RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“मैं” - डॉली व्याकुल भाव से बोली - “अभी जवाब देने को तैयार हूं, बशर्ते कि आप मिस्टर बालपाण्डे की तरह मुझे भी अकेले में अपनी बात कहने का मौका दें ।”
“उसके लिये मेरे पास वक्त नहीं है । मैंने फौरन चौकी पहुंचना है । हमारी अगली मुलाकात तक आप अपना जवाब अच्छी तरह से पालिश कर लीजियेगा । मिस्टर सतीश !”
सतीश ने हड़बड़ाकर गरदन उठाई ।
“आपके मेहमान आपके हवाले हैं । हमारे लौटने तक आप इनकी ऐसी खातिर-तवज्जो कीजियेगा कि किसी को फरार हो जाने का ख्याल तक न आये ।”
सतीश ने सहमति में सिर हिलाया ।
“यही बात” - आरलेंडो बोला - “आप पर भी लागू होती है ।”
“क... क्या ?”
आरलेंडो ने उत्तर न दिया ।
फिर तीनों पुलिस अधिकारी अपने पीछे कई हकबकाये श्रोताओं को छोड़कर बड़ी अफरातफरी में वहां से रुख्सत हो गये ।
***
पांच बजने को थे जब राज के कमरे के दरवाजे पर दस्तक पड़ी ।
“कम इन !” - वो बोला ।
दरवाजा खुला । डॉली ने भीतर कदम रखा ।
“क्या कर रहे हो ?” - वो बोली ।
“कुछ नहीं ।” - राज बोला - “झक मार रहा हूं ।”
“वो... वो पुलिस वाले लौट के नहीं आये ?”
“आ जायेंगे । उन्हें हो तो हों, हमें क्या जल्दी है ?”
वो कुछ क्षण खामोश रही और फिर बड़बड़ाती सी बोली - “मेरी जान कैसे छूटे ?”
“अपनी जान तुमने खुद सांसत में डाली हुई है । तुम बता क्यों नहीं देती हो कि पायल का ब्रेसलेट तुम्हारे कब्जे में कैसे आया ।”
“वो... वो पायल का ब्रेसलेट नहीं है ।”
“क्या कहने ? यानी कि ‘प्रिय पायल को । सप्रेम । श्याम’ बेमानी ही उस पर गुदा हुआ है ।”
“कल हम जब ईस्टएण्ड गये थे तो तुम मुझे बाहर जीप में बैठा छोड़कर चौकी में गये थे । क्या करने गये थे तुम वहां ?”
“बड़ी देर से पूछना सूझा ।”
“क्या करने गये थे ?”
“उन्हें तुम्हारे धर्मेन्द्र अधिकारी की बाबत बताने गया था ।”
“तुम उन्हें ऐसी बात बताने गये थे जिसे वो होटल के रिसैप्शनिस्ट जार्जियो के जरिये पहले ही जान चुके थे ?”
“नाम नहीं जान चुके थे । पायल को पूछते फिर रहे दो आदमियों में से एक का नाम धर्मेन्द्र अधिकारी था और वो फिल्मों से जुड़ा हुआ कोई ऐसा शख्स था जो कि सतीश की तमाम बुलबुलों को जानता था, ये उन्हें मैंने जाकर बताया था ।”
“बस ?”
“और क्या ?”
“और कुछ नहीं बताया था तुमने उन्हें ?”
“अरे और क्या ?”
“मसलन मेरे बारे में कुछ !”
“तुम्हारे बारे में क्या ?”
“तुम बताओ ।”
“ये कि पायल के सन्दर्भ में तुम्हारा व्यवहार बड़ा सन्दिग्ध था ? कि उसकी आमद की खबर सुनकर तुम बदहवास हो गयी थीं और तुमने फौरन ड्रिंक्स से हाथ खींच लिया था ? कि पायल से मिलने की नीयत से तुम चोरों की तरह अपने कमरे से बाहर निकली थीं और एकाएक मेरे से सामना हो जाने पर तुमने टुन्न होने का और अभी पीने की तलब रखने का बहाना किया था ?”
