RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
वो रिजॉर्ट के परिसर में वापस लौटा तो वहां पुलिस की एक जीप को अपना इन्तजार करते पाया । जीप में एक सिपाही के साथ सब-इन्स्पेक्टर सोनकर सवार था ।
एस्टीम के गतिशून्य होते ही वो जीप में से उतरा और एस्टीम के करीब पहुंचा ।
मुकेश कार से बाहर निकला । उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से सब-इन्स्पेक्टर की तरफ देखा ।
“मैं आप ही के इन्तजार में यहां मौजूद हूं ।” - सब-इन्स्पेक्टर बोला ।
“अच्छा ! कोई खास बात ?”
“इन्स्पेक्टर साहब ने तलब किया है ।”
“इस वक्त ?”
“हां ।”
“फिर तो कोई खास बात ही होगी !”
“साथ चलिये, अभी मालूम पड़ जायेगा ।”
“ठीक है । मैं अपनी कार जीप के पीछे पीछे...”
“जीप में चलिये, वापिस छोड़ जायेंगे ।”
“जैसी तुम्हारी मर्जी ।”
वो सब-इन्स्पेक्टर के साथ जीप में सवार हो गया ।
सिपाही ने जीप आगे बढाई ।
मेन रोड पर पहुंच कर जीप ने रफ्तार पकड़ ली ।
कुछ क्षण खामोशी में सफर कटा ।
“ये थाने का रास्ता तो नहीं !” - एकाएक वो बोला ।
सब-इन्स्पेक्टर खामोश रहा ।
“हम कहीं और जा रहे हैं ?”
सब-इन्स्पेक्टर ने सहमति में सिर हिलाया ।
“और कहां ?”
“खामोश बैठिए, हम बस पहुंचने ही वाले हैं ।”
“यार, कुछ तो बताओ क्या माजरा है ?”
सब-इन्स्पेक्टर ने मजबूती से होंठ भींच लिये ।
जयगढ के रास्ते पर जीप को एक स्थान पर ब्रेक लगी ! वहां आधी सड़क पर बैरियर लगा हुआ था और दो सिपाही बाकी आधी सड़क से गुजरते ट्रैफिक को गाइड कर रहे थे । उस बैरियर के करीब से एक पतली सी सड़क दायें को जा रही थी जिसके दहाने पर लगे एक बोर्ड पर जीप की हैडलाइट्स पड़ीं । यूं बोर्ड रोशन हुआ तो मुकेश को उस पर लिखा दिखाई दिया :
प्रवेश निषेध । आगे सड़क बन्द है ।
मुकेश उस सड़क से वाकिफ था, उस तथ्य से भी वाकिफ था कि वो बीच पर जाकर खत्म होती थी लेकिन उस बोर्ड पर लिखी इबारत की तरफ उसकी तवज्जो पहली बार गयी थी ।
एक स्थान पर पहुंच कर जीप रुकी ।
“आओ ।” - सब-इन्स्पेक्टर नीचे उतरता बोला ।
“कहां ?” - मुकेश ने सशंक भाव से पूछा ।
“हुज्जत न करो । आओ ।”
मुकेश उसके साथ हो लिया ।
सड़क छोड़ कर रेतीले रास्ते पर उसे चलाता जहां आखिरकार वो जाकर रुका वहां पुलिस की दो गाड़ियां और खड़ी थीं, दोनों की हैडलाइट्स जल रही थीं और वो एक सफेद एम्बैसेडर पर केन्द्रित थीं । वहां कई पुलिस वालों के अलावा कुछ सादी वर्दी वाले लोग भी मौजूद थे ।
फिर उसकी निगाह एक ओर खड़ी एम्बूलेंस पर पड़ी ।
उसका दिल जोर से धड़का ।
रिंकी !
रिंकी जो कातिल के एक वार से बच गयी थी । शायद दूसरे से नहीं बच पायी थी ।
शायद सिर्फ घायल हो ! - उसने अपने आपको तसल्ली दी ।
लेकिन वो तसल्ली क्षणभंगुर थी ।
कोई सिर्फ घायल हुआ होता तो एम्बूलेंस अभी भी वहां न होती । और लोगों का जमघट्टा भी वहां न होता ।
एम्बैसेडर के पहलू में फर्श पर एक स्ट्रेचर रखा था जो कि एक सफेद चादर से ढका हुआ था ।
एम्बैसेडर !
वो तो रिंकी की कार नहीं थी ।
वो तो... वो तो ....
तभी इन्स्पेक्टर अठवले उसके करीब पहुंचा ।
“कहां गायब हो गये थे तुम ?” - वो कर्कश स्वर में बोला ।
“यूं ही कहीं काम से गया था ।” - मुकेश फंसे कण्ठ से बोला - “क्या हुआ ?”
“कत्ल ।”
“कि... किसका ?”
“माधव घिमिरे का ।”
“स्ट्रेचर पर उसकी लाश है ?”
“हां । आओ दिखाऊं ।”
“नहीं । नहीं ।”
“मर्जी तुम्हारी ।”
“हुआ... हुआ क्या ?”
