RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
रात अँधेरी थी।
मैं जानता था बेताल वहां मेरी मदद नहीं कर सकता, ऐसा उसने पहले ही प्रकट कर दिया था और शमशेर को अधिक देर तक कैद नहीं रखा जा सकता अन्यथा गढ़ी के लोग सचेत हो जाते और फिर ख़तरा बढ़ जाता। सुबह होने से पहले सब कुछ निपटा देना आवश्यक था, फिटिन में मैंने एक कुदाल रख ली थी, तांत्रिक के उस टोटके को निकालना साधारण इंसान के वश का रोग नहीं था। उसे कोई ऐसा व्यक्ति ही निकाल सकता था, जो तंत्र विद्या जानता हो, या कोई सिद्धि प्राप्त हो। इसलिये इस काम पर मुझे स्वयं जाना पड़ा।
आधे घंटे के भीतर-भीतर गढ़ी का फाटक आ गया। मैंने बन्दूक को मजबूती के साथ पकड़ लिया, बेताल की शक्ति यहीं तक मेरे साथ थी और अब मैं अकेला था। किसी प्रकार का भी खतरा मेरे सर पर टूट सकता था।
फाटक पर फिटिन रुक गई।
कोचवान ने फाटक का घंटा बजाया , एक छोटी-सी खिड़की खुली, जिसमें से किसी ने बाहर झांका साथ ही टॉर्च का प्रकाश कोचवान के चेहरे पर पड़ा। कुछ पल बाद ही फाटक खुल गया।
फिटिन दनदनाती हुई फाटक पार कर गई, जैसा की मेरा अनुमान था, न किसी ने रोका और न किसी ने टोका। गढ़ी का विशाल प्रांगण प्रारम्भ हो गया। पाम और यूकेलिप्टस के स्वेत दरख्तों से टकराती मदहोश हवा बह रही थी।
रजवाड़े की इस गढ़ी से आज भी वैसी ही शान झलकती थी। इसका ढांचा अभी बिगड़ा नहीं था, सिर्फ समय की पर्त चढ़ गई थी।
एक सायवान के नीचे फिटिन रुक गई। यहाँ पहले से ही एक ओर बड़ी शानदार फिटिन खड़ी थी और समीप ही अस्तबल था, जहाँ से किसी घोड़े के हिनहिनाने का स्वर उत्पन्न हुआ।
गढ़ी के एक हिस्से में मुर्दा सा प्रकाश जल रहा था। दूर-दूर बल्ब टिमटिमा रहे थे। वातावरण में गहरी खमोशी छाई हुई थी। कहीं कोई आवाज उत्पन्न नहीं होती थी।
कोचवान सहमा-सहमा सा बैठा था।
मैंने सारे वातावरण पर दृष्टिपात किया और कोचवान से नीचे उतरने के लिए कहा। वह लड़खड़ाते नीचे उतर पड़ा।
“चुपचाप मुझे रास्ता बताता चल।”
वह चल पड़ा जहाँ मैं कहता रहा मेरा मार्गदर्शन करता रहा। इस बीच वह सांस लेने में भी परेशानी महसूस कर रहा था, हम ख़ामोशी के साथ सबसे पहले पश्चिम भाग में पहुंचे और उस स्थान पर पहुँचने में अधिक समय नहीं लगा जहां भैरव तांत्रिक ने जादू की हंडियां गाड़ रखी थी। मैंने कुदाल चलाई। वह चुपचाप सहमा-सहमा सा खड़ा रहा, मैं इस बात की पूरी सावधानी बरत रहा था कि मेरे इस कार्य में किसी प्रकार की आवाज न हो। आखिर हंडियां नजर आ गई। मैंने हाथ से उसे बाहर निकालना चाहा, तभी एक सर्प मेरे हाथ पर लिपट गया – मैं एकदम हाथ खींचकर पीछे हटा... अगले ही क्षण मैंने बिना डरे सर्प का फन दबोच लिया और उसे खींचकर एक ओर फेंक दिया। उसके बाद हंडिया बाहर निकाल ली। उसे लेकर मैं कोचवान के साथ दक्षिण हिस्से में पहुंचा.... उसके बाद यहाँ मेरा स्वागत एक काले खौफनाक बिच्छू ने किया।
