RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
सीढियां उतरकर सोलंकी उन लोगों के बीच पहुंचा । उसके पीछे कार्ड-बोर्ड की एक पेटी उठाये एक सिपाही था । फिगुएरा के इशारे पर उसने पेटी को सैन्टर टेबल पर रख दिया और खुद परे हटकर खड़ा हो गया ।
“मैंडम” ¬ सोलंकी फौजिया के करीब पहुंचकर उससे सम्बोधित हुआ ¬ “फौजिया खान नाम है न आपका ?”
“हां ।” ¬ फौजिया बोली ।
“ऊपर आपका कमरा दायीं ओर से दूसरा है ?”
“हां ।”
“रात आप अपने कमरे में सोई थीं ।”
“और कहां सोती ?”
“जवाब दीजिये ।”
“जवाब ही दिया है ।”
“हां या न में जवाब दीजिये ।”
“हां ।”
“आज कमरा बदल लिया है आपने ? कहीं और मूव कर गयी हैं आप ?”
“नहीं तो ।”
“आप अभी भी अपने पहले वाले कमरे में ही हैं ? जो कि ऊपर दायीं ओर से दूसरा है ?”
“हां ।”
“वो कमरा खाली है ?”
“खाली है क्या मतलब ?”
“खाली है का मतलब नहीं समझतीं ? खाली है का मतलब खाली है । किसी भी तरह के व्यक्तिगत सामान से एकदम कोरा । कोई पोशाक नहीं, कोई नाइट ड्रैस नहीं, कोई चप्पल, सैंडल, कोई मेकअप का सामान तक नहीं । कहां गया आपका सामान ?”
“मेरे पास कोई सामान नहीं था । मैं ऐसे ही आयी थी ।”
“ऐसे कहीं होता है ?”
“मेरी जरूरत की चीजें मेरे इस हैण्ड बैग में मौजूद हैं ।”
“आप झूठ बोल रही हैं । हकीकत ये है कि आपने अपना सामान कहीं छुपा दिया है । आपने अपना सामान कहीं ऐसी जगह छुपा दिया है जहां से आप उसे उठाकर चुपचाप चलती बनेंगीं तो किसी को खबर तक नहीं होगी । मैडम, आप यहां से चुपचाप खिसक जाने की फिराक में हैं ।”
सबकी हैरानी-भरी निगाहें फौजिया की तरफ उठीं । फौजिया के एकाएक बद्हवास हो उठे चेहरे पर निगाह पड़ते ही किसी को भी शक न रहा कि इंस्पेक्टर जो कह रहा था, सच कह रहा था ।
“मैं यहां नहीं रुक सकती ।” ¬ फौजिया तीखी आवाज में बोली ¬ “यहां कत्ल-दर-कत्ल हो रहे हैं । मैं यहां एक मिनट भी नहीं रुकना चाहती । यहां मेरी अपनी जान महफूज नहीं ।”
“कहां जाने की फिराक में थीं आप ?”
“कहीं भी । इस नामुराद जजीरे से दूर कहीं भी ।”
“मैडम, आप फिलहाल आइलैंड से बाहर कदम नहीं रख सकतीं । चोरी से भी नहीं । जब तक पुलिस की इजाजत न हो, आप यहीं रहेंगी ।”
“ये धांधली है ।”
“आप यहीं रहेंगी । अब बोलिये, कहां छुपाया है आपने अपना सामान ?”
फौजिया ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“पिन्टो !”
“यस, सर ।” - परे खड़ा सिपाही बोला ।
“मैडम के साथ जाओ । जहां कहीं भी ये ले के जायें, जाओ और इनका सामान बरामद करके लाओ ।”
“यस, सर ।”
“जाइये ।”
फौजिया अपने स्थान से उठी और भारी कदमों से चलती हुई सिपाही के साथ हो ली ।
“आप” - सोलंकी राज से सम्बोधित हुआ - “अपने आफिस से मोहनी के बारे में कुछ दरयाफ्त करने वाले थे ?”
“क्या ?” - राज हड़बड़ाया-सा बोला ।
“मोहनी की किसी वसीयत की बाबत । उसके किसी सगे-सम्बन्धी की बाबत । भूल भी गये ?”
“नहीं भूला । मेरी अभी सुबह ही ट्रंककाल पर बाम्बे अपने आफिस में बात हुई थी । हमारी फर्म उसकी किसी वसीयत या उसके किसी सगे-सम्बन्धी से वाकिफ नहीं । हमें उसके किसी दूर-दराज के रिश्तेदार की भी वाकफियत नहीं ।”
“पक्की बात ?”
“जनाब ये फर्म के सीनियरमोस्ट पार्टनर नकुल बिहारी आनन्द की स्टेटमैंट है ।”
“हूं ।”
सोलंकी ने सैन्टर टेबल पर पड़ी कार्ड बोर्ड की पेटी में हाथ डाला और उसमें से यूं एक सोने का ब्रेसलेट बरामद किया जैसे कोई जादूगर हैट में हाथ डालकर खरगोश निकालता है । उसने ब्रेसलेट को बारी-बारी सबकी निगाहों के सामने किया ।
“इस पर कुछ गुदा मालूम होता है ।” - सतीश बोला - “गोद कर कुछ लिखा मालूम होता है ।”
“हां । लिखा है । लिखा है - प्रिय पायल को । सप्रेम । श्याम ।”
“आपका मतलब है” - शशिबाला बोली - “ये ब्रसलेट पायल का है ?”
“और किसका होगा ? इस पर पायल का नाम लिखा है । उसके पति का नाम लिखा है । जाहिर है कि ये ब्रेसलेट पायल को कभी उपहार के तौर पर अपने पति श्याम नाडकर्णी से प्राप्त हुआ था ।”
“ओह !”
“आपने कभी पायल को इसे पहने देखा था ?”
“नहीं ।”
“किसी और ने देखा हो ?”
“मैंने तो नहीं देखा ।” - ज्योति बोली ।
“वो एक मालदार मर्द की लाडली बीवी थी ।” - आलोका बोली - “उसके पास तो बेशुमार जेवरात थे । उनमें से एक ब्रेसलेट कहां याद रहता है !”
“आप क्या कहती हैं ?” - सोलंकी डॉली से बोला ।
डॉली का सिर इनकार में हिला ।
“जरा जुबानी बोलकर जवाब दीजिये ।”
“मैंने नही देखा पहले कभी ये ब्रेसलेट ।” - डॉली उखड़ी-सी बोली ।
“पक्की बात ?”
“हां ।”
“ये आपके कमरे से बरामद हुआ है ।”
“क्या !”
“जी हां । आपके कमरे से । फिर भी आप कहती हैं कि आपने इसे पहले कभी नहीं देखा ?”
“ये मेरे कमरे से बरामद हुआ नहीं हो सकता ।”
“जो हो चुका है, उसको नहीं हो सकता कहने का क्या फायदा ? अब बोलिये कहां से आया आपके पास पायल का ये ब्रेसलेट ! क्या पायल ने दिया । दिया तो कब दिया ? आपका तो दावा है कि पिछले सात साल में आपने मेहिनी की सूरत नहीं देखी ?”
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