RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
पब्लिक काल का बूथ इमारत के बाहरी फाटक के करीब था । फिगुएरा ने अपनी मोटरसाइकल उसके करीब ले जाकर यूं खड़ी की कि उसकी हैडलाइट का रुख सीधे बूथ की तरफ हो गया ।
राज जीप से उतरा और झिझकता-सा बूथ की तरफ बढा । सामने निगाह पड़ते ही उसके मुंह से सिसकारी निकल गयी और नेत्र फैल गये ।
बूथ के फर्श पर क स्त्री शरीर यूं लुढका पड़ा था कि उसका धड़ बूथ के भीतर था और टांगें बाहर सड़क पर फैली हुई थीं । उसका एक कन्धा बूथ की दीवार के साथ सटा हुआ था और उसकी छाती में एक खंजर धंसा दिखाई दे रहा था जिसकी हाथीदांत की मूठ ही जिस्स से बाहर दिखाई दे रही थी और जिसके इर्द-गिर्द से तब भी खून रिस रहा था ।
फिर राज ने हिम्मत करके उसके चेहरे पर निगाह डाली ।
“अरे !” - वो हौलनाक लहजे से बोला - “ये तो आयशा है !”
***
“मिस्टर राज माथुर !”
राज ने ऊंघते-ऊंघते ही ‘बोल रहा हूं’ कहा फिर घड़ी पर निगाह डाली । नौ बज चुके थे ।
“होल्ड कीजिये । आपके लिये बाम्बे से ट्रंककाल है ।”
“यस, होल्डिंग ।” - वो सम्भलकर बैठ गया ।
कुछ क्षण बाद उसके कान में जो नया स्त्री स्वर सुनाई दिया, उसे जो पहचानता था । वो ‘साहब’ की सैक्रेट्री की आवाज थी ।
“मिस्टर माथुर” - वो बोली - “लाइन पर रहिये । बड़े आनन्द साहब बात करेंगे ।”
“ओके ।”
फोन की घण्टी ने ही उसे जगाया था, वो न बजती तो वो जरूर दोपहर बाद तक सोया पड़ा रहा होता ।
“माथुर !” - एकाएक उसके कान में नकुल बिहारी आनन्द का कर्कश स्वर पड़ा ।
“यस, सर ।” - राज तत्पर स्वर में बोला - “गुड मार्निंग, सर ।”
“गुड मार्निंग । लगता है मैंने तुम्हें सोते से जगा दिया है ।”
“कोई बात नहीं, सर ।”
“यानी कि सच में ही सोते से जगा दिया है । क्या दोपहर तक सोते हो ?”
“नहीं, सर । वो क्या है कि मैं कल तकरीबन सारी रात ही जागता रहा था । सवेरा होने को था जब कि सोना नसीब हुआ था इसलिये...”
“तुम वहां रात-रात-भर गौज-मेले में शामिल रहते हो ? मैंने तुम्हे एक जरूरी काम के लिये वहां भेजा है या मौज मारने के लिये ! तफरीह करने के लिये...”
अबे, सुन तो सही मेरे बाप ।
“सर, मैं तफरीहन नहीं जागता रहा था । वो क्या है कि...”
“माथुर, मेरे पास तुम्हारी तफरीहबाजी का तहरीरी सुबूत है ?”
“जी !”
“एक्सप्रेस’ में तुम्हारी फोटो छपी है । एक अधनंगी लड़की के साथ । बल्कि थ्री क्वार्टर नंगी लड़की के साथ । एक जिप्सी में सैर करते । ये तफरीह नहीं तो और क्या है ?”
“लेकिन, सर, वो तो...”
“तस्वीर में घुटनों से आठ इंच ऊंची स्कर्ट पहने थी वो लड़की । ब्लाउज जैसी उसकी शर्ट के तीन - आई थिंक चार - बटन खुले थे । मैंने तो सुना था कि आजकल के मौसम में गोवा में सर्दी होती है ।”
“रात को हो जाती है, सर । दिन में फेयर वैदर रहता है ।”
“पेपर में हमारी फर्म के नाम का जिक्र है । तुम्हारी हरकतों की वजह से...”
