RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
दो हाथ उसकी तरफ लपके ।
उसने चिल्लाने के लिये मुंह खोला लेकिन आवाज उसके गले में ही घुटकर रह गयी । उसने फिर कोशिश की तो चीख की जगह एक कदरन तीखी कराह ही उसके मुंह से निकली ।
एक हाथ ने उसका गला दबोच लिया और दूसरे ने उसकी एक बांह थाम कर फिरकी की तरह उसे घुमा दिया । फिर एक हाथ ने उसकी दोनों कलाईयां उसकी पीठ पीछे जकड़ लीं और दूसरे की बांह सांप की तरह उसकी गर्दन से लिपट गयी ।
वो तड़पने लगी और मछली की तरह छटपटाने लगी ।
उसका गला यूं घुटता चला जा रहा था कि उसके लिये सांस ले पाना दूभर हो रहा था । उसकी आंखें कटोरियों से बाहर उबली पड़ रही थीं लेकिन उसकी कोई कोशिश उसे बन्धनमुक्त नहीं कर पा रही थी ।
उसने भरपूर जोर लगाकर कोशिश की तो उसकी एक कलाई बन्धनमुक्त हो गयी । यूं स्वतन्त्र हुआ उसका हाथ अपनी गर्दन से लिपटी बांह पर जाकर पड़ा और वो पूरी शक्ति से बांह की गिरफ्त तोड़ने की कोशिश करने लगी ।
उसकी कोशिश कामयाब न हुई ।
केवल एक क्षण को उसे लगा कि वो बन्धनमुक्त होने जा रही थी, जबकि उसके गले से कराह जैसी एक चीख निकली और फिर तत्काल बाद हमलावर की जकड़ मजबूत, मजबूततर होती चली गयी ।
फिर एकाएक उसका शरीर धनुष की तरह मुड़ा और उसके पांव जमीन छोड़ गये । कुछ क्षण उसने हवा में पांव चलाये फिर...
फिर सब शान्त हो गया ।
Chapter 4
केवल एक ड्रिंक लेकर करनानी चला गया ।
पीछे मुकेश ने घड़ी देखी और वहां की बत्तियां बुझाने लगा ।
अब उसे मुम्बई से कॉल आने की कोई उम्मीद नहीं रही थी ।
वो अपने विंग में लौट आया ।
वहां उसने कोई बत्ती जलाने की कोशिश न की और सोने की तैयारी करने की जगह खिड़की के करीब एक कुर्सी पर बैठ गया ।
इन्स्पेक्टर अठवले लौट के आने को बोल के गया था इसलिये उसका इन्तजार करना उसका फर्ज था ।
इन्तजार के उस वक्फे में घिमिरे की सूरत बार बार उसके जेहन पर उभरी, कई बार उसे लगा कि वो जानता था कि कौन उसका कातिल हो सकता था ।
लेकिन लगने से क्या होता था ! कोई सबूत भी तो होना चाहिये था । कहां था सबूत ?
कहीं तो था ।
भूसा हटे तो गेहूं दिखाई दे न ।
फिर उसका दिमाग जैसे गुजश्ता वाकयात पर से भूसा हटाने में मशगूल हो गया ।
उसे उस काम में कामयाबी के आसार दिखाई देने लगे थे जबकि एकाएक टेलीफोन की घन्टी बजी ।
घंटी यूं एकाएक बजी कि वो चिहुंक गया । फिर वो लपककर दूसरे यूनिट में पहुंचा । उसने कॉल रिसीव की ।
लाइन पर सुबीर पसारी था ।
“ये टाइम है फोन करने का ?” - मुकेश झुंझलाया ।
“भई, और भी काम होते हैं ।” - जवाब में पसारी का स्वर सुनायी दिया ।
“होते हैं । और हो जाते हैं अगर अच्छी नीयत से करो तो । अब बोलो, कुछ हुआ ?”
“हुआ । तभी तो फोन लगाया ।”
“जरूर पांच मिनट पहले ही हुआ होगा ।”
“अरे नहीं, भाई । पहले फोन करने का मौका न मिला, फिर फोन न मिला । इसलिये देर हुई ।”
“चलो, देर आयद दुरुस्त आयद । अब बोलो क्या हुआ ?”
पसारी ने बोलना शुरू किया ।
“यार, लाइन में गड़बड़ है ।” - मुकेश को बीच मे बोलना पड़ा - “आवाज ठीक से नहीं आ रही । ...क्या बोला ? ..बान्द्रा ईस्ट ! ..विरसे का मामला है ? वो तो होगा ही । रकम ट्रस्ट में है ? ...दस साल के लिये ? ..कितनी ? ..और नाम ? ...क्या ? तनु ! ...और तारीख क्या बताई ? ..उन्नीस अप्रैल ? ...आवाज अभी भी खराब है । ..ठीक है, मैं कल फोन करूंगा और कुछ बातें दोहरा के पूछूंगा । ओके, थैंक्यू । एण्ड गुड नाइट ।”
उसने रिसीवर रख दिया और घड़ी पर निगाह डाली ।
इन्स्पेक्टर का तब भी कहीं अता पता नहीं था ।
वो कॉटेज से बाहर निकला ।
पुलिस की जीप जो इतनी देर से कम्पाउन्ड में खड़ी दिखाई दे रही थी, अब वहां नहीं थी ।
वो ‘सत्कार’ में पहुंचा ।
रिंकी वहां नहीं थी ।
फिर उसे खुद अपनी नादानी का अहसास हुआ, उस वक्त तो वो वहां अपेक्षित भी नहीं होती थी ।
बाहर आकर उसने उसके कॉटेज पर निगाह डाली तो उसे अन्धेरे में डूबा पाया ।
यानी कि अभी वो बीच से वापिस नहीं लौटी थी ।
वो बीच पर पहुंचा ।
वहां कदम रखते ही उसे ऐसा लगा जैसे उसके कानों में घुटी हुई चीख की आवाज पड़ी हो । वो आवाज उसे एक दर्दनाक कराह जैसी लगी ।
उसने आंखें फाड़ फाड़कर सामने देखा ।
फिर उसे समुद्र के किनारे के करीब एक साया दिखाई दिया जो कि रिंकी का यकीनन नहीं था ।
“कौन है ?”
रात के सन्नाटे में उसकी आवाज जोर से गूंजी ।
साया ठिठका ।
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