RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
राज और डॉली सतीश की जीप पर सवार ईस्टएण्ड की ओर जा रहे थे । जीप डॉली चला रही थी और उसी ने वो सतीश से हासिल की थी । ईस्टएण्ड राज के साथ चलने की पेशकश भी उसी ने की थी जो कि राज ने तत्काल स्वीकार कर ली थी, क्योंकि एक तो वो इलाके से वाकिफ नहीं था और दूसरे इतना हसीन साथ छोड़कर अकेले एक अनजानी जगह पर टक्करें मारने का उसका कोई इरादा नहीं था ।
जीप सतीश की एस्टेट से निकलकर मेन रोड पर पहुंची तो एकाएक उसके सामने एक टैक्सी आ खड़ी हुई जिसमें से गले से कैमरा लटकाये एक युवक बाहर निकला और हाथ हिलाता जीप की ओर लपका ।
“तुम डॉली टर्नर हो ।” - वो जीप की ड्राइविंग साइड में पहुंचकर तनिक हांफता हुआ बोला - “मुझे अपनी एक तस्वीर खींच लेने दो ।” - उसकी कैमरे की फ्लैश चमकी - “थैंक्यू ।”
“ये” - माथुर भड़का - “ये क्या बद्तमीजी है ?”
“आपकी तारीफ ?” - युवक मुस्कराता हुआ बोला ।
“ये मिस्टर राज माथुर हैं ।” - डॉली बोली - “वकील हैं ।”
“जरूर, पायल के वकील होंगे । आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स के यहां से । फिर तो” - फ्लैश फिर चमकी - “एक तस्वीर आप दोनों को भी...”
“वाट नानसेंस !”
डॉली ने राज का हाथ दबाया और युवक से बोली - “तुम कौन हो ? मुझे कैसे जानते हो ?”
“मैं प्रैस रिपोर्टर हूं । यहां हुए कत्ल की कवरेज के लिये खास बम्बई से आया हूं ।”
“एक मामूली हाउसकीपर के कत्ल...” - राज ने कहना चाहा ।
“जिसका कत्ल हुआ है वो मामूली है” - युवक बोला - “लेकिन जिसके यहां कत्ल हुआ है, वो मामूली नहीं, इसलिये... एक तस्वीर और ।”
“मुझे कैसे जानते हो ?” - डॉली ने फिर सवाल किया ।
“बाम्बे !” - वो बत्तीसी निकालता बड़े अर्थपूर्ण स्वर में बोला - “बोरीबन्दर ! सेलर्स क्लब...”
डॉली ने एक झटके से जीप आगे बढा दी ।
रिपोर्टर पीछे चिल्लाता ही रह गया ।
कुछ क्षण सफर खामेशी से कटा ।
“ये, सतीश” - एकाएक राज बोला - “बादशाह सतीश, तुम लोगों का होस्ट, वाकेई कोई काम-काज नहीं करता ?”
“हनी, ही इज फिल्दी रिच ।” - डॉली बोली ।
“फिल्दी रिच भी कामकाज करते हैं । अम्बानी करता है, टाटा करता है, बिरला करता है, डालमिया करता है, मोदी करता है...”
“सतीश नहीं करता । वो लोग नादान हैं । दौलत के दीवाने हैं । सतीश ऐसा नहीं है । वो कहते हैं न कि अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम । सतीश अजगर है । पंछी है ।”
“बिना कुछ डाले निकालते रहने से तो कुबेर का खजाना खाली हो जाता है ।”
“जब होगा, तब देखा जायेगा । अभी तो ऐसा कोई अन्देशा नहीं । अब जब अन्देशा होगा तो सबसे पहले वो यहां की शाहाना पार्टिया ही बन्द करेगा ।”
“ये भी ठीक है । वो देश-विदेश विचरने वाला आदमी है, हो सकता है उसका कोई ऐसा कारोबार हो जिसकी तुम्हें खबर न हो ।”
“अरे, भाई, कारोबार के लिये उसके पास वक्त कहां है ! मौजमेला, तफरीह, पार्टीबाजी, सैर-सपाटा, उसकी फुल टाइम जॉब हैं । उसे तो इन्हीं कामों के लिये टाइम का तोड़ा रहता है । इस मामले में उसे भगवान से खास शिकायत है कि दिन सिर्फ चौबीस घण्टे का बनाया, हफ्ता सिर्फ सात दिनों का बनाया, महीना सिर्फ चार हफ्तों का बनाया, साल सिर्फ बारह महीने का बनाया ।”
“ओह ! उसकी फैमिली के बारे में बताओ कुछ ?”
