RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
दो बार वो कॉटेज से बाहर भी गया लेकिन तब सोनकर को पीछे छोड़ कर गया ।
आखिरकार वो हलचल खत्म हुई और उस बार वो अपना बदन ढीला छोड़ कर कुर्सी पर ढेर हुआ ।
“तो” - फिर वो बोला - “तुम्हारा खयाल है कि डबल मर्डर के इस केस को मैं हल नहीं कर पाऊंगा ?”
“साईं” - करनानी बोला - “मैं सॉरी बोल तो चुका ।”
“तुम डिटेक्टिव हो, तुम बताओ कौन होगा कातिल ?”
“मैं वैसा डिटेक्टिव नहीं हूं । कल्ल मेरा फील्ड नहीं है ।”
“यानी कि एक - क्या बोला था ? हां, झाऊं-झाऊं पुलिस इन्स्पेक्टर की तुम कोई मदद नहीं कर सकते ?”
करनानी ने आहत भाव से उसका तरफ देखा ।
“कोई अपना अन्दाजा ही बताओ ।”
“मैं क्या बताऊं ?”
“अन्दाजा भी नहीं बता सकते ?”
करनानी खामोश रहा ।
“मिसेज वाडिया के बयान को सच माना जाये” - इन्स्पेक्टर मुकेश की तरफ देखता हुआ बोला - “तो देवसरे के कत्ल की रात को कत्ल के वक्त के आसपास उसने घिमिरे को इधर पहुंचते देखा था । हो सकता है तब उसने कत्ल होता देखा हो या ऐसा कुछ देखा हो जो कत्ल होता होने की तरफ इशारा हो । मसलन उसने गोली चलने की आवाज सुनी हो ।”
“उसने ऐसा कुछ देखा सुना होता” - मुकेश बोला - “तो क्या वो खामोश रहा होता ?”
“तो फिर उसने ऐसा कुछ देखा होगा जिसकी अहमियत उसे बाद में सूझी होगी ।”
“तो बाद में क्यों न बोला ?”
“बाद में उसके जेहन में ये नापाक खयाल पनपा होगा कि वो अपनी जानकारी को कैश करा सकता था ।”
“ब्लैकमेल !”
“क्यों नहीं ? वो जरूरतमन्द था और जरूरतमन्द को हराम का पैसा न लुभाए, ऐसा कहीं होता है !”
“उसकी जरूरत का जो जुगराफिया था, वो जुदा था । जरूरतमन्द वो मिस्टर देवसरे की जिन्दगी में था, उनकी मौत होते ही तो वो इस रिजॉर्ट के एक चौथाई हिस्से का मालिक बन गया था । जमा वो अच्छी तनखाह पाता था इसलिये चार पैसे ऐसे शख्स के पल्ले भी होंगे । ये बातें तो एक ब्लैकमेलर की तसवीर नहीं उकेरतीं ।”
“तो फिर वो देवसरे का कातिल था !”
“कातिल था तो उसका कत्ल क्यों हुआ ? किसने किया ?”
“मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं ।” - इन्स्पेक्टर झुंझला कर बोला - “लेकिन ऐन पाक साफ वो शख्स शर्तिया नहीं था । भेद तो कोई जरूर था उसके किरदार में ! कुछ न कुछ छुपाता भी वो मुझे बराबर लगा था । इसीलिये उसे गिरफ्तार कर लेने का मन बना चुकने के बावजूद मैंने उसे ढील दी थी । ये सोच के ढील दी थी कि वो भरमा जायेगा कि उसका पुलिस से पीछा छूट गया और फिर अलगर्ज होकर कोई गलत कदम उठायेगा जो कि हमारे लिये कारगर होगा !”
“किया तो कुछ न उसने ऐसा !”