लेकिन बेताल ने मुझे इस प्रकार की संभावना से पहले ही अवगत करवा दिया था। डर नाम की कोई वस्तु तो अब मुझमें रही ही नहीं थी।
मैंने दोनों हांडियों को फिटिन में पँहुचाया उसके बाद शेष दो उखाड़ कर ले आया। इस बीच कोई ख़तरा पेश नहीं आया, उसका कारण यह भी था कि ये सब मुख्य इमारत से काफी दूर गड़ी थी और मैंने ऊपर से लेवल उसी प्रकार बराबर कर दिया था, ताकि खुदाई का पता न लगे।
अब मैं इन बाईस जिन्नों को उठाकर ले जा रहा था। वे मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ पा रहे थे – उसके तीर तरकस खाली हो गये थे। हालांकि उन्होंने मुझे भयभीत करने का पूरा प्रयास किया था।
उन दिनों मैं तंत्र विद्या भी सीख रहा था।
मैं उसी फिटिन में लौटा। कोचवान उस वक्त भी मेरे साथ था। मैं उसी स्थान पर लौटा जहां शमशेर अब तक बंधा पड़ा था। मैंने एक बार फिर कोचवान को घसीटा और शमशेर के पास छोड़ दिया।
“बेताल।”
“हाँ मेरे आका।”
“इन्हें तो सब कुछ मालूम हो गया है। इनका क़त्ल कर दिया जाये।”
“मैं यह काम अपने हाथों नहीं कर सकता।”
“कोई बात नहीं – मैं कर दूंगा। लेकिन एक बात सोचता हूं इनके मरने से गढ़ी का ठाकुर सचेत हो सकता है फिर भी अब कोई तरीका नजर नहीं आता।”
मेरी यह बातें सिर्फ संकेतों से हो रही थी।
“अब तो मुझे छोड़ दो।” शमशेर ने कहा।
“छोड़ दूंगा...पहले मेरे सवाल का जवाब दे।”
“पूछो... क्या पूछना है ?”
“मेरे बाप को क्यों मारा गया। और वह किस प्रकार मारा ?”
“इसकी जिम्मेदारी भैरव तांत्रिक पर है। उसी ने यह काम किया था... मैं नहीं जानता कि उसने कैसा जादू चलाया। पहले साधुनाथ पागल हो गया फिर तांत्रिक ने मूठ चला दी।”
“लेकिन गढ़ी के ठाकुर ने ऐसा क्यों किया ?”
“मुझे कुछ विशेष नहीं मालूम।”
“जितना जानते हो वह बताओ।”
“उनकी बातों से ऐसा पता लगता है कि पुराने जमाने में गढ़ी के लोग बड़े शक्तिशाली लुटेरे थे... इनकी अपनी पूरी फ़ौज होती थी और ये लोग नादिरशाह की तरह किसी भी राज्य के शहर पर धावा बोल देते थे और लूटपाट कर काले पहाड़ के खौफनाक जंगल में गायब हो जाते थे... फिर इन्होने गढ़ी का निर्माण किया... यहाँ चारों तरफ पहले बियाबान जंगल रहा होगा ऐसा मेरा अनुमान है। जब ये लोग काफी संपन्न हो गये तो इन्होने अपना राज्य बना लिया... तब से ये राजाओं के नाम से प्रसिद्द हुए... बाहर के राजाओं ने बार-बार इन पर हमले किये पर इन्हें परास्त ना कर सके... फिर एक बार एक मुग़ल लुटेरे ने यहाँ कत्लेआम किया और गढ़ी पर कब्जा कर लिया... किन्तु कुछ रोज बाद वह चला गया... तब गढ़ी के वंशज कहीं जंगलों में जा छिपे... वे फिर से लौट आये। ऐसा लगता है उन्होंने कहीं धन छिपाया था, जिसकी तलाश में यह दुश्मनी ठानी थी।
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