RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
वो फिगारो आइलैंड के फैरी पायर पर खड़ी उस स्टीमर को देख रही थी जो कि पणजी के कलगूंट बीच और फिगारो आइलैंड के बीच चलता था और अब सवारियां उतारकर वापिस लौटा जा रहा था । स्टीमर काफी दूर निकल गया तो उसके उधर से अपनी तवज्जो हटाई और घूमकर पायर पर रही मौजूद एक टेलीफोन बूथ में दाखिल हो गयी । उसने हुक पर से रिसीवर उतारकर कान से लगाया तो उसे आपरेटर की आवाज सुनायी दी - “नम्बर प्लीज ।”
“बुलबुल सतीश के बंगले में लगा दो ।” - नम्बर बताने के स्थान पर वो बोली ।
तत्कान नम्बर मिला ।
सतीश का ऐसा ही प्रताप था उस आइलैंड पर ।
उसे सतीश के आवाज सुनायी दी तो उसने तत्काल कायन बाक्स में सिक्का डाला और फिर घण्टी जैसी खनकती आवाज में बोली - “हल्लो !”
“बोलिये ।” - उसे सतीश की आवाज सुनाई दी ।
“डार्लिंग, मैंने कहीं तुम्हें सोते से तो नहीं जगा दिया ! अभी सिर्फ बारह ही बजे हैं न ।”
“हू इज स्पीकिंग, प्लीज ।”
“हनी” - उसने शिकवा किया - “घर आये मेहमान को कहीं ‘हू इज स्पीकिंग’ बोलते हैं ।”
“पायल !” - एकाएक सतीश के मुंह से आश्चर्चभरी सिसकरी निकली - “पायल ! क्या सच मैं तुम बोल रही हो ?”
“मैं तो हूं, पायल । तुम अपनी बोलो, सतीश ही हो न ?”
“एट युअर सर्विस, माई हनीपॉट । हमेशा की तरह ।”
“थैक्यू ।”
“पायल ! इतने सालों बाद ! एकाएक ! तुम्हारी आवाज सुनी तो सन्नाटे में आ गया मैं । मैं बयान नहीं कर सकता मुझे कितनी खुशी हुई है तुम्हारी आमद की । लेकिन देख लो, इतने सालों बाद भी मैंने तुम्हारी आवाज फौरन पहचानी है ।”
“फौरन तो नहीं पहचानी, डार्लिंग ।”
“एक-दो सैकंड की देरी हुई जिसकी कि मैं माफी चाहता हूं । वो क्या है कि सच में ही तुम्हारी फोन काल ने ही मुझे जगाया है ।”
“फिर तो मैं माफी चाहती हूं ।”
“ओह, नो । नैवर । यू आर मोस्ट वैलकम । इतने सालों बाद तुमने मेरा न्योता कबूल किया, मैं खुशी से फूला नहीं समा रहा हूं । बोल कहां से रही हो ?”
“फैरी पायर से ।”
“पायर से ! यानी कि स्टीमर पर पहुंची हो ?”
“हां ।”
“कैसी हो ? कहां थी इतना अरसा ? इतने साल मेरे न्योते पर आना तो दूर, जवाब तक न दिया । इतने साल... नैवर माइन्ड । तुम फौरन यहां पहुंचो, फिर दिल से दिल की बातें होंगी ।”
“डार्लिंग, वो क्या है कि...”
“मुझे मालूम है वो क्या है । अब तुम मेरे आइलैंड पर हो और मेरे कब्जे में हो । तुम पायर से एक टैक्सी पकड़ो और फौरन यहां पहुंचो । मैं तुम्हें दरवाजे पर आरती लिये खड़ा मिलूंगा ।”
“आई, सतीश !”
“मैं सच कह रहा हूं । तुम मेरी स्पेशल बुलबुल हो । इतने सालों बाद तुमने मुझे अपनी आमद से नवाजा है । पता नहीं मैं तुम्हें पहचान भी पाउंगा या नहीं ।”
“अच्छा ! आवाज पहचान सकते हो ! सूरत नहीं पहचान सकते ?”
“ये भी ठीक है । पायल तुम बदली तो नहीं ?”
“जरा भी नहीं बदली ।”
“वैसी ही हो न जैसी सात साल पहले तब थीं जब आखिरी बार मिली थीं ?”
“ऐन वैसी ही हूं ।”
“दैट्स, गुड न्यूज । मुझे तुम्हारे में एक छटांक की घट-बढ भी बर्दाश्त नहीं होगी ।”
“रैस्ट अश्योर्ड, डार्लिंग । तुम्हे यूं लगेगा जैसे अभी कब ही तुम मेरे से मिले थे ।”
“आई एम रिलीव्ड । चैन पड़ गया मेरे मन को ।”
“तुम्हारी बाकी बुलबुलें पहुंच गयीं !”
“जिनकी आमद की उम्मीद थी वो आ गयी हैं । मेरा मतलब है सिवाय तुम्हारे और आयशा के ।”
“मारिया ?”
“वो तो कब ही कैनेडा माइग्रेट कर गयी । अब तो वो इन्डिया ही नहीं आती, गोवा क्या आयेगी ।”
“ओह !”
“पायल डार्लिंग, तुम ऐसा करो, तुम टैक्सी न पकड़ो । तुम थोड़ी देर वहीं ठहरो । मेरी हाउसकीपर वसुन्धरा अभी गाड़ी लेकर पायर की तरफ ही रवाना हुई है । आयशा ही रिसीव करने के लिये । वो साढे बारह बजे वाले स्टीमर पर पहुंच रही है । तुम मेरी हाउसकीपर को तो नहीं पहचानती होगी लेकिन आयशा को तो पहचना ही लोगी । तुम आयशा के साथ ही यहां चली आना । तुम्हें थोड़ी देर इन्तजार तो करना पड़ेगा लेकिन टैक्सी के पचड़े से बच जाओगी ।”
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