RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
राज खामोश रहा । वो उन लोगों को नहीं बता सकता था कि वो ऐसी स्थिति में नहीं था कि वो इमारत में पहले पहुंचकर लबादे वाले के वहां आगमन को चैक कर पाता ।
“जनाब” - प्रत्यक्षतः वो बोला - “जहां अभी पिछली ही रात एक खून होकर हटा हो, वहां आधी रात को ऐसे किसी शख्स से पंगा लेना अपनी मौत को दावत देना होता ।”
“ही इज राइट ।” - इंस्पेक्टर सोलंकी बोला ।
“मैने इस घटना को महत्वपूर्ण जानकर आप लोगों को फौरन इसकी खबर दी है । अब मुझे लग रहा है कि मैंने गलती की इतनी रात गये यहां दौड़े आकर ।”
“नहीं, नहीं । ऐसी कोई बात नहीं । यू डिड दि राइटैस्ट थिंग । वुई आर थैंकफुल टु यू ।”
“वैसे उस साये कि बाबत मेरा एक अन्दाजा है जो आप किसी खातिर में लाएं तो मैं जाहिर करूं ?”
“बोलिये ।”
“वो साया कोई लड़की थी । लड़की क्या, सतीश की कोई बुलबुल थी ।”
“आपको कैसे...”
“मेरे से इस बाबत और सवाल करना बेकार है । मैने पहले ही कहा है कि ये मेरा अन्दाजा है जो कि गलत भी हो सकता है ।”
“हूं ।”
“अब आप क्या करेंगे ?”
सोलंकी ने फिगुएरा की तरफ देखा ।
“अभी क्या करेंगे ?” - फिगुएरा बोला - “जो करेंगे, सुबह, करेंगे ।”
“सुबह करेंगे ?”
“हमारे पास स्टाफ की कमी है । और फिर उस अन्धे कुएं में कौन रात को उतरने को तैयार होगा ।”
“कुएं की निगरानी ही...”
“क्या जरूरत है ! कुआं कहीं भागा जा रहा है ?”
“लेकिन भीतर का वो सामान...”
“कहीं नहीं जाता । कुएं में सामान फेंकना आसान है, उसे वहां से वापिस निकालना मुश्किल तो है ही, किसी एक जने के बस का भी नहीं है ।”
“आपका जो हवलदार ग्रीन हाउस पर तैनात है, आप कम-से-कम उसे तो कह सकते हैं कि वो गाहे-बगाहे उधर भी निगाह मारता रहे ।”
“इत्तफाक से वो भी इस घड़ी वहां नहीं है ।”
“वो भी वह नहीं है ?”
“वो सफेद टयोटा के पीछे लगा हुआ है । आधी रात के करीब उसने किसी को सफेद टयोटा को वहां से निकालकर चोरों की तरह वहां से खिसकते देखा था । वो फौरन अपने स्कूटर पर उसके पीछे लग गया था लेकिन अफसोस कि रफ्तार पकड़ने में टयोटा कार का मुकाबला न कर सका ! अभी दस मिनट पहले ईस्टएण्ड से उसका फोन आया था कि टयोटा वाला उसे चकमा देकर उसके हाथ से निकल गया था । वो अभी भी इसी उमीद में इधर-उधर भटक रहा है कि शायद टयोटा उसे कहीं दोबारा दिखाई दे जाये ।”
“था कौन टयोटा में ?”
“उसका मालिका ही होगा, और कौन होगा !”
“कार में एक ही आदमी था ?”
“हां । जो कि कार ड्राइव कर रहा था । लेकिन वो जायेगा कहां ! आखिर तो लौटकर...”
तभी फोन की घण्टी बजी ।
“उसी हवलदार का फोन होगा” - फिगुएरा फोन की ओर हाथ बढाता हुआ बोला - “हल्लो, पुलिस पोस्ट ।”
दूसरी ओर से कोई इतनी ऊंची आवाज में बोला कि वो रिसीवर से निकलकर कमरे में भी सुनाई दी । वो एक बेहद आतंकित स्त्री स्वर था जो कभी चीख में तब्दील हो जाता था तो अभी डूबने लगता था । नतीजतन उसका कोई शब्द कमरे में सुनाई देता था, कोई नहीं सुनाई देता था ।
“आप जरा आराम से बोलिये” - फिगुएरा झुंझलाया-सा माउथपीस में बोला - “मुझे समझ तो आने दीजिये कि आप क्या कह रही हैं ! आप जरा...”
“...पायल जिन्दा नहीं है... पायल पाटिल मर चुकी है... मार डाला... मार डाला उसे... कत्ल कर दिया...”
“आप कौन हैं ? कहां से बोल रही हैं ?”
“मैंने उसको देखा है... मैंने उसे...”
तभी एक जोर की चीख की आवाज फोन में से निकली ।
फिर सन्नाटा ।
“हल्लो ! हल्लो !” - फिगुएरा जोर-जोर से फोन का प्लंजर ठकठकाता बोलने लगा - “हल्लो ! आर यू देअर ! हल्लो ! ...आपरेटर ! आपरेटर... आपरेटर, अभी मैं किसी से बात कर रहा था... लाइन चालू है... लेकिन... कहां से काल थी ? ...पोस्ट आफिस के पी.सी.ओ. से ? ...ओके । थैंक्यू ।”
उसने रिसीवर क्रेडल पर पटका और उछलकर खड़ा हुआ ।
“आइये, सर ।” - वो सोलंकी से बोला ।
दोनों वहां से निकले, बाहर खड़ी मोटरसाइकल पर सवार हुए और यह जा वह जा ।
कई क्षण बाद जाकर कहीं हकबकाये से राज के जिस्म में हरकत आयी और वो भी उठकर बाहर को भागा । आनन-फानन वो जीप पर सवार हुआ और उसने उसे दूर सड़क पर भागी जाती पुलिस की मोटरसाइकल के पीछे दौड़ा दिया । वो जानता था कि पोस्ट आफिस सतीश कि एस्टेट को जाती सड़क पर कहां था ।
मोटरसाइकल और जीप आगे-पीछे पोस्ट आफिस के सामने पहुंची ।
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