RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“ये झूठ है ।” - करनानी चिल्लाया ।
“हर मुजरिम यही कहता है । मैडम, आप अपनी तवज्जो मेरी तरफ रखिये । और बताइये कि आप यहां क्यों आयी ?”
“इसके बुलावे पर आयी ।”
“इसके, यानी कि मिस्टर करनानी के ?”
“हां ।”
“कहां मिला बुलावा ? कैसे मिला !”
“इसने मुम्बई फोन किया था । मैं वहां नहीं थी लेकिन मुझे पूना में मैसेज मिल गया था । मैंने वापिस इसके लिये मैसेज छोड़ा कि ये मुझे पूना में फोन करे । अगले रोज मेरे पास पूना में इसका फोन आ गया । इसने मुझे कहा कि मैं पूना से एक कार किराये पर ले लूं और किसी फर्जी नाम से यहां आकर ठहरूं ।”
“फर्जी नाम किसलिये ? किराये की कार पर किसलिये ?”
“मैंने पूछा था । जवाब में इसने कहा था कि ये जरूरी था कि किसी को यहां मेरी असलियत मालूम न हो ।”
“क्यों ?”
“वजह इसने बाद में बताने को बोला था ।”
“बाद में क्या वजह बतायी ?”
वो खामोश हो गयी ।
“और बुलावे की क्या वजह बतायी थी ?”
“वो तो मेरे पति की जायदाद ही बतायी थी ।”
“जिसमें कि ये शेयर होल्डर बनना चाहते थे ? जिसमें कि ये आपसे पार्टनरशिप की पेशकश करना चाहते थे ? या पेशकश ही कर चुके थे, अब उस बाबत आपकी याददाश्त तरोताजा करना चाहते थे ?”
“जवाब मत देना ।” - करनानी चेतावनीभरे स्वर में बोला - “फंस जाओगी ।”
“अब और क्या फंस जायेंगी ? तुम्हारी नामुराद सोहबत की वजह से फंसी तो पहले ही हुई हैं । मैडम, आपकी जानकारी के लिये इस शख्स का जेल जाना निश्चित है । अब ये आपकी मर्जी पर मुनहसर है कि आप इसके साथ जेल जाना चाहती हैं या...”
“ये लोग तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते ।”
“आखिरकार... आखिरकार शायद कुछ न बिगाड़ सकें लेकिन ये रात तो आपकी जेल में ही गुजरेगी । अब जो फैसला आप सारी रात जेल में बैठ कर करेंगी, वो अभी क्यों नहीं कर लेतीं ?”
“क्या करूं ?” - इस बार वो बोली तो उसकी आवाज कांप रही थी ।
“इसकी गुमराह करने वाली सलाह को दरकिनार कीजिये और अपनी जुबानी कूबूल कीजिये कि इसने शीराजे में हिस्सा बंटाने जैसी कोई पेशकश आपसे की थी ।”
“खबरदार ।” - करनानी जल्दी से बोला - “मैं तुम्हें फिर चेतवनी दै रहा हूं कि...”
“की थी ।” - वो बोली ।
“क्या कहा था ?”
“कहा था कि इसने मिस्टर पंडित की बेटी का सुराग पा लिया था । इसने कहा था कि काफी सम्भावना थी कि वो मर चुकी थी लेकिन इस बात को साबित करना बहुत टेढ़ी खीर था ।”
“टेढी खीर !”
“एक नामुमकिन काम था अपनी मेहनत और मशक्कत से जिसे ये ही मुमकिन बना सकता था । और इतनी मेहनत का जो सिला ये चाहता था वो ये था कि दूसरे, मिस्टर पंडित की बेटी के दो तिहाई हिस्से में इसको शरीक करती ।”
“आपने क्या कहा ?”
“पहले तो मैंने यही कहा कि मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ‘हिस्से में शरीक करूं’ से इसका क्या मतलब था । तब ये साफ बोला कि ये दूसरे हिस्से में फिफ्टी पर्सेंट की पार्टनरशिप चाहता था ।”
“यानी कि बीस करोड़ रुपया चाहता था ?”
