RE: antarwasna आधा तीतर आधा बटेर
आइए….आइए….आजाईए….मैं ख़तरे में हूँ….
शायद
उन्होने मेरा सुराग पा लिया है….हट के चारों तरफ एक आध आदमी मौजूद है….!
गैर मुल्की (विदेशी)….?
एक विदेशी भी है….
फ़िक्र ना करो….मैं ज़्यादा दूर नही हूँ….गुलबर से बोल रहा हूँ….अभी पहुँचता हूँ….
होटेल से निकल कर इमरान पैदल ही हट नंबर 83 की तरफ चल पड़ा….गाड़ी वहीं पार्क रहने दी….
हट तक पहुँचने में 3,4 मिनिट से ज़्यादा नही लगे….
लेकिन
उसने हट का दरवाज़ा खुला देखा….
और
करीब ही तीन-चार आदमी खड़े नज़र आए….
और
दरवाज़े की तरफ बढ़ा ही था कि उनमे से एक आदमी ने उँची आवाज़ में कहा….वहाँ कोई नही है….!
मैं नही समझा….आप क्या कहे रहे है….? इमरान पलट कर बोला
बीमार को वो आंब्युलेन्स गाड़ी में ले गये….
कोई ना कोई तो होगा….
जी नही….वो तन्हा था….
और
पता नही कब से बीमार था….घाशी तारि उसपर….शायद मिशन हॉस्पिटल वाले ले गये है….दो अँग्रेज़ भी थे गाड़ी पर….!
गाड़ी किधर गयी है….?
हॉस्पिटल ही गयी होगी….
गुफ्तगू को आगे बढ़ाना वक़्त ही बर्बाद करना था….इमरान फिर गुलबर की तरफ मुड़ा….इस बार रास्ता तय करने में डेढ़ मिनिट से भी कम लगा….
गाड़ी स्टार्ट की और मेन रोड की तरफ चल पड़ा….
और
फिर उसे वो सफेद गाड़ी नज़र आ गयी जिस पर रेड-क्रॉस बना हुआ था….थोड़ा दूर फ़ासले से उसका पीछा करने लगा….
लेकिन वो शहर की तरफ नही जा रही थी….!
शाहिद की गुफ्तगू से तो यही पता चलता था कि वो पूरी तरह होशियार है ज़ाहिर है कि उसने दरवाज़ा भी बंद रखा होगा….
फिर
वो इस आसानी से उसपर कैसे खाबू पा गये….!
खुद उसे इतना मौक़ा नही मिल सका था कि उस हट का तफ़सीलि जायेज़ा ले सकता….
बहेरहाल
वो अब उन ना-मालूम आदमियों के कब्ज़े में था….
बीच पीछे रह गया…. दोनो गाड़ियाँ वीराने की तरफ निकल आई….आंब्युलेन्स की रफ़्तार अब किस कदर तेज़ हो गयी….
इमरान इस वक़्त सेइको मॅन्षन की एक गाड़ी ड्राइव कर रहा था….आम गाड़ियों से अलग थी….डॅशबोर्ड के एक बटन पर उंगली रखते ही उसके करीब ही एक छोटा सा स्क्रीन रोशन हो गया जिस पर आंब्युलेन्स का पिछला हिस्सा दिखाई दे रहा था….
फिर उसने एक रेड बटन को गर्दिश देनी शुरू कर दी….
और
स्क्रीन पर नज़र आने वाली गाड़ी के एक पहिए (टाइयर) का क्लोज़-अप दिखाई देने लगा….आहिस्ता-आहिस्ता पूरे स्क्रीन पर सिर्फ़ पहिए का क्लोज़-अप ही बाकी रह गया….!
इमरान ने फिर एक बटन दबा दिया….
और
अगली गाड़ी का वो पिछला पहिया ज़ोरदार आवाज़ के साथ फट गया….जिस की तस्वीर स्क्रीन पर नज़र आ रही थी….!
आंब्युलेन्स लेफ्ट जानिब घूमी….
और
सड़क से उतर कर रेत में धँसती चली गयी….!
इमरान अपनी गाड़ी आगे लेता चला गया….रफ़्तार पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ थी कुछ दूर जा कर पलटा….इस बार उसके राइट हॅंड में लोंग रेंज का साइलेनसर लगा पिस्टल भी था जो उस गाड़ी के डॅशबोर्ड के एक खाने में बरामद हुआ….पिस्टल गोद में रख कर उसने गाड़ी की रफ़्तार कम की….
और
आंब्युलेन्स से थोड़े फ़ासले पर जा रुका….!
क्या मैं कोई मदद कर सकता हूँ….? उसने उँची आवाज़ में उन लोगों से पूछा….जो आंब्युलेन्स के नीचे जॅक लगाने की कोशिश कर रहे थे….!
एक देसी था और दो विदेशी….
एक विदेशी ने सीधे खड़े हो कर इमरान की गाड़ी की तरफ देखा….
और
आहिस्ता-आहिस्ता चलता हुआ करीब आ खड़ा हुआ….!
इमरान ने साइलेनसर लगा हुआ पिस्टल से उसके दिल का निशाना ले रखा था….
