RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“ठीक । लेकिन वो पब्लिक बीच है, उधर से तो कोई भी आ सकता था ।”
“किसी न किसी की निगाहों में आये बिना नहीं । बीच पर भीड़ तो नहीं बतायी गयी थी लेकिन फिर भी लोग मौजूद थे । ऐसा कोई शख्स उधर से आया होता तो किसी न किसी की निगाह उस पर जरूर पड़ी होती, गन की वजह से तो जरूर ही पड़ी होती जो कि स्विमिंग कास्ट्यूम में नहीं छुपती । जहां कत्ल हुआ है वो जगह बीच को या समुद्र में स्विमिंग को एनजाय करने वाले लोगों के काम की नहीं है । हमने खासतौर से मालूम किया है कि बीच से कोई उधर नहीं जाता । अब ऐसी जगह का रूख किसी ने स्विमिंग कास्ट्यूम में किया होता तो वो किसी न किसी की निगाह में जरूर आया होता ।”
“इन्स्पेक्टर साहब” - मुकेश बोला - “दो ऐन उलट बातें कह रहे हो । एक सांस में कहते हो कि कातिल बीच की तरफ से आया और दूसरी सांस में कहते हो कि वो उधर से आया होता तो किसी ने उसे जरूर देखा होता ।”
“ठीक है । यही तो मैं कहने की कोशिश कर रहा हूं कि किसी न किसी ने उसे जरूर देखा होगा । लेकिन ये जानने का हमारे पास क्या जरिया है कि वो नजारा करने वाला कौन था !”
“ओह !”
“अब समझे ?”
“हां ।”
“उस बीच पर कुछ लोग मौजूद थे जिनमें सें कुछ रेगुलर आने वाले थे तो कुछ कभीकभार आने वाले थे । रेगुलर्स का तो हम पता लगा सकते है और उनके बयान दर्ज कर सकते हैं लेकिन कभीकभार आने वाले लोगों में से तमाम के तमाम के बारे में दुरुस्त जानकारी हासिल हो तो क्योंकर हो ?”
“है तो ये विकट समस्या । बहरहाल बात का लुब्बोलुआब ये हुआ कि घिमिरे का कातिल पब्लिक बीच पर मौजूद लोगों में शामिल था !”
“यह एक सम्भावना है ।”
“एक सम्भावना है ! यानी कि कोई और सम्भावना भी है ?”
“हां । यहां का ये प्राइवेट बीच भी, मौकायवारदात के उतना ही करीब है जितना करीब कि वो पब्लिक बीच है ।”
“ओह ! ओह !”
“मुझे पता लगा है “ - इन्स्पेक्टर करनानी की तरफ घूमा - “कि उस टाइम के आसपास तुम भी इस बीच पर मौजूद थे ।”
“मै !” - करनानी हड़बड़ाकर बोला ।
“हां, भई तुम ।”
“तो अब मैं आपको घिमिरे का कातिल लगता हूं ।”
“सवाल करना मेरा काम है, फर्ज है । और जवाब हासिल करना मेरा अधिकार है ।”
“जवाब देने वाले का कोई अधिकार नहीं ?”
“है ।”
“क्या ?”
“वो जवाब यहां दे सकता है या थाने चल के दे सकता है ।”
“या जवाब नहीं दे सकता ।”
“ऐसा नहीं हो सकता । जो जवाब हमें राजी से हासिल नहीं होता उसको हासिल करने के तरीके होते हैं हमारे पास ।”
“जैसे कि थर्ड डिग्री ! डंडा परेड !”
“कितने समझदार हो !”
“मेरे पर ये तरीके इस्तेमाल करने की आपकी मजाल नहीं हो सकती ।”
“देखना चाहते हो मेरी मजाल ?”
करनानी कसमसाया और फिर बोला - “नहीं ।”
“तो जवाब दो ।”
“ये सख्ती मेरे पर इसलिये हो रही है क्योंकि मैंने आपको झाऊं कहा !”
“जवाब दो ।”
“मैं माथुर और रिकी से पहले बीच पर पहुंचा था । अलबत्ता पाटिल मेरे से पहले वहां था ।”
“कब तक वहां थे ?”
“छ: तक ।”
“क्या करते रहे थे ?”
“ऊंघता रहा था सोता रहा था ।”
“माथुर और रिकी तुम्हारे से बाद में वहां पहुंचे थे, गये कब थे ?”
“पहले । मेरे जाने से काफी पहले ।”
“और कौन था तब वहां ?”
“मिसेज वाडिया थी ।”
“हूं ।” - एकाएक वो उठ खड़ा हुआ - “ठीक है, मैं अभी फिर बात करूंगा तुमसे इसलिये कहीं खिसक न जाना ।”
“लेकिन…”
“ये झाऊं का हुक्म है ।”
“सिर्फ मेरे लिये ?”
“सिर्फ तुमने मुझे झाऊं कहा था ।”
“उसका बदला उतार रहे हैं ?”
“हां । और समझ लो सस्ता छोड़ रहा हूं ।”
“झूलेलाल !”
“मैं महाडिक से मिलने जा रहा हूं ।” - इन्स्पेक्टर मुकेश से बोला - “लौट के इधर आ सकता हुं, इन्तजार करना ।”
“कब तक ?” - मुकेश ने पूछा ।
“आधा पौना घण्टा तो करना ही ।”
“ठीक है ।”
इन्स्पेक्टर वहां स रुख्सत हो गया ।
“गले ही पड़ गया कर्मामारा ।” - पीछे करनानी भुनभुनाया - “मुहावरे जैसा एक फिकरा क्या मुंह से निकल गया, दुश्मन ही बन बैठा ।”
“बेचारा कितनी मेहनत कर रहा है केस पर । मारा मारा फिर रहा है । तुमने फतवा दे दिया कि वो केस हल नहीं कर सकता ।”
“अब मुझे क्या पता था वो सुन लेगा ।”
“तभी तो कहा गया है पहले तोलो फिर बोलो ।”
“अब तो चला गया है न या बाहर दरवाजे से लगा खड़ा है ?”
“जा के देख लो ।”
“वो जो कुछ कर रहा है, यूं झुंझलाया बौखलाया कर रहा है जैसे खुद न जानता हो कि क्या कर रहा था । अनापशनाप सवाल करके खाना पूरी कर रहा है । पहले तो मैंने अपना खयाल जाहिर किया था कि वो केस हल नहीं कर पायेगा, अब दावे स कहता हूं कि नहीं कर पायेगा ।”
“ये तुम कह नहीं रहे हो, उससे कुढ कर उसे श्राप दे रहे हो ।”
“ऐसे ही सही । जो मेरे गले पड़ेगा बड़ा साईं उसका गला ही थाम लेगा ।”
मुकेश हंसा ।
बड़बड़ाता सा करनानी वहां से चला गया ।
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