RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
एक माह का राशन पानी लेकर हम दोनों यात्रा पर चल पड़े। हमारे साथ दो घोड़े और दो खच्चर थे। खच्चरों में सामान लदा हुआ था। अर्जुनदेव जंगलों और पहाड़ियों का अनुभवी था अतः उसने ऐसा सामान साथ लिया था, जो इस प्रकार की यात्रा के लिये अनिवार्य था।
हमारा चौथा पड़ाव मंगोल घाटी में पड़ा। अब हम आबादी पीछे छोड़ चुके थे। आगे कोई भी बस्ती या आदिवासी गांव नहीं था। मंगोल घाटी मीलो लम्बी थी। और मैं जानता था, यहाँ तक बेताल हमारी रक्षा करता आ रहा है।
हमारे साथ आठ बरस का कुमार था, जिसका इन दिनों हम पूरा ध्यान रखे थे। प्रारंभ में वह रोता रहता था पर बाद में उसने रोना बंद कर दिया था। फिर भी वह दो खतरनाक अजनबियों के बीच सहमा सहमा रहता था।
मुझसे तो वह हमेशा भयभीत रहता था। अर्जुनदेव से थोड़ा घुल मिल गया था इसलिये वह अर्जुनदेव के घोड़े पर ही यात्रा करता रहा था।
अब तक मेरी जटाएं और दाढ़ी काफी बढ़ आई थी। हमेशा की तरह मेरे शरीर पर मैले कपडे होते थे और न जाने मैं कबसे नहाया नहीं था। मेरे शरीर से दुर्गन्ध आती थी, परन्तु अर्जुनदेव इसका आदी हो गया था। मंगोल घाटी में विश्राम की रात मुझे फिर चन्द्रावती की याद आई और एक आवारा रूह को मैंने अपने आस-पास मंडराते देखा, परन्तु वह मुझे किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचा सकती थी।
मंगोल घाटी में वह मेरे साथ-साथ रही। कई बार उसने मेरे पास आने की कोशिश की परन्तु मैंने उसे दुत्कार दिया।
मैंने बेताल से मालूम किया कि सीमा पार करने में कोई संकट तो नहीं। उसका उत्तर मिल गया। वह सीमा तक मुझे छोड़ने आ रहा था और फिलहाल हम पर कोई संकट नहीं था।
मंगोल घाटी की सीमा तक पहुँचते-पहुँचते बेताल उदास हो गया।
और जब हम सीमा पर पहुंचे तो उसने मुझे विदा देते हुए कहा –” मैं यहीं आपका इंतज़ार करूंगा... मेरी शक्ति आपको खींचती रहेगी, मुझे दुःख है की मैं आगे नहीं जा सकता। अगर आप सुरक्षित लौटे तो आपकी सेवा में उपस्थित हूँगा। मैं आपको फिर याद दिलाऊंगा की आप भैरव तांत्रिक से बचकर रहें।”
“बेताल! विश्वास रखो, मैं जल्दी लौट आऊंगा और यदि मैंने उस धन का पता पा लिया तो मैं तुम्हें सर्वशक्तिमान बनाऊंगा उसके बाद हम इसी घाटी में साथ-साथ रहेंगे।”
बेताल घुटनों के बल झुक गया और उसने मुझे प्रणाम किया। हम आगे बढ़ गये। अब हम काले पहाड़ की सीमा में आ गये थे। उसके पत्थरों के स्याह रंग से आभास होता था कि वह सचमुच रहस्यमय प्रदेश है। बड़े दुर्गम रास्ते थे और जंगल की भयानक छाया चहुँ ओर फैली हुई थी।
नोकदार पहाड़ी के लिये आगे की यात्रा शुरू हो गई।
मेरा दोस्त घाटियों और पहाड़ियों पर पुल बनाना भी जानता था। और यह कार्य वह बड़ी जल्दी पूर्ण कर लेता था। वह इस प्रकार की यात्रा का दक्ष था। हम पहाड़ी के उपर चढ़ते रहे। कोई रास्ता न था अतः जिधर से मन करता उसी ओरे से बढ़ चलते। हमारे पास इस बात का हिसाब था कि वह कितने मील के दायरे में फैला है। इसका बोध उस नक़्शे में होता था।
पहाड़ी के उपर पहुँचते-पहुँचते शाम हो गई और रात की स्याह चादर तनने लगी। वृक्ष घना आवरण ओढने लगे, चट्टानों का काला रंग रात से मिलन करने लगा और धीरे-धीरे गहन अन्धकार छा गया। हमने खेमा गाड़ दिया और मोमबत्ती जला दी।
यहाँ पहुँचते-पहुँचते हम बुरी तरह थक गये थे। हमने तुरंत भोजन किया और विश्राम करने लगे। कुमार सिंहल यही नाम था तुरंत सो गया। हम लेटे-लेटे कुछ देर तक बात करते रहे, फिर तय हुआ कि चार-चार घंटे की नींद ली जाये - वह भी बारी-बारी। इस प्रकार दोनों का एक साथ बेसुध हो कर सो जाना खतरे से खाली नहीं था। फिर मैं सो गया और वह पहरा देता रहा, पर उस जगह बड़े-बड़े मच्छर मंडरा रहे थे, जिनके कारण नींद नहीं आती थी, फिर भी मैं मच्छरों के काटने की चिंता किये बिना सो गया, फिर मैं पहरे के लिये जागा।
काले पहाड़ की रात बड़ी डरावनी थी। बाहर निकल कर टहलने से दिल में भय बैठता था। कभी-कभी ऐसा लगता जैसे असंख्य अजगर सांस ले रहे हो। जैसे-तैसे रात कटी– पर सवेरे तक मच्छरों के काटने के चिन्ह सारे बदन पर छा गये थे।
अपने मार्ग पर चिन्ह अंकित करते हुए हम इसी प्रकार आगे बढ़ते रहे और पांच रोज बाद कुमार सिंहल मलेरिया का शिकार बन गया। अर्जुनदेव को भी हल्का-हल्का बुखार चढ़ा था पर वह किसी तरह उसका मुकाबला करने में समर्थ था।
वह अपने साथ छोटी-मोटी दवाइयां भी लाया था। उसने कुमार को दवाई पिलाई– बुखार थोड़ी देर के लिये उतर गया पर फिर चढ़ गया... और इस प्रकार वह बुखार उतरता और चढ़ता रहा। उसकी हालत पतली होती गई।
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