RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“और नहीं तो इसलिये चुप करो कि पुलिस के सामने किसी को धमकी देना अपने आप में जुर्म होता है ।”
करनानी गुड़बड़ाया, उसने जोर से थूक निगली ।
“और तुम इधर मेरी तरफ देखो ।”
मुकेश ने इन्स्पेक्टर की तरफ निगाह उठाई ।
“तुम ये कहना चाहते हो कि पिछली रात रिंकी के साथ बीते कार एक्सीडेंट के लिये करनानी जिम्मेदार है ? इसने अपनी कार से वो एक्सीडेंट स्टेज करके रिंकी को जान से मार डालने की कोशिश की ?”
“हां ।”
“साबित कर सकते हो ?”
“नहीं ।”
“फिक क्या बात बनी ?”
मुकेश खामोश रहा ।
“और अभी जो इस लड़की के साथ बीच पर बीती...”
“इसलिये बीती क्योंकि पिछली बार इसका दांव न चला । इसने रिंकी को मार डालने की दोबारा कोशिश की ।”
“दूसरी कोशिश साबित कर सकते हो ?”
“कोशिश कर सकता हूं ।”
“करो ।”
“अपने हमलावर से हुई हाथापायी में रिंकी की एक उंगली का नाखून टूट गया था । ये हमलावर के हाथ से अपनी गर्दन छुड़ाने की कोशिश कर रही थी । उस कोशिश में इसका नाखून टूटने का मतलब है कि हमलावर को हाथ या बांह पर कहीं खरोंचे लगी होंगी और बांकी बचे नाखून के नीचे हमलावर के खून और चमड़ी के अवशेष मौजूद होंगे । इन दोनों सूत्रों को पुलिस तरीके से हैंडल करे तो मालूम पड़ सकता है कि करनानी रिंकी का हमलवार था या नहीं था ।”
“फेंक रहा है ।” - करनानी बोला ।
“पिछले एक हफ्ते में मैंने एक बार भी तुम्हें पूरी बांह की कमीज पहने नहीं देखा । लेकिन आज तुम ऐसी कमीज पहने हुए हो । मैं दरख्वास्त करता हूं कि तुम कफ खोलो और कमीज की दोनों आस्तीन कोहनियों तक ऊपर चढाओ ।”
“झूलेलाल ! ये तो पागल हो गया है । इन्स्पेक्टर साहब तुम्हारी मौजूदगी में ये इंसान वाहीतबाही बक रहा है, तुम इसे चुप नहीं करा सकते ?”
“आस्तीनें ऊपर चढाओ ।” - इन्स्पेक्टर गम्भीरता से बोला ।
“अरे, ये तो चड़या हुआ है , क्यों तुम इसकी बकवास को...”
“आस्तीनें चढाते हो या मैं चढाऊं ?”
“मेरी बायीं कलाई पर एक खरोंच है” - करनानी धीरे से बोला - “लेकिन वो इसका नाखून लगने से नहीं बनी ।”
“दिखाओ । बायीं आस्तीन चढाओ ।”
असहाय भाव से कन्धे हिलाते हुए और तीव्र अनिच्छा दिखाते हुए उसने उस काम को अंजाम दिया ।
उसकी बायीं कलाई पर एक कोई तीन इंच लम्बी, गहरी, तब तक सुर्ख हो चुकी खरोंच मौजूद थी ।
“आई रैस्ट माई केस ।” - मुकेश संतोषपूर्ण स्वर में बोला ।
“वाट केस ?” - करनानी कलपकर बोला - “देयर इज नो केस । मैंने बोला तो कि खरोंच....”
“जैसे ये कहता है” - इन्स्पेक्टर बोला - “वैसे नहीं बनी ?”
“नहीं बनी । खरोंच पर दर्ज है कि ये कैसी बनी ?”
“नहीं । लेकिन ये भी दर्ज नहीं है कि ये कैसे नहीं बनी । इसलिये फिलहाल मेरा एतबार इसके वैसे बनी होने पर है जैसे बनी होना माथुर बताता है । इसलिये चुप करो ।”
वो खामोश हो गया ।
“तो तुम्हारा कयास है” - इन्स्पेक्टर मुकेश से बोला - “कि इस शख्स ने इस लड़की का कत्ल करने की कोशिश इसलिये की क्योंकि इसका आनन्द बोध पंडित की विधवा से कोई चोखा माली कौल करार हो गया था ?”
“हां ।”
“लेकिन ये महज तुम्हारा अन्दाजा है ।”
“है तो अन्दाजा ही लेकिन इस अन्दाजे को मैंने हवा में से नहीं पकड़ लिया है, कोई बुनियाद थी, बुनियाद थी मेरे पास इस अन्दाजे की ।”
“कैसी बुनियाद ?”
