RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“यहां कुछ बातें संयोगवश भी हुई जिन्होंने निर्विवाद रूप से थे स्थापित कर दिया कि पायल वहां पहुंच चुकी थी । शशिबाला के साथ बन्द दरवाजे के आर-पार से हाउसकीपर उर्फ पायल ने अपनी असली आवाज में चुहलबाजी की । फौजिया की खातिर खुद ही दो आवाजें निकालकर वे स्थापित किया कि पायल हाउसकीपर पर बरस रही थी, उसे डांट रही थी । यूं पायल के लिये रिजर्व कमरे में पायल की मौजूदगी स्थापित करके वो चुपचाप वहां से बाहर निकल आयी और कहीं छुपकर पायल के कमरे को वाच करने लगी । उस वाच का नतीजा ये निकला कि उसने ज्योति निगम की चुपचाप पायल के कमरे के सामने पहुंचते और दरवाजे के नीचे से ब्लैकमेल सम्बन्धी चिट्ठी भीतर सरकते देखा ।”
“यानी कि वो पायल के जाल में फंस गयी ? ब्लैकमेलर अपने शिकार पर एक्सपोज हो गया ?”
“यस, सर । लेकिन आगे सिलसिला पायल की योजना के मुताबिक न चल पाया । आगे गड़बड़ हो गयी ।”
“क्या ? क्या गड़बड़ हो गयी ?”
“सर, ज्योति का खुद का बयान है कि जब वो पायल के कमरे में दरवाजे के नीचे से ब्लैकमेल नोट भीतर सरकाकर वापिस लौट रही थी तो तब उसका आमना-सामना हाउसकीपर वसुन्धरा से हो गया था । ज्योति तत्काल समझ गयी थी कि उसने उसे पायल के कमरे में ब्लैकमेल वाली चिट्ठी सरकाते देख लिया था । वो कहती है कि उस घड़ी हाउसकीपर के चेहरे पर ऐसे विजेता के से भाव थे और आंखों में ऐसी चमक थी कि उसे तत्काल अहसास हुआ था कि वो किसी जाल में फंस गयी थी । वो अहसास होते ही बिजली की तरह उसके जेहन में ये कौंध गया था कि वो सतीश की हाउसकीपर के नहीं, अपनी ब्लैकमेल की शिकार पायल पाटिल के रूबरू थी ।”
“वो तो उसे तब भी महसूस हो गया होगा जबकि पायल ने उसे मार डालने की कोशिश की होगी ?”
“सर, पायल ने उसे मार डालने की कोशिश नहीं की थी । अपने ब्लैकमेलर का कत्ल कर डालने का इरादा पायल जरूर बनाये हुए होगी लेकिन वो कत्ल सतीश की एस्टेट में करने का उसका कोई इरादा नहीं था । एक बार ब्लैकमेलर की शिनाख्त कर लेने के बाद उसे इस काम की कोई जल्दी भी नहीं थी । वो पार्टी के खत्म होने तक इन्तजार कर सकती थी और बड़े इत्मीनान से ज्योति के पीछे उसके शहर तक पहुंच सकती थी जहां कि वो उसका कत्ल करती और गायब हो जाती । फिर आइन्दा दो-तीन महीनों वो अपना वजन घटाती, फिर पहले जैसी ग्लैमरस पायल बनती और अपनी विरसे की रकम क्लेम करने के लिये यहां आ जाती थी ।”
“वैरी क्लैवर आफ हर ।”
“आफकोर्स, सर ।”
“लेकिन जिसे कि तुम पायल के प्लान में हो गयी गड़बड़ कहते हो, अगर वो न होती, यानी कि रात कि रात को खून-खराबा न होता, तो सुबह पब्लिक के लिये वो पायल कहां से पैदा करती जो कि स्थापित था कि घर में मौजूद थी ?”
