RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
बालपाण्डे ने उसका हाथ दबाया और आंखों से खामोश रहने का इशारा किया ।
“इतना पाखण्ड !” - आलोक फिर भी चुप न हुई - “इतनी तौहीन ! इतनी नाकद्री ! इतना गरूर !”
“अब मैं” - बालपाण्डे बोला - “मुंह में रुमाल ठूंस दूंगा ।”
आलोका खामोश हो गयी लेकिन उसने निगाहों से सतीश पर भाले-बर्छियां बरसाना न छोड़ा ।
अमूमन शान्त रहने वाली आलोका का वो रौद्र रुप प्रत्यक्षतः सब को अचम्भे में डाल रहा था ।
“अब” - एकाएक अधिकारी अपनी कनपटी ठकठकाता हुआ बोला - “मेरी खोपड़ी का भी जाला छंट रहा है । मेरे ज्ञानचक्षु भी खुल रहे हैं । हनी” - वो शशिबाला से सम्बोधित हुआ - “मुझे तुम से गिला है ।”
“किसी बात का ?” - शशिबाला हैरानी से बोली ।
“तुमने मुझे असलियत न बतायी ।”
“कौन-सी असलियत न बतायी ?”
“मैं समझता हूं । ये सन अट्ठासी की जून के तीसरे या चौथे हफ्ते की बात है जबकि मैं पायल से देसाई फिल्म्स कम्बाइन के साथ कान्ट्रैक्ट करने की गुहार कर करके हार चुका था और अपने पांच लाख के बोनस को गुडबाई कह भी चुका था । तब एक रोज एकाएक मेरे पास पायल का फोन आया । फोन पर उसने मुझे ये गुड न्यूज दी कि वो देसाई की आफर पर फिर से विचार करने को तैयार थी । मैं बाग बाग हो गया । पांच लाख रुपये का बोनस फिर मुझे अपनी पहुंच में दिखाई देने लगा । मैंने उससे अगले रोज की लंच अप्वायन्टमैंट फिक्स की ।”
“क्यों ?” - राज बोला - “अगले रोज की क्यों ?”
“भई, कान्ट्रैक्ट भी तो तैयार कराना था जिसमें कि टाइम लगता है ।”
“वो कान्ट्रैक्ट करने को तैयार थी ?” - विकी बोला ।
“हां ।”
“लेकिन जाहिर है कि इसलिये नहीं क्योंकि एकाएक वो दिलीप देसाई की फिल्म की हीरोइन बनने को तड़पने लगी थी बल्कि इसलिये क्यों कि पैसा हासिल करने का वो भी एक जरिया था ?”
“जाहिर है लेकिन पहले मेरी पूरी बात सुनिये आप लोग । वो क्या है कि जिस रोज मेरे पास पायल का फोन आया, उसी शाम को अपनी शशिबाला मेरे पास पहुंची । रिमेम्बर बेबी ?”
शशिबाला ने बड़े अनमने भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
“और” - अधिकारी बड़े ड्रामेटिक अन्दाज से बोला - “इसने मेरे से दो लाख रुपये उधार मांगे । तब पांच लाख के बोनस की कमाई क्यों कि मेरी आंखों के सामने तैर रही थी इसलिये मैंने बिना कोई हुज्जत किये बिना कोई सवाल किया इसे दो लाख रुपये दे दिये ।”
“कमाल है ।” - विकी बोला - “हीरोइन ने अपने सैकेट्री से उधार मांगा ।”
“चलता है, भाई, चलता है । इसी को कहते हैं कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर ।”
“तुम आगे बढो ।” - राज उतावले स्वर में बोला - “फिर क्या हुआ ?”
“फिर जो हुआ, बहुत दिल बैठा देने वाला हुआ ।”
“क्या हुआ ।”
“अगले रोज पायल लंच अप्वायंटमैंट पर पहुंची ही नहीं । लेकिन वो क्यों न आयी, ये इतने सालों बाद आज मेरी समझ में आया है । पायल को तब दो लाख रुपये की जरूरत थी और उसकी वो जरूरत जरूर तब अपनी हीरोइन ने पूरी कर दी थी । शशि बेबी, अब कबूल करो कि तब तुमने मेरे से दो लाख रुपये उधार पायल को देने के लिये मांगे थे । तुम्हारे जरिये - बल्कि यूं कहो कि एक तरह से मेरे जरिये - पायल की जरूरत पहले ही पूरी हो गयी थी इसलिये वो अगले रोज मेरे से मिलने नहीं आयी थी । शशि बेबी, तुमने मुझे धोखा दिया । तुमने मेरा पांच लाख रुपये का बोनस मरवा दिया...”
