Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
10-18-2020, 01:17 PM,
#60
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“नानसेंस ।” - महाडिक बोला ।
“मिस्टर देवसरे के साथ ये यहां पहुंची । तब किसी वजह से मिस्टर देवसरे ने वाल सेफ खोली ।”
“किस वजह से ?”
“वक्ती तौर पर इसकी तवज्जो कत्ल की तरफ से हटाना एक वजह हो सकती है अगरचे कि हम ये मान के चलें कि उस घड़ी तक ये मिस्टर देवसरे पर गन तान चुकी थी । जरूर उनके पास कोई स्कीम होगी इससे गन हथिया लेने की...”
“ये सब लिफाफेबाजी है । जब कुछ साबित कर दिखाने की जिम्मेदारी आयद न होती हो तो ऐसी कितनी ही कहानियां कितने भी लोगों के खिलाफ गढी जा सकती हैं ।”
“लेकिन...”
“तुम दायें की बातें छोड़ कर पहले असल और अहम बात पर क्यों नहीं आते हो ?”
“असल बात ?”
“जो ये है कि कत्ल के लिये कातिल के पास कोई उद्देश्य होना चाहिये । तुम्हें इसके पास कत्ल का क्या उद्देश्य दिखाई देता है ? तुमने कत्ल मेरे सिर थोपने की कोशिश की होती तो कोई बात भी थी । मैं देवसरे को मुद्दत से जानता था और मेरे पास उसके कत्ल का जो उद्देश्य था, वो जगजाहिर है । मेरे कहने का मतलब ये न लगाना कि कत्ल मैंने किया है । मेरा मतलब सिर्फ इतना है कि अगर कत्ल तुमने किसी पर थोपना ही था तो ये कोशिश मेरे पर की होती । मीनू तो देवसरे को ठीक से जानती तक नहीं थी सिर्फ एक हफ्ते की मुलाकात थी दोनों की । ये भला क्यों उसका कत्ल करती ?”
“वजह है ।”
“क्या वजह है ?”
“इन्स्पेक्टर साहब, आप तजुर्बेकार पुलिस अधिकारी हैं, आपके तजुर्बे के मुताबिक औरतों के पास कत्ल का बेहतरीन उद्देश्य क्या होता है ?”
“क्या होता है ?” - इन्स्पेक्टर बोला - “हसद ? नफरत ?”
“प्यार । जिसकी कि हसद और नफरत ब्रांच लाइनें हैं । ये एक ऐसी लड़की है जिसकी फैमिली बैकग्राउन्ड बहुत मामूली है, हैसियत बहुत मामूली है, सलाहियात बहुत मामूली हैं । लेकिन हर नौजवान लड़की की तरह ख्वाब आसमान छूने के देखती है । ये खुद अपनी जुबानी कुबूल करती है कि अपना और अपनी मां का पेट भरने के लिये ये पॉप सिंगर बनी वर्ना ये तो कोई ऐसा करिश्मा होने का इन्तजार करती जो सीधा इसे सातवें आसमान पर पहुंचा देता । महाडिक में इसे अपना फ्यूचर दिखाई दिया तो ये मुम्बई छोड़ कर इसकी क्लब की मुलाजमत में आ गयी । अपनी आइन्दा जिन्दगी की सिक्योरिटी के लिये ये महाडिक से शादी तक करने को तैयार थी जबकि महाडिक उम्र में इससे इतना बड़ा था और एक शादी पहले कर चुका था । इसकी खुद की बातों से लगता था कि महाडिक भी इसे बराबर चाहता था और उसे इसके साथ नया विवाहित जीवन शुरु करने से गुरेज नहीं था । इसने पाटिल की जो गत बनायी इसकी मंशा की उससे भी तसदीक होती है ।”
“पाटिल का क्या किस्सा है ?”
मुकेश ने किस्सा बयान किया । कि कैसे वो मीनू पर दबाव डालकर उसे डरा धमकाकर उससे कोई रकम झटकने की कोशिश में था ।
“ओह !”
