RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“अगर” - सोलंकी बोला - “तुम यहां किसी तरह चुपचाप पायल तक पहुंच पाने में कामयाब हो पाते और फर्ज करो कि वो इस बार देसाई फिल्म कम्बाइन के साथ कान्ट्रैक्ट साइन करने की तुम्हारी पेशकश कबूल भी कर लेती तो इस बात से तुम्हारी इस मौजूदा हीरोइन शशिबाला को क्या फर्क पड़ता ? जवाब दो ।”
“ये मारेगी ।”
“अरे, बोला न जवाब दो ।”
“तो ये” - अधिकारी झिझकता हुआ शशिबाला को देखता दबे स्वर में बोला - “देसाई फिल्म्स कम्बाइन से बाहर होती । देसाई को पायल मिल जाती तो ये उसकी उस मल्टी-करोड़ फिल्म ‘हार-जीत’ से भी बाहर होती जो कि तीन-चौथाई बन चुकी है, भले ही इस चक्कर में देसाई का करोड़ों रुपया डूब जाता ।”
“यू !” - शशिबाला दांत किटकिटाती बोली - “यू रास्कल !”
“बट दैट्स गॉड्स ट्रुथ, बेबी ।”
“इतना दीवाना था तुम्हारा देसाई पायल का ?” - सोलंकी बोला ।
“हां ।”
“यानी कि पायल की फिल्मों में ऐन्ट्री शशिबाला को काफी भारी पड़ती ।”
“बर्बाद कर देती ।” - अधिकारी धीरे से बोला - “शी इज ग्रेट एक्ट्रेस, अवर शशिबाला । लेकिन आजकल इसके पास एक ही मेजर फिल्म है - देसाई की ‘हार-जीत’ । इसकी आइन्दा फिल्मी जिन्दगी का मुकम्मल दारोमदार उस फिल्म की कामयाबी पर है । आज की तारीख में इसका उस फिल्म से बाहर होना फिल्म इन्डस्ट्रीज से बाहर होने जैसा है ।”
शशिबाला के चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे जार-जार रोने लगेगी ।
“बनती फिल्म में से” - अधिकारी बोला - “हीरोइन को निकाल दिया जाना बहुत खराब पब्लिसिटी देता है । देसाई की फिल्म से निकाला जाना तो सरासर मौत है ।”
“यह ठीक कह रहे हैं ?” - सोलंकी ने शशिबाला से पूछा - “ये पायल को तलाश करके उसको कान्ट्रेक्ट के लिये राजी कर लेते तो आपका तो किस्सा ही खत्म हो जाता, ये ठीक बात है ?”
“उसकी फिल्म कैरियर में कोई दिलचस्पी नहीं थी ।” - वो हिम्मत करके बोली - “सात साल पहले ये सात हजार बार उसको पटाने की कोशिश कर चुका था लेकिन वो नहीं मानी थी । वो फिल्मों में जाने को पहले तैयार नहीं थी तो अब क्या तैयार होती जबकि उसे विरसे में ढाई करोड़ रुपये मिलने वाले थे ?”
“मैंने कहा है अगर... अगर पायल पट जाती तो क्या ये आपके बर्बादी बायस होता ?”
“मैं अगर-मगर नहीं समझती । जो हुआ नहीं, उस पर मैं कमैन्ट करना जरूरी नहीं समझती ।”
“वैरी वैल सैड, बेबी ।” - अधिकारी बोला - “वैरी वैल सैड ।”
“शटअप ।”
अधिकारी ने सन्दूक के ढक्कन की तरह होंठ बन्द किये ।
“मुझे उससे कोई खतरा नहीं था ।” - शशिबाला इंस्पेक्टर से बोली - “था भी तो उसका हल कत्ल नहीं था । मैंने न कत्ल किया है और न कभी कत्ल का ख्याल मेरे जेहन में आया था । न ही मुझे ये मालूम था कि आधिकारी मेरे पीछे यहां पहुंचा हुआ था जो कि मैं इसके यहां आने का मतलब समझती और पायल से खौफ खाती । यहां पहुंचने तक मुझे नहीं पता था कि पायल यहां आने वाली थी । सात साल से नहीं आयी थी वो यहां । मिस्टर सतीश ने जब बताया था कि पायल ने फोन पर खबर की थी कि वो आइलैंड पर पहुंच चुकी थी तो तभी मुझे इस बात की खबर हुई थी ।”
“सभी को” - डॉली बोली - “तभी इस बात की खबर हुई थी ।”
“तुम क्या कहते हो इस बारे में ?” - सोलंकी अधिकारी की तरफ घूमा - “तुम्हें मालूम था कि पायल यहां आने वाली थी ?”