“गुड क्वेश्चन, सर । इससे साबित होता है कि अब आप मेरी बात को गौर से सुन रहे थे ।”
आनन्द साहब ने घूरकर उसे देखा लेकिन राज को विचलित होता न पाकर वो खुद ही पहलू बदलने लगे ।
“मेरे ख्याल से तब सुबह सतीश को एक चिट्ठी मिलती जोकि पायल के हैंडराइटिंग में होती और उसी के द्वारा साइन की गयी होती और जिसमें उसके चुपचाप वहां से कूच कर जाने की वही वजह दर्ज होती जोकि पायल से मुलाकात हुई होने का दावा पेश करते समय ज्योति ने बयान की थी । यह कि वहां पहुंचकर उसकी पुरानी यादें तरोताजा होने लगी थी, कि वो अपनी सखियों और मिस्टर सतीश के रूबरू होने की ताब अपने आप में नहीं ला पा रही थी, वगैरह । तब कथित हाउसकीपर भी बड़ी मासूमियत से ये फरमा देती कि वो पायल की फरमायश पर सुबह-सवेरे, मुंह अन्धेरे उसे स्टेशन वैगन पर सवार कराकर पायर पर छोड़ आयीं थी ।”
“कत्ल कैसे हुआ ?”
“ज्योति कहती है कि छीना-झपटी में हुआ । वो कहती है कि रिवॉल्वर असल में हाउसकीपर के पास थी लेकिन पुलिस को उसकी बात पर यकीन नहीं है ।”
“क्यों ?”
“सर, अगर रिवॉल्वर हाउसकीपर के पास होती और वो छीना झपटी में चली होती तो कत्ल के बाद पायल उसे अपने साथ न ले गयी होती । तब रिवॉल्वर वहीं मौकायवारदात पर लाश के करीब पड़ी पायी गयी होती ।”
“यू आर राइट देयर ।”
“असल में जरूर ज्योति ने पहले ही अपने आपको हथियारबन्द किया हुआ था क्योंकि वो पायल की मैंशन में मौजूदगी के सन्दर्भ में किसी भी ऊंच-नीच के लिये तैयार रहना चाहती थी । रिवॉल्वर तब भी उसके पास थी जबकि उसने किसी बहाने से गलियारे में दिखाई दे रही हाउसकीपर को पायल के कमरे में बुलाया था । हाउसकीपर इनकार नहीं कर सकती थी क्योंकि ऐसा करना एक तरह से कबूल करना होता कि वो हाउसकीपर नहीं, पायल थी और वो अपने ब्लैकमेलर के रूप में ज्योति को पहचान चुकी थी ।”
“ओह !”
“लेकिन तब उसने ये भी नहीं सोचा होगा कि पायल के कमरे में बुलाकर ज्योति उसे शूट कर देगी ।”
“उसने ऐसा क्यों किया ?”
“जरूर इसलिये क्योंकि उसे दिखाई दे रहा था कि उसके सामने मरो या मारो वाली स्थिति थी । ये भी हो सकता है कि उसके हाथ में रिवॉल्वर देखकर पायल उस पर झपट पड़ी हो और ज्योति को मजबूरन गोली चलानी पड़ी हो । बहरहाल इतनी गारन्टी है कि ज्योति को तब ये अहसास बड़ी शिद्दत से हो चुका था कि बतौर ब्लैकमेलर वो पहचान ली गयी थी और अब पायल की मौत में ही उसकी जिन्दगी थी ।”
“उसने मर्डर वैपन रिवॉल्वर कोट के साथ कुएं में क्यों फेंकी ? उसे वापिस सतीश के शस्त्रागार में वहीं क्यों न रख दिया जहां से कि उसने उसे हासिल किया था ?”
“क्योंकि वो ये जाहिर करना चाहती थी कि वो कत्ल किसी बाहरी आदमी का काम था जोकि कत्ल के बाद रिवॉल्वर अपने साथ ले गया था ।”
“आई सी ।”
“पुलिस ने एक-एक कमरे की, हर किसी के साजो-सामान की, तलाशी लेने की घोषणा न की होती तो शायद वो रिवॉल्वर अपने पास रखे रहती और फिर जरूर आयशा का कत्ल भी उसी रिवॉल्वर से होता । संयोगवश आयशा के कत्ल वाले हालात तब पैदा हुए थे जबकि वो हथियार उसके हाथ से निकल चुका था, जबकि वो उसे कुएं में फेंक चुकी थी ।”
“उसके कत्ल के हालात कैसे पैदा हुए थे ?”