“हां । इसने कहा कि मरहूम लड़की की शिनाख्त का इसके अलावा किसी के पास कोई जरिया नहीं था । अगर इस बाबत ये अपने होंठ सी लेता तो वो रकम मुझे हासिल होने में कम से कम साढे नौ साल लग जाते ।”
“फिर ?”
“मैंने इतनी बड़ी रकम इसके हवाले करने से इंकार कर दिया । मैंने कहा कि मैं इसके सहयोग की वाजिब कीमत दने को तैयार थी और बीस करोड़ रुपये वाजिब कीमत नहीं थी । तब भाव ताव करता ये पांच करोड़ पर आ गया और वो रकम इसे अदा करना मैंने कुबूल कर लिया ।”
“इसने ये नहीं कहा था कि लड़की को मुर्दा भी ये ही बनाने वाला था ?”
“नहीं, नहीं कहा । बाई गाड, ये नहीं कहा था । इसने यही कहा था कि लड़की पहले ही मर चुकी थी लेकिन वो ही मरहूम लड़की गुमशुदा वारिस थी, इस बात को सिर्फ ये साबित कर सकता था और इसी बात की ये उजरत चाहता था ।”
“जो कि पांच करोड़ पर मुकरर्र हुई ?”
“हां ।”
“जुबानी जुबानी ?”
“नहीं । इसने मेरे से करारनामा लिखवाया और उसे मुझे साथ ले जाकर कोर्ट में रजिस्टर्ड करवाया ।”
“आपके पास कापी है करारनामे की ?”
“है ।”
“न भी हो तो क्या है !” - मुकेश बोला - जब रजिस्टर्ड है तो कोर्ट से निकलवाई जो सकती है ।”
“ये भी ठीक है ।” - इन्स्पेक्टर बोला - “बहरहाल कत्ल का एक बड़ा सजता हुआ उद्देश्य हमारे सामने है । थैंक्यू, मैडम । अब आप जा सकती हैं ।”
“जी !” - वो यूं बोली जैसे उसे अपने कानों पर विश्वास न हुआ हो ।
“अपने कॉटेज में पहुंचिये और चैन की नींद सोइये । अलबत्ता अपना बयान दर्ज और मोहरबन्द कराने के लिये कल सुबह आपको थाने में हाजिर होने की जहमत उठानी होगी ।”
“कोई जहमत नहीं ।” - चैन की लम्बी सांस लेती वो बोली - “मैं हाजिर हो जाऊंगी ।”
“दस बजे ।”
“ठीक है ।”
“गुड नाइट, मैडम । स्वीट ड्रीम्स ।”
वो उठ कर दरवाजे की ओर बढी, चौखट पर ठिठकी, वापिस घूमी, उसने रिंकी की तरफ देखा ।
“बेटी !” - फिर वो बांहे फैलाये रिंकी की ओर लपकी ।
“ऐसे जाली जज्बात के जरिये” - मुकेश धीरे से बोला - “चालीस करोड़ की गठड़ी आपकी नहीं हो सकती ।”
वो ठिठकी ।
“वो कहानी करनानी की गिरफ्तार के साथ खत्म हुई ।”
उसके होंठ भिंचे, उसने आग्नेय नेत्रों से मुकेश की तरफ देखा और फिर रिंकी पर निगाह डाली ।
रिंकी ने तत्काल मुंह फेर लिया ।
“मां एक ही होती है ।” - रिंकी बोली - “अभी है ईश्वर की कृपा से ।”
भारी कदमों से सुलक्षणा उर्फ सुशीला वहां से रुख्सत हो गयी ।
“बधाई ।” - पीछे मुकेश बोला ।
रिंकी ने सिर उठाया ।
“ईश्वर की ऐसी एक्सप्रैस सर्विस पहले कभी न देखी होगी । एक करोड़ की ख्वाहिश किये अभी बारह घन्टे पूरे नहीं हुए कि उसने ख्वाहिश चालीस गुणा करके पूरी कर दी ।”
“मुझे” - वो बोली - “अभी भी यकीन नहीं कि....”