“कैसे बतायें ? जो हुआ, हमारे सामने तो न हुआ । अपनी कार में ड्राइविंग सीट पर स्टियरिंग पर सिर डाले मरा पड़ा था । रात को समुद्र स्नान के लिये बीच पर जाते दो लड़कों ने कार देखी, लाश देखी और फिर कोई आधा घन्टा पहले पुलिस को खबर की ।”
“सड़क पर तो प्रवेश निषेध का बोर्ड लगा हुआ था ।”
“वाहनों के लिये । पैदल आवाजाही पर कोई पाबन्दी नहीं ।”
“कैसे मरा ?”
“गोली से । बहुत करीब से शूट किया किसी ने उसे ।”
“मिस्टर देवसरे की तरह ?”
“नहीं । देवसरे पर पीठ पीछे से गोली चलायी गयी थी । इसके पहलू में लगी । बाईं ओर । दिल के करीब ।”
“कातिल का कोई अतापता या अन्दाजा ?”
“अभी कोई नहीं ।”
“घिमिरे आपकी निगाह में सस्पैक्ट नम्बर वन था, खुद इसके कत्ल से एक बात तो साबित हो गयी कि मिस्टर देवसरे के कत्ल से इसका कोई लेना देना नहीं था ।”
“हां । तुम कहां थे ?”
“कब ? अभी आपके सब-इन्स्पेक्टर के आने से पहले ?”
“दोपहरबाद । साढे तीन बजे के करीब ?”
“बीच पर था ।”
“अकेले ?”
“रिंकी के साथ ।”
“तब और कौन कौन था वहां ?”
“पाटिल था ।” - मुकेश याद करता हुआ बोला - “करनानी था और जहां तक मुझे याद पड़ता है मिसेज वाडिया थी ।”
“क्या कर रहे थे ?”
“कुछ नहीं । लंच के बाद रेत में बैठे लेटे रिलैक्स कर रहे थे ।”
“कब तक थे तुम बीच पर ?”
“यही कोई साढे चार बजे तक ।”
“उस दौरान रिंकी हर घड़ी तुम्हारे साथ थी ?”
“हां ।”
“और वो बाकी लोग जिनके तुमने नाम लिये ?”
“उनके बारे में निश्चित रूप से मैं कुछ नहीं कह सकता । वहां पहुंचने पर ही मेरी उनकी तरफ तवज्जो गयी थी, बाद में कौन आया, कौन गया, कौन जा के लौटा, या न लौटा, इसका मुझे ध्यान नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्यों क्या मतलब ? इतने विशाल बीच पर वहां हर कोई एक दूसरे के सिर पर सवार थोड़े ही था ! सब बहुत बिखरे बिखरे बैठे हुए थे । और उनके अलावा वहां ऐसे लोग भी मौजूद थे जिनको मैं जानता पहचानता नहीं ।”
“रिजॉर्ट में ठहरे हुए लोग ?”
“हां । रिजॉर्ट आजकल फुल है । कल से ही बाहर ‘नो वैकेन्सी’ का बोर्ड चमक रहा है ।”
“हूं ।”
“दोनों कत्ल एक ही गन से हुए ?”
“अभी नहीं मालूम । निश्चित रूप से तो जो कहेगा बैलेस्टिक एक्सपर्ट ही कहेगा । अलबत्ता मेरा अन्दाजा यही कहता है कि दोनों कत्ल एक ही गन से हुए हैं ।”
“फिर तो कातिल भी एक ही होगा ?”
“हां । घिमिरे से आखिरी बार कब मिले थे ?”
मुकेश ने एक क्षण सोचा और फिर जवाब दिया - “दो बजे के करीब ।”
“कहां ?”
“रिजॉर्ट में ही ।”
“किस सिलसिले में ?”
“कोई सिलसिला नहीं था । मैं उसकी गाड़ी चैक कर रहा था कि वो ऊपर से आ गया था ।”
“गाड़ी क्यों चैक कर रहे थे ? एक ही बार में सब बोलो ।”
मुकेश ने बोला ।
“ओह !” - इन्स्पेक्टर बोला - “तो तुम्हारा खयाल था कि रिंकी के कत्ल की कोशिश उसने की थी ?”
“तब था । अब नहीं है ।”
“जिन्दा होता तो अभी भी होता ?”
“हां । कार में पड़े डेंट की वजह से ।”
“उसका माइक्रोस्कोपिक एग्जामिनेशन कराया जायेगा । कुछ निशानात नंगी आंखों से दिखाई नहीं देते लेकिन माइक्रोस्कोप के नीचे अपनी कहानी खुद कहने लगते हैं ।”
“आई सी । यहां कत्ल कब हुआ ?”
“अभी मोटा अन्दाजा तो तीन और पांच के बीच का है, पोस्टमार्टम से ये वक्फा और मुख्तसर हो सकता है ।”
“इसीलिये पूछ रहे थे दोपहरबाद मैं कहां था ?”
“तफ्तीश ऐसे ही होती है । ये एक अहम सवाल है । सबसे होगा ।”
“फिर क्या बात है !”
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