RE: Desi Porn Stories अलफांसे की शादी
"न.....नहीं।" विमल के हलक से चीख निकल गई।
और विनीता।
उसे तो मानो लकवा मार गया।
किसी महापुरुष के श्राप से जैसे वह तत्काल पत्थर की शिला में बदल गई थी।
अवाक्.....हतप्रभ.....भौंचक्की।
मारे आतंक के नसीम और विमल के चेहरे निस्तेज नजर आ रहे थे।
कई मिनट तक सन्नाटा छाया रहा।
फिर।
"विनीता.....विनीता।" उसके दोनों कंधे पकड़कर विमल ने झंझोड़ा।
"आं।" जैसे समाधि टूटी हो।
"याद करके बताओ, जिस वक्त सुईं चुभी थी, उस वक्त तुमने अपने आस-पास किसी आदमी को देखा था क्या.....यदि 'हां' तो वह कौन था विनीता, कौन था वह?"
"व.....विमल।" विनीता की आवाज मुंह से नहीं, किसी अंधकूप से निकलती महसूस हुई—"मुझे बचा लो, मैं मरने वाली हूं विमल.....मुझे बचा लो।"
वातावरण में सनसनी दौड़ गई।
जहर का तो जो असर विनीता पर था, वह था ही—उससे ज्यादा असर था इस अहसास का कि उसके जिस्म में जहर पहुंच चुका है और वह मरने वाली है।
इस आतंक ने उसे समय से पहले ही मौत के करीब ला दिया था।
विमल उससे अपने सवाल के जवाब की अपेक्षा कर रहा था, जबकि उसने दोनों हाथों को बढ़ाकर विमल का गिरेबान पकड़ लिया। दांत भींचकर उसे झंझोड़ती हुई हिस्टीरियाई अंदाज में चिल्लाई—"मैं मरने वाली हूं विमल, तुम कुछ करते क्यों नहीं—मैं कहती हूं कुछ करो, मुझे बचा लो, बचा लो मुझे।"
"म...मैं।" विमल बौखला गया—"क्या करुं मैं?"
अचानक नसीम ने आगे बढ़कर पूछा—"ये बताओ विनीता....उस वक्त अपने आस-पास तुमने किसे देखा था—शायद अंदाजा हो कि तुम्हारे खून में मिलाया गया जहर किस किस्म का है—तब, वैसा ही इलाज किया जाए।"
विनीता ने जवाब देने के लिए मुंह खोला और यह प्रथम अवसर था जब विमल और नसीम ने उसके मुंह में नीले झाग देखे। वह कहती चली गई—"मैंने किसी को नहीं देखा, वहां कोई नहीं था—सिर्फ चींटी के काटने का अहसास हुआ था, मगर तुम लोग कुछ करते क्यों नहीं, मेरा सिर चकरा रहा हैं—आंखें बन्द हुई जा रही हैं—मुझ पर खड़ा नहीं हुआ जा रहा विमल.....कुछ करो।"
विमल किंकर्त्तव्यविमूढ़।
"यह हादसा तुम्हारे साथ कहां हुआ था?" नसीम ने पूछा।
"ग.....गाड़ी में, जब मैं ड्राइव कर रही थी।"
नसीम ने पुनः पूछा—"क्या उस वक्त गाड़ी में तुमने अपने अलावा किसी को.....?"
"यही बात बार-बार पूछकर तू समय बर्बाद क्यों कर रही है?" विनीता पागलों की तरह आंखें बाहर निकालकर गुर्राईं—"एक बार कह चुकी हूं कि मैंने किसी को नहीं देखा, कान खोलकर सुन ले वहां कोई नहीं था—अब कुछ कर, अगर मैं मर गई तो सुरेश की दौलत का जर्रा भी तुम दोनों में से किसी को नहीं मिलेगा, मुझे बचा लो—तुम कुछ करो विमल।"
"क.....क्या करूं?"
