RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“क्या करोगे ?” - पाटिल इतने धीमे स्वर में बोला कि मुकेश बड़ी कठिनाई से सुन पाया - “खलास करा दोगे ?”
“नहीं । इतना बड़ा कदम मैं तेरे जैसे चूहे के खिलाफ नहीं उठाऊंगा । मैं तुझे नहीं, तेरे धन्धे को खलास करा दूंगा । एक्टर है न ?”
पाटिल का जवाब मुकेश को न सुनायी दिया ।
“थोबड़े पर तेजाब फिकवा दूंगा । पीछे बड़ोदा की बाबत अपनी जुबान खोलकर मीनू के लिये गलाटा खड़ा करने का अपना इरादा न छोड़ा तो तेरा ये खूबसूरत थोबड़ा ऐसा लगेगा जैसे सालों पुरानी कब्र खोदकर निकाला गया मुर्दा हो । क्या ?”
जवाब में पाटिल कुछ मुनमुनाया ।
“अभी सैम्पल मांगता है ?”
“न... नहीं ।”
“श्याना है भीड़ू । अब श्याना ही रहना । वापिस छोड़ के आओ इसे ।”
तत्काल मुकेश खिड़की के नीचे से हटा और दबे पांव लपकता हुआ बंगले के उस ओर के पहलू में पहुंचा । उधर से एक संकरी राहदारी फ्रंट में जाती थी । उसके दहाने पर वो दीवार के साथ चिपक कर खड़ा हो गया और सांस रोके प्रतीक्षा करने लगा ।
दरवाजा खुलने और बन्द होने की आवाज आयी ।
पूर्ववत् पाटिल के दायें बायें चलते तीनों कम्पाउन्ड में प्रकट हूए और बाहर निकलकर कार में जा सवार हुए । तत्काल कार वहां से रवाना हुई ।
मुकेश ने कुछ क्षण प्रतीक्षा की और फिर ओट में से निकला । सन्तुलित कदमों से चलता वो बरामदे में पहुंचा और फिर उसने दरवाजे पर दस्तक दी ।
दरवाजा खुला ।
चौखट पर महाडिक प्रकट हुआ ।
उसकी मुकेश पर निगाह पड़ी तो उसका निचला जबड़ा लटक गया, अवाक् वो मुकेश का मुंह देखने लगा ।
“तुम !” - फिर उसके मुंह से निकला - “यहां !”
“हां, मैं ।” - मुकेश मुस्कराता हुआ बोला - “यहां ।”
“इस वक्त ?”
“इस वक्त ।”
“मालूम था मैं यहां रहता हूं ?”
“बैंग्लो रोड पर रहते हो, मालूम था; कल रात घिमिरे के बताये नम्बर भी मालूम था लेकिन वो नम्बर असल में इधर कहां था, अब मालूम हुआ ।”
उसने घूर कर मुकेश को देखा ।
मुकेश ने लापरवाही से कन्धे उचकाये ।
“क्या चाहते हो ?”
“मेहमान मेजबान से क्या चाह सकता है ?” - मुकेश बोला ।
“आओ ।”
“थैंक्यू ।”
वो एक बैडरूम था जहां एक कुर्सी पर महाडिक ने उसे बैठने को बोला ।
“पाटिल के पीछे लगे यहां पहुंचे ?” - वो बोला ।
“हां ।” - मुकेश ने स्वीकार किया ।
“क्यों ?”
“मुझे पाटिल का अगवा होता लगा था इसलिये ।”
“अगवा ! पागल हुए हो !”
“मुझे तो यही लगा था । वो दोनों मवाली...”
“वो मवाली नहीं हैं, शरीफ आदमी हैं !”
“जाने भी दो । शरीफ आदमी ऐसे होते हैं !”
“मैं पाटिल से बात करना चाहता था, वो दोनों उसे बुलाने गये थे ।”
“उठाने गये थे ।”
“शराफत से बुलाया तो भीड़ू ने कान से मक्खी उड़ाई ।”
“इसलिये पकड़ मंगवाया ?”
“यही समझ लो । लेकिन तुम्हें क्या ? तुम क्यों टांग अड़ा रहे हो ?”