“अब मेरे वाली जुबान मत बोलो ।”
वो खामोश रही ।
“अब मुझे महसूस करने दो कि मल्टी-मल्टी-मिलियनेर के रूबरू बैठना कैसा लगता है ।”
“बस करो ।”
“ओके, मिस मनी बैग्स ।”
“बस भी करो ।”
“ओके, मदाम रिची रिच ।”
“गो टु हैल ।”
मुकेश हंसा ।
इन्स्पेक्टर करनानी की तरफ घूमा और बोला - “पांच करोड़ ! बहुत ही ऊंचा उड़ना चाहते थे, सिन्धी भाई ।”
करनानी खामोश रहा ।
“अपनी सफाई में कुछ कहना चाहते हो ?”
उसने इंकार करने को भी जहमत न उठाई ।
“कल रात” - मुकेश बोला - “जयगढ से लौटते समय जिस कार ने रिंकी की कार को टक्कर मारी थी, वो शिवाजी कार एजेन्सी से हासिल की गयी किराये की सफेद एम्बैसेडर थी, ये बात अब सेफली अज्यूम की जा सकती है । इन्स्पेक्टर साहब, आपने खुद कहा था कि माइक्रोस्कोपिक एग्जामिनेशन से कई ऐसे टैलटेल साइन सामने आ जाते हैं जो कि नंगी आंखों को नहीं दिखाई देते । आप किराये की कार का ऐसा एग्जामिनेशन करायेंगे तो, टच वुड, उसके बायें पहलू के हाल ही में किसी लाल रंग की कार से भिड़े होने के लक्षण जरूर सामने आयेंगे ।”
इन्स्पेक्टर ने सहमति में सिर हिलाया ।
“घिमिरे अमूमन अपनी एम्बैसेडर को लॉक करके नहीं रखता था और चाबियां भी अन्दर ही भूल जाता था । पहले मेरा खयाल था कि एक्सीडेंट घिमिरे ने किया था, फिर मुझे लगा था कि एक्सीडेंट उसकी कार से हुआ था लेकिन ड्राइवर कोई और था ।”
“यानी कि किसी ने खास उस नापाक काम के लिये घिमिरे की कार चोरी कर ली थी ?”
“हां । लेकिन अब मैं ये भी सेफली अज्यूम कर सकता हूं कि एक्सीडेंट में वो कार शरीक थी जो कि पूना की शिवाजी कार रेन्टल एजेन्सी से किराये पर ली गयी थी ।”
“साबित हो जायेगा ।”
“और कहना न होगा कि कराये की कार और फर्जी नाम के साथ मिसेज पंडित को यहां बुलाते वक्त इसके जेहन में वो एक्सीडेंट ही था जिसके जरिये ये रिंकी को खत्म कर देना चाहता था । इसका खयाल था कि किराये की कार अव्वल तो ट्रेस ही नहीं होगी, होगी तो ये स्थापित करना नामुमकिन होगा कि असल में उसे किराये पर लेने वाला कौन था ।”
“किराये की कार उसे लेने वाले को अपना आइडेन्टिटी स्थापित करने के बाद मिलती है, ये बात एक वकील को सूझी, एक प्राइवेट डिटेक्टिव को न सूझी ?”
“नहीं ही सूझी ।”
“और ?”
“ये कल एक्सीडेंट को कामयाबी से अंजाम दे चुका होता तो अब तक न यहां कार होती और न कार को किराये पर लेने वाली होती । कामयाब एक्सीडेंट के बाद इसने कल ही गुमशुदा वारिस को मुर्दा साबित कर दिखाया होता और मिसेज पंडित को यहां से रुख्सत कर दिया होता । वो अभी भी यहीं है तो सिर्फ इसलिये क्योंकि आज इसका दूसरा वार भी खाली गया ।”
“आई सी ।” - इन्स्पेक्टर फिर करनानी की तरफ घूमा - “अब कुछ कहना चाहते हो ?”
