RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
उन लोगों से परे सम्मान को प्रतिमूर्ति बने, किसी आदेश की प्रतीक्षा करते हाथ बांधे चार नौकर खड़े थे ।
राज करीब पहुंचा तो उसने पाया कि उन तमाम तस्वीरों में एक ही सूरत चित्रित थी । तमाम की तमाम तस्वीरें एक ही नौजवान लड़की की थीं जो कि हर तस्वीर में एक ही पोशाक पहने थी । कोई भी तस्वीर पोज्ड नहीं थी । सब सहज स्वाभाविक ढंग से, खेल खेल में खींची गयी मालूम होती थी और शायद इसीलिये ज्यादा दिलकश ज्यादा जीवन्त मालूम होती थीं ।
“किसकी तस्वीरें हैं ?” - राज ने अपने मेजबान को हौले से टहोकते हुए पूछा ।
“पायल की ।” - सतीश गम्भीरता से बोला । वो इस बात से बहुत आन्दोलित था कि उसकी एस्टेट में कत्ल जैसी वारदात हो गयी थी ।
“कम हेयर, प्लीज ।” - सब-इंस्पेक्टर बोला ।
राज मेज के करीब पहुंचा ।
“तुमने कहा कि ये तुम्हारी क्लायन्ट थी ।” - सब-इंस्पेक्टर बोला - “तुम्हारी फर्म में ये मिसेज श्याम नाडकर्णी के नाम से जानी जाती थी !”
“हां ।” - राज बोला ।
“फिर भी तुम इसे नहीं पहचानते ?”
“नहीं पहचानता । मैं इससे कभी नहीं मिला । मैंने इसे कभी नहीं देखा ।”
“ये कभी तुम लोगों के आफिस में भी तो आयी होगी ?”
“न कभी नहीं । कम-से-कम फर्म में मेरी एम्पलायमेंट के दौरान तो नहीं ।”
“शायद कभी आयी हो लेकिन तुम्हें ध्यान न रहा हो ?”
“जनाब, ऐसी परीचेहरा सूरत एक बार देख लेने के बाद क्या कभी कोई भूल सकता है ? मरते दम तक नहीं भूल सकता ।”
“हूं । अपनी इसी खूबी की वजह से ये बहुत जल्द पकड़ी जायेगी ।” - सब-इंस्पेक्टर एक क्षण खामोश रहा और फिर सतीश की तरफ घूमा - “आप कहते हैं कि ये तमाम तस्वीरें एक ही दिन खींची गयी थीं ।”
“हां ।” - सतीश पुरानी यादों में डूबता-उतराता बोला - “सात साल पहले आज ही जैसे एक दिन । जब कि पायल आखिरी बार मेरी रीयूनियन पार्टी में आयी थी ।
“तस्वीरें खींची क्यों गयी थीं ?”
“कोई खास वजह नहीं थी । बस तफरीहन खींची गयी थीं ?”
सब-इंस्पेक्टर की भवें उठीं ।
“मेरा मतलब है ये भी तफरीह के लिये आर्गेनाइज किया गया एक पार्टी गेम था । मैंने अपने तब के तमाम मेंहमानों को कैमरे, फ्लैश लाइट्स, टैलीलैंसिज, फिल्में वगैरह मुहैया करायी थीं और हर किसी को हर किसी की तस्वीर खींचने के लिये इनवाइट किया था । वो एक तरह से खेल-खेल में एक कांटेस्ट था जिसमें सबसे बढिया तस्वीर, सबसे घटिया तस्वीर, सबसे मजाकिया तस्वीर, सबसे ज्यादा शर्मिंदा करने वाली तस्वीर और सबसे बढिया एक्शन शाट पर मैंने बड़े आकर्षक इनामों की घोषणा की थी ।”
“मेरे को याद है ।” - आयशा बोली - “बहुत एन्जाय किया था हमने उस प्रतियोगिता को । कैसी-कैसी तस्वीरें खींची थी हम लोगों ने एक-दूसरे की ! ज्योति, याद है बीच पर तुम्हारे बिकनी स्विम सूट की अंगिया का स्ट्रेप टूट गया था, तुम एक पेड़ के पीछे छुपकर उसे उतार कर दुरुस्त करने की कोशिश कर रही थीं कि डॉली ने तुम्हारी तस्वीर खींच ली थी और तुम्हें खबर ही नहीं लगी थी । तुम्हारे ये उस तस्वीर में...”
“ओह, शटअप !” - ज्योति भुनभुनाई - “ये कोई वक्त है ऐसी बातें करने का !”
“ऐनी वे ।” - डॉली बोली - “इट वाज ए ग्रेट आइडिया - दैट पिक्चर कान्टैस्ट ।”
“यानी कि” - सब-इंस्पेक्टर बोला - “ये तस्वीरें सात साल पुरानी है ?”
“हां ।” - सतीश बोला ।
“कोई ताजा तस्वीर नहीं है आपके पास पायल की ?”
“न ।”
“किसी और के पास हो ?”
तमाम बुलबुलों के सिर इनकार में हिले ।
“सात साल बहुत लम्बा वक्फा होता है । सात साल में बहुत तबदीली आ जाती हैं इन्सान के बच्चे में । कई बार तो इतनी ज्यादा कि वो पहचान में नहीं आ पाता ।”
“जरूरी तो नहीं ।” - राज बोला ।
“हां, जरूरी तो नहीं । बाज लोग तो जरा नहीं बदलते । बीस-बीस साल गुजर जाने के बाद भी वो वैसे के वैसे ही लगते हैं । पायल के बारे में क्या कहते हैं आप लोग ?”
“मिस्टर पुलिस आफिसर ।” - सतीश बोला - “इस मामले में दावे के साथ हम में से कोई कुछ नहीं कह सकता । पिछले सात साल में हममें से किसी को भी पायल से मुलाकात नहीं हुई है । हममें से किसी ने भी सात साल पहले की उस रीयूनियन पार्टी के बाद से पायल को नहीं देखा ।”
“किसी ने तो देखा होगा ।” - सब-इंस्पेक्टर जिदभरे स्वर में बोला ।
“वसुन्धरा ने देखा था । लेकिन उसने उसे अब देखा था तो पहले कभी नहीं देखा था इसलिये कोई कम्पैरीजन मुमकिन नहीं ।”
“हो भी तो” - राज बोला - “वो अब अपना बयान तो नहीं दे सकती ।”
सब-इंस्पेक्टर ने बड़ी संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया और फिर बोला - “कभी आप सब लोग इकट्ठे काम करते थे, कभी आप लोगों का एक ग्रुप था जिसमें से सबसे नहीं तो कुछ से तो उसकी जरूर ही गहरी छनती होगी । किसी से तो उसने पिछले सात सालों में कोई सम्पर्क बनाये रखने की कोशिश की होगी । ऐसा कैसा हो सकता है कि आप लोगों की कुलीग- आप लोगों की जोड़ीदार एक लड़की - एक नहीं, दो नहीं, पूरे सात सालों के लिये आप लोगों के लिये न होने जैसे हो गयी । उसका इस दुनिया में होना न होना आप लोगों के लिये एक बराबर हो गया ।”
“आप उलटी बात कह रहे हैं ।” - फौजिया बोली - “यूं कहिये कि हमारा होना या न होना उसके लिये एक बराबर हो गया ।”
“जैसे मर्जी कह लीजिये लेकिन ऐसा हुआ तो क्योंकर हुआ ?”
“होने की वजह है तो सही एक ।” - शशिबाला धीरे-से बोली ।
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