“ओह, शटअप !” - शशिबाला भुनभुनाई - “तुम्हारी रकम तो लौटाई मैंने !”
“मेरी रकम लौटाई लेकिन तुम्हारे डबल क्रास की वजह से मेरे पांच लाख रुपये तो मारे गये !”
“मैडम इतनी कैसे पसीज गयीं पायल से” - राज बोला - “कि उसे उधार देने के लिये इन्होंने आगे तुमसे उधार मांगा ।”
“पसीजी नहीं होगी, खौफ खा गयी होगी । धमकी में आ गयी होगी ।”
“धमकी ?”
“पायल की । देसाई का कान्ट्रेक्ट साइन कर लेने की ।”
“क्या मतलब ?”
“पायल पैसे के लिये, फरियाद लेकर इसके पास नहीं गयी होगी । इसलिये नहीं गयी होगी क्योंकि शशिबाला के खिलाफ पायल के हाथ में एक तुरुप का पता था जिसे खेलने से पायल ने कतई कोई गुरेज नहीं किया होगा । पायल ने इसके पास जाकर कहा होगा ‘शशि मेरी जान, या तो मुझे दो लाख रुपये दे या फिर मैं देसाई का कान्ट्रेक्ट साइन करती हूं जिसकी वजह से तू देसाई फिल्म्स कम्बाइन से बाहर होगी क्योंकि तू जानती है कि मेरे इनकार की वजह से तुझे चांस मिला है और मेरा इकरार तेरा चांस खत्म कर देगा’ । शशि बेबी, तुम्हें और खौफजदा रखने के लिये ही उसने मुझे फोन किया और कोई बड़ी बात नहीं कि उसने वो फोन तुम्हारे सामने ही किया हो ताकि तुम्हारे बिल्कुल ही हाथ-पांव फूज जाते । तब अपने आपको बर्बाद होने से बचाने के लिये तुमने मेरे से दो लाख रुपये उधार मांगे जो कि तुमने आगे पायल को दिये और यूं उसने देसाई का कान्ट्रैक्ट साइन करने का ख्याल छोड़ा । मैंने तुम्हे वो रकम उधार देकर एक तरह से अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार ली । क्या हसीन धोखा दिया मुझे मेरी हसीन हीरोइन ने ? शशि बेबी...”
“डोंट शशि मी ।” - शशिबाला भड़की - “डोंट बेबी मी । शट युअर माउथ ।”
“आप लोग एक मिनट जरा मेरी बात सुनिये ।” - राज बोला - “पायल को आप लोग जानते थे, मैं नहीं जानता था इसलिये मेरा आप से सवाल है कि एक धनवान पति की पत्नी अपने पति की मौत के बाद के दो महीनों में ही इतनी मुफलिस, इतनी पैसे ही मोहताज क्योंकर हो गयी कि वो हर किसी के पास मदद की फरियाद लेकर जाने लगी ? हम श्याम नाडकर्णी के सालीसिटर थे इसलिये हम जानते हैं कि उसकी लाश बरामद न होने के वजह से उसकी तमाम चल और अचल सम्पति ट्रस्ट के हवाले हो जाने के बावजूद लाखों रुपया ऐसा था जिस तक तब पायल की पहुंच थी । पन्दरह लाख रुपये की एक रकम ऐसी थी जो कि नाडकर्णी ने अपनी मौत से तीन दिन पहले बैंक से निकाली थी, जो कि पूरी घर में मौजूद थी और जिस पर अपने पति की मौत के बात ट्रस्ट के अस्तित्व में आने से पहले ही पायल काबिज हो चुकी थी । फिर भी ये क्योंकर हुआ कि और दो महीने बाद मदद की फरियाद के साथ वो आप लोगों के पास चक्कर लगा रही थी ?”
