RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“मैं ये कहना नहीं चाहता । मैंने महज एक थ्योरी के तौर पर इस बात का जिक्र किया है । इस एक थ्योरी ने बहुत देर तक मुझे मुतमईन किये रखा था लेकिन अब मुझे नहीं लगता कि करनानी का मिस्टर देवसरे के कत्ल से कोई लेना देला था । करनानी का किरदार, आपने देखा ही है कि, एक मौकापरस्त आदमी का था इसलिये जब मिस्टर देवसरे का कत्ल हुआ था तो उसकी सूरत का अक्स मेरे जेहन में बराबर उभरा था लेकिन लाख सिर पटकने पर भी मैं उसके पास मिस्टर देवसरे के कत्ल के किसी उद्देश्य की कल्पना नहीं कर सका था । फिर जब रिंकी पर पहला हमला हुआ था तो कत्ल की उस थ्योरी ने मुझे बहुत लुभाया था जो कि मैंने अभी बयान की । यानी कि उसका निशाना रिंकी ही थी लेकिन मिस्टर देवसरे का कत्ल उसने रिंकी के कत्ल की भूमिका के तौर पर कर दिया था ताकि ये समझ जाता कि जो कोई भी मिस्टर देवसरे का कातिल था, वो ही रिंकी का कातिल था । लिहाजा क्योंकि करनानी मिस्टर देवसरे का कातिल नहीं हो सकता था इसलिये वो रिंकी का कातिल नहीं हो सकता था ।”
“एक ही बात को बार बार दोहरा रहे हो ।”
“सॉरी ।”
“आगे बढ़ो ।”
“मैं ये कहना चाहता था कि करनानी ने मिस्टर देवसरे का कत्ल नहीं किया था लेकिल वो कत्ल हो चुकने के बाद उसको अपने हक में इस्तेमाल करने की वो ही तरकीब उसने सोची थी जो कि मैंने अपनी थ्योरी में बयान की ।”
“ये कि जब रिंकी का कत्ल हो जाता तो वो भी देवसरे के कातिल का ही काम समझा जाता जो कि वो नहीं था ?”
“हां । रिंकी के कत्ल की कोशिश अगर जेनुईन एक्सीडेंट मान ली जाती तो बात ही क्या थी, उसे कत्ल समझा जाता तो वो मिस्टर देवसरे के कातिल का नया कारनामा समझा जाता ।”
“हूं ।”
“दस लाख का बोनस कमाने की ललक में वो शख्स अपने तमाम काम छोड़े बैठा था और गुमशुदा वारिस की तलाश के वाहिद केस के पीछे पड़ा हुआ था । आखिरकार यहां उसकी तलाश कामयाब हुई थी । उस कामयाबी के शिखर पर पहुंचने में उसका धन्धा चौपट हो गया था और पल्ले का ढेरों पैसा खर्च हो गया था । नतीजतन अब बोनस का दस लाख उसे कोई बहुत बड़ी रकम नहीं लग रही थी । तब एक बहुत ही बड़ी रकम का खुद को हकदार बनाने की उसे तरकीब सूझी । वो गुमशुदा वारिस के विरसे के हिस्से में अपनी बराबर की शिरकत के सपने देखन लगा ।”
“बीस करोड़ रुपये के ?”
“कितनी बड़ी रकम होती है ये ! जिस रकम पर - पांच करोड़ पर - आखिर में सौदा पटा वो भी कोई कम बड़ी रकम नहीं होती । इससे कहीं छोटी रकमों पर बड़े खूनखराबे हो चुके हैं, परिवार के परिवार मिटाये जा चुके हैं ।”
“ठीक । लेकिन फिर भी तुम ये कहना चाहते हो कि उसने देवसरे का कत्ल नहीं किया था ?”
“हां ।”
“घिमिरे का ?”
“उसका भी नहीं । मिस्टर देवसरे के कत्ल के वक्त की तो बाकायदा उसके पास एलीबाई थी लेकिन आज रात से पहले मुझे उसकी खबर नहीं थी ।”
“तो फिर कातिल कौन हुआ ?”
“कहना मुहाल है लेकिन मैं ये कह सकता हूं कि कातिल कौन नहीं है ।”
“बमय सबूत ?”
