Horror Sex Kahani अगिया बेताल
10-26-2020, 12:56 PM,
#76
RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
मैंने ठाकुर की आंख बचाकर अर्जुनदेव के सीने से चिपका वह नक्शा उतार लिया था और उसे छिपा दिया था। ठाकुर ने वहां एक मीनार में अपना पड़ाव डाल रखा था।

दिन के उजाले में उसने इस उजड़ चुके पुराने खंडहर की सैर करवाई और उसका इतिहास मुझे सुनाता रहा।

उस शहर का नाम पहले सिंहल नगर था और इस शहर के चार दरवाजे थे... चारों दरवाजे मीनारों के रूप में थे और यह चारों मजबूत ऊंची चारदीवारी से जुड़े थे… पूरा शहर खतरनाक जंगल और पर्वतों से घिरा था। बाहर निकलने के मार्ग गुप्त हुआ करते थे। सिंहल नगर वास्तव में पहले डाकुओं का गढ़ था फिर शहर की आबादी बढ़ी तो वहां राजा बन गया और वह बकायदा एक राज्य बन गया।

सिंहल नगर के राजा के पास जब बेशुमार दौलत हो गई थी तो उसे इस बात का खतरा हुआ कि कहीं उस नगर पर कोई हमला ना कर दे और सारा धन ना लूट ले जाये इसीलिये उसने बकायदा राज्य व्यवस्था का मार्ग अपनाया।

और उस दौर के मशहूर तांत्रिक कृपाल भवानी को यह कार्य सौंपा गया। कृपाल भवानी राजा का सबसे विश्वासपात्र आदमी था। खजाने को सुरक्षित छिपाने की जिम्मेदारी उस पर सौंप दी गई। उस काल में सूरजगढ़ बसा और सिंहल नगर के लोग सूरजगढ़ में बस गये। उसके बाद बाकायदा नया राज्य बना... जिसके शासक उसी देश के लोग रहे और सिंहल नगर का अस्तित्व काला पहाड़ के रूप में बदल गया। काले पहाड़ के बारे में भयानक किस्म की बातें प्रचलित हो गई, ताकि उस तरफ आने का कोई साहस न कर सके और खजाने का नक्शा पीढी-दर-पीढी लोगों के हाथों में बदलता रहा।

हर शासक मरते समय शासक को यह बता कर मरता था कि सिंहल नगर के खजाने का दुरुपयोग न करें और उसमें से धन निकालने तभी जाये, जब धन की भारी कमी राज्य में पड़ जाये। साथ ही यह उपदेश देता था कि कृपाल भवानी के किसी प्रतिनिधि तांत्रिक को साथ लेकर जाये। हर युग में कृपाल भवानी का प्रतिनिधि तांत्रिक रहा, जो काले पहाड़ पर रहता था और उसका काम सिर्फ खज़ाने की रक्षा करना होता था का। क्योंकि यह जानकारी उसे भी नहीं होती थी कि खजाना कहां रखा है - वह बस नक्शे को पढ़ सकता था। इस प्रकार दोनों के मिले बिना उस जगह तक कोई नहीं पहुंच सकता था। कृपाल भवानी के तंत्र में यह विशेषता थी कि एक बार जो रास्ता नक्शे में रहता है - वह उस हालत में बदल जाता है जब उस रास्ते का उपयोग करके कोई राज परिवार का आदमी खज़ाने तक पहुंच जाये… दूसरी बार वह उस मार्ग से नहीं जा सकता - यही नक्शे का जादू था। इसलिये एक बार मार्ग मालूम होने के बाद भी दोबारा फिर खज़ाने तक पहुंचना असंभव होता था।”

“इसका मतलब यह हुआ कि इस बार हम जिस रास्ते से वहां तक पहुंचेंगे, अगली बार वह रास्ता बंद हो जायेगा।”

“हाँ!” ठाकुर ने दीर्घ सांस खींची - “और मैं यह व्यवस्था ख़त्म कर देना चाहता हूँ, क्योंकि अब राजा महराजाओं का युग ख़त्म हो गया। आज हम गढ़ी के ठाकुर हैं, हो सकता है भविष्य में न रहें। युग बदलते देर नहीं लगती… और वह समय भी आ सकता है, जब काला पहाड़ सरकारी सम्पति बन जाये। इसलिये मैं इसे अपने अधिकार में कर लेना चाहता हूँ।”

“क्या तुम पहले कभी वहां पहुंचे हो?”