“उसके पास पन्दरह लाख रुपये थे ?” - फौजिया मन्त्रमुग्ध स्वर में बोली ।
“ज्यादा भी हो सकते थे । इतने की तो हमारी फर्म को खबर थी ।”
“और अभी देसाई का कान्ट्रैक्ट साइन करके वो और पैसा हासिल कर सकती थी ।”
“मुंह मांगा ।” - अधिकारी बोला - “कान्ट्रेक्ट साइन करने की अगर उसकी ये शर्त होती कि वो एक करोड़ रुपया एडवांस में लेगी तो भी दिलीप देसाई उसे देता ।”
“इसे अतिशयोक्ति भी मान लिया जाये” - विकी बोला - “तो भी ये तो हकीकत है ही कि वो देसाई से कोई मोटी रकम झटक सकती थी ।”
“फिर भी उसने ऐसी कोई कोशिश न की ।” - राज बोला - “पैसे की जरूरतमन्द लड़की ने सहज ही हासिल होता पैसा हासिल करने की कोशिश न की ।”
“पैसा उसे देसाई से ही तो हासिल था । हो सकता है, उसे फिल्मों में काम करने से चिड़ हो । हो सकता है उसे काम ही करने से चिड़ हो । बाज लोग होते हैं ऐसे काहिल और कामचोर कि वो काम के नाम से ही बिदकते हैं ।”
“होते हैं । लेकिन जब काम बिना गति न हो तो बड़े-बड़े को काम करना पड़ता है । यहां पायल के मामले में विरोधाभास ये है कि उसे पैसे की जरूरत थी लेकिन सहज ही हासिल हो सकने वाले पैसे को वो नजरअन्दाज करती रही थी । जैसे वो पैसा कोई उससे छीन लेगा । फिर ऐसा ही उलझे हुए माहौल में वो गायब हो गयी । ऐसी गायब हो गयी कि सात साल किसी को ढूंढे न मिली । किसी से उसने सम्पर्क करने की कोशिश न की । और पैसा उधार मांगने के लिये भी नहीं । उधार लिया हुआ पैसा लौटाने के लिये भी नहीं । उसके बारे में तो ये तक कहना मुहाल था कि सृष्टि में उसका अस्तित्व भी बाकी था या नहीं । सिवाय उस एक मुलाकात के जो तीन साल पहले उसकी रोशन बालपाण्डे से सूरत में हुई थी, और जिसकी कि हमें अब खबर लगी है, वो हुई या न हुई एक जैसी थी । साहबान, इन तमाम बातों का सामूहिक मतलब एक ही हो सकता है । इन तमाम उलझनों का, इस तमाम विसंगतियें का जवाब एक ही हो सकता है ।”
“ब्लैकमेल !” - विकी के मुंह से निकला ।
“हां, ब्लैकमेल । गम्भीर ब्लैकमेल । चमड़ी उधेड़ लेने वाली ब्लैकमेल । पायल के बेवा होने के बाद से ही कोई उसे ब्लैकमेल कर रहा था । उस ब्लैकमेलर की मुंहफट मागें पूरी करते-करते ही दो महीने से पायल पल्ले का पैसा तो खो ही चुकी थी उसे आगे दायें-बायें से उधार भी उठाना पड़ गया था । वो देसाई का सोने की खान जैसा कान्ट्रैक्ट साइन नहीं कर सकती थी, वो कमाई का कोई भी प्रत्यक्ष जरिया कबूल नहीं कर सकती थी क्योंकि वो जानती थी कि जो भी रकम वो यूं पैदा करती, उसका ब्लैकमेलर उससे वो झटक लेता । इन हालात में उसके सामने एक ही रास्ता खुला था जिस पर कि वो आखिरकार चली । वो रास्ता ये था कि वो गायब हो जाती । ऐसा गायब हो जाती कि उसके ब्लैकमेलर को वो ढूंढे न मिलती । यही रास्ता उसने अख्तियार किया और सात साल अख्तियार में रखा । सात साल बाद वो प्रकट हुई । इसलिये प्रकट हुई कि इस वक्फे में वो अपने दिवंगत पति की छोड़ी दौलत की कानूनी वारिस बन चुकी थी । और प्रकट हुए बिना, सामने आये बिना विरसे की ढाई करोड़ रुपये की रकम को क्लेम करना सम्भव नहीं था ।”
सब सन्नाटे में आ गये ।
“तुम्हारा मतलब है” - फिर अधिकारी बोला - “उस ब्लैकमेलर ने पायल का कत्ल किया ? ये तो सोने का अंडा देने वाली मुर्गी हलाल करने जैसी बात हुई । ये तो उसी हाथ को काट खाने वाली बात हुई जो कि आप को सोने का निवाला देता हो । यानी कि जब पायल के पास रुपया लाखों में था, या वो भी नहीं था, तो तब तो ब्लैकमेलर उसके पीछे पड़ा रहा, वो करोड़ों की मालकिन बनने लगी तो ब्लैकमेलर ने उसका कत्ल कर दिया ?”
