RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
वो वापिस लौटा । इस बार इमारत का घेरा काटकर सामने पहुंचने की जगह वो पिछवाड़े से ही, किचन के पहलू से गुजरते रास्ते से भीतर दाखिल हुआ ! किचन में उसे घड़ी कोई नहीं था । उसके साथ जुड़ी पेन्ट्री की खाली थी । पिछवाड़े की सीढियों के नीचे एक छोटा-सा स्टोर था जिसके बन्द दरवाजे के पीछे से उसे हल्की-सी आहट की आवाज सुनायी दी
वो ठिठका । वो कान लगाकर सुनने लगा । सन्नाटा ।
जरूर उसे वहम हुआ था । वो कदम आगे बढाने ही लगा था कि इस बार उसे एक दबी-सी जनाना हंसी सुनायी दी ।
“कौन ही भीतर ?” - वो बन्द दरवाजे से सम्बोधित हुआ ।
खामोशी । उसने आगे बढकर दरवाजे को खोलने की कोशिश की तो पाया कि वो भीतर से बन्द था । उसने उस पर दस्तक दी और फिर अपना सवाल दोहराया ।
दरवाजा धीरे-से खुला और कोई बीसेक साल के एक सुन्दर युवक ने झिझकते हुए बाहर कदम रखा । राज ने देखा उसके बाल बिखरे हुए थे और कमीज के सामने के बटन खुले हुए थे । फिर उसने यूं जल्दी-जल्दी उन्हें बन्द करना शुरु किया जैसे उसे तभी अहसास हुआ हो कि वो खुले थे ।
राज को वसुन्धरा के पिछली रात के आक्रमणकारी का ख्याल आया ।
“कौन हो तुम ?” - वो सख्ती से बोला ।
“रो... रोमियो !” - युवक घबराया-सा बोला ।
“रोमियो कौन ?”
“केयरटेकर का लड़का हूं ।”
“ऐस्टेट में ही रहते हो ?”
“जी हां । काम में पापा का हाथ बंटाता हूं ।”
“यहां क्या कर रहे हो ?”
“कु... कुछ नहीं ।”
“अन्धेरे स्टोर में अन्दर से कुंडी लगाकर घुसे बैठे हो और कहते हो कि कुछ नहीं !”
“सर, सर । वो... वो...”
“एक तरफ हटो ।”
उसे जबरन परे धकेलकर राज ने स्टोर का दरवाजा पूरा खोला और उसके भीतर झांका ।
भीतर कबूतरी की तरह सहमी रोमियो की ही हमउम्र एक लड़की एक पेटी पर बैठी हुई थी ।
“ओह !” - राज बोला - “तो ये बात है ।”
“सर ।” - युवक गिड़गिड़ाता-सा बोला - “मिस्टर सतीश से न कहियेगा । किसी ने न कहियेगा ।”
“ये कौन है ?”
“माली की लड़की है ।”
“तुम्हारा बाप बेलगाम गया हुआ है न ?”
“जी हां ।”
“उसके पीछे ये गुल खिलाते हो ?”
“सर, माफ कर दीजिये । प्लीज ।”
“मैंशन में एक कत्ल हो गया है । पुलिस आयी हुई है । सबकी जान सांसत में है और तुम यहां रंगरेलियां मना रहे हो !”
“नो, सर । आई मीन यस, सर । आई मीन सारी, सर ।”
“लड़की को खराब करते हो !”
“सर, आई लव हर । शादी बनाना मांगता हूं ।”
“सच कह रहे हो ?”
“क्रॉस माई हार्ट । एण्ड होप टु डाई ।”
“भाग जाओ ।”
“आप किसी को बोलेंगे तो नहीं, सर !”
“भाग जाओ ।”
“ओह, थैंक्यू, सर । थैंक्यू, सर ।”
वो बाहर को भागा ।
“तुम भी चलो ।” - वो भीतर बैठी लड़की से बोला ।
लड़की वहां से बाहर निकली, भयभीत हिरणी की तरह उसने राज की तरफ देखा और फिर हिरणी की तरह कुलांचें भरती वहां से भाग गयी ।
राज वापिस लाउन्ज की तरफ बढा ।
लाउन्ज में मौजूद हर किसी की निगाहें स्वयंमेव ही उधर उठ गयीं ।
लाउन्ज का नजारा उसने वैसा ही पाया जैसा कि वो उसे छोड़कर गया था । सब-इंस्पेक्टर तब भी वहां नहीं था और सब लोग आपस में बतिया रहे थे । उसे देखकर डॉली ने सोफे पर अपने पहलू की खाली जगह थपथपाई ।
राज जाकर उसके पहलू में बैठ गया ।
“कहां गये थे ?” - वो बोली ।
“हवा खाने ।” - वो बोला - “यहां दम घुट रहा था ।”
“अब ठीक है दम ?”
“हां ।”
“शुक्र है वक्त रहते उठ के चले गये वर्ना... हो जाता काम ।”
“वही तो ।”
तभी पोर्टिको में एक सफेद टयोटा कार आकर रुकी । उसमें से एक फैशन माडल्स जैसा खूबसूरत नौजवान बाहर निकला । वो एक सफारी सूट पहने था और आंखों पर काला चश्मा लगाये था ।
“विकी !” - डॉली के मुंह से निकला ।
“विकी कौन ?” - राज उत्सुक भाव से बोला ।
“कौशल निगम ! ज्योति का हसबेंड ।”
“तुम वाकिफ मालूम होती हो इससे ?”
“मैं क्या, सभी वाकिफ हैं । याद नहीं सुबह ब्रेकफास्ट के दौरान इसको लेकर ज्योति और शशिबाला में कितनी झैं-झैं हुई थी ।”
“ओह ! करता क्या है ये ?”
“कुछ नहीं करता । ज्योति का हसबैंड होना ही उसकी फुल टाइम जॉब है ।”
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