RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“अरे, मैंने बोला न वो सो नहीं रही है ।” - फौजिया बोली - “वो अपने कमरे में बैठी सज रही है । वो हमें तपा रही है । यहां जब हवा से उड़-उड़कर हमारे बाल बिगड़कर हमारी आंखों में पड़ रहे होंगे और हमारा मेकअप बर्बाद हो रहा होगा तो वो ताजे गुलाब-सी खिली, खुशबू के झोंके की तरह लहराती यहां कदम रखेगी और हम सबकी पालिश उतार देगी ।”
“दस बजने वाले हैं ।” - सतीश घड़ी देखता हुआ बोला - “और वो कहती थी कि दोपहर को उसने चले भी जाना है । यही हाल रहा तो वो हमसे अभी ठीक से हल्लो भी नहीं कह पायेगी कि उसका जाने का वक्त हो जायेगा ।”
“मैं ले के आती हूं उसे ।” - आलोका उठती हुई बोली ।
“हां । जरूर ।” - आयशा बोली - “बस ले आना उसे । भले ही उसके जिस्म पर अभी नाइटी ही हो ।”
“भले ही” - आलोका दृढ स्वर से बोली - “उसके जिस्म पर नाइटी भी न हो ।”
“बिल्कुल ठीक । हम क्या पागल हैं जो यहां बैठे इन्तजार कर रहे है कि वो प्रकट भये और हमें दर्शन दे !”
“यही तो । मैं बस गयी और आयी ।”
वो घूमी और लम्बे डग भरती इमारत के भीतर की ओर बढ चली ।
राज अपलक उसे जाता देखता रहा ।
खूबसूरती में वो बाकियों से उन्नीस कही जा सकती थी लेकिन उसकी उस कमी को पूरा करने के लिये उसमें बला की ताजगी और जीवन्तता थी ।
बगल में बैठी डॉली ने उसे कोहनी मारी । उसने उसकी तरफ देखा तो उसने दूर जाती आलोका की तरफ निगाह से इशारा करके इनकार में सिर हिलाया और फिर निगाहें झुकाकर हामी भरी ।
राज ने इशारे से ही उसे समझया कि वो उसका मन्तव्य समझ गया था । वो उसे कह रही थी कि देखना था तो वो आलोका को नहीं, उसे देखे।
“सतीश, तुम कहते हो पायल जरा नहीं बदली ।” - आयशा अरमानभरे स्वर से बोली - “लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है ? सात साल में किसी में जरा भी तब्दीली न आये, ऐसा कैसे हो सकता है ?”
“तुम ऐसा अपनी वजह से सोच रही हो ।” - फौजिया बोली ।
“अच्छा-अच्छा ।” - आयशा भुनभुनाई - “मेरी वजह से ही सही ।”
“माई हनी चाइल्ड” - सतीश बोला - “आज की तारीख में तुम पहले से कहीं ज्यादा दिलकश हो । तुम सिर्फ मूलधन ही नहीं, ब्याज भी हो । मूलधन में ब्याज जमा हो जाये तो मूलधन की कीमत बढती है, घटती नहीं है । हनी, आई लव यू दि वे यू आर ।”
“हौसलाअफजाई का शुक्रिया ।” - आयशा उत्साहहीन स्वर में बोली ।
“आज की तारीख में वो देखने में कैसी है, ये अभी सामने आ जायेगा ।” - शशिबाला बोली - “लेकिन वो सुनने में कैसी है ये मुझे पहले ही मालूम है ।”
“कैसी है ?” - डॉली बोली ।
“वैसी ही जैसी वो हमेशा थी । कोई फर्क नहीं । कतई कोई फर्क नही । “
“मैंने भी तो ये ही कहा था ।” - सतीश बोला ।
“ठीक कहा था ।”
“तू उससे मिली थी ?” - ज्योति बोली ।
“मिली नहीं थी, लेकिन बात हुई थी ।” - शशिबाला बोला - “रात तीन बजे के बाद किसी वक्त मेरी नींद खुली थी । तब मेरे से ये सस्पेंस बर्दाश्त नहीं हुआ था कि पायल मेरे इतने करीब मौजूद थी । तब मैं उससे मिलने चल गयी थी ।”
“उसके कमरे में ?”