“हां । इसीलिये मैंने उसे हिरासत में लेने का फैसला कर लिया था । आज दोपहरबाद तीन बजे के करीब इसी काम को अंजाम देने के लिये मैं यहां आया था लेकिन वो यहां नहीं था, उसकी कार भी यहां नहीं थी जिसका मतलब था कि वो कहीं दूर निकल गया था ।”
“अपनी मौत से मुलाकात करने ।”
“ऐसी ही जान पड़ता है । कोई बड़ी बात नहीं कि वो कातिल से ही अपनी अप्वायंटमेंट पर यहां से निकला था । कातिल को जरुर उसके कत्ल की जल्दी थी क्योंकि उसे लगने लगा था कि वो कभी उसकी बाबत अपना मुंह फाड़ सकता था । किसी बहाने उसने मौकायवारदात पर पहुंचने के लिये घिमिरे को राजी किया और फिर उसी की कार में उसके पहलू में बैठकर उसे शूट कर दिया ।”
“दिनदहाड़े !”
“तो क्या हुआ ? बन्द कार में गोली की आवाज कहां सुनायी दी होगी ! सुनाई दी होगी तो कितनी दूर तक सुनायी दी होगी ?”
“ठीक ।”
“घिमिरे के अपनी कार पर वहां पहुंचने के बाद बीच की तरफ से कोई वहा आया होगा...”
“बीच की तरफ से ?” - करनानी बोला - “सड़क की तरफ से नहीं ?”
“नहीं, सड़क की तरफ नहीं ।”
“बड़े विश्वास के साथ कह रहे हो !”
“विश्वास की वजह है ।”
“क्या ?”
इन्स्पेक्टर ने उत्तर देने का उपक्रम न किया ।
“क्या ?” - मुकेश बोला ।
“तुम्हें बता देता हूं ।” - इन्स्पेक्टर बोला - “इन्होनें तो मुझे झाऊं कहा इसलिये....”
“जनाब” - करनानी चिढ़ कर बोला - “छोड़ भी दिया करो किसी बात का पीछा ।”
इन्स्पेक्टर हंसा और फिर बोला - “जयगढ़ रोड पर जहां से वो पतली सी सड़क भीतर जाती है वहां उसके दहाने के करीब एक स्नैक्स और कोल्ड ड्रिंक्स का खोखा है जिसे कि बारी बारी ड्यूटी देते दो भाई यूं चलाते हैं कि वो खोखा कभी खाली नहीं होता । वो दोनों बतौर रिजॉर्ट मैनेजर घिमिरे को जानते थे और उसकी एम्बैसेडर कार को भी पहचानते थे । आज दोपहरबाद से छोटा भाई उस खोखे पर ड्यूटी भर रहा था । वो कहता है कि साढे तीन बजे के करीब उसने घिमिरे की कार को मेन रोड छोड़ कर उस पतली सड़क पर उतरते देखा था । लेकिन कार को वापस लौटते नहीं देखा था । सड़क के दहाने पर लगे प्रवेश निषेध के बोर्ड की वजह से अमूमन कोई कार नहीं जाती इसलिये भी उसकी खासतौर से घिमिरे की कार की तरफ तवज्जो गयी थी ।”
“ओह !”
“आगे उस लड़के का कहना है कि कार के भीतर दाखिल होने के बाद कोई पैदल चलता भी उस सड़क पर नहीं गया था, जो लोग भी पैदल उधर गये थे तीन बजे से पहले गये थे । इसमें इत्तफाक का भी हाथ था कि तीन और पांच बजे के बीच सिवाय घिमिरे की कार के उस सड़क पर कतई कोई आवाजाही नहीं हुई थी । हुई होती तो उस लड़के ने जरूर देखी होती क्योंकि इसी वजह से उसका धन्धा ठण्डा था और वो खाली बैठा था । अब जब कोई वाहन घिमिरे के पीछे नहीं गया, कोई पैदल शख्स घिमिरे के पीछे नहीं गया तो जाहिर है कि कातिल बीच की तरफ से उस तक पहुंचा होगा ।”
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