RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“तुम” - सतीश चौंककर बोला - “किसकी बात कर रहे हो ?”
“ये भी कोई पूछने की बात है ! ऐसे हुलिये वाली एक ही तो शख्सियत थी आपकी एस्टेट में ।”
“ओह, नो । नो ।”
“यस ! आपकी हाउसकीपर कथित वसुन्धरा पटवर्धन ही माहिनी पाटिल उर्फ मिसेज श्याम नाडकर्णी थी जिसका कि इसने कत्ल किेया ।”
फ्लड लाइट्स में सबने ज्योति के चेहरे का रंग उड़ता साफ देखा ।
“और इसको आयशा चावरिया का कत्ल इसलिये करना पड़ा क्योंकि वो भी मेरी ही तरह, लेकिन मेरे से पहले, इस हकीकत से वाकिफ हो चुकी थी कि हाउसकीपर ही उनकी एक्स, परीचेहरा बुलबुल पायल थी ।”
“ये झूठ है ।” - ज्योति चिल्लाई - “झूठ है ।”
किसी के चेहरे पर विश्वास के भाव न आये ।
उसके पति के चेहरे पर भी नहीं, जिसकी खातिर कि उसने वो सब कुछ किया था ।
***
सोमवार दोपहर साढे बारह बजे राज अपने बॉस नकुल बिहारी माथुर के आफिस में उसके सामने बैठा अपनी रिपोर्ट पेश रहा था ।
रविवार को तकरीबन सारा दिन सब लोगों का फिगारो आइलैड पर गुजरा था, जहां सब बयान रिकार्ड हुए थे और जहां लम्बी हील-हुज्जत के बाद ज्योति निगम ने अपना अपराध कबूल किया था ।
रविवार रात को ही सोलंकी उसे गिरफ्तार करके अपने साथ पणजी ले गया था ! पुलिस वालों की उनकी मूवमैंट्स से पाबन्दी हटने के बाद कौशल निगम पहला आदमी था जिसने सतीश की एस्टेट से रुख्सत पायी थी । अपनी सफेद टयोटा पर सवार होकर अकेला वो वहां से कूच कर गया था और साफ मालूम होता था कि अपनी बीवी की संकट की घड़ी में पणजी में उसके करीब रहने का उसका कोई इरादा नहीं था ।
उसने फौजिया को अपने साथ ले जाने की पेशकश की थी जिसको फौजिया ने बाकायदा उसे झिड़ककर ठुकरा दिया था और घोषणा की थी कि भविष्य में मर्द जात पर वो मुश्किल से ही विश्वास कर पायेगी ।
सोमवार सुबह वो शशिबाला और धर्मेन्द्र अधिकारी के साथ एस्टेट से रुख्सत हुई थी । सतीश खुद उन्हें पायर पर सी आफ करने गया था ।
रवानगी के वक्त शशिबाला और अधिकारी फाख्ताओं के जोड़े की तरह चहचहा रहे थे । जाहिर था कि उनमें तमाम गिले शिकवे दूर हो गये थे और अब अधिकारी पहले की तरह ही फिर अपनी सेलीब्रेटिड स्टार का सैक्रेट्री था और उसकी अधूरी शूटि़ग पूरी कराने के लिये उसे बैंगलौर ले जा रहा था ।
सतीश की गैरहाजिरी में आलोका और रोशन बालपाण्डे ने एक टैक्सी गंगाई थी और बिना सतीश से विदा लेने की औपचारिकता की परवाह किये वो वहां से रूख्सत हो गये थे ।
सतीश के दो नौकरों को एन.सी.बी. के अधिकारी पकड़कर ले गये थे । उन्होंने कबूल किया था कि बॉस के आदेश पर उन्होंने ही रात के दो बजे दो किलो हेरोइन की थैली कुएं में इस उम्मीद के साथ फेंकी थी कि वहां का मामला ठण्डा पड़ जाने के बाद उसे निकाल लिया जायेगा ।
बॉस कौन था ?