“यहां पहुंचने तक नहीं मालूम था ।” - अधिकारी बोला - “परसों रात जब मैं पायल की ताक में एस्टेट के इर्द-गिर्द मंडरा रहा था तो एक बार हिम्मत करके मैं भीतर घुसा था । तब मैंने मिस्टर सतीश को अपनी बुलबुलों में ये घोषणा करते सुना था कि पायल आ रही थी । वो आइलैंड पर पहुंच चुकी थी लेकिन उसे पहले ईस्ट एण्ड पर कोई जरूरी काम था जिससे कि वो बहुत रात गये तक फारिग नहीं होने वाली थी । मैंने मिस्टर सतीश को ये भी कहते सुना था कि हाउसकीपर वसुन्धरा उसे पायर पर से लेने जाने वाली थी जहां कि रात के दो बजे बुकिंग आफिस के सामने उसने वसुन्धरा को मिलना था । इंस्पेक्टर साहब मैं दो बजे से पहले पायर पर पहुंच गया था और बुकिंग आफिस पर निगाहें गड़ाकर वहां बैठ गया था लेकिन पायल वहां नहीं पहुंची थी । पायल क्या, हाउसकीपर भी नहीं पहुंची थी ।”
“हाउसकीपर” - राज बोला - “रास्ते में गाड़ी पंक्चर हो जाने की वजह से लेट हो गयी थी और वो कहती है कि पायल उसके भी बाद में पायर पर पहुंची थी । यानी कि दोनों ही ढाई बजे के बाद वहां पहुंच पायी थी ।”
“तभी वो मुझे न मिली । बहरहाल मैं आधा घंण्टा इंतजार करने के बाद वहां से लौट आया था ।”
“तुम ईस्टएण्ड के होटलों में भी उसकी बाबत पूछते फिर रहे थे ?”
“हां । जब मैंने मिस्टर सतीश को ये कहते सुना था कि वो दोपहर को आइलैंड पर थी और पहले ईस्टएण्ड गयी थी तो मैं फौरन ईस्टएण्ड पहुंचा था । मैंने वहां की खूब खाक छानी थी लेकिन पायल का कोई अता-पता मुझे वहां से नहीं मिला था । लिहाजा मैं वापिस यहां लौट गया था ।”
“वापिस क्यों ?”
“यूं ही ताक-झांक करने । पहले की माफिक फिर कोई बात सुन पाने की ताक में ।”
“कुछ सुन पाये ?”
“न । उलटे मिस्टर माथुर से आमना-सामना हो गया जोकि मुझे माफिक नहीं आया था ।”
“कब तक ठहरे थे यहां ?”
“एक बजे तक ! जब तक कि पार्टी बिल्कुल ठण्डी पड़ गयी थी और मैंशन की बत्तियां बुझने लगी थीं । तब मैंने यही फैसला किया था कि यहां और रुकना बेवकूफी थी और लौट गया था ।”
“हूं ।”
“अब मैं सुन रहा हूं कि पायल का कत्ल हो गया है । अब मेरा पांच लाख रुपया मारा गया न ? अब वो साला पायल का कातिल ही मेरे हाथ में आ जाये तो कम-से-कम उसी पर अपने मन की भड़ास निकाल लूं । कमीने को ऐसी मार लगाऊं कि मजाल है कि महीना भी भर उठके पैरों पर खड़ा हो सके ।”
तभी एक युवक ने वहां कदम रखा ।
“ये तो” - डॉली फुसफुसाई - “ईस्टएण्ड के डायमंड होटल का रिसैप्शन क्लर्क जार्जियो है ।”
राज ने सहमति में सिर हिलाया ।
“ये यहां क्या कर रहा है ?”
“अभी मालूम पड़ जायेगा ।”
“आओ, जार्जियो ।” - फिगुएरा उससे बोला ।
“सर” - जर्जियो बड़े अदब से बोला - “आपका मैसेज मिलते ही मैंने जल्दी-से-जल्दी आने की कोशिश की है ।”
“थैंक्यू । तो परसों रात तुम अपने होटल में नाइट ड्यूटी पर थे ?”