“कौल करार की भागीदर यहां मौजूद है ।”
“क्या !”
“आनन्द बोध पंडित की दूसरी बीवी, उसकी लेटेस्ट बेवा सुशीला पंडित कल से यहां पहुंची हुई है और मिसेज सुलक्षणा घटके नाम से कॉटेज नम्बर दो में रजिस्टर्ड हैं ।”
“क्या ?”
“इतना हैरान होकर दिखाने की क्या बात है ? मैंने सब कुछ तो बोल दिया, अब जा के तसदीक ही तो करनी है तुमने ।”
“तुम्हें कैसे मालूम है ये बात ?”
“जिस कार पर वो यहां यहां पहुंची है, वो किराये की है और वो पूना की शिवाजी कार रेंटल एजेन्सी से किराये पर ली गयी है । जैसे वो औरत इस रिजार्ट मे फर्जी नाम से रह रही है । वैसे फर्जी नाम से वो किराये पर कार हासिल नहीं कर सकती थी क्योंकि ऐसा करने के लिये ड्राइविंग लाइसेंस दिखाना पड़ता है जिस पर कि कार किराये पर लेने वाले का नाम पता दर्ज होता हैं । मैंने पूना की उस एजेन्सी को फोन लगाया था तो मुझे मालूम हुआ था कि उन्होंने वो कार किसी सुलक्षणा घटके को नहीं, सुशीला पंडित को किराये पर दी थी ।”
“हूं । हूं ।” - फिर वो करनानी की तरफ घूमा - “तुम फिलहाल अपने आपको हिरासत में समझो ।”
“लेकिन...” - करनानी ने प्रतिवाद करना चाहा ।
“शटअप ।”
करनानी सहम कर चुह हो गया ।
“सुलक्षण घटके ।” - फिर वो अपने सब-इन्स्पेक्टर से सम्बोधित हुआ - “उर्फ सुशीला पंडित । कॉटेज नम्बर दो । अभी पकड़ के यहां लाओ ।”
“यस, सर ।” - सब-इन्स्पेक्टर तत्पर स्वर में बोला ।
***
सुलक्षणा घटके उर्फ सुशीला पंडित वहां पहुंची ।
बकौल सब-इन्सपेक्टर सोनकर, वो उसे सोते से जगा कर लाया था फिर भी उसने बाल संवार लिये हुए थे चेहरे पर फ्रैश मेकअप लगा लिया हुआ था । वो खूब भड़की हुई थी और पांव पटकती वहां पहुंची थी ।
“कौन है मुझे यहां यूं तलब करने वाला ?” - आते ही वो कड़क कर बोली ।
“मैं हूं ।” - इन्स्पेक्टर शान्ति से बोला - “इन्स्पेक्टर सदा अठवले ।”
“नौकरी से बेजार जान पड़ते हो ।”
“ऐसी तो कोई बात नहीं ।”
“ऐसी ही बात है । तभी तो इतनी रात गये मुझे यहां पकड़ मंगवाने की तुम्हारी मजाल हुई ।”
“तफ्तीश के लिये ऐसा करना पड़ता है । और आप बात को बढा चढा कर कह रही हैं । आपको पकड़ नहीं मंगवाया गया, आपको सिर्फ यहां बुलाया गया है ।”
“आधी रात को किसलिये ? सोते से जगाकर किसलिये ?”
“अर्जेंट तहकीकात है ।”
“जो कि सुबह नहीं हो सकती थी ?”
“नहीं हो सकती थी ।”
“हो नहीं सकती थी या करना नहीं चाहते थे ?”
“एक ही बात है ।”
“तुम्हारे लिये एक ही बात है, मेरे लिये....”
“तशरीफ रखिये ।”
“क्या ?”
“बिराजिये । आसन ग्रहण कीजिये । प्लीज हैव ए सीट ।”
“जो बोलना है, ऐसे ही बोलो ।”
“आपकी असुविधा होगी, बात दो सैकैंड में खत्म होने वाली नहीं है ।”
“जो कहना है जल्दी कहोगे तो...”
“ठीक है, खड़ी रहिये ।”
वो धम्म से एक कुर्सी पर बैठी ।
“तुम मुझे जानते नहीं हो ।” - वो भुनभुनाई ।
“अब जान जाऊंगा ।”
“जानते होते तो यूं पेश न आते ।”
“कौन हैं आप ? चीफ मिनिस्टर के खानदान से हैं आप या सीधे प्राइम मिनिस्टर की करीबी हैं ?”
