RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
विरोध में कई स्वर गूंजे ।
“मसलन” - राज आगे बढा - “पायल की वापिसी से शशिकला के फिल्म कैरियर को, उसके भविष्य को खतरा था । मसलन पायल की वापिसी से ज्योति और आलोका के विवाहित जीवन को खतरा था । मसलन...”
“माथुर ।” - बालपाण्डे भड़ककर बोला - “मेरे या मेरी बीवी के बारे में कोई बकवास करने की जरूरत नहीं । मैं पुलिस को यकीन दिला युका हूं कि मेरे और पायल के बीच कुछ नहीं था ।”
“क्या अपनी बीवी को भी यकीन दिला चुके हो ?”
वो सकपकाया ।
“जाहिर है कि नहीं ।” - राज बोला ।
“मैंने ऐसी कोशिश नहीं की ।”
“अब कर लो ।”
“कोई जरूरत नहीं । शी अन्डरस्टैण्ड्स ।”
“ऐसी कोई अन्डरस्टैडिंग तुम्हारी बीवी की सूरत से झलक तो नहीं रही ।”
“वो तुम्हारी सिरदर्द नहीं । मैं जानूं या मेरी बीवी जाने, तुम्हें क्या !”
“अभी तो मैं ही मैं जानूं दिखाई दे रहा है । बीवी जाने तो जानें न ! अभी तो तुमने अपनी बीवी के सामने बस इतना कहा है कि तीन साल पहले पायल एक बार तुम्हें सूरत में मिली थी । उस एक बार के बाद कितनी बार और कितनी जगह तुम पायल से मिले इस बाबत भी तो कुछ अपनी जुबानी उचरो । जो कुछ इंस्पेक्टर सोलंकी के कान में तुम फूंक मार के दोहरा चुके हो, उसे अब सबके सामने - “खासतौर से अपनी बीवी के सामने - दोहराने में क्या हर्ज है ।”
“क्या हर्ज है ?” - सतीश बोला ।
आलोका ने आशापूर्ण भाव से अपने पति की ओर देखा ।
बाकी सबकी तकाजा करती निगाहें भी बालपाण्डे पर टिकीं ।
“ठीक है ।” - बालपाण्डे बोला - “बताता हूं । लेकिन इस वजह से नहीं क्योंकि मैं इस सिरफिरे छोकरे की बकवास से डर गया हूं बल्कि इस वजह से कि शायद डॉली का कोई भला हो जाये । माथुर, तुम अन्दाजन कुछ भी बकते रहो लेकिन हकीकत ये ही है कि मैं पायल से सिर्फ एक ही बार - और वो भी इत्तफाकन - सूरत में मिला था । और वो मुलाकात ऐसी थी कि उसने पायल के लिये कोई ख्वाहिश भड़काना तो दूर, जो थोड़ी बहुत ख्वाहिश मेरे मन में उसके लिये थी, उसे भी ठण्डा कर दिया था ।”
“क्यों ?” - राज बोला ।
“बताता हूं क्यों । लेकिन ये बात पहले ही जान लो, कान खोलकर सुन लो कि उसका पायल के कत्ल से कोई रिश्ता नहीं । इंस्पेक्टर सोलंकी इस बात को कबूल कर भी चुका है ।”
“जरूर कर चुका होगा लेकिन जरूरी नहीं कि जो बात पुलिस ने बेमानी समझी वो यहां मौजूद लोगों को भी बेमानी लगे ।”
“ये ठीक कह रहा है ।” - विकी बोला ।
“अरे बोला तो बताता हूं” - बालपण्डे तनिक झल्लाकर बोला - “लेकिन इससे डॉली का कोई भला नहीं होने वाला । अलबत्ता इससे तुम लोगों की निगाहों में पायल का इमेज जरूर बिगड़ेगा । इसी वजह से इस बात को मैं खुलेआम नहीं कहना चाहता था । लेकिन पायल की रूह मुझे माफ करे, अब तुम लोगों की जिद पर कहता हूं ।
“हम सुन रहे हैं ।” - सतीश बोला ।
