RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
“माँ।”
बुढ़िया चली गई।
“कौन सी माँ ?”
“मुझे तो याद भी नहीं था मेरी माँ कैसी थी – कौन थी—पर मेरे पिता ने तो मेरे लिए तीसरी माँ का इन्तजाम किया था। न जाने कौन होगी – कैसी होगी – बहरहाल रिश्ते में तो मेरी माँ ही हुई
मेरा पिता जिस जिस से भी विवाह करता, वह मेरी माँ ही कहलाती। मुझे अपने आप से घृणा होने लगी। काश कि मैं साधुराम का बेटा न होता।
कुछ देर में बहुत सी स्त्रियाँ उस कमरे में एकत्रित हो गई, जिसकी दीवारों का मैं ठीक से जायजा भी नहीं ले पाया था। मेरी निगाहें झुकी हुई थी।
“बेटा...तुम आ गये ...।” धीमा सा स्वर सुनाई पड़ा।
न जाने उनमे से कौन बोला था। मैंने नजरें ऊपर कर देखा कमरे में आधा दर्जन स्त्रियाँ थीं। कोई जवान कोई अधेड़। उनमे से एक युवती ऐसी भी थी जो स्वेत वस्त्रों में थी। उसकी नंगी कलाईयाँ, सूनी मांग इस बात का प्रमाण थी की वह विधवा है। उसके नाक नक्श तीखे थे और रंग गोरा था।
मैंने अनुमान लगाया कि वही युवती चन्द्रावती है। मेरी तीसरी मां, जिसकी आयु मुझसे भी कम है, वह कम से कम मुझसे छः बरस छोटी लगती थी, और अभी वह पूर्णतया स्त्री भी नहीं बन पाई थी। यह अन्याय नहीं तो क्या था। मेर पिता ने मरते मरते भी अन्याय किया था।
वह मेरी तरफ देखे जा रही थी।
मैंने सभी को हाथ जोड़े और स्त्रियाँ बिखरकर मेरे चारो तरफ बैठ गयी। उनके धीमे-धीमे स्वर मेरे कानों में पड़ते रहे, और मैं हूँ... हाँ... या ना... में जवाब देता रहा। मेरे पास कहने को कुछ नहीं था।
अधिक रात बीतने पर वे चली गई, सिर्फ एक बुढ़िया रह गई, जिसके दर्शन मैंने आरम्भ में किए थे।
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सवेरा हुआ।
मैंने अपने आपको काफी हल्का महसूस किया। बुढ़िया मेरे लिए चाय बना कर लाई।
“क्यों रे... तूने अपनी मां से बात भी नहीं की...।” उसने कहा।
“मैं क्या बात करता...।”
“कम से कम उसके दुखी मन को सांत्वना तो दे देता... बेचारी इस छोटी सी उम्र में बेवा हो गई।”
“हाँ सो तो है। यह भी एक जुल्म है।”“
अब वह किसके सहारे जिन्दा रहेगी – तू तो एक-दो रोज में चला जाएगा। उसके लिए कुछ पैसा-वैसा भेजता रहेगा न।”
“क्यों नहीं... मेरा इस दुनियाँ में है भी कौन?”
“अरे बेटा चिंता क्यों करता है, अभी तो मैं भी जिन्दा हूँ... मैंने तय कर लिया है कि इस घर की देख-रेख करुँगी... सब लोगो ने साथ छोड़ दिया तो क्या हुआ अभी मैं जो हूँ। और देखना यहाँ जितने दिन है, चुप ही रहना...।”
“मतलब...।”
“अरे बेटा जमाना बड़ा ख़राब है। जब तक तेरा बाप जिन्दा था, सब डरते थे, मगर अब तो न जाने जरा-जरा से लोग भी क्या कहते फिर रहे हैं। किसी से लड़ना-झगडना नहीं। सब सहन करने में ही भलाई है।”
“मैं क्यूँ लडूंगा भला।”
“ज़रा सुनना...।” बुढ़िया पास आकर धीमे स्वर में बोली – “गढ़ी वालों से बचकर रहना।”
“गढ़ी वाले ?”
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