“और कहां ?”
“सोते से तो जगाया नहीं होगा उसे ।” - डॉली बोली - “वर्ना वो जरूर तेरा गला घोंट देती ।”
“मालूम है । मैं भूली नहीं हूं कि कोई उसे सोते से जगाता था तो वो उसका खून करने पर आमादा हो जाती थी । लेकिन इत्तफाक से वो अभी सोई नहीं थी । मेरे उसके कमरे के दरवाजे पर दस्तक देते ही उसने फौरन जवाब दिया था ।”
“लेकिन दरवाजा नहीं खोला होगा ।” - आयशा बोली - “रात के वक्त पलंग से उठकर दरवाजे तक आना तो उसे पहाड़ की चोटी चढने जैसा शिद्दत का काम लगता था ।”
“हां । बहरहाल बन्द दरवाजे के आर-पार से ही बीते जमाने की तरह थोड़ी गाली-गुफ्तार हुई, थोड़ी हंसी-ठठ्ठा हुआ और फिर मैं उसे गुडनाइट बोलकर अपने कमरे में लौट आयी ।”
“बाई दि वे” - ज्योति बोली - “उसे पता होगा कि तू अपनी तमाम फिल्मों में उसके मैनेरिज्म की नकल करती है ?”
“तुझे पता है ?” - शशिबाला बोली ।
“हां ।”
“यानी कि तू मेरी हर फिल्म देखती है ?”
“हां, जब कभी भी मेरा अपने आप को सजा देने का, सताने का दिल करता है तो मैं तेरी फिल्म देखने चली जाती हूं ।”
“अकेले ही जाती होगी । तेरे हसबैंड कौशल को तो तेरे साथ कहीं जाना गवारा होता नहीं होगा ।”
ज्योति के मुंह से बोल न फूटा ।
“ज्योति डार्लिंग” - डॉली बोली - “अब तेरी बारी है ।”
ज्योति खामोश रही ।
“बुरा मान गयी मेरी बन्नो ।” - शशिबाला हंसती हई बोली ।
“नहीं-नहीं । बुरा मानने की क्या बात है !” - ज्योति निगाहों से उस पर भाले-बर्छियां बरसाती हुई बोली - “तू जो मर्जी कह ।”
“तू तो जानती है कि मैं तो मरती हूं तेरे पर । लेकिन फिर भी कैसा इत्तफाक है कि हम यहां एक मिनट भी इकट्टे नहीं गुजर पाये ! मैं तेरे से ये तक न पूछ सकी कि तू अभी भी कुमारी कन्या है न ?”
“ममी, कुमारी कन्या क्या होती है ?” - डॉली बोली ।
“कुमारी कन्या वो होती है, बिटिया रानी, जो कौशल निगम से विवाहित हो ।”
ज्योति के चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे वो रोने लगी हो ।
“गर्ल्स ! गर्ल्स !” - तत्काल सतीश ने दखल दिया - “बिहेव । माहौल न बिगाड़ो । प्लीज । आई बैग आफ यू ।”
तत्काल खामोशी छायी ।
“गर्ल्स” - सतीश फिर बोला - “अब बोलो क्या कल तुम में से किसी और ने भी पायल के यहां पहुंचने के बाद उससे मिलने की कोशिश की थी ?”
राज ने डॉली की तरफ देखा ।
तत्काल डॉली परे देखना लगी ।
“मैंने की थी ।” - फौजिया बोली - “शशिबाला की तरह रहा मेरे से भी रहा नहीं गया था । कोई फर्क है तो ये कि ये कहती है कि ये तीन बजे के करीब सोते से जागी थी जब कि मैं सोई ही नहीं थी ।”
“क्या नतीजा निकला तुम्हारी मुलाकात की कोशिश का ?” - आयशा उत्सुक भाव से बोली - “शशिबाला जैसा ही या उससे बेहतर ?”
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