RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“परसों रात हंसी मजाक के माहौल में क्लब में तुमने तुझे बताया था कि तुम्हारा जन्म पंजाब में अमृतसर में हुआ था और पंजाब सरकार तुम्हारे जन्मदिन में छुट्टी करती थी । तुम्हारा जन्मदिन, यानी कि बैसाखी, जो कि हमेशा तेरह अप्रैल को होती है । साथ ही तुमने कहा था कि अभी तक तुम तेईस बैसाखियां देख चुकी थीं । इस लिहाज से जो पहली बैसाखी, तुमने देखी वो सन् 1980 में देखी और इस लिहाज से तुम्हारा जन्मदिन तेरह अप्रैल सन् 1980 हुआ । आनन्द बोध पंडित की खोई बेटी का यही जन्मदिन और जन्म स्थान वसीयत में दर्ज है । किन्हीं दो लड़कियों का नाम और उम्र एक हो, ऐसा इत्तफाक हुआ होना मैं मान सकता हूं लेकिन उनकी जन्म तिथि भी एक हो और जन्म स्थान भी एक हो, इतना बड़ा इत्तफाक कम से कम मुझे तो नहीं हज्म होने वाला । “
“मुझे तुम्हारी बात से इत्तफाक है ।” - इन्स्पेक्टर बोला ।
“मुझे नहीं है ।” - रिंकी बोली - “इसलिये नहीं है क्योंकि मेरे पिता को मरे एक जमाना गुजर चुका है ।”
“लेकिन...” - मुकेश ने कहना चाहा ।
“नो लेकिन । माई फादर इज डैड... डैड सिंस ए लांग लांग टाइम । इसलिये अब खत्म करो ये बात ।”
मुकेश हकबकाया सा खामोश हुआ ।
“तुम भी तो कुछ बोलो इस बाबत ।” - इन्स्पेक्टर करनानी से बोला - “आखिर छः महीने से गुमशुदा वारिस की तलाश में मशगूल हो, तुम भी तो इस बाबत अपनी कोई राय जाहिर करो ।”
करनानी ने बड़ी संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया ।
“ये बात कैसे मालूम है तुम्हें ?” - फिर उसने पूछा ।
“कौन सी बात कैसे मालूम है ?” - रिंकी बोली ।
“यही कि जब तुम छः साल की थी तब तुम्हारे पिता सिनेमा हॉल में लगी एक आग में जल मरे थे ?”
“बस, मालूम है ।”
“कैसे मालूम है ? इलहाम तो न हुआ होगा ! किसी के बताये कि मालूम हुई होगी वर्ना छः साल की बच्ची को क्या मालूम होता है ओर क्या याद रहता है !”
वो खामोश रही ।
“तुम्हारी मां ने बताई तुम्हें ये बात । मां ने बताई इसलिये तुमने उस पर यकीन किया । उसने क्यों ऐसा कहा, मैं नहीं जानता लेकिन ये हकीकत नहीं है । इसलिये हकीकत नहीं है क्योंकि मैं तुम्हारे पिता के लिये काम करता था और कहानी के दूसरे छोर से वाकिफ था । वाकिफ हूं ।”
“दूसरा छोर ?”
“जिस पर की कुछ बातें मैंने तुम्हारे पिता से जानी और कुछ अपनी तफ्तीश से खोद के निकालीं । कुल जमा जो कुछ मैं जानता हूं, उसका लुब्बोलुआब ये है कि आनन्द बोध पंडित की बीवी का नाम अनुराधा था जो अपने पति को तब छोड़ के चली गयी थी जब उसकी इकलौती बेटी तनुप्रिया छः साल की थी । उन दिनों मिस्टर पंडित एक मामूली बिजनेसमैन थे जो कि महीने में पच्चीस पच्चीस दिन घर से बाहर रहते थे और जिन कई बातों की वजह से अनुराधा का उनसे मनमुटाव रहता था उनमें से मेजर बात ये थी । बहरहाल जो बात उनके बताये मुझे मालूम है वो ये है कि अपने दो हफ्ते के एक टूर से जब वो वापिस घर लौटे थे तो उन्होंने पाया था कि उनकी बीवी उनकी बेटी के साथ हमेशा के लिये घर छोड़ के जा चुकी थी । पहले वो यही उम्मीद करते रहे थे कि अनुराधा का गुस्सा उतरेगा तो वो वापिस लौट आयेगी लेकिन हकीकतन वो कभी न लौटी । न ही उन्हें कभी ये मालूम हो पाया कि वो घर छोड़ गयी थी तो कहां गयी थी ? अपनी आइन्दा बाकी जिन्दगी में उन्हें अपनी बीवी और औलाद की कभी कोई खोज खबर न लगी । फिर उन्होंने भी अपना शहर छोड़ दिया और आइन्दा पन्द्रह सालों में उन्होंने इतना धन कमाया कि धनकुबेर कहलाने लगे । एक मामूली बिजनेसमैन से वो बड़े व्यापारी बन गये । एक बीवी और औलाद का सुख न नसीब हुआ वर्ना दुनिया की हर नयामत उन पर बरसी । छः साल पहले उन्होंने दोबारा शादी कर ली लेकिन औलाद का मुंह उन्हें दूसरी बीवी भी न दिखा सकी । फिर इस साल की शुरुआत में एकाएक उन्हें पता लगा कि वो टर्मिनल कैंसर के शिकार थे और उनकी जिन्दगी के सिर्फ तीन महीने बाकी थे । तब उनके दिल में अपनी इकलौती औलाद अपनी बेटी तनुप्रिया को तलाश करने की इच्छा बलवती हुई जिसके नतीजे के तौर पर उन्होंने मुझे - एक प्राइवेट डिटेक्टिव को - एंगेज किया । उन्हें नहीं मालूम था कि उनकी बीवी और बेटी जिन्दा भी थीं या नहीं लेकिन मरने से पहले वो इस बात की भी तसदीक चाहते थे । कहते थे मरने से पहले बेटी मिल जाती तो अपना सब कुछ उसे सौंपकर वो चैन से मर पाते । कितने अफसोस की बात है कि आखिकार बेटी मिली लेकिन वक्त रहते न मिली ।”
“दूसरी बीवी का क्या नाम है ?” - मुकेश ने पूछा ।
“सुशीला पंडित । क्यों ?”
