RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
मुकेश ने बताया ।
“ये एक गम्भीर वाकया है” - अन्त में वो बोला - “मेरे खयाल से जिसकी इनवैस्टिगेटिंग ऑफिसर को फौरन खबर लगनी चाहिये ।”
“मैं करता हूं खबर ।”
“और इन्स्पेक्टर साहब को ये भी बोलना कि मैं उनसे बहुत जरूरी बात करना चाहता हूं ।”
“सुबह थाने आना ।”
“अभी । अभी बहुत जरूरी बात करना चाहता हूं ।”
“क्या जरूरी बात ? मुझे बताओ ।”
मुकेश खामोश रहा ।
“ठीक है ।”
सब-इन्स्पेक्टर ने उसके मुंह पर दरवाजा बन्द कर लिया ।
मुकेश कॉटेज के पिछवाड़े में पहुंचा । उसने एक उड़ती निगाह उस खाली सायबान पर डाली जहां कि घिमिरे की कार खड़ी होती थी और फिर अगले सायबान के करीब पहुंचा ।
नीमअन्धेरे में बड़ी मुश्किल से वो उसके नीचे खड़ी कार का नम्बर नोट कर पाया ।
वो वापिस कम्पाउन्ड में पहुंचा । उसने एक बार दायें बायें निगाह दौड़ाई और फिर करनानी के कॉटेज पर जाकर उसका दरवाजा खटखटाया ।
थोड़े इन्तजार के बाद दरवाजा खुला ।
“क्या है ?” - वो अनमने भाव से बोला ।
“मैं तुम्हें ये बताने आया था कि किसी ने रिंकी पर फिर जानलेवा हमला किया है ।”
“क्या !”
“वो बाल बाल बची ।”
“कब ?”
“अभी दस मिनट पहले ।”
“झूलेलाल ! कौन पड़ा है बेचारी पुटड़ी के पीछे ?”
“सोचो । आखिर जासूस हो ।”
“हूं ।”
“इसीलिये बताने आया कि शायद तुम्हें कुछ सूझे ।”
“मुझे ?”
“अपने प्रोफेशन की वजह से तुम्हारा दिमाग ऐसी बातों के लिये ज्यादा ट्रेंड जो है ।”
“ओह !”
“मैं चला ।”
मुकेश अपने कॉटेज में वापिस लौटा ।
दायें विंग में जाकर उसने फोन पर ट्रंक ऑपरेटर को लिया ।
“मैं दो लाइटनिंग कॉल बुक कराना चाहता हूं । नम्बर मुझे मालूम नहीं हैं इसलिये बरायमेहबानी उस बाबत आप ही मदद कीजियेगा । एक कॉल शिवाजी कार रेंटल एजेन्सी, पूना को लिये और दूसरी हर्णेर्इ में दिनेश पारेख के लिये । कितना टाइम लग जायेगा ? ...ठीक है, धन्यवाद ।”
वो फोन के पास एक कुर्सी पर ढेर हो गया ।
तभी रिंकी वहां पहुंची ।
उस घड़ी वो एक सलवार सूट पहने थी और बार बार अपनी एक उंगली सहला रही थी ।
मुकेश ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।
“मुझे अपने केबिन में डर लग रहा है ।” - वो धीरे से बोली ।
“अभी ताजा ताजा वाकया है इसलिये डर लगना स्वभाविक है ।”
“मैं यहां आ गयी, तुम्हें कोई एतराज तो नहीं ?”
“नहीं, कोई एतराज नहीं ।”
“शुक्रिया ।”
“उंगली को क्या हुआ ?”
“एक नाखुन टूट गया हमलावर के साथ हाथापायी में । पहले पता ही नहीं लगा, लौट के पता लगा ।”
“दर्द अब जा के उठा चोट लगे देर हुई’ की माफिक ?”