जवाब में पणजी के एक होटल संचालक का नाम लिया गया जिसे कि तुरन्त गिरफ्तार कर लिया गया । उस सन्दर्भ में और भी कई गिरफ्तारियां हुई जिनका मीडिया में इंस्पेक्टर आरलेंडो और डिप्टी डायरेक्टर अचरेकर ने खूब यश लूटा ।
राज को इस बात की खूशी थी कि सतीश नारकाटिक्स स्मगलर नहीं निकला था । उसकी दौलत, उसका ऐश्वर्य हेरोइन स्मगलिंग का नतीजा नहीं था । यानी कि पुलिस का ध्यान कुएं की तरफ आकर्षित करने के पीछे उसका कोई निहित स्वार्थ नहीं था, उसकी जुबानी कुएं का जिक्र मात्र एक संयोग था और पुलिस के लिये उसकी निष्ठा का परिचायक था ।
जाने से पहले अचरेकर सतीश को बहुत कड़ी चेतावनी देकर गया था जिससे उसका मन इतना खिन्न हुआ था कि उसने एस्टेट को स्थायी रूप से बन्द कर देने की घोषणा कर दी थी । नौकरों को इनाम-इकराम से नवाज कर उसने उनकी छुट्टी कर दी थी और फिर कभी गोवा आकर रीयूनियन पार्टी आर्गेनाइज करने से तौबा कर ली थी ।
सन 1995 में सतीश की एस्टेट पर हुई वो आखिरी रीयूनियन पार्टी थी जिसमें कि उसकी दो बुलबुलों का कत्ल हो गया था और एक कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार कर ली गयी थी ।
कुएं से बरामद एयरबैग में मौजूद फर का सफेद कोट, ज्योति ने कबूल किेया था, कि खुद उसका था ।
इतना कीमती कोट उसने कुएं में क्यों फेंका था ?
क्योंकि उसका जिक्र वो खुद अपनी जुबानी पायल के कोट के तौर पर कर चुकी थी । सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा ने कत्ल के बाद उसका बयान लेते समय जब उससे एस्टेट से खिसकने की कोशिश करती पायल की पोशाक की बाबत सवाल किया था तो वो गड़बड़ा गयी थी । तब उसने प्रोशाक की जगह उस फर के लम्बे कोट का ही जिक्र कर दिया था जोकि सब कुछ ढंके हुए था । यानी कि पायल की पोशाक के नाम पर गले से लेकर घुटनों से नीचे तक पहुंचने वाले कोट के अलावा उसने कुछ नहीं देखा था । बाद में जब उसे अहसास हुआ था कि मर्डर वैपन रिवॉल्वर की तलाश में हर कमरे की तलाशी हो सकती थी तो उसे कोट की फिक्र पड़ गयी थी । उस कोट की उसके पास से बरामदी रिवॉल्रवर की बरामदी से भी ज्यादा डैमेजिंग हो सकती थी । लिहाजा उसने रिवॉल्वर और कोट को एक एयरबैग में बन्द किया था और वो उसे आधी रात के बाद कुएं में फेंक आयी थी जिसकी तलाशी वो जानती थी किे, पहले ही हो चुकी थी । लोकल टेलीफोन एक्सचेंज से इस बात की भी तसदीक हो चुकी थी कि हाउसकीपर की हत्या वाली सुबह सतीश के मैशन से टैक्सी के लिये कोई फोन नहीं किया गया था । इससे भी इस बात की तसदीक होती थी कि पायल से पोर्टिको में हुई अपनी मुलाकात से सम्बन्धित ज्योति का बयान फर्जी था ।
वस्तुत: अपने उस बयान में ज्योति का सारा जोर इस बात पर था कि पायल वहां से मुंह अन्धेरे चुपचाप खिसक गयी थी ताकि हाउसकीपर के कत्ल के लिये उसे सहज ही जिम्मेदार मान लिया जाता ।