“ऐसा पुख्ता सबूत मेरे पास कोई नहीं है जो कि अदालत में ठहर सके लेकिन जो सबूत मेरे पास है वो आपको मुतमईन कर सकता है ।”
“देखें ।”
“इन्स्पेक्टर साहब, ये बात जगविदित है कि मिस्टर देवसरे टी.वी. के रसिया नहीं थे, वो खबरों के अलावा टी.वी. का कोई प्रोग्राम नहीं देखते थे इसलिये टी.वी. सिर्फ दो चैनलों पर टयून करके रखते थे । एक आजतक चैनल पर और दूसरे स्टार-न्यूज चैनल पर । मिस्टर देवसरे की मौत के बाद से इस टी.वी. पर वही चैनल सैट हैं जो वो हमेशा देखते थे । आप इसे अभी ऑन करेंगे तो इसे आजतक पर सैट पायेंगे ।”
“आगे ?”
“जिन दो चैनलों का मैंने नाम लिया, उन पर खबरें चौबीस घन्टे आती हैं लेकिन शाम सात बजे ‘आजतक’ पर और रात ग्यारह बजे स्टार-न्यूज पर खबरों के विशेष बुलेटिन प्रसारित होते हैं । मिस्टर देवसरे इन दोनों चैनलों को टी.वी. पर यूं सैट रखते थे कि रिमोट पर ‘प्रिवियस चैनल’ का बटन दबाने पर टी.वी. एक चैनल से बदल कर दूसरी पर पहुंच जाता था और फिर दबाने पर दूसरी चैनल से पहली चैनल पर आ जाता था । सौ चैनलों वाले इस टी. वी. पर सिर्फ दो ही चैनलें देखनी हों ये उसके लिये बड़ी अच्छी और सुविधाजनक प्रोग्रामिंग थी ।”
“गुड ।”
“शाम सात बजे और रात ग्यारह बजे इन दो चैनलों को देखना मिस्टर देवसरे की यहां की दिनचर्या का निश्चित हिस्सा था, वो आसपास कहीं भी हों, सात बजे और ग्यारह बजे अपने कॉटेज में लौट आते थे । मैं जब से यहां उनके साथ हूं तब से ऐसा कभी नहीं हुआ कि इन दो वक्तों पर वो यहां अपने टी.वी. के सामने मौजूद न रहे हों । कत्ल की रात को भी ऐसा ही हुआ था । हम ‘आजतक’ पर सात बजे की न्यूज देख चुकने के काफी देर बाद यहां से निकले थे, थौड़ी देर ‘सत्कार’ में बैठे थे और फिर ब्लैक पर्ल क्लब पहुंच गये थे । फिर वहां जो हुआ - खासतौर से जो मेरे साथ बीती - वो जगेविदित है । अपनी बेहोशी से उबरकर जब मैं यहां लौटा था तो मिस्टर देवसरे की लाश के सामने तब भी टी.वी. ऑन था और उस पर फिल्मों से सम्बन्धित कोई फीचर स्टोरी आ रही थी । फिर किसी ने मेरे पर हमला किया, हमले से उबरकर मैं हमलावर के पीछे बीच की तरफ भागा लेकिन वो मुझे न मिला । बीच पर से तब रिंकी और करनानी लौट रहे थे, मैं उनके साथ यहां वापिस लौटा तो टी.वी. पर अभी तब भी फीचर स्टोरी जारी थी ।” - मुकेश ने रिंकी की तरफ देखा - “मैंने ठीक कहा ?”
“हां ।” - रिंकी बोली ।
“तब मैंने टी.वी. ऑफ कर दिया था और पुलिस को फोन किया था । लेकिन जो एक अहमतरीन बात मुझे तब नहीं सूझी थी - बहुत बाद में सूझी थी - वो ये थी कि उस फीचर स्टोरी की भाषा हिन्दी थी, हिन्दी थी इसलिये आजतक चैनल पर आ रही थी । अगले रोज जब मैंने टी.वी. चलाया था तो ये आजतक चैनल पर ऑन हुआ था लेकिन अफसोस है मुझे अपनी अक्ल पर कि तब भी मुझे इस बात की अहमियत नहीं सूझी थी । उस बाबत अक्ल आयी तो आज शाम को आयी, दिमाग पर जमी मोम पिघली तो आज शाम को पिघली ।”
“कैसे ? क्या हुआ ?”