वो हंसी ।
“बैठो ।”
वो उसके सामने एक कुर्सी पर बैठ गयी ।
तभी फोन की घन्टी बजी ।
मुकेश ने रिसीवर उठा कर कान में लगाया ।
“पूना बात कीजिये ।” - ट्रंक ऑपरेटर की आवाज आयी ।
“यस । थैंक्यू ।”
ऑपरेटर बीच में से हटी, माथुर को एक नयी आवाज सुनायी दी तो वो बोला - “मैं गणपतिपुले पुलिस स्टेशन से सब-इन्स्पेक्टर सोनकर बोल रहा हूं । हम आपकी कार रेंटल एजेन्सी से किराये पर उठाई गयी एक कार की बाबत जानकारी चाहते हैं । कार सफेद रंग की एम्बैसेडर है और रजिस्ट्रेशन नम्बर एम एच 7 सी 5103 है । हमें उस शख्स क नाम पता चाहिये जिसने आप लोगों से ये कार किराये पर ली है । ठीक है । होल्ड करता हूं ।”
कुछ क्षण लाइन खामोश रही ।
फिर दूसरी तरफ से जवाब मिला ।
“जी हां, बोलिये ।” - एक कागज कलम सम्भालाता मुकेश बोला - “नोट कराइये । थैंक्यू ।”
उसने रिसीवर रखा और कागज को दोहरा करके जेब के हवाले किया ।
रिंकी अपलक उसे देख रही थी ।
“क्या माजरा है ?” - वो बोली ।
“कुछ नहीं ।” - मुकेश बोला - “जरा ‘बटन बटन हू हैज गॉट दि बटन’ खेल रहा हूं ।”
रिंकी के चेहरे पर उलझन के भाव आये लेकिन वो मुंह से कुछ न बोली ।
तभी फिर फोन की घन्टी बजी ।
मुकेश ने फोन उठाया ।
“हर्णेई बात कीजिये ।” - ऑपरेटर की आवाज आयी - “पर्टीकुलर पर्सन लाइन पर है ।”
“थैंक्यू ।”
फिर उसे दिनेश पारेख की आवाज सुनाई दी ।
“मैं मुकेश माथुर ।” - वो बोला ।
“तुम” - आवाज आयी - “वही मुकेश माथुर हो न जो कल मेरे से मिलने आये थे ? जिसने मेरी स्टडी से एक पर्चा खिसका ले जाने की कोशिश की थी ?”
“वही हूं ।”
“कैसे फोन किया इतनी रात गये ?”
“आपकी मदद का तलबगार बन कर फोन किया, जनाब ।”
“मदद को लेन देन दोस्तों में होता है । हम दोस्त हैं ?”
“आप चाहें तो हो सकते हैं ।”
“बावजूद तुम्हारी उस हरकत के ?”
“जी हां ।”
“बड़े आशावादी शख्स हो ।”
“आशा पर तो सृष्टि कायम है ।”
“क्या चाहते हो ?”
“सबसे पहले तो आपसे एक आश्वासन चाहता हूं ।”
“क्या ?”
“ये कि हमारा ये वार्तालाप कोई सुन नहीं रहा, ये टेप नहीं किया जा रहा और ये हमारे और सिर्फ हमारे बीच हो रहा है ।”
“ऐसे आश्वासन की मांग तो मुझे करनी चाहिये । तुम एक खुराफाती आदमी हो जो कि....”
“सर, प्लीज ।”
“ठीक है । दिया आश्वासन । अब बोलो ।”
“जनाब, मेरा सवाल आपको नापसन्द आ सकता है, आपकी मंशा जवाब न देने की हो सकती है इसलिये दरख्वास्त है कि ऐसा रवैया अख्तियार न करें क्योंकि इसमें किसी की भलाई छुपी हुई है ।”
“अब कुछ कहो भी तो सही ।”
“जनाब, ये एक स्थापित बात है कि मिस्टर देवसरे के कत्ल की रात को आपके कदम यहां कोकोनट ग्रोव हॉलीडे रिजॉर्ट में पड़े थे । जो दो नग इस बात को साबित कर सकते थे उन दोनों को तो कल आपने फूंक कर ऐश-ट्रे में डाल दिया था । फिर भी ये हकीकत अपनी जगह कायम है, इससे आप भी वाकिफ हैं, मैं भी वाकिफ हूं, कि आप यहां आये थे । अलबत्ता आपको ये नहीं मालूम था कि उस रात कोई मुझे नींद की दवा खिलाकर बेहोश कर देगा और मिस्टर देवसरे रिजॉर्ट के अपने कॉटेज में अकेले होंगे । इसका मतलब है कि या तो आप किसी और सबब से इस इलाके में थे और आपने सोचा कि आप ये मालूम करते जा सकते थे कि मिस्टर देवसरे ने मेरे से बनवाया सेल डीड साइन कर दिया था या नहीं, या फिर आपकी मिस्टर देवसरे से मुलाकात मुकर्रर थी और खास मुलाकात के लिये ही आपका यहां आना हुआ था ।”
“मुलाकात तुम्हारी मौजूदगी में ?”
