RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“हां । मेरा अभी भी यही दावा है । मैं अभी भी यही कहती हूं ।”
“तो फिर कब दिया पायल ने आपको ये ब्रेसलेट ? सात साल पहले ?”
“नहीं ।”
“डाक से भेजा ? किसी के हाथ भेजा ? कूरियर से भेजा ?”
“नहीं ।”
“तो फिर जाहिर है कि आपने इसे पायल से तब हासिल किया जबकि वो यहां थी ?”
“नहीं । मैंने तो यहां उसका सूरत भी नहीं देखी थी ।”
“तो फिर कैसे... कैसे ये आपके कमरे में पहुंचा ?”
“किसी ने प्लांट किया होगा ।”
“ये ब्रेसलेट आपके जेवरात के डिब्बे में था जिसको कि ताला लगा हुआ था, डिब्बा आपके सूटकेस में बन्द था और उसको भी ताला लगा हुआ था ।”
“यानी कि आपने दो ताले खोल लिये !”
“जी हां । मजबूरी थी । तलाशी ऐसे ही होती है ।”
“जो ताले आपने खोल लिये, वो कोई दूसरा भी तो खोल सकता था ।”
“खोल तो सकता था ।”
“तो फिर ?”
“कोई चुपचाप आपके कमरे में घुसा, उसने सूटकेस का ताला खोलकर उसमें से जेवरात का डिब्बा निकाला और जेवरात के डिब्बे का ताला खोलकर उसमें ये ब्रेसलेट प्लांट किया और फिर दोनों ताले बदस्तूर बन्द कर दिये !”
“जाहिर है ।”
“किसी ने ऐसा कयों किया ?”
“जाहिर है कि मुझे फंसाने के लिये ।”
“यानी कि ब्रेसलेट बरामदी के लिये ही प्लांट किया गया था ?”
“जाहिर है ।”
“इतना तो जाहिर नहीं है । मैडम, ये ब्रेसलेट आपके जेवरात के डिब्बे की मखमल की लाइनिंग के भीतर से मिला था । लाइनिंग के भीतर ये इस चतुराई से छुपाया गया था कि करिश्मा ही था कि मुझे इसकी वहां मौजूदगी की आभास मिल गया था । जिस चीज की बरामदी की मंशा हो, उसे क्या यूं छुपाया जाता है कि वो किसी को ढूंढे न मिले ?”
डॉली के मुंह से बोल न फूटा ।
“जवाब दीजिये ।”
“म... मैं... मैं क्या जवाब दूं ?”
“कैसे हासिल किया आपने मेहिनी से ये ब्रेसलेट ? कब हासिल किया ?”
“मैंने नहीं किया । यकीन जानिये, मैंने नहीं किया ।”
“परसों रात जब वो यहां मौजूद थी तो आप उससे मिली थीं ?”
“नहीं ।”
“बाद में ?”
“बाद में कब ?”
“कल रात ! जबकि उसका कत्ल हुआ था ?”
तत्काल डॉली के चेहरे पर गहरी दहशत के भाव आये ।
“ये एक खास तोहफा है जोकि उसे अपने पति से हासिल हुआ, था । ऐसे पति से हासिल हुआ था, चन्द महीने ही जिससे उसका साथ रहा था । ये ब्रेसलेट उसके मरहूम पति की निशानी था । इसे वो सहज ही किसी को नहीं सौंप सकती थी । लोगबाग जान दे देते हैं लेकिन ऐसी किसी निशानी को अपने से जुदा नहीं होने देते ।”
“तो ?”
“तो क्या ? अब क्या खाका खींच के समझाऊं ?”
“ओह ! तो आप ये कहना चाहते हैं कि मैं कफनखसोट हूं ? मैंने ये ब्रेसलेट पायल की लाश पर से उतारा ?”
“ऐसा नहीं हुआ तो बताइये ये कैसे आपके कब्जे में आया । ये आपके जेवरों के डिब्बे में था । ये वहां ऐसी जगह था जहां कि इसे आप ही रख सकती थीं । अब आप ये बताइये कि...”