“जैसा कि मैंने कहा था, पायल मुझे सूरत में मिली थी लेकिन किसी सिनेमा लाबी में नहीं । और न ही मेरी उससे कोई बात हुई थी । हकीकत ये हैं कि वो मुझे एक कॉफी हाउस में मिली थी जिसमें कि ढंके-छुपे ढंग से बार भी चलता था । मैं वहां फोन करने की नीयत से गया था जब कि मुझे वहां पायल बैठी दिखाई दी थी । साहबान, यकीन जानिये, मैंने बहुत ही मुश्किल से उसे पहचाना था ।”
“जरूर मुश्किल से पहचाना होगा ।” - राज बोला - “तुम पहले कह तो चुके हो कि वो खंडहर-सी लग रही थी, उजड़ी-सी लग रही थी, वगैरह ।”
“जैसी मैंने उसे पहले बयान किया था वो उससे कहीं ज्यादा खराब लग रही थी । मैंने उसका लिहाज किया था जो मैंने उसका हुलिया गहराई में बयान नहीं किया था, हकीकत ये है कि वो तो... बस बेड़ागर्क लग रही थी । उसकी पोशाक, उसका हुलिया, उसके बाल, उसका मेकअप, हर चीज चीप थी उस घड़ी उसकी पर्सनैलिटी की । पर्सनैलिटी का तो जिक्र ही बेकार है । पर्सनैलिटी नाम की कोई चीज तो बाकी ही नहीं थी उसमें । ढलती हुई फिगर, उजड़े चमन जैसी सूरत, किसी को बोलो तो कोई यकीन न करे कि कभी वो लड़की हुस्न की मलिका थी, करोड़ों दिलों की धड़कन थी । मैं कहता हूं उस घड़ी मैं उससे उसकी बाबत सवाल करता तो शर्म के मारे वो ही ये झूठ बोल देती कि वो पायल नहीं थी ।”
“वो होगी ही नहीं पायल ।” - ज्योति बोली - “इतने बुरे हाल में वो हरगिज नहीं पहुंच सकती थी । मैं ये बात अथारिटी से कह सकती हूं क्योंकि मैंने उसे यहीं, इस मैंशन में, गुलाब की तरह तरोताजा देखा था । पहले से कहीं... कहीं ज्यादा हसीन और दिलकश देखा था ।”
“वो पायल नहीं होगी ।” - शशिबाला बोली ।
“थी वो पायल । यही मानने से कहानी आगे बढेगी ।” - राज बोला - “वर्ना सारी कथा ही बेमानी है ।”
“ये ठीक कह रहा है ।” - सतीश बोला - “प्लीज गो आन, मिस्टर बालपाण्डे ।”
“वो पायल थी ।” - बालपाण्डे बोला - “उसकी बाबत जो रहा-सहा शक मेरे जेहन में था वो अगले रोज दूर हो गया था जबकि मैं फिर उस कॉफी हाउस में गया था और मैंने फिर उसको वहां जमी बैठी देखा था । मैं उसके परे, उससे छुपकर बैठ गया था और बहुत देर तक मैंने उसे वाच किया था । तब मुझे पूरा यकीन हो गया था कि वो पायल थी । उसका हुलिया जरूर उजड़ गया था, पर्सनैलिटी जरूर बर्बाद हो गयी थी लेकिन हावभाव वही थे, बातचीत का अन्दाज वहीं था और खासतौर से उसकी मुक्तकण्ठ से हंसने की अदा वही थी । उसकी खनकती हंसी की मेरे दिलोदिमाग पर ऐसी छाप है कि वो ताजिन्दगी नहीं मिट सकती । साहबान, वो यकीनन पायल थी ।”
“ऐसा पतन !” - सतीश के मुंह से कराह-सी निकली - “सतीश की बुलबुल का ऐसा सर्वनाश ।”
“बात वाकई नहीं की थी तुमने उससे ?” - विकी बोला ।
“नहीं की थी ।”
“यकीन नहीं आता । तुमने उसको उस हालत में देखा और तुम्हारी ये जानने की उत्सुकता न हुई कि वो उस बुरे हाल में कैसे पहुंच गयी थी ! हज्म नहीं होती ये बात ।”
“मेरी जुर्रत नहीं हो रही थी उसके पास फटकने की । ये तो एक तरह से उसकी पोल खोलना होता, उसे उसकी उस वक्त की हालत से शर्मिन्दा करना होता ।”
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