झाग उसके होठों से बाहर आने लगे थे, आंखें पुतलियों की चारदीवारी पार करने लगीं और मरने से पहले ही निस्तेज पड़े चेहरे वाली विनीता ने पुनः कहा— "किसी डॉक्टर को बुलाओ, वह मुझे बचा सकता है—मेरे मरने के बाद तुम दोनों कंगाल हो जाओगे—किसी को एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी।"
विमल ने नसीम की तरफ देखा
उसका आशय समझकर नसीम बोला— "अगर यहां कोई डॉक्टर आया, खासतौर से विनीता के लिए—तो सारे भेद खुल जाएंगे, लोग जान जाएंगे कि हमारे क्या सम्बन्ध हैं।"
"हरामजादी!" विनीता विमल का गिरेबान छोड़कर उसकी तरफ झपटती-सी गुर्राई—"यहां मैं मरने वाली हूं और तुझे भेद खुलने का डर सता रहा है!"
मगर।
विमल और नसीम के बीच का फासला वह तय न कर सकी और रास्ते में ही बुरी तरह लड़खड़ाने के बाद 'धड़ाम' से फर्श पर गिरी।
आंखें उलट चुकी थीं।
मुंह से झागों का अम्बार निकल रहा था।
हाथ-पांव ढीले पड़ते चले गए, कोशिश करने के बावजूद वह फर्श से उठने में कामयाब न हो सकी—चेहरा नीला पड़ता चला गया और फिर वह बार-बार यही कहती हुई कि 'मैं मरने वाली हूं' रोने लगी।
फूट-फूट कर।
नसीम और विमल ठगे से खड़े थे।
ये सच्चाई है कि विनीता को अपनी आंखों के सामने मरती देख उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, जिस्म मानो दिमागरहित थे।
उधर.....।
रोती हुई विनीता अचानक हंसने लगी।
खिलखिलाकर।
विमल और नसीम के रोंगटे खड़े हो गए।
हंसती हुई भी वह बार-बार कह रही थी कि 'मैं मरने वाली हूं' और यही कहते-कहते अचानक उसके जिस्म को एक तीव्र झटका लगा।
और फिर।
सब कुछ शांत।
मुंह से झाग उगलती हुई वह फटी-फटी आंखों से कमरे की छत को घूरती रह गई। इस दहशत से ग्रस्त कि वह मरने वाली है, अपने जीवन के अंतिम क्षण से विनीता शायद पागल हो गई थी। जहर और दहशत ने मिलकर उसके प्राण हर लिए थे।
नसीम और विमल अभी तक हतप्रभ खड़े थे।
किंकर्त्तव्यविमूढ़।
विनीता की मौत के भयानक मंजर ने उन्हें इस कदर अपने शिकंजे में कस लिया था कि उन्हें स्वयं यह अहसास नहीं हो रहा था कि उनका अपना भी इस दुनिया में कोई अस्तित्व है या नहीं।
फर्श पर पड़ी लाश उनकी टांगें कंपकंपाए दे रही थी।
¶¶
काफी देर बाद, बचपन से आज तक की सारी शक्ति समेटकर विमल ने कहा— "ये क्या हो गया नसीम, हमारे देखते-ही-देखते क्या हो गया ये?"
"सारे पासे उलट गए हैं।" नसीम बड़बड़ाई।
"किसने किया है यह, विनीता का हत्यारा कौन हो सकता है?"
"श.....शायद मिक्की, सुरेश बना मिक्की।"
"म.....मगर—?"
"मेरे ख्याल से उसने ताड़ लिया होगा कि विनीता ने रहटू और उसकी बातें सुन ली हैं, इसका मर्डर कर देने के अलावा उसके पास कोई चारा न रहा होगा।"
"क्या वह यह भी जान गया होगा कि विनीता हमसे मिली हुई थी?"
"न.....नहीं, इस बारे में उसे कोई इल्म नहीं हुआ होगा, क्योंकि ऐसी कोई बात ही कहीं नहीं हुई—इसके मर्डर की जरूरत तो मिक्की को इसलिए पड़ी होगी क्योंकि यह उसका भेद जान गई थी, जाहिर है कि अपना भेद जानने वाले को वह जीवित नहीं छोड़ सकता था।"
"म.....मगर सुईं इसे कार में चुभोई गई और कार को यह कोठे की तरफ लाई है, वह अभी भी नीचे खड़ी होगी, अगर वह कार के साथ यहां तक आया हो तो?"