“हां ।”
“नहीं, नहीं बताया था मैंने । अभी तक नहीं बताया ।”
“अच्छा किया । वर्ना ब्रेसलेट वाली बात को इन बातों से जोड़कर पुलिस जरूर-जरूर ही कोई बड़ा खतरनाक नतीजा निकाल लेती ।”
“डॉली, वो बातें कभी तो मुझे अपनी जुबान पर लानी पड़ ही सकती हैं ।”
“क्यों ? क्यों पड़ सकती हैं ?”
“क्योंकि मैं यहां तुम लोगों की तरह पिकनिक करने नहीं आया, अपनी फर्म के लिये एक निहायत जिम्मेदार काम को अन्जाम देने आया हूं । क्योंकि मैं किसी एक्स फैशन माडल का नहीं, आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स का मुलाजिम हूं ।”
डॉली ने आहत भाव से उसकी तरफ देखा ।
“और मेरे एम्पलायर का, मेरे वाहियात, खुन्दकी, सैडिस्ट, स्लेव ड्राइवर एम्पालायर का मेरे लिये नाजायज, नामुराद, नाकाबिले बर्दाश्त हुक्म है कि मैं पायल की लाश का पता लगाऊं और उसके कातिल का पता लगाऊं ।”
“ये तुम्हारा काम तो नहीं ।”
“यू टैल एडवोकेट नकुल बिहारी आनन्द ।”
“मुझे डर लगता है ।”
“किस बात से ? अपनी गिरफ्तारी से ?”
“उससे ज्यादा इस बात से कि कातिल हम लोगों के बीच मौजूद है और पुलिस वालों के यहां वापिस कदम नहीं पड़ रहे ।”
“तो क्या हुआ ?”
“यहां और कत्ल हो सकता है ।”
“तुम्हारा ?”
“मेरा या किसी का भी ।”
“यानी कि तुम तो कातिल नहीं हो !”
“इस बाबत हमारे बीच पहले ही फैसला नहीं हो चुका ?”
“तब मुझे पायल के ब्रेसलेट वाली बात नहीं मालूम थी ।”
“ओह, तो अब मैं भी तुम्हारे सस्पेक्ट्स की लिस्ट में आ गई हूं ।”
राज ने जवाब न दिया ।
“वकील साहब” - वो तीखे स्वर में बोली - “ये न भूलो कि कल रात को जब कोई बुलबुल कुएं में सामान फेंक रही थी, तब मैं तुम्हारे साथी थी ।”
“किसी और बुलबुल ने तुम्हारे कहने पर तुम्हारे लिये ये काम किया हो सकता है ।”
“क्यों ?”
“ताकि मैं तुम्हें गुनहगार न समझूं ।”
“तुम्हारे कुछ समझने या न समझने की क्या कीमत है ?”
राज ने जवाब न दिया ।
“और फिर कौन मेरे कहने पर ये काम करेगी और जानबूझकर शक की सुई का रुख अपनी तरफ मोड़ेगी ?”
“उसकी सूरत हम नहीं देख सके थे । फिर हो सकता है कि तुमने उसे ये न बताया हो कि कुएं की निगरानी हो रही होनी थी ।”
“तुम हेरोईन की उस थैली को भूल रहे हो जिसकी कीमत दो करोड़ रुपये बतायी गयी है । तुम मेरी कल्पना एक हेरोइन स्मगलर के तौर पर कर सकते हो ?”
“नहीं ।”
“किसी और बुलबुल की ?”
“किसी और बुलबुल की भी नहीं ।”
“तो फिर ?”
“तो फिर ये कि तुम्हारी इस दलील से मुझे एक बात सूझी है ।”
“क्या ?”
“हेरोइन एयरबैग में नहीं थी । यानी कि कुएं से बरामद सामान एक नग की सूरत में नहीं था । सुबूत है कि हेरोइन और एयरबैग एक ही वक्त में कुएं में फेंके गये थे ?”
“सुबूत तो कोई नहीं लेकिन तुम्हारा मतलब क्या है ?”
“तुम बात की यूं कल्पना करो कि रात के अन्धेरे में काला लाबादा ओढे एक बुलबुल आयी और कुएं में एयरबैग फेंक गयी । वो चली गयी तो हम भी चले गये । उसके बाद रास्ता साफ था और किसी के पास कुएं के जितने मर्जी फेरे लगा लेने के लिए सारी रात पड़ी थी ।”
“तुम्हारा मतलब है कि बाद मे कोई और आया और कुएं में हेरोइन की थैली फेंक गया ।”
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