“मेरा मिस्टर देवसरे के साथ मौजूद होना तब मेरी नहीं, उनकी मर्जी पर मनहसर होता । अगर उन्होंने आपसे कारोबारी बातचीत करनी होती जिसे कि आप सीक्रेट रखने के तमन्नाई होते तो मिस्टर देवसरे मुझे डिसमिस कर सकते थे, वो जबरन मुझे कॉटेज के मेरे वाले हिस्से में जाने पर मजबूर कर सकते थे ।”
“हूं । चलो, फर्ज कर लो कि मेरी देवसरे से मुलाकात मुकर्रर थी । अब आगे बोलो ।”
“आगे जो दो लाख रुपया का सवाल है वो ये ही है कि हजार के नोटों की गड्डी और सेलडीड का कागज आपके कब्जे में क्यों और कैसे पहुंचा ?”
“फर्ज करो कि देवसरे ने वो दोनों चीजें खुद मुझे सौंपीं ।”
“ऐसा हो सकता है लेकिन फिर मुझे ये भी फर्ज करना होगा कि उस घड़ी मिस्टर देवसरे जिन्दा थे । यूं आपकी इस बात की जवाबदेही बनती है कि आप कातिल हैं या नहीं ?”
“काफी पहुंचे हुए आदमी हो । काफी बढिया सजा लेते हो अपने मन माफिक बात को । खैर, आगे बढो । और क्या कहती है तुम्हारी सूझबूझ ?”
“मेरी तुच्छ राय में जब आप यहां पहुंचे थे, तब आपको मिस्टर देवसरे मरे पड़े मिले थे । आपको उनके कत्ल का कोई इल्म नहीं था । इत्तफाक से किसी ने आपको यहां पहुंचते देखा नहीं था और आप वैसे ही बिना देखे जाते यहां से रुख्सत भी हो सकते थे । यूं आपका कत्ल से कोई लेना देना न बनता । आपकी यहां आमद को जो चीज उजागर कर सकती थी वो या तो मेरा बनाया सेल डीड था जिसमें आपका नाम दर्ज हो सकता था - हालांकि नहीं था लेकिन उसकी बारीक पड़ताल का तब आपके पास वक्त नहीं था - या फिर हजार के नोटों की गड्डी थी लेकिन क्योंकि वो थी ही आपकी - आपने बयाने के तौर पर मिस्टर देवसरे को सौंपी थी - इसीलिये आपकी निगाह में उसको वापिस कब्जे में कर लेने का आपको अख्तियार था । आप जानते थे कि उस रकम की वाल सेफ में से बरामदी उसे मिस्टर देवसरे की एस्टेट का - उनकी चल-अचल सम्पति का - हिस्सा बना देगी और तदोपरान्त उसे वापिस हासिल करने के लिये आपको साबित करना पड़ता कि वो रकम आपके बयाने के तौर पर आद की थी लेकिन साबित कर न पाते क्योंकि आपके पास उसका कोई रसीद या पर्चा नहीं था, इसलिये नहीं था क्योंकि मिस्टर देवसरे की जिन्दगी में आपने उसकी जरूरत नहीं समझी थी क्योंकि उनकी जुबान टकसाली सिक्के जैसी चौकस मानी जाती थी । कहने का मतलब ये है कि मिस्टर देवसरे की मौत के बाद वो रकम आपको वापिस मिल पाना नामुमकिन था लेकिन ये खयाल भी जाहिर है कि, आपके जेहन से नहीं निकलता था कि - भले ही कोई खास बड़ी नहीं थी - वो रकम आपकी थी और अब जब सौदे की कोई गुंजायश नहीं रही थी तो वो रकम आपको वापिस मिलनी चाहिये थी । यहां आगे मेरा ख्याल ये है कि वाल सेफ का बाहरी दरवाजा क्योंकि एक कोड नम्बर से खुलता था और वो कोड नम्बर आपको मालूम नहीं हो सकता था इसलिये वो, बाहरी दरवाजा, पहले से ही खुला था और भीतरी दरवाजा आपने मिस्टर देवसरे की जेब से चाबी निकालकर खुद खोला था । यूं आपने वो सेल डीड और नोटों की गड्डी हथियायी थी, दरवाजा वापिस बन्द किया था और चाबी वापिस मृत मिस्टर देवसरे की जेब में डाल दी थी । ये मुश्किल से एक मिनट में हो जाने वाला काम था जिसको अंजाम देने में आपने उस घड़ी कोई हर्ज नहीं माना था । मैं ठीक कह रहा हूं जनाब ?”
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