“इन्स्पेक्टर साहब, कत्ल की रात को यहां टी.वी. ऑन देखने पर क्या आप क्या मैं, क्या हर कोई कूद कर जिस नतीजे पर पहुंचा था वो ये था कि टी.वी. ऑन था इसका मतलब था किे अपनी स्थापित रूटीन के मुताबिक मिस्टर देवसरे रात ग्यारह बजे यहां लौट आये थे और खबरें देखने बैठ गये थे । यानी कि ग्यारह बजे वो जिन्दा थे । थाने में ऐसा आपने भी कहा था और इसी बिना पर ये नतीजा निकाला था कि कत्ल ग्यारह और साढे ग्यारह बजे के बीच के किसी वक्त हुआ था ।”
इन्स्पेक्टर ने सहतति में सिर हिलाया ।
“लेकिन, गुस्ताखी माफ, जनाब, ये नतीजा गलत है । इसलिये गलत है क्योंकि ये नतीजा निकलते वक्त आपने ये बात नोट न कि टी.वी. स्टार न्यूज पर सैट नहीं था जैसे कि वो मिस्टर देवसरे द्वारा ग्यारह बजे ऑन किया गया होता तो होता । टी.वी. आजतक चैनल पर सैट था, मिस्टर देवसरे की मौत के बाद टी.वी. आजतक चैनल पर चलता पाया गया था और अपनी रूटीन के मुताबिक उस चैनल पर उन्होंने उसे सात बजे चलाया था । आई रिपीट सर, मिस्टर देवसरे अगर ग्यारह बजे जिन्दा होते तो टी.वी. स्टार-न्यूज पर चल रहा होता और टेलीकास्ट इंगलिश में होता पाया गया होता । ये इकलौती बात अपने आप में सबूत है कि कत्ल ग्यारह के बाद नहीं, उससे पहले किसी वक्त हुआ था और ग्यारह बजे से पहले टी.वी. ऑन होने का कोई मतलब नहीं था ।”
“तो फिर टी.वी. किसने ऑन किया ?”
“जाहिर है कि कातिल ने । और इसलिये किया ताकि टी.वी. की आवाज में गोली की आवाज दब जाती । उसे टी.वी. के किसी प्रोग्राम से कुछ लेना देना नहीं था, उसे सिर्फ टी.वी. की आवाज से मतलब था इसलिये टी.वी. पहले से जिस चैनल पर सैट था, उसी पर ऑन हो गया था । और पहले वो आजतक चैनल पर सैट था क्योंकि सात बजे मिस्टर देवसरे उस चैनल पर खबरें सुन कर गये थे । इन्स्पेक्टर साहब, ये कनक्लूसिव प्रूफ है कि मिस्टर देवसरे का कत्ल ग्यारह बजे से पहले किसी वक्त हुआ था । इसलिये किसी के पास ग्यारह के बाद के वक्त की एलीबाई होने की कोई कीमत नहीं रह जाती । आपके पास सब सस्पैक्ट्स की उस रात की मूवमेंट्स का ब्यौरा है इसलिये अब उसके तहत नये सिरे से विचार कीजिये कि ग्यारह से पहले कौन कहां था और कहां नहीं था ।”
इन्स्पेक्टर ने महाडिक की तरह देखा ।
“इसकी तरफ देखना बेकार है” - मुकेश बोला - “क्योंकि पौने ग्यारह बजे ये अपनी क्लब के कैसीनों में था जहां ये एक ऐसे गैम्बलर से मगज मार रहा था जो कि विनिंग स्ट्रीक पर था इसलिये रॉलेट पर बिना लिमिट का खेल खेलना चाहता था ।”
“ओह !”
महाडिक ने चैन की सांस ली ।
“कत्ल का जो नया टाइम मैं सुझा रहा हूं, उसके दौरान मैं क्लब के एक बूथ में बेसुध पड़ा था, इस बात की तसदीक करने वाले वहां दर्जनों गवाह मौजूद हैं । ये भी स्थापित तथ्य है कि रिंकी और करनानी ग्यारह बजे क्लब में थे । पाटिल भी तब क्लब में था और सवा ग्यारह बजे रिजॉर्ट में लौटता देखा गया था । घिमिरे शुरु से रिजॉर्ट में था लेकिन वो इसलिये कातिल नहीं हो सकता क्योंकि खुद उसका कत्ल हो गया है । दिनेश पारेख ने गोलमोल तरीके से कुबूल किया है लेकिन किया है कि वो कत्ल के बाद यहां पहुंचा था । अब बाकी कौन बचा ?”
