RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
मैं तेजी के साथ पहाड़ी टीकरे पर चढ़ गया, अब बेताल भी मेरा सहायक नहीं रहा था, इस वक़्त मेरे दिमाग में एक ही बात गूँज रही थी, सिर्फ चन्द्रावती ही मेरी समस्या का हल कर सकती थी और इसी इरादे पर मैं गुफा के भीतर आया था।
हालांकि यह सोचना भयानक पाप था। चाहे जो भी हो वह औरत मेरी सहयोगिनी रही थी, और हमने ठाकुर खानदान से सामूहिक रूप से बदला लेने का प्रण किया था, परन्तु इस वक़्त मैं अँधा हो गया था, मुझे अपनी जान की फ़िक्र थी।
बेताल मुझे माफ़ नहीं करेगा।
बेताल मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेगा।
और उसने मुझे क्षमा भी कर दिया तो ठाकुर मुझे कुचल देगा। मैं अपने बाप की तरह मर जाऊंगा और मुझे कोई पूछने वाला भी नहीं होगा। क्या इस भयानक खतरे में कूदकर मैंने अच्छा किया था।
और शायद चन्द्रावती को इसका आभास हो गया था कि आज रात मुझे हर हालत में बलि चढ़ानी होगी, तब जब यहाँ इंसान प्राप्त करने की कोई सूरत नहीं मेरे पास एक ही चारा रह जायेगा। यह तो वह जान ही चुकी है कि मैं अब इंसान नहीं रहा, पशु हो गया हूं।
मेरे सामने अपने सहयोगी का भी कोई मूल्य नहीं।
बात सच थी – और मैं इस सच को खून से लिखने जा रहा था, इसीलिये मैं उसकी तलाश में इतना बावला हो गया था। मैं इधर-उधर चट्टानों पर दौड़ता रहा। आखिर मैं उस रस्ते पर चला जो जंगल से बाहर निकलने का मार्ग था।
आकाश पर चन्द्रमा उदय हो गया था... पूरा चाँद... उसके उजाले में दूर-दूर तक का दृश्य नजर आने लगा था। काफी देर बाद मैंने एक छाया को भागते देखा, कुछ पल के लिये वह स्वेत छाया नजर आई थी, फिर वृक्षों के झुरमुट में ओझल हो गई थी।
मैं पागलों के सामान उसी तरफ भाग खड़ा हुआ।
कुछ देर बाद ही वह मेरी निगाहों में आ गई। वह अब बेतहाशा भागने लगी थी, दो बार उसने मुड़कर भी देखा। मैं समझ गया कि उसे पीछा कि ये जाने का आभास हो गया है, मैंने रफ़्तार बढ़ा दी। झाड़ियों, झुरमुटों में आँख मिचौली चलती रही, फिर वह अचानक ओझल हो गई।
मैं रुक गया।
यहाँ हवा तेज़-तेज़ बह रही थी। वह कहीं भी नजर नहीं आ रही थी, मैं समझ गया कि वह कहीं छिप गई है, परन्तु कहाँ। मैं चारो तरफ निगाह दौडाने लगा, सहसा आहट मिली ठीक पीठ पीछे – और यदि मैं जरा भी विलम्ब करता तो एक चमकता खन्जर मेरे सीने के पार हो गया होता, परन्तु कोई चमकीली वस्तु देखते ही मैं फ़ौरन झुक गया था।
वह चन्द्रावती ही थी, जिसके हाथ में खन्जर चमक रहा था।
मैंने उसकी कलाई दबोच ली और दूसरे हाथ से बाल पकड़ कर उसे पटक दिया। वह बिफरी शेरनी की तरह हांफती हुई मुझसे लड़ने लगी, परन्तु मेरी शक्ति के आगे उसकी एक न चली और शीघ्र ही वह असहाय हो गई। मैंने खन्जर संभाल कर रखा और उसे लाद लिया। इसी स्थिति में धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया। उसके वस्त्र तार-तार हो चुके थे, पर अब उसकी परवाह किसे थी।
जब मैं उसे गुफा के सामने लाया तो काफी रात बीत चुकी थी।
|