RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
“अरे यही ठाकुर प्रताप... उसकी नियत अच्छी नहीं। और आजकल तो उसके यहाँ भैरवप्रसाद का आना-जाना है। लोग कहते है, भैरव काले पहाड़ पर रहता है और किसी के लाख बुलाने पर भी नहीं आता।”
“वह कौन है ?”
“बहुत बड़ा तांत्रिक है बेटा... उसका काटा पानी भी नहीं मांगता... चीते पर सवारी करता है, जो उसे काले पहाड़ तक पहुंचाता है।”
मैंने सांस छोड़ी।
इस कस्बे के लोग आज भी कितने अन्धविश्वासी है। काला पहाड़ आज भी सबके लिए दहशत का प्रतीक बना है। इस कस्बे से लगभग साथ सत्तर मील दूर एक पहाड़ था, जिसकी गगन चुम्बी चोटी दूर-दूर तक नजर आती थी। इस पहाड़ को लगभग आठ मील का घेराव लिए घना जंगल फैला था और उसमे जंगली जानवर स्वतंत्र घूमते रहते थे।
उस पर्वत को काला पहाड़ इसलिए कहा जाता था क्योंकि उसका उपरी हिस्सा दूर से काला दिखाई पड़ता था। मुझे याद था की यहाँ बच्चों को काले पहाड़ के दैत्य का हवाला दिला कर डराया जाता था। काले पहाड़ के बारे में क्या-क्या किवदंतियां मशहूर थी, यह मैं भूल गया था।
अपनी बात कहकर बुढ़िया चली गई। मैं चाय पीने लगा।
कहीं जाने को मन न था, अतः मैं घर की चारदीवारी में ही पड़ा रहा। दिन में सिर्फ एक बार अपनी उस अभागी माँ से मुलाकात हुई, जिसके मासूम चेहरे पर दुखों की छाप थी। उसने सिर्फ दो तीन बाते कही और इस बीच उसकी निगाहें झुकी रही।
इसमें कोई संदेह नहीं था की वह अति सुन्दर थी, और मुझे उसके आगे शर्म महसूस होती थी। शायद यही हाल उसका था। उसने मुझसे तेरहवीं के लिए कहा था, जिसके जवाब में मैंने सहमति प्रकट की। उसका कद औसत दर्जे से कुछ ऊंचा था। मुझे बेटा कहते हुए वह हिचकिचा रही थी।
दिन सूना-सूना सा बीता।
न मैं किसी से मिला और न कोई मुझसे मिलने आया। धीरे-धीरे रात घिर आई। बुढ़िया मेरे पास आकर बैठ गई और काफी रात गए तक आपबीती सुनाती रही। यह रात भी शंकाओं में बीत गई। बुढ़िया की बातों से इस बात का हल्का इशारा मिला कि साधुनाथ की मृत्यु स्वाभाविक नहीं थी, उसे मारा गया था, पर डर के कारण बुढ़िया स्पष्ट बोलने से कतरा रही थी। वह बार-बार गढ़ी का जिक्र करती थी, और ठाकुर घराने से दूर रहने की शिक्षा देती थी।
तो क्या मेरे पिता की मौत का जिम्मेदार ठाकुर भानुप्रताप था, जिसने भैरव प्रसाद नामक तांत्रिक को मेरे पिता से निपटने के लिए बुलाया था।
अगले दिन एक विचित्र घटना घटी।
किसी गाँव के चार-पांच आदमी एक स्त्री को पकड़कर लाये थे।वह नव-व्याहता लगती थी। उसके वस्त्र जगह-जगह से फाटे हुए थे, और बाल चंडी की तरह बिखरे हुए थे। माथे पर लंबा-सा तिलक लगा था, और सर पर सिन्दूर के लाल-लाल धब्बे से फैले नजर आ रहे थे।
वह हमारे मकान पर आ कर रुके।
न जाने बुढ़िया ने क्यों उन्हें बाहरी कमरे में बैठा दिया था। उसके बाद वह भागी-भागी मेरे पास आई।
“अरे... बेटा निपटो उन गवारों से... मेरे तो सर में दर्द हो गया है। कमबख्तों को बता भी दिया तो भी मानने को तैयार नहीं।”
“क्या बात है... बाहर के कमरे में कैसा शोर है ?” मैंने पूछा।
“वही तो कह रही हूँ – वो धरना देकर बैठ गए हैं।”
“उनके साथ कोई पागल औरत भी है।” मैंने उन्हें खिड़की से देख लिया था।
“अब बेटा जाकर उसका भूत उतारो... मैंने लाख कहा की साधू अब इस दुनिया में नहीं रहा, कमबख्त मानते ही नहीं। जब मैंने कहा साधू नहीं उसका बेटा है, तो बोले उसी से दिखवा दो।”
“मगर बात क्या है ?”
“वह जो लौंडी है न उनके साथ, जिसे कमबख्तों ने बेरहमी से पकड़ रखा है, बताते है उस पर ब्रह्म राक्षस चढ़ गया है, साधुनाथ का नाम तो दूर-दूर तक मशहूर है न... हाय राम ब्रह्म राक्षस तो जान ले के छोड़े है।”
मैं मुस्कुरा उठा।
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