“नहीं - मुझे इसकी आवश्यकता नहीं पड़ी, क्योंकि मुझ पर कोई संकट नहीं आया। मैं पहली और आखिरी बार वहां जाना चाहता हूँ। मेरी समझ में नहीं आता कि तुमने किस विश्वास पर वहां तक पहुँचने का दावा किया था।”

“तुम यह क्यों भूल गये कि मैं तांत्रिक भी हूँ और मेरा बाप भी इसी चक्कर में मारा गया।”

“क्या तुम लखनपाल से मिले हो?”

“नहीं...!”

“फिर तुम्हारे पास वह नक्शा कहाँ से आया। साधू नाथ के पास तो था नहीं।”

“तुम इस फेर में मत पड़ो… अब हमें काम शुरू कर देना चाहिए। पहले मैं वह मीनार देखना चाहता हूँ।”

“चलो।”

हम लोग चल पड़े।

पहले मैंने चारों मीनारें देखी और उनकी सीढियाँ गिनता रहा। नक़्शे के अनुसार मीनारों में 20...40….45… 54… सीढ़ियों का क्रम होना चाहिए था परंतु यह सब कुछ उनमें नहीं था।

सिर्फ एक मीनार, जो सबसे छोटा या 50 सीढ़ियों वाला था शेष क्रमशः 120... 80… और 90 सीढ़ियों वाले थे। यह बात मेरे पल्ले नहीं पड़ी। और पहली ही बार निराशा हाथ आई मीनारों की छानबीन के बाद हम लौट आये। यह बात समझ में नहीं आई की यह गलत आंकड़ा कैसे निकला। क्या नक्शा गलत पढ़ा गया था ?

काफी रात गए मैं माथा पच्ची करता रहा, फिर गणित लड़ाता रहा… फिर रात को अचानक एक सपना नजर आया। सपने में कोई छाया नजर आई थी, जिसने मुझे एक दोहा पढ़कर सुनाया।

जितने हैं मीनार, उतने खड़े हैं बीमार
बीमारों को नीचे रख, देख तमाशा यार।
मरने वाले बीमारों की चिता जला दे तू
शेष बचेगा जो, वैसा ही सबक पढ़ा दे यार।।

कुछ इसी प्रकार का दोहा था, जो सवेरे आंख खुलने पर भी मेरे मन में कुलबुलाता रहा। मुझे ऐसा लगा जैसे सपने में कोई मेरी सहायता के लिये आया था। मैंने तुरंत वह पंक्तियां नोट कर ली। उसके बाद उन पंक्तियों पर गौर करने लगा।

जितने हो मीनार उतने खड़े हैं बीमार।
मीनार चार है तो बीमार भी चार।
बीमारों को नीचे रख, देख तमाशा यार।

इसका अर्थ यह निकल रहा था कि चार की संख्या को नीचे रख दो, पर किसके नीचे। ये बात पल्ले नहीं पड़ रही थी। फिर अचानक खयाल आया कि सीढ़ियों की संख्या नोट की जाये और चार की संख्या प्रत्येक के नीचे रखी जाए, देखें क्या नतीजा निकलता है।
मैंने ऐसा ही किया।

120/ 4, 80/4, 90/4, 54/ 4

अब मैंने गणित लगाया। चार से इन संख्या को भाग दिया। पहले भाग देने पर 30 और 20…. तीसरी संख्या में पूरा भाग नहीं कटा और ना चौथी संख्या में। मैं सिर्फ 30 और 20 पर गौर करने लगा। फिर सहसा चौंक पड़ा। बीस की संख्या अस्सी में आ जाती थी और नक्शे के हिसाब से मुझे संख्या की आवश्यकता थी।

मेरा दिमाग तेजी के साथ चलने लगा।

मैंने अस्सी को अलग हटा कर रख दिया। उसके बाद अगली पंक्तियों पर गौर किया - मरने वाले बीमारियों की चिता जला दे तू।
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल - by desiaks - 10-26-2020, 12:56 PM

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