सब ठीक है….इमरान आहिस्ता से बोला
क….क्य….क्या मतलब….तुम कौन हो….? विदेशी हकलाया
बीमार को आंब्युलेन्स से मेरी गाड़ी की पिछली सीट पर शिफ्ट करा दो….
वो थूक निगल कर रह गया….
मुड़ो….और दो कदम आगे बढ़ कर खड़े हो जाओ….इमरान ने आहिस्ता से कहा….तुम देख ही चुके हो कि नाल में साइलेनसर लगा हुआ है….!
उसने चुप-चाप हुक्म की तामील की….
इमरान ने गाड़ी से उतरते उतरते आंब्युलेन्स के दूसरे पहिए (टाइयर) पर भी फाइयर किया….
और
वो धमाके के साथ फॅट गया….!
वो दोनो उछल पड़े जो जॅक लगा रहे थे….
और
फिर उन्होने उस तरफ देखा उनके तीसरे साथी पर क्या गुज़र रही है….!
शरीफ आदमियों….इमरान ने उँची आवाज़ में कहा….तुम्हारा साथी बे-आवाज़ पिस्टल की नोक पर है….बारहे करम बीमार को गाड़ी से निकालो….
और मेरी गाड़ी की पिछली सीट पर डाल दो….!
वो दोनो हाथ उठाए खड़े रहे….
जल्दी करो….
वरना
ये काम खुद मुझे ही अंजाम देना पढ़ेगा….
और
तुम तीनो मुझे रोकने के लिए ज़िंदा नही रहोगे….!
तुम कौन हो….? करीब खड़े आदमी ने फिर पूछा….उसकी आवाज़ काँप रही थी
खुदाई फ़ौजदार….ढांप नाम है….इमरान बोला….अपने आदमियों से कहो वही जो मैं कह रहा हूँ….
वरना
कत्ल कर देना मेरा दिलचस्प तरीन शौक़ है….!
उसने अपने आदमियों से कहा कि वही करे जो कहा जा रहा है….!
गाड़ी का पिछला दरवाज़ा खोल कर उन्होने स्ट्रेचएर निकाला….
और उसे उठाते हुए इमरान की गाड़ी तक आए….!
स्ट्रेचएर से उठा कर पिछली सीट पर डाल दो….इमरान ने कहा….वो पूरी तरह होशियार था….
और….शायद…. उन तीनो ने भी महसूस कर लिया था….
इसलिए
चुप-चाप हुक्म की तामील करते रहे….!
अब तुम दोनो अपने दोनो हाथ उपर उठाए हुए मूड़ कर खड़े हो जाओ….इमरान ने पिछली सीट का दरवाज़ा बंद करते हुए कहा
तुम जो कोई भी हो….तुम्हे पछताना पड़ेगा….उनमे से एक घुर्राया….
लेकिन
साथ ही उन्होने हुक्म की तामील भी की….!
और….मैं तुम्हे आगाह कर रहा हूँ कि….
अगर
24 घंटे के अंदर-अंदर डॉक्टर की बहन अपने घर ना पहुँची तो तुम में एक भी ज़िंदा नही बचेगा….अब सीधा दौड़ते चले जाओ….चलो जल्दी करो….मूड़ कर देखा….
और
मैने फाइयर किया….!
उससे क्या फ़ायदा….? उनमे एक बोला….हमारी गाड़ी बेकार हो चुकी है….हम तुम्हारा पीछा तो कर सकते नही….!
चलो….इमरान ने चीख कर कहा….
और
उन्होने दौड़ लगा दी….!
चलते जाओ….दौड़ते जाओ….कदम ना रुकने पाए….कहे कर इमरान गाड़ी में बैठा….और….एंजिन स्टार्ट कर के आक्सेलरेटर पर दबाव डाला….
और गाड़ी झपट कर आगे बढ़ गयी….!
डॉक्टर शाहिद पिछली सीट पर बेहोश पड़ा था….बीच के करीब पहुँचते ही इमरान ने फिर डॅशबोर्ड का बटन दबाया….
और गाड़ी की नंबर प्लेट बदल गयी….!
होश आते ही डॉक्टर शाहिद उछल पड़ा….
और हैरान-हैरान आँखों से चारों तरफ देखता हुआ बिस्तर से भी उतर आया….
फिर
दरवाज़े की तरफ झपटा और उसके हॅंडल पर ज़ोर आज़माइश करने लगा…..
लेकिन
दरवाज़ा बंद था….थक हार कर दोबारा बिस्तर पर आ बैठा….उसकी आँखों में शदीद तरीन उलझन के आसार थे….
अचानक उठा और दरवाज़ा पीट-पीट कर चीखने लगा….अरे मैं कहाँ हूँ….कोई यहाँ है….? दरवाज़ा खोलो….!
पीछे हट जाओ….बाहर से गुर्राति हुई सी आवाज़ आई
उसने खामोशी से तामील की….खुफाल में कुंजी (के) घुमाने की आवाज़ आई
और
दरवाज़ा खुल गया….
सामने एक ख़तरनाक आदमी खड़ा दिखाई दिया….
और
शाहिद और दो कदम पीछे हट गया
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