Horror Sex Kahani अगिया बेताल
10-26-2020, 12:55 PM,
#73
RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
शीघ्र हम आगे की यात्रा के लिये तैयार हो गये। अब हम खाली हाथ पैदल आगे बढ़ रहे थे। भय की छाया में दुर्गम पहाड़ियों का रास्ता तय करते हुए उस दिशा में बढ़ रहे थे जहाँ हमने रात वह मीनार देखी थी। हम एक पहाड़ी की चोटी पर जा पहुंचे। यहाँ पहुँचते-पहुँचते शाम का धुंधलका छा चुका था और बियाबान घाटी मुँह फाड़े खड़ी थी।

सामने दूसरी पहाड़ी थी। नीचे वह छत्र स्पष्ट हो रहा था, जिसे हमने देखा था। परन्तु वहां तक पहुंचना अत्यंत कठिन कार्य था। वह भी ऐसे समय जब अँधेरा सर पर सवार था। ज़रा सा पांव फिसलने पर सैकड़ो फीट नीचे खाई में पहुंच सकते थे, जहां हमारी हड्डियों का भी नामोनिशान नहीं मिलता। फिर भी मरता क्या न करता। हम जल्दी से जल्दी मीनार में पहुच जाना चाहते थे।

अर्जुनदेव के पास रेशमी डोरी का एक गुच्छा था, जिसे वह हर समय बेल्ट में लटकाए रहता था। यह संयोग ही था कि उस वक़्त भी यह डोरी उसके पास ही थी उसने तुरंत निर्णय किया। एक नजर छत्र तक पहुँचने की दूरी का अनुमान लगाया और फिर रेशमी डोरी खोल दी।

उसके लिये तो ऐसे खेल नए नहीं थे।

रस्सी को एक वृक्ष से बाँधकर उसने नीचे डाल दिया। छत्र से लगभग पंद्रह फीट ऊपर तक रस्सी का छोर पहुँच गया। उसने नजरों से ही दूरी को नापा और बिना आराम किये मेरी तरफ मुड़कर देखा।

“पहले मैं उतर रहा हूं, इससे पहले कि रात का काला साया और गहरा हो हमें मीनार के तर पहुँच जाना चाहिए, वहां से कोई न कोई रास्ता अवश्य मिल जाएगा। क्या तुम उतर सकोगे?”

“क्यों नहीं! आखिर मुझे भी तो जिंदगी प्यारी है।”

“ठीक है, मैं नीचे से संकेत करूंगा – फिर तुम तुरंत नीचे उतर जाना।”

अर्जुनदेव तैयार हुआ और रस्सी थामकर किसी बन्दर की तरह नीचे उतरने लगा।मैं उसे उतरता हुआ देखता रहा। कुछ देर बाद ही वह मेरी नज़रों से ओझल होने लगा। अँधेरा शनैः शनैः बढ़ता जा रहा था। कुछ क्षण बीते... फिर मिनट... उसके बाद रस्सी एकाएक ढीली हो गई। मैं समझ गया कि वह छत्र पर उतर गया है। उसकी धीमी आवाज मेरे कानो में पड़ी – उसने मुझे उतर आने के लिये कहा था।

और फिर मैं नीचे उतरने लगा। उत रते समय मैंने अपने रक्षक बेताल को याद किया, फिर चट्टानों पर पांव जमा-जमा कर नीचे उतरने लगा। धीरे-धीरे मैं छत्र के निकट होता जा रहा था।

कुछ देर बाद मैं एक चट्टान पर पांव जमा कर सांस लेने के लिये रुका।

मैंने मुड़कर नीचे देखा। छत्र साफ़ नजर आ रहा था और उस पर मेरा दोस्त अर्जुनदेव खड़ा था जो दोनों हाथ हिला रहा था। अभी मैं उसे देख ही रहा था की अचानक मैंने उसके पीछे एक साया उभरता देखा। साये के हाथ में कोई वस्तु चमक रही थी।

“अर्जुनदेव... तुम्हारे...पीछे....।” मैं जोर से चीख पड़ा।

अर्जुनदेव ने कुछ न समझकर पूछा।

“क्या कह रहे हो...?”

