RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“हैपी होने के कई तरीके मुमकिन हैं, सब कारगर हैं लेकिन उनकी बाबत मैं आपको फिर कभी बताऊंगा क्योंकि अभी आपके पास टाइम नहीं है ।”
“टा... टाइम नहीं है ?”
“अभी आप मेरी रिपोर्ट सुन रहे हैं । आई मीन सुनना शुरू कर रहे हैं । आई मीन सुनना शुरू करें या ना करें, इस बाबत सोच रहे हैं ।”
“माथुर, तुम्हारी बातों से मुझे एक शक हो रहा है ।”
“क्या, सर ?”
“मुझे लगता है कि ट्रंककॉल पर कोई क्रॉस टाक नहीं होती थी, जो अनापशनाप बोलते थे, तुम्हीं बोलते थे और उसकी जिम्मेदारी से बचने के लिये क्रॉस टाक का हवाला दे देते थे ।”
“ऐसा हो सकता है...”
“तो तुम मानते हो कि...”
“लेकिन हुआ कभी नहीं । क्रॉस टाक क्रॉस टाक ही थी जो ट्रंक लाइन को डिस्टर्ब करती थी ।”
“शुक्र है कि वो डिस्टर्बेंस अब नहीं हो सकती क्योंकि अब हम रूबरू बात कर रहे हैं ।”
“जी हां । शुक्र है । और अफसोस है ।”
“अफसोस !”
“सर, मजा आ जाता था क्रॉस टाक में । कभी शाहरुख बोलता था, कभी रितिक बोलता था और कभी कभी तो ऐश्वर्या की आवाज भी सुनाई दे जाती थी ।”
“माथुर !”
“सॉरी, सर ।”
“बी सीरियस ।”
“यस सर ।”
“एण्ड कम टु दि प्वायन्ट ।”
“यस सर ।”
“और प्वायन्ट ये है कि तुमने अपनी असाइनमेंट को बंगल कर दिया ।”
“जी !”
“तुम हमारे क्लायन्ट की हिफाजत न कर सके ।”
“सर, मिस्टर देवसरे को हिफाजत की जरूरत खुदकुशी से थी, कत्ल की कल्पना न मैं कर सकता था, न आप कर सकते थे ।”
“मैं कैसे कर सकता था ? मैं तो वहां नहीं था ।”
“होते तो भी न कर पाते । कब किसके मन में क्या होता है, ये जानने का आला अभी नहीं बना ।”
“चलो, मैंने मान लिया कि कत्ल की कल्पना तुम नहीं कर सकते थे लेकिन हमेशा उसके साथ तो बने रह सकते थे ! तुम तो ये भी न कर पाये ।”
“कातिल ने न करने दिया । क्योंकि मैं कातिल के षड्यन्त्र का शिकार हुआ । मेरी जगह मिस्टर आनन्द होते या मिस्टर आनन्द होते या खुद आप होते तो भी यही होता ।”
“हूं ।”
“बाई दि वे, लाश मुम्बई पहुंच गयी है, अब आप उसका अन्तिम संस्कार कर सकते हैं ।”
“मैं ! मैं कर सकता हूं ?”
“सर, आप ही ने तो कहा था कि अन्तिम संस्कार हम करेंगे, इसीलिये तो लाश मुम्बई भिजवाई गयी है वर्ना ये काम तो गणपतिपुल में भी हो सकता था ।”
“मैंने कलैक्टिलवली हम कहा था - हमसे मेरा मतलब आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स था, न कि नकुल बिहारी आनन्द था । अन्डरस्टैण्ड ?”
“आई डू नाओ, सर । सो....”
“फर्म से कोई भी इस काम के लिये जा सकता है । मसलन तुम ही जा सकते हो ।”
“यानी कि काला चोर भी ये काम कर सकता है ।”
“क्या मतलब ?”