“कुछ नहीं । आगे बढो ।”
“आगे ये कि जनवरी से मैं इस काम पर लगा हुआ हूं और मेरा जोर बेटी की जगह मां को तलाश करने में था क्योंकि बच्चे के मुकाबले में बालिग को ढूंढना आसान होता है । अपनी मेहनत से तुम्हारी मां की केस हिस्ट्री से मैच खाती चार अनुराधा मैंने तलाश की लेकिन दो की उम्र मैच नहीं करती थी - एक पैंसठ साल की थी और एक तीस साल की थी - बाकी दो में से एक डिपार्टमेंट स्टोर में नौकरी करती थी और दूसरी बुटीक चलाती थी । मेरा एतबार दूसरी पर था क्योंकि बकौल मिस्टर पंडित, उनकी बीवी को ड्रैस डिजाइनिंग का शौक था । उस अनुराधा शर्मा से मैं मिला तो वो ये कुबूल करने को तैयार न हुई कि कभी वो अनुराधा पंडित थी और उसकी तनुप्रिया नाम की एक नौजवान बेटी थी ।”
“बेटी की शिनाख्त का कोई जरिया नहीं था ?” - मुकेश ने पूछा ।
“था । बल्कि दो थे । एक उसकी पांच साल की उम्र की एक तसवीर थी और एक गुड़िया थी जिसकी ड्रैस की पीठ पर उसकी स्याही में डूबी दायें हाथ की तीन उंगलियों के निशान थे । बच्चे ने कभी अपनी उंगलियों स्याही में डुबो ली थीं और फिर उन्हीं से गुड़िया को उठा लिया था ।”
“उंगलियों के निशानों से पुख्ता शिनाख्त हो सकती है ।”
“हां, भले ही वो सत्तरह साल पुराने हैं लेकिन हो सकती है । तसवीर से भी हो सकती है लेकिन उंगलियों के निशानों से बेहतर हो सकती है ।”
“फिर क्या प्राब्लम है ?”
“कोई प्राब्लम नहीं । दस लाख के बोनस के लालच में मैंने इस केस पर अपना दिन रात एक किया हुआ है लेकिन अब लगता है कि बोनस क्लैक्ट करने का वक्त आ गया है । अब मैं तुम्हें” - वो रिंकी से सम्बोधित हुआ - “वापिस मुम्बई साथ लेकर जाऊंगा और अपना बोनस क्लैक्ट करूंगा ।”
“मैं नहीं जाऊंगी ।” - रिंकी दृढता से बोली ।
“क्यों भला ? पैसा काटता है तुम्हें ?”
“वो बात नहीं ।”
“तो क्या बात है ?”
“मुझे तुम्हारी कहानी पर विश्वास नहीं ।”
“विश्वास हो जायेगा । जब तुम्हारी उंगलियों के निशान सब दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे तो विश्वास हो जायेगा ।”
“नो ।”
“बचकानी बातें कर रही हो । तुमने करना क्या है ? बस इतना ही तो करना है कि मेरे साथ अपने पिता के वकीलों के ऑफिस में पेश होना है जो कि तसल्ली करेंगे कि तुम ही उनके क्लायन्ट की गुमशुदा वारिस हो, उनके बात तुम जो चाहे करना, जहां चाहे जाना । तब मेरा काम खत्म होगा, तब जो होगा तुम्हारे और वकीलों के बीच हो होगा ।”
“कहानी बढिया है ।” - इन्स्पेक्टर एकाएक वार्तालाप का सूत्र अपने हाथ में लेता हुआ बोला - “थियेट्रिकल इफैक्ट्स की भी कोई कमी नहीं इसमें । लेकिन इससे पुलिस के हाथ क्या लगा ? दो दिन में जो दो कत्ल यहां हो गये उन पर इससे क्या रोशनी पड़ी ?”