“तुम्हारे पीछे खतरा... बचो...।”

परन्तु अर्जुनदेव को पलटने का मौक़ा नहीं मिला, अगले पल उसके कंठ से दर्दनाक चीख गूंजी। मैंने नेत्र एक दम मूंद लिये।

“आओ...आओ......।” सहसा नीचे से अट्टहास सुनाई पड़ा – “अब तुम्हारी बारी है। बचकर कहाँ जाओगे, मैं तेरा खात्मा कर दूंगा... तु भैरव के हाथों से बच नहीं सकता।”

रेशमी डोरी के कारण मेरे हाथ छिल रहे थे और अब मैं ऊपर जाना चाह कर भी नहीं चढ़ सकता था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कुछ ही देर में मैं नीचे गिर पडूंगा, दुश्मन नीचे मेरी प्रतीक्षा कर रहा था।

कुछ पल में ही मैंने निर्णय ले लिया। जब मरना ही है तो भैरव तांत्रिक से डटकर मुकाबला क्यों ना किया जाए। क्या मैं इतना कायर हूं जो उससे डरकर ऊपर जाऊं.... जहाँ काला जादू मुझे ख़त्म कर देगा। मेरे शरीर में बल भर आया और मैं तेजी के साथ नीचे उतरता हुआ छत्र पर जा पहुंचा।

तुरंत ही संभलकर खडा हो गया।

कुछ फ़ुट के फासले पर श्वेत दाढ़ी वाला खौफनाक शक्ल का भैरव तांत्रिक नंग-धड़ंग खड़ा था। उसके हाथ में छुरा चमक रहा था। उसने छुरे को सीधा किया और कह-कहा लगाता हुआ मुझ पर पलट पड़ा। मैं एकदम कलाबाजी खा गया और भैरव सीधा चट्टान से जा भिड़ा। फिर मैंने एक लम्बी कूद लगाई और उसके पलट जाने से पहले ही उसे पीठ पीछे से जकड लिया।

मैंने एक हाथ से उसकी छुरे वाली कलाई ऊपर उठा दी और दूसरा हाथ उसकी मोटी गर्दन में फसा दिया। इसी स्थिति में हम एक दूसरे पर जोर आजमाने लगे।

अचानक उसने दूसरे हाथ से मेरे बाल पकड़ लिये और मुझ पर धोबी पाट दांव दे मारा। भैरव की शक्ति का पहली बार मुझे अंदाजा हुआ। मैं चीखकर गिरा और छत्र पर रपटता चला गया। मेरी टाँगे छत्र से बाहर निकलकर हवा में झूमने लगी। उसने एक ठोकर मेरे मुँह पर मारी... मैं और पीछे खिसक गया। मेरे हाथ छत्र पर फिसल रहे थे, पकड़ने का कोई स्थान नहीं था और वह मुझ पर बार-बार वार किये जा रहा था। कुछ क्षण में ही मैं छत्र पर लटक रहा था।

अब सिर्फ हाथों की पकड़ शेष रह गई थी– जरा सा हाथ फिसला नहीं कि मेरी हड्डियाँ भी बिखर जायेंगी। नीचे गहन अन्धकार व्याप्त था। मौत के मुह में पहुंचने के बाद मेरी साँसे तेज़-तेज़ चलने लगी।

अचानक मैंने अर्जुनदेव को धीमे-धीमे हरकत करते देखा, वह भयंकर पीड़ा के बीच भी होश में आने का प्रयास कर रहा था। अब तक मैं समझा था कि वह मर चुका है...पर उसमें शायद प्राण बाकी थे।
और मैं मन ही मन प्रार्थना कर रहा था कि उसे कुछ पल के लिये जिंदगी दे दे।

आसमान पर चाँद उदय हो गया था। भैरव उस चांदनी में बड़ा भयंकर लग रहा था। उसने मुझे दयनीय स्थिति में देख ठहाका लगाया और छुरा चमकाया।

“ले! अब मैं तेरी गर्दन काटने जा रहा हूं। बुला ले अपने बेताल को।”

उसी पल न जाने कहाँ से अर्जुनदेव में बिजली भर गई। इससे पहले कि भैरव मेरी गर्दन काटता – अर्जुनदेव कांपती टांगो पर खड़ा हुआ और झोंक में चलता हुआ तेजी के साथ भैरव से टकराया। उसने भैरव को बाहों में भर लिया था– उसके बाद दोनों मेरे सिर के उपर से तैरते चले गये।

भैरव की भयाक्रांत चीख गूंजी और फिर डूबती चली गई।
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल - by desiaks - 10-26-2020, 12:55 PM

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