“नो फैमिली । कभी शादी नहीं की ।”
“तुममें से किसी पर भी दिल नहीं आया उसका ? कभी अपनी किसी बुलबुल को शादी के लिये प्रोपोज नहीं किया उसने ?”
“नहीं ।”
“यानी कि उसकी स्पैशल बुलबुल कभी कोई नहीं थी ?”
“न । सतीश सबको एक बराबर चाहता था । उसकी कभी किसी एक में कोई खास रुचि नहीं बनी थी ।”
“पायल में भी नहीं ?”
“नहीं, पायल में भी नहीं ।”
“या सभी को अपना माल मानता होगा ! किंग सोलोमन समझता होगा अपने आपको ?”
“ऐसी कोई बात नहीं । होती तो दस साल तक उसकी बुलबुलों का उसके लिये परम आदर-भाव न बना रहता । तो सतीश के एक इशारे पर दौड़ी चली आना वो अपना फर्ज न समझती होतीं । तो गैरहाजिरी का सिलसिला एक-एक दो-दो करके शुरु होता और एक दिन ऐसा आता कि सतीश अपनी एस्टेट में अकेला बैठा स्टिल लाइफ की तस्वीरें खींच रहा होता ।”
“यू आर-राइट देयर । तुम्हें उसके शस्त्रागार की खबर थी ?”
“हां । थी तो सही ।”
“तुम्हें ये नहीं सूझा था कि कातिल ने कत्ल करने के लिये हथियार वहां से मुहैया किया हो सकता था ?”
“सूझा तो था ?”
“तो बोली क्यों नहीं ?”
“मैं क्यों बोलती ? जब सतीश नहीं बोल रहा था तो मैं क्यों बोलती ? ये हथियार वाली बात पहले उसे सूझनी चाहिये थी या किसी और को ?”
“बात तो दमदार है तुम्हारी ।”
“मैंने सोचा था कि या तो वो अपने हथियार पहले ही चौकस कर चुका होगा या फिर उसके उस बाबत खामोश रहने की कोई वजह होगी । मेरा फर्ज अपने इतने मेहरबान मेजबान की मर्जी के मुताबिक चलना था या पुलिस की मर्जी के मुताबिक ?”
“केस की तफ्तीश में पुलिस के लिये ये बात मददगार साबित हो सकती थी ।”
“अब हो ले साबित मददगार ये बात । अब तो ये बात पुलिस जानती है । ये इतनी ही अहम बात है तो पकड़ क्यों नहीं लेती पुलिस कातिल को ?”
“ये भी ठीक है ।”
“ऐसी बातों से तफ्तीशें नहीं रुकतीं । ऐसी बात की अहमियत तब हो सकती थी जब कि हथियार का मालिक कहे कि कत्ल उसने नहीं किया था और पुलिस की जिद हो कि कत्ल उसी के हथियार से हुआ था इसलिये वो मालिक का कारनामा था ।”
“सतीश हथियार का मालिक है । वो कातिल हो सकता है ?”
“सतीश मक्खी नहीं मार सकता । मुझे पूरा यकीन है कि वो भरी रिवॉल्वर को हाथ में थामने-भर से बेहोश हो जायेगा ।”
“फिर भी इतने हथियार रखता है !”
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