RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“बाप जिन्दगी देता है । बड़ा बाप उर्फ शूगर डैडी जिन्दगी को जीने लायक बनाकर देता है । गाड़ी, बंगला, बैंक बैलेंस, ऐशोइशरत से नवाजता है ।”
“ओह, शटअप । सतीश ऐसा आदमी नहीं । उसने मेरे पर क्या, कभी किसी भी लड़की पर नीयत मैली नहीं की । ही इज वैरी स्ट्रेट, वैरी आनरेबल, वैरी लवेबल ओल्डमैन । वो तो कोई पीर पैगम्बर है ।”
“चिकनी सूरत पर पीर-पैगम्बर का भी ईमान डोल जाता है ।”
“अरे, मैं कोई पहली चिकनी सूरत नहीं जो उसने देखी है । सतीश की तमाम बुलबुलें एक से एक बढकर खूबसूरत हैं । मेरे से तो यकीनन सब की सब ज्यादा खूबसूरत हैं ।”
“फिर भी हीरोइन सिर्फ तुम बनीं ।”
“इसमें मेरा क्या कमाल है ! सब बन सकती थीं । तुम्हीं कान्ट्रैक्ट लेकर उनके पीछे-पीछे घूमा करते थे । खास तौर से पायल पाटिल के पीछे । बाकी न मानीं, मैं मान गयी । वो मान जातीं तो वो भी बन जातीं ।”
“यानी कि तुम्हारे और उस बुलबुल बान्ड्रो के बीच में ऐसा-वैसा कुछ नहीं ?”
“नहीं । न है, न था, न कभी होगा ।”
“बेबी, वो तुम्हारा गॉडफादर नहीं, तुम्हारा शूगर डैडी नहीं, तुम्हारा शैदाई नहीं, फिर भी उसमें ऐसी क्या खूबी है जो कि टेलीग्राम के जरिये उसकी एक पुकार पर गोवा दौड़ी चली जाती हो । शूटिंग छोड़कर । हर साल !”
“तुम नहीं समझोगे ।”
“लेकिन शूटिंग...”
“मैं सोमवार तक लौट आऊंगी ।”
“तब तक प्रोड्यूसर मेरा कीमा बना देगा ।”
“कोई बात नहीं । मैं कोई दूसरा सैक्रेट्री ढूंढ लूंगी ।”
सैकेट्री ने आहत भाव से उसकी तरफ देखा ।
तत्काल हीरोइन के चेहरे पर एक गोल्डन जुबली मुस्कराहट आयी ।
“सारी ।” - वो अपने सैक्रेट्री का हाथ अपने हाथ में लेकर दबाती हुई बोली - “मेरा ये मतलब नहीं था । तुम जानते हो मेरा ये मतलब नहीं था ।”
“जानता हूं ।”
“ऐसे मुंह सुजाकर मत कहो । जरा हंस के बात करो अपनी हीरोइन से ।”
“जानता हूं ।” - वो यूं मुस्कराता हुआ बोला जैसे इतने से ही निहाल हो गया हो ।
“से यू लव मी ।”
“आई लव यू ।”
“टैल मी टु हैव फन ।”
“हैव लाट्स एण्ड लाट्स ऑफ फन, हनी ।”
“दिल से कहो ।”
“दिल से ही कहा है ।”
“मैं सोमवार तक हर हाल में लौट आऊंगी ।”
“बढिया ।”
“तुम्हें सतीश से जलन तो नहीं हो रही ?”
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