“महाडिक की हालिया प्राब्लम उसका मिस्टर देवसरे से कान्ट्रैक्ट था जो कि खत्म होने वाला था और जो उसे फिक्रमन्द किये था । ये जानता था कि मिस्टर देवसरे जिस कीमत पर दिनेश पारेख को क्लब बेचना चाहते थे वो कीमत खुद ये भरने में असमर्थ था । ऊपर से इसके कैसीनो में आकर एक ही रात में ग्यारह लाख रूपये जीत कर वो इसकी माली हालत में एक बड़ा छेद कर गया था । और यूं इसके क्लब खरीद पाने की सम्भावना बिलकुल ही खत्म हो गयी थी । ये इसकी भारी ट्रेजेडी थी कि अपनी तीन साल की अनथक मेहनत से जो मुनाफे का बिजनेस इसने अपने लिये खड़ा किया था, मिस्टर देवसरे के एक ही फैसले से - क्लब बेच देने के फैसले से - उसकी बुनियाद खिसकी जा रही थी । तकदीर का वो एक ही झटका इसे सड़क पर ला सकता था और उस निश्चित बर्बादी से इसे कोई बात बचा सकती थी तो वो ये थी कि कान्ट्रैक्ट खत्म होने से पहले वो शख्स खत्म हो जाता जिसके साथ कि कान्टैक्ट था । इस बात को दूसरे लफ्जों में कहा जाये तो मिस्टर देवसरे की जिन्दगी इसके लिये मौत थी और उनकी मौत इसके लिये जिन्दगी थी ।”
“मैं... मैं कुबूल करता हूं कि ऐसा था ।” - महाडिक बोला - “लेकिन ये मेरा उद्देश्य हुआ न कि मीनू का ।”
“उसका भी हुआ । इसलिये हुआ क्योंकि तुम्हारे में उसका फ्यूचर था, वो तो पहले ही फैसला कर चुकी हुई थी कि उसकी और तुम्हारी जिन्दगी एक थी । तुम बर्बाद होते तो उसका भविष्य साथ बर्बाद हुआ होता । तुम तो आबाद हो चुकने के बाद बर्बाद हुए होते ये तो आबाद होने से पहले ही बर्बाद हो जाती । ये कहती है कि तुम बस इससे शादी करने ही वाले थे - इस बात का सबूत इसके हाथ में तुम्हारी पहनाई अंगूठी है - अब क्लब तुम्हारे हाथ से निकल जाती तो या तो शादी अनिश्चित काल के लिये मुल्तवी हो जाती या होती ही नहीं । ऐसा होता तो तुम्हारी बर्बादी से कहीं बड़ी ये इसकी बर्बादी होती । इस बर्बादी को रोकने का एक ही तरीका था कि इसकी वजह पर चोट की जाती । वजह मिस्टर देवसरे थे । जरूर इसे अहसास था कि उस वजह को खत्म करने की बाबत तुम कोई कदम उठाने वाले नहीं थे इसलिये जरूरी था कि वो कदम ये उठाती । इस बार इसके ये फैसला कर चुकने के बाद बाकी सब आसान था । इसने बडी चतुराई से मुझे मिस्टर देवसरे से अलहदा किया और फिर उनका कत्ल कर दिया । महाडिक, हो सकता है कि पहले तुम्हें ये बात न मालूम हो कि कत्ल तुम्हारी होने वाली बीवी ने किया था लेकिन अब बराबर मालूम है ।”
महाडिक के मुंह से बोल न फूटा, उसने मुंह बाये मीनू की तरफ देखा ।
