RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
एकाएक राज की नींद खुली । उसे ऐसा लगा जैसे उसके कमरे के प्रवेशद्वार पर दस्त्क पड़ी हो । वो उठकर बैठ गया और आंखों से नींद झटकता कान लगाकर सुनने लगा ।
दस्तक दोबारा न पड़ी लेकिन बाहर गलियारें में निश्चय ही कोई था । उसनें अपनी रेडियम डायल वाली कलाई घड़ी पर निगाह डाली तो पाया तीन बजे थे । वो उठकर दरवाजे पर पहुंचा, दरवाजा खोलकर उसने बाहर झांका । गलियारे में घुप्प अंधेरा था लेकिन वहां निश्चय ही कोई था । कोई गलियारे में चल रहा था और उसकी पदचाप रात के सन्नाटे में उसे सुनायी दे रही थी ।
“कौन है ?” - वो सावधान स्वर में बोला ।
“मिस्टर माथुर ?” - उसे हाउसकीपर की फटे बांस जैसी खरखराती आवाज सुनाई दी ।
“यस ।”
“आई एम सारी, मिस्टर माथुर, कि मैंने आपको डिस्टर्ब किया । अन्धेरे में अनजाने में आपके दरवाजे से मेरा कन्धा भिड़ गया था ।”
क्विंटल की औरत का कन्धा था - राज ने मन-ही-मन सोचा - कोई मजाक था ।
“इट्स आल राइट ।” - प्रत्यक्षत: वो बोला - “नो प्रॉब्लम । पायल को ले आईं आप ?”
“जी हां ।” - वो तनिक उत्साह से बोली - “मैं लेट हो गयी थी वहां पहुंचने में । पूरे तीस मिनट लेट पहुंची थी लेकिन पायल मेरे से भी लेट वहां पहुंची थी । अच्छा हुआ मेरी लाज रह गयी ।”
“आप लेट क्योंकर हो गयी ?”
“रास्ते में पंचर हो गया था । मेरा ईश्वर जानता है कि मैंने इतनी बड़ी गाड़ी का पहिया अकेले बदला । पूरा आधा घण्टा लगा इस काम में मुझे ।”
“ओह ! कैसे पेश आयी पायल आपसे ?”
“बहुत अच्छे तरीके से । लेट आने के लिये सौ बार सारी बोला, जबकि मैं खुद लेट थी । मैं बोली भी । वो बोली फिर भी उससे तो मैं पहले ही पहुंची थी । बहुत अच्छा लगा मेरे को ।”
“बढिया छाप छोड़ी मालूम होती है पायल ने आप पर !”
“बहुत ही अच्छी लड़की है । इतनी खूबसूरत ! इतनी मिलनसार ! इतनी खुशमिजाज ! वो जानती थी कि मैं महज हाउसकीपर हूं और मालिक के हुक्म की गुलाम हूं फिर भी उसने दस बार मेरा शुक्रिया अदा किया कि मैंने इतनी रात गये उसे पायर पर लेने आने की जहमत गवारा की ।”
“अब कहां है वो ?”
“अपने कमरे में । अभी छोड़कर आयी हूं । बहुत थकी हुई थी बेचारी । सो गयी होगी ।”
“सो गयी होगी ! आपने उसे बताया नहीं कि खास उससे मिलने की खातिर ही मैं यहां आया बैठा था ?”
“नहीं । मैं क्यों बताती !”
“लेकिन आपको मालूम तो था मैं...”
“ओह मिस्टर माथुर, ये कोई टाइम है किसी से कोई बात करने का ! जो बात करनी हो, सुबह कर लीजियेगा । कुछ ही घण्टों की तो बात है । नहीं ?”
“हां ।”
“मैं शर्मिंदा हूं कि मैंने आपकी नींद में बाधा डाली ।”
“नैवर माइन्ड । गलियारे में अन्धेरा क्यों है ?”
“रात को यहां की बत्ती जलाने पर, मिस्टर ब्रांडो कहते हैं कि, मेहमानों को असुविधा होती है । आप कहें तो जला देती हूं ।”
“नहीं, जरूरत नहीं । थैंक्यू । एण्ड गुड नाइट ।”
“गुड नाइट, सर ।”
राज ने दरवाजा बन्द किया और वापिस पलंग पर पहुंच गया लेकिन अब नींद उसकी आंखों से उड़ चुकी थी । उसने करीब पड़ी शीशे की सुराही में से एक गिलास पानी पिया और सोचने लगा । पायल पाटिल उर्फ मिसेज श्याम नाडकर्णी को ये गुड न्यूज देने के बाद कि वो अब ढाई करोड़ रुपये की विपुल धनराशि की मालकिन थी, उसका काम खत्म था । कितना अच्छा होता कि कल खड़े पैर उस काम में कोई घुंडी पैदा हो जाती और उसे बड़े आनन्द साहब का ये हुक्म हो जाता कि वो अभी वहीं ठहरे ।
छ: - अब सात - स्वर्ग की अप्सराओं के साथ ।
उसका दिमाग बड़े रंगीन सपनों में डूबने-उतराने लगा ।
गलियारे में एकाएक फिर आहट हुई ।
उसके कान खड़े हो गए ।
इस बार आहट किसी के उसके दरवाजे से टकराने से नहीं हुई थी । इस बार आहट ऐसी थी जैसे कोई दीवार टटोलता दबे पांव गलियारे में चल रहा था ।
कौन था ? कोई चोर ? नहीं, अभी तो वसुन्धरा वहां से गुजरकर गयी थी, इतनी जल्दी कोई चोर कहां से आ टपकेगा ?
तो फिर कौन ?
देखना चाहिये ।
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