वो बोलता-बोलता रुक गया । उसने पोर्टिको की तरफ देखा जहां से सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा एक पिद्दी से आदमी की बांह दबोचे उसे जबरन अपने साथ चलाता लाउन्ज में दाखिल हो रहा था । उसके लम्बे बाल उसके सारे चेहरे पर बिखरे पड़ रहे थे और उसका बड़े-बड़े शीशों वाला काला चश्मा उसकी नाक की फुंगी पर सरका हुआ था ।
वो धर्मेन्द्र अधिकारी था ।
“ओह, नो ।” - शशिबाला के मुंह से निकला ।
“आइलैंड से खिसकने की कोशिश कर रहा था ।” - फिगुएरा बोला - “पायर पर तैनात हवलदार ने पकड़ा । वही पकड़कर यहां लाया ।”
“है कौन ये ?” - सोलंकी बोला ।
“धर्मेन्द्र अधिकारी नाम है । मुंह के कबूल करने में हुज्जत कर रहा है लेकिन इसकी जेब में मौजूद ड्राइविंग लाइसेंस पर इसका वही नाम लिखा है ।”
“ओह, माई गॉड !” - शशिबाला के मुंह से फिर निकला - “नहीं बाज आया ।”
“मैडम !” - सोलंकी बोला - “आप इस आदमी को जानती हैं ?”
“कौन आदमी ?” - शशिबाला बोला ।
“जो अभी यहां लाया गया है ! आप...”
“हम सब जानते हैं इसे ।” - ज्योति बोली ।
तब तत्काल अधिकारी के चेहरे पर एक गोल्डन जुबली मुस्कराहट आयी ।
“बांह छोड़ो, भाई ।” - वो फिगुएरा से बोला - “अब क्या उखाड़ के मानोगे ?” - फिगुएरा ने बांह छोड़ी तो उसने बड़ी अदा से आस्तीन झटककर उसमें से बल निकाले, फिर वो लड़कियों से सम्बोधित हुआ - “हल्लो, माई स्वीट स्वीट एंजल्स । हल्लो एवरीबाडी ! शशि बेबी, क्या माजरा है ?”
“सब्र नहीं हुआ ।” - शशिबाला दांत पीसती हुई बोली - “सोमवार तक सब्र नहीं हुआ । पीछे दौड़ चला ।”
“आप इसे जानाती हैं ?” - सोलंकी बोला ।
जवाब देने की जगह शशिबाला ने आग्रेय नेत्रों से अधिकारी की तरफ देखा ।
“ये” - फिगुएरा बोला - “आपका सैक्रेट्री है ?”
“था ।” - शशिबाला बोली - “अभी दो मिनट पहले तक ।”
“आपको खबर थी कि ये आइलैंड पर था ?”
“नहीं । मेरा मतलब है कल शाम से पहले नहीं जबकि डॉली ने मुझे बताया था कि ये ईस्टएण्ड पर उससे मिला था ।”
“कब पधारे आप यहां ?” - सोलंकी बोला ।
“परसों ।” - अधिकारी लापरवाही से बोला - “शाम को ।”
“शाम को कब ?”
“यही कोई चार बजे के करीब ।”
“आने का सबब ?”
“सबब क्या होना है, बॉस ! ब्यूटीफुल आइलैंड । क्यूट किटीज । बस मस्ती मारने आया । तफरीह करने आया । सैर करने आया ।”
“आने का सबब ?” - सोलंकी सख्ती से बोला ।
“अपनी हीरोइन के पीछे आया ।”
“क्यों ?”
“मेरा भी दिल कर आया था पुराने वाकिफकारों की पार्टी जायन करने का ।”
“साथ ही क्यों न चले आये ?”
“तब दिल अभी नहीं किया था । मैं मैडम को प्लेन पर चढाकर लौट रहा था तो दिल किया था । तब फिर नैक्स्ट फ्लाइट से मैं भी चला आया ।”
“तुमने यहां आइलैंड पर आकर रोमानो की कार किराये पर ली थी ?”
“साला हरामी छोकरा ! जितना किराया लिया, उतनी तो कार की कीमत नहीं होगी ।”
“देखो, तुम इस वक्त एक कत्ल की तफ्तीश में शामिल हो । ये कोई पिकनिक नहीं है । हंसी-खेल नहीं है । तुम सीधे होते हो या हम सीधा करें तुम्हें ?”
“ओह, नो, बॉस । आई एम क्वाइट सीधा ।”
“तुम हाउसकीपर से वाकिफ थे ?”
“हाउसकीपर ?”
“यहां की । मिस्टर सतीश की । वसुन्धरा पटवर्धन । जिसका सबसे पहले कत्ल हुआ था । वाकिफ थे तुम उससे ?”
“बिल्कुल भी नहीं । मैंने कभी शक्ल तक नहीं देखी थी उसकी । नाम तक नहीं सुना था ।”
“वो एक भारी-भरकम औरत थी । आंखों पर काले रंग के मोटे फ्रेम, मोटी कमानियों वाला निगाह का चश्मा लगाती थी । बाल डाई करती थी । कुछ याद आया ?”
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