“मेरा जाती खयाल ये है मीनू के खतरनाक इरादे और इसके डेयरडेविल कारनामे की बाबत तुम्हें कुछ मालूम नहीं था । मालूम होता तो परसों रात कत्ल के वक्त के आसपास तुमने रिजॉर्ट में कदम रखने की हिमाकत न की होती... न न । अब ये कहना बेकार होगा कि परसों रात तुम यहां नहीं थे और रिंकी को तुम्हें यहां देखा होने की बाबत मुगालता लगा था । तुम यकीनन यहां थे अलबत्ता तुम्हारे यहां आने का मकसद एकदम निर्दोष था । तुमने मुझे क्लब में बेहोश पड़े देखा था, तो इसे मिस्टर देवसरे के साथ तनहाई में बात कर पाने का सुनहरा मौका समझा था । तुम यहां मिस्टर देवसरे से क्लब की बिक्री के सन्दर्भ में अपने उजड़ते भविष्य की बाबत बात करने आये थे लेकिन तुमने उन्हें यहां मरे पड़े पाया । ये वो वक्त था जब कि दिनेश पारेख तभी यहां से गया था । उसके बाद तुम यहां पहुंचे और, जैसा कि होना ही था, तुमने मिस्टर देवसरे को यहां पड़े पाया । तुम्हारे चुपचाप खिसक पाने से पहले ऊपर से मैं आ गया । तुम जानते थे कि तुम यहां लाश के पास मौजूद पाये जाते तो तुम्हें ही कातिल समझा जाता । तुम्हारा अपने को मेरी निगाह में न आने देने की हर चन्द कोशिश करना स्वाभाविक था । लिहाजा पहले तुम कहीं छुप गये और फिर मौका ताड़ कर मेरे पर पीठ पीछे से वार करके यहां से भाग गये ।”
महाडिक से विरोध करते न बना ।
“कत्ल के बाद दो ही जनों ने यहां कदम रखा था और उन दो में से ही किसी ने मेरे पर वार किया हो सकता था । अब जबकि मुझे यकीन है कि मेरे पर वार करने वाला शख्स पारेख नहीं था तो, महाडिक, यकीनन वो तुम थे । कुबूल करो कि वो तुम थे । मुझ पर वार करना तुम्हारा एक छोटा गुनाह है जिसे मैं बख्श दूंगा तो बात मुकम्मल तौर से खत्म हो जायेगी । तुम्हें तो खुश होना चाहिये कि यूं मैं तुम्हें कत्ल के इल्जाम से पूरी तरह से बरी करके दिखा रहा हूं ।”
महाडिक ने जोर से थूक निगली ।
“ले.. लेकिन” - फिर बड़ी मुश्किल से वो कह पाया - “मीनू.. मीनू...”
“यही कातिल है । इसी ने कत्ल किया है । ये मिस्टर देवसरे को यहां ड्रॉप करने के बहाने उनके साथ आयी, यहां भीतर पहुंची और फिर उन्हें शूट कर दिया । अपने कारनामे को अंजाम दे चुकने के बाद जब ये यहां से बाहर निकली तो सीधे माधव घिमिरे से जा टकराई और फिर इसके लिये उसका भी कत्ल करना जरूरी हो गया ।”
“वो खामोश क्यों रहा ?” - इन्स्पेक्टर बोला ।
“अपनी खामोशी की असल वजह तो वो ही जाने, वो दब्बू और डरपोक किस्म का आदमी था, वो इसी बात का खौफ खा गया होगा कि ये उसे भी मार डालेगी लेकिन उसकी खामोशी की असल वजह ये हो सकती है कि मिस्टर देवसरे की मौत में उसका भी फायदा था और इसने उसका कत्ल करके एक तरह से उस पर भी उपकार किया था । मिस्टर देवसरे की जिन्दगी में वो रिजॉर्ट के मुनाफे में हिस्से से भी हाथ धोने जा रहा था जबकि उनकी मौत से किसी रिजॉर्ट का - भले ही वो बहार विला जैसा छोटा और मामूली हो - सोल प्रोप्राइटर बनने का उसका सपना पूरा हो सकता था ।”
“हूं ।”