नसीम अवाक् रह गई।
फिर एकाएक वह फोन पर झपटी।
सुरेश की कोठी का नम्बर डायल किया, मुश्किल से एक बार बैल बजने के बाद रिसीवर उठा लिया गया। दूसरी तरफ से सुरेश की आवाज उभरी—"हैलो, सुरेश हियर।"
"मैं बोल रही हूं, सुरेश।" नसीम ने संतुलित स्वर में कहा।
"ओह, हां, बोलो।"
"तुम्हारे आस-पास कहीं विनीता या काशीराम तो नहीं हैं?"
"नहीं।"
"अच्छी तरह चैक करके बताओ, मुमकिन है कि उनमें से कोई तुम्हारे पास हो।"
"नहीं हो सकते, काशीराम शॉपिंग के लिए बाजार गया है और विनीता कुछ देर पहले जल्दी-जल्दी तैयार होकर जाने अपनी गाड़ी में कहां गई है?"
"जल्दी-जल्दी तैयार होकर!"
"हां, काशीराम ने बताया कि वह बहुत जल्दी में थी, खैर.....छोड़ो उसे—ये बताओ कि फोन तुमने कैसे किया—क्या इंस्पेक्टर फिर आया था?"
"नहीं।"
"फिर?"
"मनू और इला ने कल शाम को तुमसे बुद्धा गार्डन में मिलने के लिए कहा है।"
"अब क्या परेशानी है उन्हें?"
"मैं समझ न सकी, पूछा भी, मगर कहते हैं कि बुद्धा गार्डन में ही बात होगी—तुम्हारे साथ उन्होंने मुझे भी बुलाया है।"
"क्या वे फिर कोई नई मांग रखने वाले हैं?"
"कह नहीं सकती।"
"कल मेरे पास टाइम नहीं है, एक बेहद जरूरी काम है मुझे।"
"ल.....लेकिन वहां जाना पड़ेगा सुरेश—मनू और इला ने धमकी दी है कि यदि हम उनसे मिलने नहीं पहुंचे तो वे.....।"
"इंस्पेक्टर म्हात्रे को सबकुछ बता देंगे, यही ना?"
"हां।"
"अब सचमुच इनका कोई इलाज सोचना पड़ेगा, नसीम, ये उतने ही सिर पर चढ़ रहे हैं जितनी इनकी मांगें मानी जा रही हैं—आज पैसा लेते हैं, कल फिर धमकी देने लगते हैं—ऐसी स्थिति में इन्हें कब तक बर्दाश्त किया जा सकता है?"
"बात तो ठीक है किन्तु मजबूरी है सुरेश, हमारी उंगली दबा हुई है।"
सुरेश की आवाज में उधर से मिक्की ने गुर्राकर कहा— "ठीक है, ये उंगली हमें निकालनी पड़ेगी—शायद मैं कल ही सबकुछ ठीक कर
दूं।"
"तो कल शाम ठीक छः बजे बुद्धा गार्डन के मुख्य गेट पर मिलो।"
“ ओ. के.।”
नसीम ने रिसीवर रख दिया।
अभी तक हक्का-बक्का विमल उसे फोन पर बात करते देख रहा था। नसीम के मुंह से निकलने वाली एक-एक बात उसने बहुत ध्यानपूर्वक सुनी थी। उसकी तरफ पलटती हुई नसीम ने कहा— "विनीता का हत्यारा मिक्की नहीं है।”
"क्या मतलब?" वह उछल पड़ा।
"विनीता को सुईं चलती कार में चुभी, जाहिर है कि सुईं चुभाने वाला उस वक्त कार में रहा होगा और यदि कार में था तो कोठे के नीचे पहुंचने से पहले वह कार से निकल नहीं सका होगा, क्योंकि विनीता ने कार बीच में कहीं नहीं रोकी और यहां से सुरेश इतनी जल्दी अपनी कोठी पर नहीं पहुंच सकता।"
"मुमकिन है कि यह काम उसने रहटू से कराया हो?"
"तुम भूल गए कि फोन पर रहटू और मिक्की की बात सुनते ही विनीता गाड़ी लेकर यहां के लिए दौड़ पड़ी—रहटू फोन पर मिक्की से कुछ दूर तो रहा ही होगा—मेरे ख्याल से इतना समय बीच में नहीं था कि रहटू गाड़ी में पहुंच सके—सिचुएशन से जाहिर है कि हत्यारा विनीता से पहले ही गाड़ी में छुपा हुआ था।"
नसीम के वजनदार तर्कों के सामने विमल चुप रह गया।
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