“आई एम सॉरी, सर, लेकिन...”
“और फर्म का नाम गलत छपा है । आनन्द एण्ड एसोसियेट्स छपा है जबकि आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स छपना चाहिये था ! वन आनन्द हैज बिन ड्राप्ड । दैट्स ए ग्रेव मैटर ।”
“हम अखबार बालों को भूल सुधार के लिए लिखेगे, सर ।”
“यू आर टैलिंग मी ! हम डेफिनिटली लिखेंगे और मांग करेंगे कि...”
“सर, हम ट्रककाल पर बात कर रहे हैं ।”
“हूं । माथुर, मैं अपनी क्लायन्ट की बाबत तुम्हारी रिपोर्ट का इन्तजार कर रहा था ।”
“सर, मै ट्रंककाल लगाने ही वाला था कि आपकी तरफ से काल आ गयी ।”
“लगाने ही क्यों वाले थे ? पहले क्यों न लगाई ?”
“सर, आफिस टाइम में ही तो लगाता । नौ तो अभी बजे ही हैं । दफ्तर तो अभी खुला ही होगा ।”
“फिक्स्ड टाइम काल बुक कराके रखना था ।”
“सर, उसमें पैसा ज्यादा लगता है ।”
“पैसा ज्यादा लगता है ! हूं । तुम्हें याद भी है या नहीं कि सोमवार सुबह साढे दस बजे तुमने हमारी क्लायन्ट मिसेज श्याम नाडकर्णी उर्फ पायल पाटिल के साथ दफ्तर में पहुंचना है ।”
“सर, वो अब मुमकिन नहीं ।”
“क्यों मुमकिन नहीं ? अभी तक तुम उसे तलाश नहीं कर पाये ?”
“नहीं कर पाया, सर, लेकिन वो क्या है कि...”
“मैं कोई बहाना नहीं सुनना चाहता । तुम अपने काम को एफीशेंसी से अन्जाम नहीं दे सके । हमारी क्यायन्ट को ढूंढने के मामूली काम को तुम अन्जाम नहीं दे सके । मुझे अफसोस होता है ये सोचकर कि तुम आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स जैसी नामी फर्म के साथ जुड़े हुए हो । तुम्हारी मां सुनेगी तो...”
बिच्छू लड़ जाये कमीने को ! - राज दांत पीसता मन-ही-मन आज ही बुढऊ की अर्थी को कन्धा देना नसीब हो ।
“माथुर ! तुम सुन रहे हो मैं क्या कह रहा हूं ?”
“सुन रहा हूं, सर । सर, आप मेरी भी तो सुनिये । सर, हमारी क्लायन्ट, पायल मर चुकी है । उसका कत्ल हो गया है ।”
“कत्ल हो गया है ? किसका कत्ल हो गया है ?”
“हमारी क्लायन्ट का । मिसेज नाडकर्णी का । पायल पाटिल का ।”
“लेकिन अभी तो तुम कह रहे थे कि तुम उसे तलाश नहीं कर पाये थे । अगर तलाश नहीं कर पाये तो ये कैसे मालूम है कि उसका कत्ल हो गया है ?”
“सर, वो क्या है कि उसकी लाश बरामद नहीं हुई है ।”
“लाश बरामद नहीं हुई है । फिर भी निर्विवाद रूप से तुमने ये मान लिया है कि उसका कत्ल हो चुका है । कैसे वकील हो तुम ? क्या तरक्की करोगे तुम जिन्दगी में ? मुझे तो लगता है कि तुम आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स के ऊंचे नाम को...”
“जहन्नुम रसीद हों सारे आनन्द । कोई न बचे ।”
“क्या कहा ? जरा ऊंचा बोलो । मैं तुम्हें सुन नहीं पा रहा हूं ।”
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