जवाब में करनानी ने मुंह फेर लिया ।
“ठीक है ।” - वो अपने मातहत की तरफ घूमा - “इसे थाने लेकर जाओ और लॉकअप में बन्द करके यहां वापिस आओ ।”
“चलो, भई ।” - सोनकर बोला ।
मुंह न खोलने को दृढप्रतिज्ञ, मजबूती से जबड़े भींचे करनानी उसके साथ हो लिया ।
पीछे काफी देर सन्नाटा छाया रहा ।
“मैडम” - फिर इन्स्पेक्टर अठवले रिंकी से बोला - “मुझे खुशी है कि आपका हमलावर पकड़ा गया ।”
रिंकी ने संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया ।
“बहुत तकलीफ पायी आपने । बहुत जहमत भी उठाई । आप चाहें तो अपने कॉटेज में जा सकती हैं ।”
“नहीं । अभी मैं यहीं ठीक हूं ।”
“मर्जी आपकी ।” - फिर वो मुकेश की तरफ घूमा - “सहयोग की शुक्रिया ।”
“मेरे ऑफिस ने आनन्द बोध पंडित की वसीयत को बहुत जल्द खोद निकाला” - मुकेश बोला - “और फौरन मुझे उसकी खबर की । उसी से कब कमाल हुआ ।”
“इस बाबत कुछ करना पहले क्यों न सूझा ?”
“बस, नहीं सूझा । इतना कुछ था सोचने को कि ये एक बात जल्दी न सूझी ।”
“लेकन एक सवाल तो अभी भी अपनी जगह कायम है । इसका कत्ल से, बल्कि कत्लों से, क्या रिश्ता हुआ ?”
“कोई रिश्ता दिखाई नहीं देता । यही बात तो हैरान कर रही है । वैसे दिल ये ही गवाही देता है कि रिंकी के सन्दर्भ में ही कोई रिश्ता निकलना चाहिये । मेरी ऐसी सोच थी इसलिये बार बार मेरा खयाल रिंकी की तरफ जाता था क्योंकि इसने मिस्टर देवसरे के कत्ल की रात को महाडिक को यहां देखा था...”
“मैंने पहले भी कहा था” - महाडिक बीच में बोल पड़ा - “और फिर कहता हूं कि इसे मेरी बाबत मुगालता लगा था ।”
“करनानी एक काईयां आदमी है ।” - महाडिक की ओर ध्यान दिये बिना मुकेश आगे बढा - “हमेशा दूर की सोचने वाला और एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश करने वाला । जैसे उसने दो बार रिंकी को खत्म करने की कोशिश की उससे लगता था कि कत्ल उसके लिये कोई बड़ी बात नहीं थी । उसकी इस फितरत की वजह से मुझे एक बात सूझी है ।”
“क्या ?” - इन्स्पेक्टर बोला ।
“करनानी के पास मिस्टर देवसरे के कत्ल को कोई उद्देश्य नहीं दिखाई देता था । क्या पता उसने इसी वजह से मिस्टर देवसरे का कत्ल किया हो कि अगर वो रंगे हाथों ही न पकड़ा जाता तो उसे तो कातिल माना जा ही नहीं सकता था ।”
“क्या मतलब ?”
“उसके पास रिंकी के कत्ल का तगड़ा उद्देश्य था जो कि अभी उजागर हुआ । अगर ये उद्देशय न उजागर होता - जिसकी कि पूरी पूरी सम्भावना थी - तो क्या रिंकी के कत्ल के बाद यही न समझा जाता कि जिस किसी ने भी मिस्टर देवसरे का कत्ल किया था, उसी ने रिंकी का कत्ल किया था ! क्या ये न समझा जाता - जैसा कि उसके कत्ल की पहली कोशिश के वक्त समझा गया था - कि जाने अनजाने रिंकी कातिल के बारे में कुछ जानता थी, वो कातिल के लिये खतरा थी, इसलिये कातिल के लिये हमेशा के लिये इसका मुंह बन्द कर देना जरुरी था ! अब करनानी क्योंकि मिस्टर देवसरे के कत्ल मामले में सस्पैक्ट नहीं था - क्योंकि उसके पास उस कत्ल का कोई उद्देश्य नहीं था - इसलिये वो रिंकी का कातिल भी नहीं हो सकता था ।”
“तुम ये कहना चाहते हो” - इन्सपेक्टर हैरानी से बोला - “कि उसका ओरीजिनल निशाना रिंकी ही थी, उसने उसके कत्ल का शक अपने पर न होने देने के लिये नाहक देवसरे का खून कर दिया !”
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