RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“क्या फर्क पड़ता था ? वो पैसा उसी के पास तो लौट आना था ।”
“ऐग्जै़क्टली सर ।”
“आगे ?”
“आगे बहुत जल्द ऐसी स्थिति आ गयी कि पायल के लिये ब्लैकमेलर की मांग पूरी करना नामुमकिन हो गया । तब पायल के पास बम्बई छोड़कर कहीं जा छुपने के अलावा कोई चारा न रहा । उसने अपना कफ परेड वाला फ्लैट छोड़ दिया और चुपचाप कहीं खिसक गयी ।”
“यानी कि वो ब्लैकमेलर से डरके भाग गयी !”
“और क्या करती ? जो पैसा उसके पास था, वो चुक गया था, उधार भी जहां-तहां से मिल सकता था, वो ले चुकी थी, ऊपर से ये उसे तब भी नहीं पता था कि ब्लैकमेलर कौन था ।”
“लेकिन उस तस्वीर की वजह से उसे इतना तो अन्दाजा होगा कि ब्लैकमेलर जरूर सतीश की पार्टी में शामिल कोई शख्स था ?”
“अन्दाजा तो उसे यहां तक होगा, सर, कि वो कोई उसकी फैलो बुलबुल ही थी क्योंकि तस्वीरें खींचने के जिस खेल में बाकी बुलबुलें शामिल थीं, जाहिर है कि उसमें पायल भी शामिल रही होगी । लेकिन बुलबुलें कई थीं । उनमें से अपनी बुलबुल छांटने का उसके पास कोई जरिया नहीं था ।”
“माथुर, ये भी तो हो सकता है कि तस्वीर जिस बुलबुल ने खींची हो, उसने उसे आगे किसी को सौंप दिया हो !”
“सर, अब जबकि हमें पता है कि ब्लैकमेलर ज्योति थी, जबकि वो अपने इकबालिया बयान में ये बात कबूल कर चुकी है तो किसी और भी हो सकता है को खातिर में लाना मूर्खता है ।”
आनन्द साहब हड़बड़ाये, उन्होंने कोई सख्त बात कहने के लिये मुंह खोला लेकिन फिर कुछ सोचकर खामोश हो गये ।
“बहरहाल स्थिति ये थी कि जब तक पायल गायब थी उसका ब्लैकमेलर उस पर कोई दबाव नहीं डाल सकता था और पायल पूरे सात साल गायब रहना अफोर्ड कर सकती थी क्योंकि उससे पहले अपने पति की दौलत उसके हाथ नहीं आने वाली थी । वो वक्त आने से पहले वो अपने ब्लैकमेलर की शिनाख्त की कोशिश कर सकती थी और उससे पीछा छुड़ाने की कोई तरकीब सोच सकती थी । पूरे सात साल का वक्त था उसके पास इस काम के लिये ।”
“आई सी ।”
“उस दौरान पैसे की कमी की वजह से वो बहुत बर्बाद हुई, बहुत दुख झेले उसने, पेट भरने की खातिर बहुत नीचे गिराया उसने अपने आपको । फिल्म कान्ट्रैक्ट कबूल करके सम्पन्नता का दामन थामने से भी उसने परहेज किया क्योंकि एक्ट्रेस बन जाने के बाद वो अपने ब्लैकमेतर से छुप तो सकती ही नहीं थी, यूं उसकी सफलता का भी ढिंढोरा पिटता और फिर उसका ब्लैकमेलर उसका और खून निचोड़ता । ये भी पायल की ट्रेजेडी थी कि पैसा कमाने का जरिया उसके सामने था लेकिन वो उसे अडाप्ट नहीं कर सकती थी क्योंकि यू वो पैसा अपने लिये नहीं, ब्लैकमेलर के लिये कमाती जो कि वो नहीं चाहती थी ।”
“यू आर राइट देअर, माई ब्वाय ।”
“वो ये भी जानती थी कि वो सदा गुमनामी में गर्क नहीं रह सकती थी । अगर उसने अपने पति की दौलत हासिल करनी थी तो सात साल का वक्फा पूरा होने के बाद उस दौलत को क्लेम करने के लिये उसका सामने आना जरूरी था । और ढाई करोड़ की मालकिन बन जाने के बाद वो दोबारा जाकर गुमनामी में गर्क नहीं हो सकती थी ।”
“जाहिर है । वो फिर ऐसा करती तो उसे क्या फायदा होता एक मालदार औरत बनने का ?”