“हाउसकीपर की चीख ने जैसे मेरे दिमाग की मोम पिघलाई थी, वैसे ही उसने उसके ज्ञानचक्षु खोले थे । अलबत्ता उस चीख की वजह से उसे ये कदरन जल्दी सूझ गया था कि हाउसकीपर ही पायल थी । उसने इस बात की तसदीक करने की कोशिश की तो वो ज्योति की निगाहों में आ गयी ।”
“तसदीक करने की कोशिश की ? कैसे ?”
“वो क्या है कि आलोका ने सालों पहले पटना के फैशन शो के दौरान हुई एक घटना का जिक्र किया था जबकि पायल ने बाथरूम में फिसलकर अपनी एक जांघ इतनी जख्मी कर ली थी कि डाक्टर को आकर जख्म को टांके लगाकर सीना पड़ा था । उस घटना से बाकी बुलबुलों की तरह आयशा भी वाकिफ थी । अपने कत्ल की रात को हाउसकीपर की चीख का ख्याल करके जब उसे ये सूझा था कि हाउसकीपर ही पायल थी तब हाउसकीपर उर्फ पायल की लाश अभी एस्टेट पर ही ग्रीनहाउस के नाम से जाने जाने वाले काटेज में मौजूद थी । लाश की जांघ का मुआयना ये स्थापित कर सकता था कि हाउसकीपर ही पायल थी या नहीं । यानी कि आयशा को अगर हाउसकीपर की जांघ पर सिले हुए जख्म का निशान मिलता तो वो यकीनन पायल थी ।”
“वैरी गुड ।”
“उस रात को जब आयशा चुपचाप मैंशन से निकली और ग्रीनहाउस की तरफ रवाना हुई तो बदकिस्मती से वो ज्योति की निगाहों में आ गयी । ज्योति तत्काल समझ गयी कि वो किस फिराक में हाउस जा रही थी । तब उसे आयशा का भी कत्ल जरूरी दिखाई देने लगा जिसके लिये कि उसे कोई हथियार चाहिये था । लायब्रेरी पर, जिसमें कि शस्त्रागार था, तब तक क्योंकि पुलिस के निर्देश पर मजबूत ताला जड़ा जा चुका था इसलिये वैकल्पिक हथियार के तौर पर ज्योति ने किचन में जाकर वहां से एक लम्बे फल वाली छुरी उठा ली । उधर आयशा तब तक ग्रीन हाउस में लाश का मुआयना कर चुकी थी । तब तक शायद उसे अहसास हो गया था कि उसके सिर पर खतरा मंडरा रहा था इसलिये मैंशन में वापिस लौटने की जगह वो एस्टेट से बाहर निकल गयी और करीब ही स्थित पोस्ट आफिस के पी.सी.ओ. पर पहुंची जहां से कि उसने पुलिस को फोन किया लेकिन फोन पर अभी वो ठीक से अपनी बात कह भी नहीं पायी थी कि ज्योति उसके सिर पर पहुंच गयी और उसका मुंह बन्द करने के लिये उसने उसकी छाती में छुरी भौंक दी ।”
“ओह ! यानी कि अब स्थिति ये है कि श्याम नाडकर्णी की विधवा और उसके विरसे की हकदार मिसेज नाडकर्णी उर्फ पायल पाटिल भी अब मर चुकी है ।”
“जी हां ।”
“ट्रस्टी की जिम्मेदारी से तो फिर हम मुक्त न हो पाये !”
“जाहिर है ।”
“फिर क्या बात बनी ?”
“सर, जरा असल हालात को प्रचारित होने दीजिये, फिर देखियेगा कि पायल का वारिस होने का दावा करने वाला कोई-न-कोई शख्स अपने आप निकल आयेगा ।”
“जिसे कि हमें ठोकना-बजाना पड़ेगा और यूं हमारा काम और बढ जायेगा । वारिस कई निकल आये तो कइयों को ठोकना-बजाना पड़ेगा और हमारा काम और और और बढ जायेगा ।”
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