“मैं टांग नहीं अड़ा रहा, सिर्फ अपनी उत्सुकता को शान्त करने की कोशिश कर रहा हूं ।”
“टांग अड़ाकर !”
“चलो ऐसे ही सही ।”
“उनके जाते ही तुमने दरवाजा खटखटा दिया । यानी कि बाहर ही थे ?”
“हां ।”
“छुप के सुन रहे थे ?”
“कोई आवाज आये तो कान बन्द तो नहीं किये जा सकते न ?”
“क्या सुना ?”
“ज्यादा कुछ नहीं सुना ।”
“जितना सुना वो क्या सुना ?”
“उससे एक ऐसी बात की तसदीक हुई जिसकी मुझे पहले से खबर थी । पाटिल तुम्हारी हार्ट थ्रॉब को ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहा था ।”
“ब्लैकमेल !”
“ब्लैकमेल ही कहते हैं किसी को किसी के अन्जाम से डरा कर किसी से रोकड़ा खींचने की कोशिश को ।”
“हूं ।”
“मीनू ने पाटिल की उस कोशिश की बाबत तुम्हें बताया तो तुमने उसके होश उड़ाने के लिये उसे यहां पकड़ मंगवाया । बहरहाल तुम्हारी कोशिश कामयाब रही । मैंने देखे उसके होश उड़े हुए ।”
“और ?”
“और क्या ?”
“और क्या कहना चाहते हो ?”
“किस बाबत ?”
“किसी भी बाबत ?”
“मीनू के खिलाफ कुछ सुनना गवारा हो तो है तो सही कुछ कहने को ।”
“गवारा है । बोलो, क्या कहना चाहते हो ?”
“तुम्हारी माशूक कातिल की मददगार है ।”
“क्या ?”
“मिस्टर देवसरे के कत्ल की रात को एक साजिश के तौर पर उसने मुझे नींद की दवा खिलाकर बेहोश किया था और यूं कातिल का रास्ता साफ किया था ।”
“क्या किस्सा है नींद की दवा का ?”
मुकेश ने कैप्सूलों का किस्सा बयान किया ।
“ओह !” - सुनकर महाडिक बोला - “ऐसा उसने किसके लिये किया होगा ?”
“खुद अपने बारे में क्या खयाल है ?”
“क्या बकते हो ?”
“वो तुम्हारे से फिट है । वो तुम्हारे लिये कुछ भी कर सकती है ।”
“कुबूल लेकिन सिर्फ इतने से ये साबित नहीं होता कि उसने जो किया मेरे लिये किया ।”
“तो खिसके लिये किया ?”
“देवसरे के बारे में क्या खयाल है ? वो तुम्हारे से आजिज आया हुआ था, तुम्हारी चौबीस घन्टे की पहरेदारी से बेजार था । तुम्हें बेहोशी की दवा खिलाने के लिये उसने मीनू को कहा हो सकता है ताकि ये स्थापित हो पता कि तुम्हारा उसके साथ होना या न होना एक ही बात है ।”
“कहां एक ही बात थी ? मैं साथ नहीं था इसलिये तो मिस्टर देवसरे का कत्ल हुआ !”
“वो इत्तफाक की बात थी । तुम्हारी बेहोशी ने कातिल का काम आसान कर दिया था वर्ना बड़ी हद ये होता कि देवसरे के साथ साथ वो तुम्हें भी शूट कर देता । जब एक बार खून से हाथ रंग लिये तो एक कत्ल क्या और दो कत्ल क्या ! दो बार फांसी पर तो लटकाया नहीं जा सकता कातिल को ।”
“मैं नहीं मानता कि मीनू ने जो किया था मिस्टर देवसरे के कहने से किया था ।”
“क्यों नहीं मानते ?”
“बात इतनी मामूली थी तो वो साफ बोलती ऐसा कि मिस्टर देवसरे ने मेरी किरकिरी कराने के लिए मीनू से वो सब करवाया था ।”
“बोलती तो कौन यकीन करता ?”
“कोई न करता तुम तो करते ! और किसी से बोलती या न बोलती, तुम से तो बोलती !”
“बात तो तुम्हारी ठीक है । मैं उससे फिर बात करूंगा ।”
“पाटिल के बारे में क्या कहते हो ?”
