RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“खुद मेरा वजह तिरासी किलो है ।” - वो एकाएक यूं बोली जैसे वसुन्धरा को तसल्ली दे रही हो - “लेकिन मुझे तो शादी और शादी की आराम तलबी ने बरबाद कर दिया । पांचवी बीवी थी मैं अपने उम्रदाज पति की । मैंने तो कोई देखी नहीं लेकिन वो कहता था कि उसकी पहली चारों बीवियां सूखी टहनी जैसी थीं जो कि उसके जिस्म को तो क्या, निगाह को भी चुभती थीं । वो अपने पहलू में गोल-मटोल गुलगुली औरत पसन्द करता था इसलिये जब मेरा वजन बढना शुरु हुआ तो वो खुश होने लगा । इसी वजह से मैंने भी परवाह नहीं की, नतीजतन मेरी छत्तीस चौबीस छत्तीस फिगर आखिरकार चालीस छत्तीस ब्यालीस हो गयी । - वो हंसी - “मेरा वजन बढता था तो वो खुश होता था और बिस्तर में ज्यादा जोशोखरोश से कलाबिजयां खाता था । फिर एक रोज उसी जोश ने बेचारे की जान ले ली । बासठ साल की उम्र में । और यूं मेरे मन की मुराद पूरी हुई ।” - वो फिर हंसी - “धनवान विधवा बनने की । पहली चार मिसेज चावरियाओं के नसीब न जागे, मेरे जाग गये । मालदार सेठ मानकलाल का सारा माल मेरे हवाले । भगवान ऐसी विधवा सबको बनाये । नहीं ?”
वसुन्धरा ने सहमति में सिर हिलाया ।
“आजकल मैं अहमदाबाद के फाइव स्टार होटल में हैल्थ क्लब और ब्यूटी पार्लर चलाती हूं । मेरे पास आना, मैं तुम्हारा कायापलट कर दूंगी ।”
वसुन्धरा ने जवाब न दिया ।
“अब ये न कहना कि पहले मैं खुद अपना कायापलट क्यों नहीं करती ? असल बात ये है कि मुझे ऐसी मोटी सेठानी बनके रहना रास आ गया है जिसकी सूरत से ही लगता हो कि उसकी थैली में दम था ।” - वो जोर से हंसी - “अलबत्ता मैं अपने हैल्थ क्लब के मेम्बरों के सामने नहीं पड़ती ।”
वसुन्धरा के मुंह से ऐसी घरघराती-सी आवाज निकली जैसै उसने हंसी में आयशा का साथ देने की कोशिश की हो ।
कुछ क्षण खामोशी रही ।
उस दौरान आयशा कभी रियर व्यू मिरर से झांकती उसकी सूरत का तो कभी उसकी गरदन के पृष्ठ भाग का मुआयना करती रही ।
चश्मा उसे जंचता था - उसने सोचा - लेकिन स्टाइलिश नहीं था, फैशनेबल नहीं था । आजकल काले रंग के मोटे फ्रेम और मोटी कमानियों का कहां रिवाज था । कान्टैक्ट लैंस लगवा ले तो पीछ ही छूट जाये चश्मे का । बाल ऐसे रूखे थे जैसे कभी शैम्पू का नाम ही नहीं सुना था । ऊपर से उन्हें रंगती भी थी । खुद ही । किसी एक्सपर्ट से या काम करवाती तो काले बालों की जड़ें भूरी न दिखाई दे रही होतीं, एक लट पूरी-की-पूरी ही भूरी न दिखाई दे रही होती । जाने से पहले इसका फ्री फेशियल तो कर ही जाऊंगी, थ्रेडिंग भी कर दूंगी और आई ब्रो भी बना दूंगी । तब अक्ल होगी तो चश्मे और बालों की जून खुद संवार लेगी । कभी अहमदाबाद आयेगी तो फ्री स्लिमिंग कोर्स भी करा दूंगी । याद रखेगी पट्टी कि किसी मारवाड़ी सेठानी से पाला पड़ा था । तब इसकी वही साड़ी जो इस वक्त किसी खम्बे के गिर्द लिपटा रंगीन कपड़ा लग रही है, सच में साड़ी लगेगी । तब शायद ये भी किसी मारवाड़ी सेठ की निगाहों में चढ जाये और इसकी तकदीर जाग जाये ।
“तुम गूंगी तो नहीं हो ?” - एकाएक वो बोली ।
“नहीं तो ।” - तत्काल जवाब मिला - “ऐसा कैसे सोच लिया आपने ?”
तौबा ! आवाज भी फटे बांस जैसी । और ऐसी जैसी नाक से निकल रही हो ।
“तो जरूर बोलने में तकलीफ होती होगी ।”
“आप जरूर ये बात मजाक में कह रही हैं लेकिन दरअसल है यही बात । मुझे थॉयरायड की गम्भीर शिकायत है । जब ये शिकायत बढ जाती है तो मुझे बोलने में तकलीफ होती है ।”
“फिर तो तुम्हारे बढते वजन की वजह भी थॉयरायड ही होगी ।”
“वो भी है । पैदायशी भी है । थॉयरायड ठीक हो जाने पर काफी सारा वजन अपने आप घट जाता है लेकिन वो जल्दी ही फिर बढ जाता है ।”
“इसका कोई स्थायी इलाज नहीं ?”
“नहीं ।”
“सतीश से पूछना था । वो सारी दुनिया घूमता है । भारत में नहीं तो शायद किसी और मुल्क में कोई ऐसी दवा हो जो...”
“मैं बॉस से अब बात करूंगी इस बाबत । पहले कभी मुझे सूझी नहीं थी ये बात ।”
“कब से हो सतीश की मुलाजमत में ?”
“तीन महीने से ।”
“काम क्या करती हो ?”
“सभी काम करती हूं । हाउसकीपर का, ड्राइवर का, सैक्रेटी का, जनरल असिस्टेंट का ।”
“पगार अच्छी मिलती होगी ?”
“बहुत अच्छी । उम्मीद से ज्यादा ।”
“अपना सतीश ऐसा ही जनरस आदमी है । रहने वाली कहां की हो ?”
“शोलापुर की ।”
“तुम मुझे पसन्द आयी हो ।”
“थैंक्यू, मैडम ।”
“मैडम नहीं, आयशा । आज से हम फ्रेंड हुए । ओके ?”
“ओके ।”
“सतीश मौसम बदलने तक ही गोवा में रहता है । वो अपने फॉरेन ट्रिप पर निकल जाये तो मेरे पास अहमदाबाद आना । एक महीने में मैं न तुम्हें माधुरी दीक्षित बना दूं तो कहना ।”
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