“घिमिरे का खेल विनोद पाटिल के एकाएक यहां आ धमकने ने बिगाड़ा था । पाटिल के यहां कदम न पड़े होते तो यहां रिजॉर्ट में सब के लिये सब कुछ ठीक ठीक चल रहा था । पाटिल की वजह से मिस्टर देवसरे ने इस जगह को गिरवी रखने का फैसला किया ताकि मुनाफा मिट्टी हो जाता और पाटिल के पल्ले कुछ न पड़ता लेकिन तब उन्होंने ये न सोचा कि यूं उनके वफादार और कर्मठ मैनेजर घिमिरे के पल्ले भी कुछ न पड़ता । लेकिन मिस्टर देवसरे की मौत ने घिमिरे के लिये तमाम नक्शा बदल दिया, उस बात से वो इतना आन्दोलित हुआ कि बहार विला की बिक्री की बाबत मधुकर बहार से बात करने के लिये उससे सवेरे होने का भी इन्तजार न हुआ ।”
“ये बात उसने अपनी जुबानी कुबूल की थी । मैंने उसे ऐसा डराया था कि वो झट बक पड़ा था कि हमारे यहां से जाते ही उसने मधुकर बहार को फोन लगा दिया था ।”
“बाकी कसर मैंने पूरी कर दी थी । मैंने उसे बोला था कि पुलिस उसकी बाबत मधुकर बहार का बयान भी दर्ज करने वाली थी । जमा उसने मुझे अपनी कार का मुआयना करते देखा था । इस अपराधबोध से ग्रस्त तो वो पहले ही था कि वो मीनू की बाबत खामोश रहा था, जब उसे लगा कि रिंकी के एक्सीडेंट का इलजाम उस पर आयद हो सकता था तो वो बिलकुल ही घबरा गया । तब उसे लगने लगा कि उसकी गति इसी में थी कि वो पुलिस को सब कुछ सच सच कह सुनाता । यहां उस मूढ आदमी ने जरूर ये हिमाकत की कि मीनू पर अपना इरादा जाहिर कर दिया ताकि उसे अपना बचाव सोचने का या, बचाव न सूझने पर, भाग निकलने का मौका मिल जाता और यूं अपने डैथ वारन्ट पर खुद साइन कर लिये ।”
“इसने किसी बहाने से घिमिरे को मौकायवारदात पर बुलाया और उसे वहां शूट कर दिया ?”
“हां । आपने खुद कहा था कि कातिल बीच की तरफ से आया था और यहां के प्राइवेट बीच के रास्ते उस पब्लिक बीच पर पहुंच जाना इसके लिये मामूली बात थी । ये स्विमिंग कास्ट्यूम में रही होगी । इसलिये किसी की इसकी तरफ तवज्जो भी नहीं गयी होगी । बाकी रही रिवॉल्वर की बात जो आप कहते थे कि स्विमिंग कास्ट्यूम में नहीं छुपाई जा सकती थी लेकिन इस बात में दम तब था जबकि कातिल मर्द होता । औरतें बीच पर बीच बैग लेकर जाती हैं जिसमें कि गन बड़े आराम से छुपाई जा सकती थी । कोई नौजवान लड़की स्विमिंग कास्ट्यूम पहने बीच बैग झुलाती बीच पर विचरे तो कौन उसकी तरफ या उसके बीच बैग की तरफ ध्यान देता है ?”
“ठीक ।”
“लिहाजा बीच की तरफ से ये बड़े आराम से घिमिरे की कार तक पहुंची, जाकर उसकी बगल में पैसेंजर सीट पर बैठी, उसको बातों में लगाकर चुपचाप बीच बैग में से गन निकाली और उसकी नाल उसके पहलू से सटाकर गोली चला दी । यूं चश्मदीद गवाह खत्म । खतरा खत्म । और कहानी खत्म ।”
“कहानी ही है ये ।” - महाडिक बोला - “क्योंकि तुम इसे साबित नहीं कर सकते ।”
“नहीं कर सकता । क्योंकि ये पुलिस का काम है । लेकिन एक बात मैं फिर भी कहता हूं ।”
“क्या ?” - सबाल इन्स्पेक्टर ने किया ।
“पहले मेरा एक सवाल । क्या दोनों कत्ल एक ही गन से हुए हैं ?”