“अगर काम काले चोर ने ही करना है तो इसे सफेद चोर को ही कर लेने दीजिये ।”
“अरे, क्या मतलब ? क्या कहना चाहते हो ?”
“मिस्टर देवसरे मानते या न मानते थे, ये हकीकत अपनी जगह कायम है कि विनोद पाटिल उनका दामाद है । मेरे खयाल से पाटिल के हाथों ही अन्तिम संस्कार होना बेहतर होगा ।”
“वो ऐसा करना मंजूर करेगा ?”
“जी हां, करेगा ।”
“ठीक है फिर । लैट हिम डू दि जॉब । मौके पर फर्म के प्रतिनिधि के तौर पर तुम....”
“सर, मुझे कोई एतराज नहीं लेकिन मेरे गये से लाश कच्ची पक्की रह गयी तो बुरा होगा, लोग बातें बनायेंगे, फर्म की साख बिगड़ेगी । इसलिये... सो आई फील दैट वन आफ दि आनन्द्स शुड गो ।”
“हूं । ओके, आई विल लुक इन टु इट ।”
“आजू बाजू भी निगाह डाल लीजियेगा । कई बार....”
“माथुर !”
“सॉरी, सर । बहरहाल कम से कम इस बात की आपको खुशी होनी चाहिये कि कातिल पकड़ा गया है ।”
“दैट्स गुड न्यूज । कौन था कातिल ?”
“मीनू सावन्त नाम की एक लड़की ।”
“क्यों किया उसने कत्ल ?”
मुकेश ने वजह सविस्तार बयान की ।
“ओह !” - वो खामोश हुआ तो बड़े आनन्द साहब बोले - “तो उस लड़की ने दो कत्ल किये ?”
“सर, मैंने साफ तो ऐसा बोला ।”
“यस । यस ।”
“यू शुड पे गुड अटेंशन टु वाट युअर जूनियर इज सेईंग ।”
“वाट ! वाट वाज दैट ?”
“नथिंग, सर ।”
“अब पोजीशन क्या है ?”
“वो लड़की गिरफ्तार है । वो शख्स भी गिरफ्तार है जिसकी खातिर उसने खून से अपने हाथ रंगे ?”
“कौन ?”
“सर, दैट इंडीकेट्स दैट यू वर नाट लिसनिंग ।”
“माथुर, माथुर....”
“अनन्त महाडिक ।”
“अब इन दोनों का क्या होगा ?”
“लड़की यकीनन लम्बी सजा पायेगी । महाडिक को भी छोटी मोटी सजा जरूर मिलेगी ।”
“हूं । और जो साइड स्टोरी तुमने सुनायी... जिसमें एक लड़की की दो बार जान लेने की कोशिश की गयी...”
“रिंकी शर्मा उर्फ तनुप्रिया पंडित । वो एक दौलतमन्द बाप की इकलौती गुमशुदा बेटी निकली है और इस वक्त चालीस करोड़ की विपुल धनराशि की मालकिन है । उसका हमलावर - मेहरचन्द करनानी - गिरफ्तार है और इरादायेकत्ल के इलजाम में दस साल के लिये नपेगा ।”
“आई सी ।”
“तमाम फसाद की जड़ आपके क्लायन्ट का दामाद विनोद पाटिल था लेकिन उसका किसी कत्ल से, किसी फसाद से कोई रिश्ता नहीं निकला है ।”
“चालीस करोड़ ! तुम्हें मालूम करना चाहिये था कि क्या उस लड़की को किसी लीगल रिप्रेजेंटेशन की जरूरत थी ! थी तो आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड....”
“सर, उसे यहां के आनन्दों के बिना ही आनन्द ही आनन्द है ।”
“क्या मतलब ?”
“सर, डू आई हैव टु ड्रा यू ए डायग्राम ?”
“माथुर !”
“एण्ड कलर इट ?”
“माथुर !”
