंग की जींस-जैकेट से सुसज्जित थे और फिल्मी मवालियों जैसे जान पड़ते थे । उनकी चाल में ऐन वैसी ही दृढता थी जो मवालियों की चाल में तब होती थी जबकि वो कोई वारदात करने निकले हों ।
उसी बात ने मुकेश का ध्यान विशेषरूप से उनकी तरफ आकर्षित किया ।
वो उठ कर खड़ा हो गया और खिड़की के एक पल्ले की ओट से बाहर उनकी तरफ झांकने लगा ।
दोनों पाटिल के कॉटेज के दरवाजे पर पहुंचे ।
एक ने दरवाजे पर दस्तक दी ।
दरवाजा खुला तो दोनों झपटकर भीतर दाखिल हो गये । पीछे दरवाजा बन्द हो गया ।
क्या माजरा था ?
कौन थे वो लोग ?
कैसे वहां पहुंचे ?
किसी वाहन पर तो वे आये नहीं थे, ऐसा हुआ होता तो उसकी कार की तरफ तवज्जो गयी होती, जरूर कार जानबूझकर मेन रोड पर खड़ी करके वो पैदल वहां पहुंचे थे ।
वजह !
तभी पाटिल के कॉटेज की बत्तियां बुझ गयीं । फिर दरवाजा खुला और उन दोनों के साथ पाटिल ने बाहर कदम रखा । फिर दोनों पाटिल को अपने बीच में चलाते हुए कम्पाउन्ड में आगे बढे ।
चलाते हुए ?
साफ जाहिर हो रहा था कि पाटिल उनके साथ नहीं जा रहा था, वो जबरन ले जाया जा रहा था ।
क्या माजरा था ?
कम्पाउन्ड से जब वो मेन रोड की ओर बढे तो मुकेश कॉटेज से बाहर निकला और पार्किंग में वहां पहुंचा जहां एस्टीम खड़ी थी । वो एस्टीम में सवार हुआ, उसने उसका इंजन स्टार्ट किया, उसे गियर में डाला और फिर बिना हैडलाइट्स जलाये कार को आगे सरकाया ।
वो तीनों सड़क पर पहुंचे जहां ब्लैक पर्ल क्लब की दिशा में मुंह किये एक फियेट खड़ी थी । तीनों उसकी बैक सीट पर यूं सवार हो गये कि पाटिल उनके बीच सैंडविच बन गया । फियेट आगे बढी ।
मुकेश भी अपनी कार मेन रोड पर ले आया और उसने हैडलाइट ऑन कर लीं । सावधानी से वो फियेट का पिछा करने लगा ।
आगे फियेट क्लब की तरफ न मुड़ी तो उसे एहसास हो गया कि उन लोगों का लक्ष्य क्लब नहीं था । क्लब से काफी आगे निकल आने के बाद फियेट एकाएक दायें उस सड़क पर घूमी जो बैंग्लो रोड के नाम से जानी जाती थी । उस रोड पर उस क्षेत्र की डवैलपमेंट अथारिटी द्वारा बनाये गये छोटे छोटे बंगले थे जिनमें से एक का स्वामी, उस मालूम था कि अनन्त महाडिक था । लिहाजा जब कार एक बंगले के पिछवाड़े में जा कर रुकी तो उसे कोई खास हैरानी न हुई ।
उसने अपनी कार को दो बंगलों के बीच की गली में खड़ा किया और बाहर निकल कर पैदल आगे बढा ।
तीनों कार से बाहर निकले । एक छोटे से गेट को ठेलकर उन्होंने पिछले कम्पाउन्ड में कदम रखा । आगे एक बरामदा था जिसमें दो बन्द दरवाजे थे और एक खुली खिड़की थी ।
एक ने खुली खिड़की के साथ वाले दरवाजे पर हौले से दस्तक दी ।
भीतर एक बत्ती जली, दरवाजा खुला और चौखट पर महाडिक प्रकट हुआ । आगन्तुकों को देखकर उसने सहमति में सिर हिलाया और एक तरफ हटा । तीनों भीतर दाखिल हो गये तो उसने उनके पीछे दरवाजा बन्द कर दिया ।
मुकेश अनिश्चित सा गली के दहाने पर खड़ा रहा ।
दो मिनट यूं गुजरे तो वो हिम्मत करके कम्पाउन्ड में दाखिल हुआ और रोशन खिड़की के नीचे पहुंचा । भीतर से आती महाडिक की आवाज उसे साफ सुनायी दी लेकिन जो सुनायी दिया उससे ये भी साफ जाहिर हुआ कि वो भीतर होते वार्तलाप के लगभग समापन पर वहां पहुंचा था ।
“जो मैंने कहा” - महाडिक कह रहा था - “उसे अपने लिये वार्निंग समझना, पाटिल । अब ये तुमने देखना है कि आगे कोई पंगा न पड़े । तुमने मीनू की बाबत अब एक लफ्ज भी अपनी जुबान से निकाला तो क्या होगा, मालूम या बोलूं ?”
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