“अगर” - सतीश बोला - “ब्लैकमेलर वाली कहानी में कोई दम है तो इतना अहमक तो ब्लैकमेलर नहीं हो सकता ।”
“मेरा ख्याल ये है” - राज बोला - “कि पायल को अपने ब्लैकमेलर की शिनाख्त नहीं थी । उसे खबर नहीं थी कि उसे कौन ब्लैकमेल कर रहा था । ऐसा ही चालाक था वो ब्लैकमेलर । लेकिन अब लगता है कि एकाएक वो अपने ब्लैकमेलर को पहचान गयी थी, वो उसका कत्ल करने के इरादे से यहां पहुंची थी लेकिन किन्हीं हालात में बाजी उलटी पड़ गयी थी और जान लेने की जगह वो जान दे बैठी थी । हालात ऐसे बन गये थे कि जान बचाने के लिये ब्लैकमेलर को जान लेनी पड़ी । वो मारता न तो मारा जाता ।”
“दम तो है, भई, तुम्हारी बात में ।” - अधिकारी प्रभावित स्वर में बोला - “ऐसे ही वकील नहीं बन गये हो । बहुत आला दिमाग पाया है तुमने ।”
“लेकिन” - शशिबाला बोली - “ब्लैकमेल की कोई वजह होती है । कोई बुनियाद होती है । चमड़ी उधेड़ गम्भीर ब्लैकमेल की गम्भीर बुनियाद होती है ।”
“बिल्कुल ठीक ।” - राज बोला - “अब सोचिये गम्भीर बुनियाद क्या हो सकती है ?”
“गम्भीर बुनियाद !” - शशिबाला सोचती हुई बोली, फिर एकाएक उसके नेत्र फैले - “ओह, नो ।”
“यस । एकदम सही जवाब सूझा है आप को ।”
“क्या !” - अधिकारी सस्पेंसभरे स्वर में बोला ।
“पायल ने” - राज एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला - “अपने पति श्याम नाडकर्णी का कत्ल किया था । और ये बात ब्लैकमेलर को मालूम थी । न सिर्फ मालूम थी, उसके पास पायल की उस करतूत का अकाट्य सुबूत था ।”
“ओह !”
“और वो ब्लैकमेलर आपमें से कोई था । आप में से कोई था जिसने पायल के गायब होने से पहले उसकी पाई-पाई हथिया ली थी । आपमें से कोई था जिसके खौफ से पायल पैसा नहीं कमाना चाहती थी क्योंकि उसकी कमाई भी उससे छिन जाती । आप में से कोई था जिसके जुल्म के साये से पनाह पाने के लिये पायल गायब हुई थी और सात साल...”
“डॉली !” - विकी जोश से बोला - “डॉली ! पायल के पास पैसा खत्म हो गया तो जो उसके जेवर हथियाने लगी ! ऐसे ही जेवरात में से एक जेवर तो ब्रेसलेट था जिसे डॉली ने बेचकर पैसे खरे करने की हिम्मत नहीं की थी क्योंकि उस पर पायल का और उसके हसबैंड का नाम गुदा हुआ था । लेकिन वो कीमती ब्रेसलेट वो फेंक देने को भी तैयार नहीं थी इसलिये उसने उसे अपने जेवरात के डिब्बे में मखमल की लाइनिंग के भीतर छुपाया हुआ था, जहां से कि पुलिस ने उसे बरामद किया था, जिसकी कि अपने पास मौजूदगी का डॉली के पास कोई जवाब नहीं था और जिसकी वजह से अपना खेल खत्म होने पर पहुंचा जानकर उसे भाग खड़ा होना पड़ा था ।”
“ओह !” - बालपाण्डे बोला - “तो वो ब्रेसलेट ब्लैकमेल से हासिल माल था ।”
“डॉली !” - सतीश के मुंह से निकला - “ब्लैकमेलर !”
“और हत्यारी !” - ज्योति बोली ।
“उसने पायल को मार डाला !” - फौजिया बोली ।
“और आयशा को भी ।” - आलोका बोली - “हाउसकीपर को भी ।”
“अब आगे पता नहीं किसी बारी आती !” - शशिबाला बोली - “अच्छा ही हुआ वो फरार हो गयी । हम बच गये । मेरी तो ये सोच के रूह कांपती है कि हम लोग एक खतरनाक कातिल की सोहबत में थे ।”
राज ने नोट किया कि वहां मौजूद लोगों में सिर्फ अधिकारी ही था जिसने डॉली की बाबत कोई राय प्रकट करने की कोशिश नहीं की थी ।
खुद वो तो था ही ।
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