“मेरा काम पुलिस का केस हल करना नहीं” - करनानी बोला - “अपना केस हल करना था । अगर पुलिस अपना केस मेरे से हल कराना चाहती है तो वो मेरी फीस अदा करके मेरी खिदमात हासिल कर सकती है ।”
“क्या कहने ?”
“मैं भी यही सोच रहा था” - मुकेश बोला - “कि किसी गुमशुदा वारिस की यहां से बरामदी का आखिर दो कत्लों से क्या रिश्ता हुआ ? लगता है कोई रिश्ता है जरूर लेकिन उस पर से पर्दा सरकाना मुहाल है । पहले मुझे अन्दाजा था कि मिस्टर देवसरे का कातिल कौन हो सकता था लेकिन...”
“अन्दाजा था” - इन्स्पेक्टर तनिक व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “या शुरु से मालूम था ?”
“शुरु से मालूम होता तो अब तक वो जेल के खींखचों के पीछे न होता ! जिस शख्स ने मिस्टर देवसरे का कत्ल करके मुझे अपने एम्पलायर्स की मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा था, उसका छुट्टा घूमना भला मैं कैसे अफोर्ड कर सकता था । नहीं, पहले कुछ मालूम नहीं था मुझे । मुझे कुछ सूझा तो आज शाम ही सूझा । और जो सूझा उसको पुख्ता वसीयत की बाबत अभी थोड़ी देर पहले मुम्बई से आयी ट्रंककॉल ने किया । इन्स्पेक्टर साहब, आपकी जानकारी के लिए आनन्द बोध पंडित अपने पीछे साठ करोड़ की जायदाद छोड़ के मरा है जिसका एक तिहाई उसकी विधवा यानी कि दूसरी बीवी के लिये है और दो तिहाई उसकी गुमशुदा बेटी को सौंप देने के लिये इस हिदायत के साथ एक ट्रस्ट के हवाले है कि अगर दस साल के वक्फे में उसकी बेटी को कोई अता पता नहीं मिलता तो ट्रस्ट भंग कर दिया जाये और वो रकम भी दूसरी बीवी के हवाले कर दी जाये । अगर ये सिद्ध किया जा सके कि गुमशुदा बेटी मर चुकी थी तो वो बाकी की रकम तत्काल दूसरी बीवी के हवाले की जा सकती थी ।”
“आई सी ।”
“इस दूसरे प्रावधान की वजह से मुझे करनानी पर एक शक होता है ।”
करनानी से सकपका कर सिर उठाया और कुछ बोलने के लिये मुंह खोला लेकिन इन्स्पेक्टर ने हाथ के इशारे से उसे खामोश रहने को कहा ।
“क्या ?” - वो बोला - “क्या शक होता है ?”
“ये कि ये गुमशुदा वारिस की तलाश करना ही नहीं चाहता था ।”
“क्या कहने !” - करनानी व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “और अभी जो मैंने रिंकी के माता पिता की लाइफ स्टोरी बयान की, अभी जो मैं रिंकी को उनका वारिस होने की बाबत कहा, वो सब खामखाह कहा ?”
“खामखाह नहीं कहा, वक्त की जरूरत देख कर, वक्त की नजाकत पहचान कर कहा ।”
“नानसैंस ।”
“और मैंने ये नहीं कहा कि तुम्हें गुमशुदा वारिस की खबर नहीं थी, मैंने ये कहा कि तुम वो खबर आम नहीं होने देना चाहते थे । अपने निहित स्वार्थों की वजह से तुम उसकी बरामदगी के तमन्नाई नहीं थे ।”
करनानी हंसा ।
“क्यों ?” - इन्स्पेक्टर ने पूछा ।
“इन्स्पेक्टर साहब, वारिस को तलाश करके वकीलों तक पहुंचाने के बदले में इसे दस लाख रुपया मिलेगा लेकिन अगर ये वारिस को मृत घोषित कर दिखाये तो आनन्द बोध पंडित की नयी विधवा को तत्काल - दस साल बाद नहीं - चालीस करोड़ रुपये की अतिरिक्त धनराशि मिलेगी जिसमें मोटी हिस्सेदारी की - क्या पता फिफ्टी फिफ्टी की - कोई खिचड़ी ये विधवा से पहले ही पका चुका हो सकता है । इसी को कहते हैं कि हाथी जिन्दा एक लाख का और मुर्दा सवा सवा लाख का ।”
“क्या बक रहे हो ?” - करनानी आवेश से बोला - “तुम ये कहना चाहते हो कि इसलिये मैंने... मैंने रिंकी के कत्ल की कोशिश की ?”
“क्या ऐसा नहीं हो सकता ?”
“हो सकने में और होने में फर्क होता है ।”
“अच्छा ! होता है ?”
“ये एक बेजा इलजाम है जो तुम मुझ पर थोप रहे हो । में तुम्हें वार्न कर रहा हूं, अगर इस बाबत दोबारा एक लफ्ज तुमने अपने मुंह से निकाला तो मैं...”
“तुम एक मिनट चुप करो ।” - इन्स्पेक्टर बोला ।
“लेकिन...”
“और नहीं तो इसलिये चुप करो कि पुलिस के सामने किसी को धमकी देना अपने आप में जुर्म होता है ।”
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