“सॉरी, सर । सर, वो क्या है कि उसे पहले से ही उसके दिवंगत पिता के वकील रिप्रेजेंट कर रहे हैं और उनकी फर्म आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स से बहुत बड़ी है ।”
“ऐसा ?”
“ही हां ।”
“हो तो नहीं सकता, तुम कहते हो तो....”
“मैं कहता हूं ।”
“हूं ।” - उन्होंने लम्बी हूंकार भरी और फिर बोले - “चालीस करोड़ की स्माल पर्सेंटेज भी बिग बिजनेस होता.....”
“अफकोर्स, सर ।”
“जो कि हाथ से निकल गया ।”
“हाथ आया कब था ?”
“क्या ?”
“आप महज सपना देख रहे थे ।”
“मैं ! सपना देख रहा था ?”
“जी हां ।”
“मेरी उम्र सपने देखने की है ?”
“सर, नजर जन जमीन के सपने किसी उम्र में भी देखे जा सकते हैं । “
“मे बी यू आर राइट ।”
“आई एम ग्लैड दैट यू थिंक सो ।”
“माथुर !”
“सॉरी, सर ।”
“तुम्हारी जुबान में मैं एक खास तरह की धृष्टता का पुट महसूस कर रहा हूं । काफी देर से महसूस कर रहा हूं । और काफी हद तक उसकी वजह भी समझ पा रहा हूं ।”
“वजह सर ?”
“देवसरे तुम्हें अपनी आधी जायदाद का मालिक बना गया, पता नहीं किस पिनक में बना गया लेकिन बना गया । अगर किसी ने उसकी विल को चैलेंज न किया तो...”
“कोई नहीं करेगा । एक विनोद पाटिल कर सकता था लेकिन उसने अपना इरादा छोड़ दिया है ।”
“दैट्स रीयल गुड फार यू ।”
“इट इनडीड इज, सर ।”
“यू आर ए रिच मैन नाओ ।”
“हाऊ रिच, सर ।”
“रिचर बाई अबाउट फोर करोड़ रुपीज ।”
“जी !”
“देवसरे की तमाम चल अचल सम्पति को इवैल्यूएट कराया गया है । उसका आधा हिस्सा इतना ही बनता है ।”
“चार करोड़ !”
“कल तक तुम्हारी विधवा मां को फिक्र थी कि तुम जिन्दगी में कुछ कर पाओगे या नहीं ! अब उसे वो फिक्र करने की जरूरत नहीं ।”
“लेकिन मैंने तो कुछ भी नहीं किया ।”
“अपने आप भी हुआ तो तुम्हारे लिये हुआ । ऐसा खुशकिस्मत हर कोई नहीं होता ।”
“अब मैं क्या कहूं ! मैं तो अभी तक चमत्कृत हूं ।”
“अब सवाल ये है कि आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स में तुम्हारी क्या पोजीशन होगी !”
“जी ।”
“करोड़पति बन चुके के बाद क्या अभी भी तुम फर्म के नाम के ऐसासियेट्स वाले हिस्से से जुड़े रहना पसन्द करोगे ?”
“मैं बराबर पसन्द करूंगा, सर । आप ही मुझे डिसमिस कर दें तो बात जुदा है ।”
“माई डियर ब्वाय, आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स में किसी की डिसमिसल होती है तो उसकी नाकारेपन से होती है । अगर तुम नकारे ही बने रहना चाहोगे तो, बावजूद तुम्हारे हाथ आये चार करोड़ रुपयों के, तुम्हारी यहां समाई मुश्किल होगी । इसलिये अपने दिवंगत पिता का नाम रोशन करने की कोशिश करो, उनसे बड़े वकील नहीं तो कम से कम उनके मुकाबले का वकील बन के दिखाने की कोशिश करो ।”
“मैं पूरी कोशिश करूंगा, सर ।”
“दिल से ?”
“यस, सर ।”
“कभी अपने आप पर नाकारेपन का इलजाम नहीं आने दोगे ? कभी मेहनत से जी नहीं चुराओगे ?”
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