“क्या मतलब ?”
“वो मीनू को ब्लैकमेल कर रहा था । ब्लैकमेल कैन बी इन कैश ऑर काइन्ड । किसी से पैसा ही नहीं, सहयोग भी जबरिया हासिल किया जा सकता है ।”
“उस छोकरे ने मीनू को मजबूर किया तुम्हारे ड्रिंक में बेहोशी की दवा मिलाने के लिये ?”
“क्या नहीं हो सकता ? जवाब ये सोच के देना कि वो मीनू का पुराना - तुमसे भी पुराना - वाकिफ है और उसके पास मिस्टर देवसरे के कत्ल का तगड़ा उद्देश्य है ।”
“यकीन नहीं आता कि मीनू ने उसके कहे ऐसा किया होगा ।”
“जब ब्लैकमेल पर यकीन आता है तो ब्लैकमेल के किसी नतीजे पर क्यों नहीं आता ? ब्लैकमेल पर यकीन आता है, तभी तो उसे यहां पकड़ मंगवाया और उसकी हवा खुश्क की ।”
“मैं... मैं मीनू से बात करूंगा ।”
“ब्लैकमेल की बाबत तो बात हो चुकी होगी ! मीनू ने बताया होगा कि पाटिल का उस पर क्या होल्ड था !”
“कुछ तो बताया था ।”
“तो आगे मुझे कुछ ही बता दो ।”
“कुछ के खाते में ये सुन लो कि वो गवाह है एक गम्भीर मामले की । कुछ लोग चाहते हैं कि वो गवाही दे, कुछ नहीं चाहते । उस जंजाल से छूटने के लिये ही वो बड़ोदा से चुपचाप खिसकी थी और इधर आ बसी थी ।”
“मामला क्या था जिसकी कि वो गवाह थी ?”
“था कोई मामला ।”
“ऐसी बात को छुपाने का क्या फायदा जो पाटिल से भी जानी जा सकती है ?”
“पाटिल बतायेगा ?”
“मुझे शायद टाल दे लेकिन पुलिस को तो बतायेगा, बताना पड़ेगा ।”
“पुलिस का क्या लेना देना इस बात से ?”
“हो जायेगा न !”
“कैसे हो जायेगा ?”
“मैं बताऊंगा ।”
“तुम्हारी मजाल नहीं होगी ।”
मुकेश हंसा ।
“शायद भूल गये हो कि कहां बैठे हो !”
“नहीं, मैं नहीं भूला । तुम भूल गये हो । तुम भूल गये हो कि पाटिल यहां से कब का चला गया हुआ है और तुम्हारे सामने पाटिल नहीं मैं बैठा हुआ हूं ।”
उसने कई क्षण मुकेश को घूरा ।
मुकेश ने लापारवाही से कन्धे उचकाये ।
“देखो, मेरे भाई ।” - आखिरकार वो बोला - “इतनी पंगेबाजी अच्छी नहीं होती । जिस बात से वास्ता न हो, उसके गले पड़ना नादानी होती है ।”
“ऐसा था तो ट्रेलर नहीं दिखाना था । जिक्र ही नहीं करना था इस बात का ।”
“मैं कहां करना चाहता था ! तुमने जबरदस्ती करवाया ।”
“चलो ऐसे ही सही, अब बची खुची जबरदस्ती भी चल जाने दोगे तो कौन सा पहाड़ गिर जायेगा ?”
“बात अपने तक ही रखोगे ?”
“मिस्टर देवसरे के कत्ल से ताल्लुक नहीं रखती होगी तो रखूंगा ।”
“नहीं रखती । मैं गारन्टी करता हूं ।”
“तो रखूंगा ।”
“पुलिस के कान भरने नहीं पहुंच जाओगे ?”
“नहीं ।”
“पाटिल से भी कोई बात नहीं करोगे ?”
“नहीं ।”
“तो सुनो । मीनू बड़ोदा में एक एंटीक डीलर के पास काम करती थी जो कि असल में नाराकाटिक्स स्मगलर था ।”
“यानी कि स्मगलर्स मौल थी !”
“बकवास मत करो । उसे नहीं मालूम था कि उसका एम्पलायर स्मगलर था ।”
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