“कौन बचा ?” - इन्पेक्टर के मुंह से निकला ।
“वो बचा जिसने मुझे कहा था कि कैप्सूलों के खोल बूथ से उठाकर मैंने उस पर मेहरबानी की थी तो मैं उस मेहरबानी को जारी क्यों नहीं रख रहा था और यूं जिसने एक तरह से उस वाकये का आर्कीटेक्ट होना कुबूल किया था जो कि पहले कत्ल की बुनियाद बना था, जिसने मुझे ये पट्टी पढाने की कोशिश की थी कि जिस पर मेहरबान होते हैं, उस पर एतबार लाते हैं; शक नहीं करते, गिरफ्तार करा देने की धमकी नहीं देते ।”
इस्पेक्टर सकपकाया ।
“और वो बचा जो मिस्टर देवसरे के साथ था, वो बचा जो मिस्टर देवसरे को उनकी कार पर यहां ड्रॉप करने आया था ।” - मुकेश एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “आयी थी ।”
मुकेश को नाम लेने की जरूरत ही न पड़ी । तमाम निगाहें पहले ही मीनू सावन्त की तरफ उठ गयीं ।
एक बार फिर सन्नाटा छा गया ।
फिर खुद मीनू ने ही उस सन्नाटे को ताड़ा । वो मुस्काराई और बड़ी अदा से बोली - “आप तो ऐसे न थे ।”
“तुम बात को मजाक में ले रही हो ।” - मुकेश बोला ।
“और तुम खुद मजाक हो ।” - महाडिक गुस्से से बोला - “मीनू पर कत्ल का इलजाम लगा रहे हो ? शर्म करो ।”
मुकेश खामोश रहा ।
“टी.वी. इस चैनल पर नहीं उस चैनल पर था, उस चैनल पर नहीं इस चैनल पर था । ये कोई सबूत हुआ ! तुम जिस चैनल पर चाहते उसे सैट कर सकते थे ।”
“मुझे क्या जरूरत पड़ी थी ऐसा करने की ?” - मुकेश बोला ।
“तुम्हारी जरूरत तुम्हें मालूम हो ।”
“सिर्फ इसलिये मैं कातिल हो गयी” - मीनू बोली - “कि मिस्टर देवसरे की दरख्वास्त पर मैं उन्हें यहां छोड़ने आयी थी ? उनकी दरख्वास्त कुबूल करना ही मेरा गुनाह हो गया ?”
“मुझे सफाई मत दो । जो कहना है, इन्स्पेक्टर साहब को कहो ।”
“तुमने भी जो कहना है इन्स्पेक्टर साहब को कहो ।”
“उन्हीं को कहता हूं । इन्हीं को याद दिलाता हूं कि नींद के कैप्सूलों की शीशी, इन्स्पेक्टर साहब, इसके पास थी । इसके सामने मिस्टर देवसरे ने मुझे जाकर रिंकी के साथ डांस करने के लिये प्रेरित किया था । डांस से जब मैं अपने केबिन में वापिस लौटा था तो ये वहां अकेली थी और पहले से मेरे लिये ड्रिंक मंगा के बैठी हुई थी । क्यों ड्रिंक पहले से टेबल पर मौजूद था ? क्योंकि इसने नींद की दवा मिलाकर खास मेरे लिये तैयार करके रखा हुआ था । बाद में कोई बड़ी बात नहीं कि मिस्टर देवसरे को ये आइडिया भी इसी ने सरकाया था कि मुझे बूथ में सोता पड़ा रहने देना मेरे साथ अच्छा मजाक होता । इसे पता था कि मिस्टर देवसरे तब मेरे से बेजार थे इसलिये उन्हें ये बात जंच जानी थी । फिर इसने ही पेशकश की थी उनकी कार पर उन्हें वापिस रिजॉर्ट में छोड़ आने की और कार वापिस ले आने की ।”
|