RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
राज उस वक्त महसूस कर रहा था कि उसके कदम स्वर्ग में राजा इन्द्र के दरबार में पड़े थे और वो युवतियां उर्वशी, रम्भा, मेनका वगैरह को भी मात करने वाली अप्सरायें थीं । अलबता एक, जिसका नाम, उसे आयशा चावरिया बताया गया था और जो धनकुबेर मानकलाल चावरिया की बेवा थी, जरा लार्ज इकानमी साइज अप्सरा मालूम होती थी । फिर भी जिस्म भारी हो गया हो जाने के अलावा उसके हुस्न में अभी भी कोई खोट नहीं थी । बल्कि वो सबसे ज्यादा खुशमिजाज थी और जब भी हंसती थी तो मुक्त कण्ठ से अट्टहास करती थी ।
शशिबाला को वो बिना परिचय के भी पहचानता था क्योंकि उसने उसकी कई फिल्में देखी थीं । उसने महसूस किया कि फिल्मों से ज्यादा हसीन वो साक्षात दिखाई देती थी जो कि नकली चमक-दमक वाले फिल्मी कारोबार में लगी किस युवती के लिये बहुत बड़ी बात थी ।
शशिबाला मशहूर फाइनांसर, प्रोड्यूसर डायरेक्टर दिलीप देसाई की करोड़ों की लागत वाली फिल्म ‘हारजीत’ की हीरोइन थी जो कि तीन चौथाई बन चुकी बताई जाती थी और जिसकी एडवांस पब्लिसिटी इतनी धांसू थी कि हर सिने दर्शक को बड़ी बेसब्री से उसका इन्तजार था । शशिबाला कितने मनोयोग से ‘हारजीत’ में काम कर रही थी, उसका ये भी पर्याप्त सबूत था कि उन दिनों वो कोई और फिल्म साइन नहीं कर रही थी ।
जिस सुन्दरी का नाम उसे डॉली टर्नर बताया गया था, वो कदरन खामोश मिजाज की थी और एक तरफ बैठ ‘विस्की आन राक्स’ चुसक रही थी । जैसा उसका ड्रिंक करने का स्टाइल था, उसे देखते हुए राज को यकीन था कि वो बहुत जल्द टुन्न हो जाने वाली थी ।
फिर वो कारपोरेट टॉप ब्रास जैसे रोब वाली सुन्दरी थी जिसका नाम ज्योति निगम था और जो ‘एशियन एयरवेज’ की सोल प्रोपराइटर थी ।
और वो सदा मुस्कराती आलोका बालपाण्डे जो कि कपड़े के किसी बड़े व्यापारी की पत्नी बताई जाती थी ।
और छटी और आखिरी वो फौजिया खान जो अपनी शिफॉन की साड़ी के साथ कलाई तक आने वाली आस्तीनों वाला स्किनफिट ब्लाउज पहने थी जिसका जिस्म पर वक्त पारे की तरह थिरकता था, जिसके जिस्म की स्थायी, शाश्वत थिरकन किसी को भी दीवाना बना सकती थी ।
दस साल पहले की फैशन की दुनिया की सुपर माडल्स अब समृद्ध गृहणियां थीं, कामकाजी महिलायें थीं, फिर भी सतीश की बुलबुलें थीं ।
उस घड़ी सतीश लाउन्ज से ऊपर को जाती कालीन बिछी अर्धवृताकार सीढियों से होता हुआ ऊपर बालकनी पर पहुंच गया था और एक विडियो कैमरे को दायें-बायें पैन करता हुआ सब को शूट कर रहा था ।
क्या किस्मत पायी थी पट्ठे ने - राज ने मन-ही-मन सोचा - सच में ही राजा इन्द्र था । उम्रदराज आदमी था, फिर भी तन्दुरुस्ती का बेमिसाल नमूना था और शहनशाहों की तरह सजधज कर रहता था । तमाम सुन्दरियां उसकी बुलबुलें थीं और सबको वो दर्जा कबूल था ।
वाह ।
तभी उसने महसूस किया कि डॉली अपने स्थान से उठकर उसके करीब आ बैठी थी ।
“हल्लो !” - राज जबरन मुस्कराता हुआ बोला ।
“हल्लो ।” - वो भी मुस्कराई, वो एक क्षण ठिठकी और फिर बोली - “कबूतर ।”
“क... क्या ।”
“सतीश को देर से सूझा लेकिन सूझा कि इतनी बुलबुलों के बीच एक कबूतर भी होना चाहिये । वेरायटी की खातिर ।”
“ओह । लेकिन मैं... मैं तो...”
“इस बार की पार्टी के लिये सतीश की सरप्राइज आइटम हो ?”
“नहीं । मैं... मैं आइटम नहीं हूं । मैं तो...”
“आइटम भी नहीं हो !” - डॉली की भवें कमान की तरह तनीं - “फिर कैसे बीतेगी ।”
“वो क्या है कि मैं...”
तभी फौजिया भी अपने स्थान से उठी और आकर उसके दूसरे पहलू में बैठ गयी । वो राज को देखकर मुस्कराई । वो सहज मुस्कराहट भी राज को ऐसा लगा जैसे थिरकन बनकर उसके पूरे जिस्म में दौड़ गयी हो ।
“मक्खियां भिनभिनाने लगीं ।” - डॉली धीरे-से बोली ।
“पहले से ही भिनभिना रही थीं ।” - फौजिया खनकती आवाज में बोली ।
“पहले भिनभिनाहट का सोलो चल रहा था । अब डुएट हो गया है ।”
“बहुत जल्दी कोरस बन जायेगा, हनी । क्योंकि सतीश से तो कोई उम्मीद की नहीं जा सकती । तुम्हें तो मालूम ही होगा, डॉली !”
डॉली ने मुंह बिचकाया ।
“मैंने” - राज फौजिया से बोला - “तुम्हें पहले भी कहीं देखा है ।”
“ऐसे नहीं कहते, बच्चे ।” - डॉली बोली - “अहम बात को तरन्नुम में कहते हैं । खासतौर से जब वो बात किसी लड़की को कहनी हो । ‘मैंने शायद तुम्हें पहले भी कहीं देखा है, अजनबी-सी हो मगर गैर नहीं लगती हो’ वगैरह । लाइक फिल्म्स ।”
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