RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
किसी आदमखोर भेड़िए की तरह मैं एक मासूम बच्चे का अपहरण कर लाया था और अपने क्रूर अपराध की पुनरावृत्ति कर दी। चांद की मुर्दा चांदनी को बलि देकर उसे और भी भयानक बना दिया और बेताल की कामना पूरी कर दी। अब मुझे ऐसा लग रहा था जैसे बेताल मेरा गुलाम नहीं, मैं उसका गुलाम हूं, मैं उसे सर्वशक्तिमान बनाने के लिये कुकृत्य कर रहा हूं।
मैं अपने आप से दूर भागने का प्रयास कर रहा था। निर्दोष बच्चे ने मेरा क्या बिगाड़ा था। उसकी हौलनाक चीख मेरे कलेजे में बैठी हुई थी। अपने झोपड़े तक पहुंचते पहुंचते मैं परेशान हो गया।
मुझे फिर से विनीता याद आ गई।
ना जाने क्यों मैं उसके प्रति अन्याय नहीं करना चाहता था। वह रात की तन्हाई, अगले दिन मैं बेसुध सा अपने झोपड़े में पड़ा रहा। मुझे भूख नहीं लग रही थी। शाम को मुझे कुछ सुध आई और मैं झोपड़े से बाहर निकल गया।आज मैं जंगलों के रास्ते चल पड़ा, सारी रात में पैदल यात्रा करता रहा फिर उस बस्ती में पहुंचा, जहां विनीता मुझे मिली थी। मुझे मालूम था कि वह सेठ निरंजन दास की बेटी है… सेठ निरंजन दास जमींदार थे। यूँ तो निरंजन दास किसी बड़े शहर में रहते थे परंतु यहां उनकी जन्मभूमि थी। मुझे यह नहीं मालूम था कि वह कहां रहते हैं।
मैंने सोचा यदि मैं बस्ती में गया तो बस्ती वाले मुझे पहचान जाएंगे, यूं मैं पिछली रात भी इसी बस्ती में आया था और यहीं से बच्चे का हरण किया था। वह बच्चा लगभग छः वर्ष का था और आंगन में खेल रहा था। मैंने उसे लालच देकर अपने पास बुला लिया। उस वक्त अंधेरा हो चुका था, परंतु रात अधिक नहीं बी ती थी और कुछ समय के लिये बच्चे के पास जो बूढा व्यक्ति बैठा आंगन में हवाखोरी कर रहा था,वह मकान के भीतर चला गया था।
तभी मुझे अवसर मिल गया और उसके बाद मैंने अपना काम कर दिखाया।
मैंने एक राहगीर से सेठ निरंजन दास के बारे में पूछा। वह अनजान था, फिर मैंने दो - चार स्थानीय आदमियों से पूछताछ की। शीघ्र ही मुझे मालूम हो गया कि निरंजन दास कहां ठहरे हुए हैं। उसका यहां पुराना मकान था। मैं अपने आपको लोगों की निगाह से बचाता हुआ उस तरफ चल पड़ा। जब मैं उक्त पते पर पहुंचा, तो बुरी तरह चौक पड़ा। वही मकान था, जिस के आंगन में मैंने बच्चे का अपहरण किया था। मेरे मन में शंका उठी और दिल जोर जोर से धड़कने लगा। मेरे कदम ठिठक गए।
मकान के प्रांगण में मुझे काफी लोग नजर आए, जिसके चेहरे लटके हुए थे और वे विनीता तथा उस बूढ़े व्यक्ति के इर्द-गिर्द जमा थे… विनीता अपना चेहरा हाथों में छिपाए थी।
वहां से निकल रहे एक आदमी से मैंने पूछा -
“क्यों भाई -- यहां क्या हुआ है ?”
“बच्चा खो गया है।” उसने बताया।
“किसका बच्चा।”
“सेठ निरंजन दास की लड़की विनीता का…. बेचारे बड़े धर्मात्मा लोग हैं… ईश्वर करे उनका बच्चा जल्दी मिल जाए… विनीता जी की जिंदगी का एक ही सहारा है। अगर बच्चे को कुछ हो गया तो….।”
“तो….।” मेरा स्वर अटक गया।”
“तो वे अपनी जान दे देगी…।”
“नहीं….।”
परंतु वह व्यक्ति आगे बढ़ चुका था। मेरा सिर चकराने लगा - क्या मैंने क्या कर दिया…. मैंने यह पाप क्यों किया…. कमीने बेताल…. यह सब तेरे कारण हुआ….. क्या मैं इन गुनाहों का प्रायश्चित कर पाऊंगा। जिस विनीता की मन ही मन पूजा की थी, जिसे देवी मान लिया था -- मैंने उसका दामन बीरान कर दिया। अब मेरे अंदर इतना साहस नहीं था कि मैं आगे बढ़ सकूं।
मैं उलटे पैरों वापिस लौट पड़ा। मेरे पांव लड़खड़ा रहे थे और आंखों के आगे अंधेरा छाता जा रहा था। मुझे अपनी दुनिया अंधेरी नजर आ रही थी।
“नहीं चाहिए मुझे यह पांव….।” मैं बड़बड़ा रहा था - ”अब मुझे अपने आप को कानून के हवाले कर देना चाहिए”
ना जाने कब मैं अपने झोपड़े में पहुंचा और बिस्तरे पर गिर पड़ा। फिर मैं तीन दिन तक बेसुध पड़ा रहा, न तो मैंने बेताल को याद किया और ना बाहर निकलने का प्रयास किया।
अचानक तीसरी रात बेताल स्वयं उपस्थित हुआ।
“क्या बात है - तुम क्यों आए… मैंने तुम्हें याद नहीं किया।”
“मैं आपकी भावनाओं को समझता हूं मेरे आका।”
“आका के बच्चे… तूने मुझसे इतना बड़ा पाप करवा दिया।”
“यह कोई पाप नहीं…. इंसान की जिंदगी का मूल्य नहीं आका…।”
“चला जा बेताल… यहां से चला जा….।”
“मैं आपकी रक्षा करने के लिये आया हूं आका - अपने प्राणों की कीमत समझिए…. मैं हरगिज़ ऐसा नहीं होने दूंगा कि कोई आपके प्राण हर ले….।”
“मेरे प्राण… कौन हर रहा है मेरे प्राण।”
“जरा बाहर निकलिये फिर मैं आपको तमाशा दिखाता हूं। आप पर मूठ छोड़ी गई है मेरे आका…।”
“मूठ… किसने छोड़ी मूठ….। “
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