ये भी स्थापित हो चुका था कि गुरूवार रात को हाउसकीपर - जो कि वस्तुत: पायल थी - वो धक्का देकर भाग खड़ा होने वाला शख्स न कोई था और न कोई हो सकता था । हाउसकीपर के बहुरूप में पायल को अपनी हर बात पर काबू था, किसी बात पर काबू नहीं था तो अपनी इस पूर्वस्थापित आदत पर कि वो बिजली की कड़क से, बादलों की गर्ज से डरती थी । उस रात को वो सच में ही पोर्टिको में खड़ी स्टेशन वैगन के खिड़कियां दरवाजे चैक करने आयी थी जबकि एकाएक बिजली कड़की थी और अनायास ही उसके कंठ से वो दिल हिला देने वाली चीख निकल गयी थी । पलक झपकते सब मेहमान दौड़े-दौड़े बाहर निकल आये थे और आनन फानन उसके करीब पहुंच गये थे । तब अपनी चीख की कोई वजह तो उसने बतानी थी इसलिये उसने कह दिया था कि किसी ने उस पर हमला किया था । हमलावर का गार्डन की तरफ भागा होना बताना भी उसके लिये जरूरी था क्योंकि गार्डन का दहाना उसके करीब था जहां घुसकर कि हमलावर आनन-फानन गायब हो सकता था, वो उसे किसी और तरफ भागा बताती तो आनन-फानन वहां पहुंचे मेहमानों को वो भागता दिखाई देना चाहिये था ।
वस्तुत: ऐसे किसी शख्स का अस्तित्व नहीं था, ये बात केयरटेकर के लड़के रोमियो के बयान से भी साबित होती थी । रोमियो का माली की नौजवान लड़की से अफेयर था जिससे कि वो रात को कई बार चुपके-चुपके ग्रीन हाउस में मिला करता था । उस रोज रात को भी वो अपनी प्रमिका के इन्तजार में पलक पावड़े बिछाये ग्रीन हाउस में मौजूद था जबकि वातावरण में हाउसकीपर की दिल हिला देने वाली चीख गूंजी थी । सब हल्ला-हुल्ला ठण्डा होने के बाद भी वो कम-से-कम दो घण्टे अपनी प्रेमिका का इन्तजार करता रहा था और टकटकी बांधे गार्डन में दाखिल होने के रास्ते को देखता रहा था जहां कि उसकी प्रेमिका के किसी भी क्षण कदम पड़ सकते थे लेकिन पड़े नहीं थे ।
उस रात हाउसकीपर स्टेशन वैगन लेकर एस्टेट से निकली ही नहीं थी, ये बात भी भिन्न-भिन्न तरीकों से स्थापित हुई । मसलन:
फौजिया को, जोकि उस रात तीन बजे तक जागती रही थी, स्टेशन वैगन के रवाना होने की और लौटने की कोई भनक नहीं मिली थी जो कि ऐसा कुछ हुआ होता तो जरूर मिली होती । पहले इस बात की तरफ उसकी कतई तवज्जो नहीं गयी थी लेकिन जब ये स्थापित हो चुका था कि हाउसकीपर वसुन्धरा ही पायल थी जो कि मैंशन में पहले ही मौजूद थी जिसे कि किसी के कहीं लेने जाने का सवाल ही नहीं पैदा होता था तो खुद ही उसने इस बात का जिक्र किया था कि उस रात को हाउसकीपर स्टेशन वैगन लेकर मैंशन से निकली होती तो उसे उसकी जरूर खबर लगी होती ।
निकलने की भी और लौटने की भी ।
जाहिर था कि हाउसकीपर उर्फ पायल ने खुद अपने-आपको पायर से लेने जाने का नाटक करना जरूरी नहीं समझा था । रास्ते में पहिया पंचर हो जाने की वजह से आधा घन्टा लेट पायर पर पहुंचने की कहानी उसने जरूर इसलिये गढी थी क्योंकि सतीश की जुबानी पायल के रात दो बजे पायर के बुकिंग आफिस के सामने मौजूद होने का बहुत प्रचार हो गया था । उसे अन्देशा था कि पायर पर कोई पायल की ताक में हो सकता था जो कि पायल को वहां न पाकर यही समझता कि वो नहीं आयी थी और टल जाता । वस्तुत: ऐसा हुआ भी था, ये अधिकारी खुद अपनी जुबानी बयान कर चुका था । बाद में जब उसे राज की जुबानी हाउसकीपर के लेट हो जाने की और पायल के और भी लेट पायर पर पहुंचने की कहानी सुनने को मिली थी तो वो उसे तुरन्त हज्म हो गयी थी ।
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