वो सकपकाई ।
“आपका नाम सुशीला पंडित है लेकिन यहां आप सुलक्षणा घटके के नाम से रजिस्टर्ड हैं । वजह बयान कीजिये ।”
तब उसके तेवर बदले । एकाएक वो बेहद खामोश हो गयी ।
“आप मुम्बई से हैं लेकिन पूना से यहां आयी हैं । जिस कार पर आप यहां पहुंची हैं, उसे पूना की शिवाजी कार रेंटल एजेन्सी से किराये पर लेते समय वहां आपने अपना वो नाम दर्ज नहीं कराया था जो कि यहां दर्ज है । इस डबल आइडेन्टिडी की वजह बयान कीजिये ।”
वो खामोश रही ।
“चुप रहने से काम नहीं चलेगा, मैडम ।”
“आपको इससे क्या मतलब है ?” - वो हिम्मत करके बोली ।
“है । तभी तो सवाल किया जा रहा है । आपकी जानकारी के लिये मैं एक कत्ल के केस की तफ्तीश कर रहा हूं, इसलिये मुझे हर बात से मतलब है ।”
उसने जोर से थूक निगली ।
“आपके अपने हित में आपको राय दी जाती है कि आपसे जो पूछा जाये, उसका आप सीधा, सच्चा, साफ जवाब दें । आप ऐसा करेंगी तो पांच मिनट में यहां से फारिग हो जायेंगी । गोलमोल, लाग लपेट वाला जवाब देंगी या नहीं जवाब दंगी तो रात हवालात में कटेगी ।”
“क... क्या ?”
“और सवाल यूं अदब से नहीं पूछे जायेंगे, जैसे इस वक्त पूछे जा रहे हैं । अब फैसला जल्दी कीजिये कि आप क्या रुख अख्तियार करेंगी ।”
जवाब देने से पहले उसकी निगाह पैन होती हुई वहां मौजूद सूरतों पर घूमी और करनानी पर आकर अटकी ।
तत्काल करनानी परे देखने लगा ।
“मिस्टर करनानी की वजह से कोई पंगा है ?” - फिर उसने पूछा ।
“मेरी वजह से कोई पंगा नहीं है ।” - करनानी भड़के स्वर में बोला - “ये पुलिस वाला आपको खामखाह हड़का रहा है । ये आपसे जबरिया कोई पूछताछ नहीं कर सकता । ये आपको कुछ कहने के लिये मजबूर नहीं कर सकता ।”
“ये ऐसा इसलिये कह रहे हैं” - इन्स्पेक्टर बोला - “क्योंकि आपका कुछ कहना इनके खिलाफ जा सकता है ।”
“नानसेंस ।” - करनानी मुंह बिगाड़कर बोला ।
“आपकी जानकारी के लिये ये इस वक्त गिरफ्तार हैं ।”
“गिरफ्तार हैं ?” - वो हैरानी से बोली ।
“इरादायेकत्ल के जुर्म में । जिसके साथ इरादायेजबरजिना का जुर्म भी जोड़ा जा सकता है । दस साल के लिये नपेंगे ।”
“ओह, नो ।”
“अब बोलिये, आप इनकी राय पर अमल करके खामोश रहेंगी या अपना बयान देंगी ।”
“बयान ! किस बाबत ?”
“किसी भी बाबत ।”
“ये चोर बहका रहे हैं ।” - करनानी बोला ।
“मैं क्या जानती हूं ?”
“आप कुछ नहीं जानतीं ?”
“नहीं ।”
“तो मैं आपको कुछ जनवाता हूं । उसके बाद आप नहीं कह पायेंगी कि आप कुछ नहीं जानतीं । जरा इनकी तरफ गौर कीजिये ?”
उसने रिंकी की तरफ देखा ।
“क्या गौर करूं ? मेरे खयाल से रिजार्ट के रेस्टोरेंट की मैनेजर है । नाम... नाम ध्यान में नहीं आ रहा । किसी ने बताया तो था लेकिन....”
“रिंकी । रिंकी नाम है इनका ।”
“हां । रिंकी । क्या गौर करूं मैं इसकी तरफ ?”
“ये आपके जन्नतनशीन खाविंद की बेटी है ।”
सुलक्षणा का चेहरा फक् पड़ गया ।
“क... क्या ?”
“मिस्टर आनन्द बोध पंडित की ये वो गुमशुदा वारिस है जिसकी अपनी जिन्दगी में उन्हें बड़ी शिद्दत से तलाश थी ।”
“ये... ये नहीं हो सकता । कैसे हो सकता है ? आप झूठ बोल रहे हैं ।”
“मेरे झूठ बोलने की कोई वजह ?”
“कोई तो होगी ।”
“कोई वजह नहीं । ये मिस्टर पंडित की गुमशुदा बेटी है और यहां दो बार मिस्टर करनानी इसको जान से मार डालने की कोशिश कर चुके हैं ।”
“ओह, नो ।”
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