“यस, सर ।”
“यहां मौजूद लोगों पर निगाह दौड़ाओ और बाताओ कि इनमें से किसी को तुमने पहले कभी देखा है ।”
“इन्हें” - वो शशिबाला की तरफ इशारा करता हुआ बोला - “फिल्मों में देखा है । और इन्हें” - उसने फौजिया की तरफ इशारा किया - “मैंने पिछले साल पणजी की एक नाइट क्लब में कैब्रे करते देखा था ।”
“जार्जियो, मेरा सवाल यहां आइलैंड की बाबत था । तुम्हारे होटल की बाबत था । परसों के रोज की बाबत था ।”
“ओह !” - फिर उसने अधिकारी की तरफ उंगली उठाई - “परसों रात नौ बजे के करीब ये साहब हमारे होटल में किसी पायल पाटिल को पूछते आए थे ।”
“वाह !” - अधिकारी उपहासपूर्ण स्वर में बोला - “क्या याददाश्त पायी है ! क्या सनसनीखेज रहस्योद्घाटन किया है ! क्या...”
“मिस्टर अधिकारी !” - सोलंकी सख्ती से बोला ।
अधिकारी तत्काल खामोश हो गया और एक सिग्रेट सुलगाने में मशगूल हो गया ।
“इनके अलावा” - फिगुएरा बोला - “कोई और भी आदमी था जो पायल को पूछता तुम्हारे होटल में पहुंचा था ।”
“जी हां ।” - जार्जियो बोला - “मैंने पहले ही बताया था । वो दूसरा आदमी रात ग्यारह बजे के करीब आया था ।”
“वो.. वो दूसरा आदमी इस वक्त यहां है ?”
“जी हां ।” - जार्जियो बोला, फिर उसने बड़े नाटकीय अन्दाज में रोशन बालपाण्डे की तरफ उंगली उठाई - “ये है वो आदमी ।”
“नहीं, नहीं ।” - आलोका तीव्र विरोधपूर्ण स्वर में बोली - “ये कैसे हो सकता है ! इस आदमी से भूल हुई है । ये तो कल शाम को यहां पहुंचे थे । परसों तो ये यहां थे ही नहीं ।”
“मैंने इन्हीं को परसों रात को अपने होटल में देखा था । ये भी इन साहब की तरह” - उसने अधिकारी की तरफ उंगली उठाई - “पायल को पूछते आये थे और माकूल जवाब न मिलने पर निराश होकर चले गये थे ।”
“गलत ! बिल्कुल गलत ! तुमसे भूल हुई है इन्हें पहचानने में ?”
“मैडम” - फिगुएरा बोला - “आप एक मिनट खामोश हो जाइये !” - फिर वो जिर्जियो की तरफ घूमा - “थैंक्यू वैरी मच, जार्जियो, तुम अब जा सकते हो ।”
जार्जियो पुलसियों का अभिवादन करके और फौजिया और शशिबाला को निगाहों से ही हज्म करने की कोशिश करता वहां से विदा हो गया ।
“आप इधर मेरी तरफ देखिये ।” - फिगुएरा बालपाण्डे से बोला ।
बालपाण्डे ने हिचकिचाते हुए उसकी तरफ सिर उठाया ।
“आप परसों रात भी आइलैंड पर थे ? इनकार करने से कोई फायदा नहीं होगा । होटल क्लर्क जार्जियो अभी निर्विवाद रूप से आपकी शिनाख्त करके गया है ।”
“हां ।” - बालपाण्डे बोला ।
“परसों से ही यहां थे या जा के फिर आये थे ?”
“जा के फिर आया था । मैंने आइलैंड के दो फेरे लगाये थे । परसों रात को मैं यहां से चला गया लेकिन कल शाम को फिर वापिस लौटा था ।”
आलोका ने आहत भाव से अपने पति की तरफ देखा ।
बालपाण्डे ने मुस्कराते हुए, बड़े आश्वासनपूर्ण भाव से उसका हाथ दबाया ।
“यानी कि यहां हुए, दोनों कत्लों के दौरान आप आयलैंड पर मौजूद थे ?”
“हां ।”
“आपकी बीवी को इस बात की खबर थी ?”
“जनाब, अभी आपने सुना तो है उसकी जुबानी कि उसकी जानकारी में मैं कल शाम को ही यहां पहुंच था ।”
“मुझे याद है मैंने क्या, सुना था ।” - फिगुएरा शुष्क स्वर में बोला - “और मैं इस हकीकत से भी नावाकिफ नहीं कि भारतीय नारियां अपने मर्द की खातिर झूठ बोलने के लिये आम तैयार हो जाती हैं । अपना फर्ज मानती हैं वो उसकी खातिर झूठ बोलना ।”
“आप कहते हैं कि मेरी बीवी झूठ बोल रही है ?”
“हां ।”
“लेकिन वो मेरे यहां के पहले फेरे के बारे मे जानती नहीं हो सकती ।”
“मैडम, अपने पति की इस शंका का निवारण आप खुद करेंगी या मैं करूं ?”
आलोका ने असहाय भाव से अपने पति की तरफ देखा और फिर गरदन झुका ली ।
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