“हां । बैलेस्टिक एक्सपर्ट की रिपोर्ट निर्विवाद रूप से इस बात की तसदीक करती है ।”
“गुड । कातिल से आम उम्मीद यही होती है कि कत्ल करने के बाद वो आलायकत्ल से किनारा कर लेता है लेकिन जब दोनों कत्ल एक ही गन से हुए बताये जा रहे हैं तो जाहिर है कि मीनू ने ऐसा नहीं किया था, मिस्टर देवसरे के कत्ल के बाद इसने गन से किनारा नहीं किया था इसीलिये दूसरे कत्ल के लिये वही गन इसके पास उपलब्ध थी । अब क्या पता जो काम इसने पहले कत्ल के बाद नहीं किया था वो दूसरे कत्ल के बाद भी न किया हो !”
“मतलब ?”
“अब क्या खाका खींचकर समझाऊं ?”
“गन अभी भी इसके पास हो सकती है ?”
“हो सकती है नहीं, है ।”
“कैसे मालूम ?”
“उसकी तरफ देखो, सवाल जरूरी नहीं रह जायेगा ।”
इन्स्पेक्टर ने घूम कर मीनू की तरफ निगाह उठाई तो वो सन्न रह गया ।
गन उसके हाथ में थी और उसने बड़ी मजबूती से उसे अपने सामने ताना हुआ था ।
अब किसी को सबूत मांगने की जरूरत नहीं थी ।
अब मीनू सावन्त का गुनाह उसके मुंह पर लिखा दिखाई दे रहा था । उसकी आंखों में एक बिल्लौरी चमक थी और खूबसूरत होंठ भिंचकर एक बारीक लकीर की सूरत अख्तियार कर चुके थे । उसकी सांस ऐसी तेजी से चलने लगी थी कि कमरे में उसकी आवाज सुनायी देने लगी थी ।
सबसे ज्यादा हकबकाया हुआ महाडिक था, वो मुंह बाये उस औरत का मुंह देखा रहा था जिससे वो मुहब्बत करता था और जिसने उसकी खातिर खून से हाथ रंगने से गुरेज नहीं किया था ।
“मीनू ।” - फिर वो धीरे से बोला - “गोली न चलाना । ऐसी गलती हरगिज न करना ।”
“गलती !” - वो एक खोखली हंसी हंसी - “गलती तो हो चुकी ।”
“ये लोग कुछ साबित नहीं कर सकते । इनके पास ऐसा कुछ नहीं है जिसे कोर्ट में धराशायी न किया जा सकता हो । तुम्हें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिये जिससे इनके हाथ मजबूत होते हों ।”
मीनू की सूरत से न लगा जैसे वो महाडिक की बातों की तरफ कोई तवज्जो दे रही हो । उसका ध्यान मुकेश की तरफ था और अब उसके हाथ में थमी गन की नाल का रुख भी उसी की तरफ स्थिर था ।
इन्स्पेक्टर उठ कर खड़ा हुआ ।
“खबरदार !” - वो सांप की तरह फुंफकारी ।
“मिस्टर महाडिक ने आपको माकूल राय दी है, मैडम ।” - इन्स्पेक्टर शान्ति से बोला - “गन मुझे सौंप दीजिये और मुल्क के कायदे कानून को अपना फैसला करने दीजिये । क्या पता सच में ही आपके खिलाफ कोर्ट में कुछ साबित न किया जा सके ।”
“बैठ जाइये ।”
“आप यहां गोली चलायेंगी तो खुद अपने ताबूत में कील ठोकेंगी ।”
“बैठ जाइये वर्ना पहली गोली के शिकार आप होंगे ।”
“मै बैठ जाता हूं । लेकिन जो आप कर रही हैं वो एक तरह से अपना गुनाह कुबूल करना ही है ।”
“मैंने कोई गुनाह नहीं किया । मैंने सिर्फ एक बेहिस, बेरहम शख्स को मिस्टर महाडिक का भविष्य बिगाड़ने से रोका ।”
“मीनू !” - महाडिक फिर चेतावनीभरे स्वर में बोला ।
“जिस पौधे को अपनी और सिर्फ अपनी मेहनत से मिस्टर महाडिक ने पेड़ बनाया उसे वो कम्बख्त बूढा काट डालने पर आमादा था ।”
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RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर) - by desiaks - 10-18-2020, 01:17 PM

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