Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
10-18-2020, 06:42 PM,
#55
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
Chapter 3
उस शाम की सतीश की डिनर पार्टी हर लिहाज से फीकी गयी । दो नये मेहमानों की शिरकत के बावजूद पार्टी में कोई जुनून, कोई उमंग कोई जोश-खरोश न पैदा हो सका । रह-रहकर हर किसी के जेहन में हाउसकीपर वसुन्धरा की सूरत उभरने लगती थी जिसकी लाश अभी भी एस्टेट पर मौजूद थी । नतीजतन अभी दस ही बजे थे कि मेहमान पार्टी से बेजार दिखाई देने लगे और जमहाइयां लेने लगे । फिर हर आठ दस मिनट बाद एक दो ‘एक्सक्यूज मी’ की घोषणा होने लगी और फिर ग्यारह बजे तक तो पार्टी का पक्का ही समापन हो गया । साढे ग्यारह तक एक भी बैडरूम नहीं था जिसमें कि रोशनी दिखाई देती ।
तब राज अपने बिस्तर से निकला और दबे पांव दरवाजे पर पहुंचा । दरवाजे को धीरे-से खोलकर उसने बाहर गलियारे में झांका तो उसने उसे अपेक्षानुसार अन्धेरा और सुनसान पाया । वो वापिस अपने पलंग के करीब पहुंचा । उसने पलंग पर दो तकियों को लम्बा लिटाया और उन्हें एक कम्बल से ढक दिया । फिर वो कमरे से बाहर निकला और दबे पांव लाउन्ज की विपरीत दिशा में बढा । उसे दिन में ही, जबकि वो केयरटेकर के छोकरे रोमियो से टकराया था, इस बात की खबर हो गयी थी कि सीढियां उधर भी थीं जो कि पिछवाड़े में किचन के पहलू की ड्योढी में जाकर खत्म होती थीं ।
निर्विघ्न वो नीचे पहुंच गया ।
पिछवाड़े के रास्ते से उसने आगे बीच पर कदम रखा ।
तभी प्रेत की तरह चलती हुई डॉली उसके पहलू में पहुंच गयी ।
राज ने सहमति में सिर हिलाया । दोनों आगे बढे । कुएं की जगह उनका लक्ष्य उससे काफी परे एक छोटा-सा टीला था जिस पर ऊंची झाड़ियां उगी थीं ।
निर्विघ्न वे उन झाड़ियों तक पहुंच गये और उनकी ओट लेकर रेत पर बैठ गये ।
वहां से कुआं कोई पचास गज दूर था और उनकी निगाहों और कुएं के रास्ते में कोई व्यवधान नहीं था ।
दूर इमारत अन्धकार के गर्त में डूबी हुई थी और उसका बस आकार ही बमुश्किल भांपा जा सकता था ।
“वो आयेगा ?” ¬ डॉली सस्पेंसभरे स्वर में बोली ।
“देखते हैं ।” ¬ राज बोला ।
“कब तक देखते हैं ? सुबह होने तक ?”
“नहीं । जब तक उम्मीद न खत्म हो जाये या तुम बोर न हो जाओ । जो भी काम पहले हो जाये ।”
“जो हम कर रहे हैं, उसे करने की हमें जरूरत क्या थी ?”
“बड़ी देर में सूझा ये सवाल । तो अब लौट चलें ?”
“नहीं । अब आ ही गये है तो... और... जानते हो ?”
“क्या ?”
“मुझे बड़ा अच्छा लग रहा है । आई एम फीलिंग वैरी रोमांटिक, वैरी एडवेन्चर्स ।”
“फिर क्या बात है ?”
“वो जरूर आयेगा ।”
“कैसे जाना ?”
“मेरे दरवाजे पर पहुंचा था । मुझे आवाज देकर पूछ रहा था ‘सो गयीं डॉली डार्लिंग’ । डार्लिंग जवाब देती तो कबाड़ा हो जाता ।”
“मेरे दरवाजे पर भी कोई आया था लेकिन उसने मुझे आवाज नहीं दी थी...”
“वही होगा ।”
“...बस हौले-से दरवाजा खोलकर भीतर झांक कर चला गया था ।”
“मुझे ठण्ड लग रही है ।”
“आजकल के मौसम में ऐसा ही होता है । दिन में मौसम सुहावना होता है लेकिन रात को काफी ठण्ड हो जाती है ।”
“ईडियट !”
“क... क्या ?”
“मैंने तुम्हें वैदर रिपोर्ट जारी करने के लिये कहा था ?”
“क्या ? ...ओह ! ओह !”
राज ने तनिक झिझकते हुए उसे अपनी एक बांह से घेरे लेकर अंक में समेट लिया ।
“अभी ठीक है ।” ¬ वो मादक स्वर में बोली ।
“लेकिन अब मुझे गर्मी लग रही है ।”
वो हंसी ।
“मुझे तो नींद आ रही है ।” ¬ कुछ क्षण बाद वो बोली ।
“सच पूछो तो मुझे भी ।” ¬ राज बोला ।
“सो जायें ?”
“पागल हुई हो ! यहां हम सोने के लिये आये हैं !”
“ये भी ठीक है लेकिन अगर...”
“देखो !”
डॉली हड़बड़ाकर सीधी हुई और उसने उस दिशा में देखा जिधर राज ने उंगली उठाई थी ।
इमारत की ओट से निकलकर एक साया बड़ी सावधानी से उधर बढ रहा था ।
राज ने अपनी कलाई पर बंधी रेडियम डायल वाली घड़ी पर निगाह डाली : साढे बारह बजे थे ।
“सतीश !” ¬ वो बोला ।
“नहीं ।” ¬ डॉली फुसफुसाई ¬ “कद-काठ वैसा है लेकिन वो नहीं है ।”
“वो कोई लबादा सा लपेटे मालूम होता है । दिखाई तो कुछ दे नहीं रहा ।”
“मैंने चाल पहचानी है जोकि सतीश की नहीं है । वो छोटे-छोटे कदम उठाता है और फुदकता-सा चलता है । ये तो... ये तो, कोई बुलबुल है ।”
“कैसे जाना ?”
“चाल से ही जाना । ये फैशन माडल की ट्रेंड चाल है । फैशन शोज में कैट वाक की चाल की आदत हो जाये तो आदत छूटती नहीं । ये शर्तिया कोई बुलबुल है । चाल के अलावा कद भी इस बात की चुगली कर रहा है ।”
“यानी कि सतीश ने अपना काम किसी बुलबुल को सौंप दिया ?”
“हो सकता है । सतीश की बुलबुलें उसके लिये जान दे सकती हैं, उसका कोई काम करके तो वो निहाल ही हो जायेंगी । दौड़ के करेंगी ।”
“भले ही काम गैर-कानूनी हो ?”
“भले ही काम किसी को गोली मार देने का हो ।”
“खुशकिस्मत है पट्ठा ।”
“बस, पट्ठा ही नहीं है । बाकी बातें अलबत्ता ठीक हैं । पट्ठा होता तो आठ रानियों का राजा होता ।”
“साया कुएं की तरफ ही बढ रहा है ।”
“देख रही हूं ।”
“कौन होगा ? मैं सस्पेंस से मरा जा रहा हूं ।”
“दौड़ के जाकर थाम लो, लबादा नोच फेंको, सूरत सामने आ जायेगी ।”
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RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली - by desiaks - 10-18-2020, 06:42 PM

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