“लेकिन करती तो वो माल उससे उसका ब्लैकमेलर झटक लेता । सर, ऐसी स्थिति से दो चार होने के लिये उसने एक योजना बनाई और उस योजना के तहत वो पायल पाटिल उर्फ मिसेज नाडकर्णी नामक एक्स फैशन माडल से वसुन्धरा पटवर्धन नामक एक सैक्सलैस, अनाकर्षक मोटी मैट्रन बन गयी जिसने कि तीन महीने पहले फिगारो आइलैंड पहुंचकर वहां हाउसकीपर की नौकरी कर ली । कोई बड़ी बात नहीं कि सतीश की गैर-हाजिरी में उसकी पहली हाउसकीपर की नौकरी छुड़वाना भी पायल का ही कोई कमाल हो ।”
“वजन कैसे बढा लिया ?”
“औरतों के लिये वो कोई मुश्किल काम नहीं होता, सर । अलबत्ता वजन घटाना बहुत मुश्किल काम होता है । ऊपर से ये न भूलिये कि इस काम के लिये उसके पास वक्त की कोई कमी नहीं थी । वो बड़े इतमीनान से साल-दो साल लगाकर मोटापा पैदा करने वाला खाना खाकर, ज्यादा-से-ज्यादा खाना खाकर वजन बढा सकती थी । जापानी सूमो पहलवान भी ऐसे ही वजन बढाते हैं, सर । वो तो सौ-सौ किलो वजन बढा लेते हैं जबकि पायल ने तीस-पैंतीस किलो ही बढाया था ।”
“आई सी ।”
“मोटी हो जाने की वजह से वो ठिगनी लगने लगी । बोरा किस्म की पोशाकें पहनने लगी । मोटे फ्रेम का चश्मा लगाने लगी । अपने सुनहरे बाल छुपाने के लिये उन्हें काली डाई से रंगने लगी । मेकअप से किनारा करने लगी और बाल कस कर बांधने लगी । फटे बांस जैसी, नाक से निकलती आवाज का उसे अलबत्ता काफी अभ्यास करना पड़ा होगा ।”
“मस्ट बी ए क्लैवर एक्ट्रेस ।”
“डेफिनिटली, सर । उसका बहुरूप कितना बढिया था, सैक्स गॉडेस पायल से ड्रम जैसी वसुन्धरा तक उसकी ट्रांसफार्मेशन कितनी कम्पलीट थी, इसका यही सुबूत काफी है कि उसे सतीश ने नहीं पहचाना था । जब सतीश पर उसका बहुरूप चल गया था तो बाकी बुलबुलों पर तो चल ही जाता जिनकी निगाहों में वो एस्टेट की मुलाजिम थी, सतीश की मामूली हाउसकीपर थी, मैंशन का फर्नीचर थी जिस पर दूसरी निगाह डालना भी किसी के लिये जरूरी नहीं था । कहने का मतलब ये है, सर, कि वो अपने ब्लैकमेलर पर जवाबी हमला करने के लिये पूरी तरह से तैयार थी । उसने पहले से सोच के रखा हुआ था कि कैसे उसने पायल की वहां आमद को स्थापित करना था । सतीश ने दोपहर के करीब उसे पायर पर से आयशा को लिवा लाने के लिये भेजा था जहां से कि उसने अपनी असली, खनकती हुई आवाज निकालकर सतीश को फोन किया था और उसे अपने आइलैंड पर पहुंच चुकी होने की सूचना दी थी । रात दो बजे तक फारिग न होने और अगले रोज दोपहर तक रूख्सत हो जाने की कहानी उसने इसलिये की थी ताकि ब्लैकमेलर को उससे सम्पर्क बनाने के लिये बहुत सीमित समय उपलब्ध होता, ताकि एक सीमित समय तक ही ब्लैकमेलर द्वारा उठाये जाने वाले किसी अगले कदम की उसे बाट जोहनी पड़ती ।”
“ओह !”
“इतनी रात गये अपनी आमद स्थापित करना उसके लिये इसलिये भी जरूरी था क्योंकि सतीश के मैंशन में ड्रिंक डिनर से लबरेज हर कोई तब तक कब का नींद के हवाले हो चुका होता ।”
“आई अन्डरस्टैण्ड ।”
“आई एम ग्लैड दैट यू डू, सर ।”
“माथुर ! माथुर...”
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