RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
मैं मंदिर में ही पड़ा रहता, मेरी सेवा भक्तगण किया करते, वे ही मुझे नहलाते, धुलाते और जोगिया वस्त्र पहनाते। मैं जोगी हो गया था, परंतु चल फिर नहीं सकता था। मैं वही गीता और रामायण पढ़ा करता। पूरे एक सप्ताह तक मैंने व्रत रखा… फिर हल्की सब्जियों का सेवन करने लगा। मेरी वह शक्ति नष्ट हो चुकी थी और मैं दिन प्रतिदिन कमजोर पड़ता जा रहा था। विनीता मेरे लिये बैसाखियां ले आई थी, अब उस के सहारे चलने-फिरने का प्रयास करने लगा। धीरे-धीरे मैं बेहद कमजोरी के बाद भी सीढ़ियां उतरने और चढ़ने में सफल होने लगा।
शाकाहारी भोजन मुझे अच्छा नहीं लगता था, बार-बार मांस खाने को मन करता और कभी-कभी मैं भूखा होने के कारण विचलित हो उठता परंतु मैंने अपने आप को संभाले रखा। मंदिर से बाहर निकलने का सौभाग्य मुझे प्राप्त नहीं हो पा रहा था।
एक दिन शाम ढलते वक्त में धूप बत्तियां जलाकर रामायण का पाठ कर रहा था। तभी सेठ निरंजन दास मंदिर में आए और मेरे कदमों में गिर पड़े। उसके चेहरे से हवाइयान उड़ रही थी। आंखों में पानी उमड़ रहा था और हालत अस्त-व्यस्त थी।
“महाराज मुझे बचा लीजिए…. मेरी बेटी को बचा लीजिए…. मुझ पर घोर संकट आ गया है महाराज - मेरी इकलौती बेटी।”
“क्या हुआ आपकी बेटी को….।”
“महाराज क्या बताऊं - तीन रोज से उस पर दौरे पड़ रहे हैं - और न जाने क्या-क्या बकती रहती है - तीन रोज में ही आधी हो गई - रात को घर से निकल भागती है - वह पागल हो जाएगी महाराज -।”
मुझे याद आया कि तीन रोज से विनीता मंदिर नहीं आई।
“लोग तरह तरह की बातें करने लगे हैं महाराज - मगर मैं जानता हूं मेरी बेटी चरित्रहीन नहीं है - किसी ने उस पर जादू-टोना कर दिया है। आप ही कुछ कीजिए महाराज - मेरी बेटी की रक्षा करो स्वामी जी।”
“आप उसे यहां ले आयें।”
“अच्छा महाराज मैं अभी लेकर आता हूं।”
“आधे घंटे बाद ही निरंजन दास विनीता को ले आए। मंदिर की चौखट पर आते ही विनीता बेहोश हो गई। उस वक्त उसे चार आदमी थामे थे और उसकी हालत एक पागल स्त्री के समान थी, परंतु मंदिर में आते ही वह अकड़ सी गई। मैंने उसे पूजाग्रह में लिटाया और चेहरे पर गंगाजल का छिड़काव किया। कुछ समय उपरांत ही उसे होश आ गया। अब वह सामान्य स्थिति में थी। अपने आप को मंदिर के पूजागृह में पाकर उसने बेहद आश्चर्य प्रकट किया। मैंने उससे कुछ प्रश्न पूछे - जिनका जवाब उसने सामान्य रूप से दिया। उसे उस समय की बातें बिल्कुल याद नहीं थी, जब वह पागलपन की स्थिति में होती थी। निरंजन दास ने बताया कि कभी-कभी वह समान नहीं रहती है, फिर दौरा पड़ता है और उसके बाद वह उठ खड़ी होती है, दौरा पड़ने के बाद वह अपनी वास्तविकता भूल जाती है।
अब यह ठीक है, आप इसे ले जाइए। यदि दौरा पड़े तो मुझे बताएं।
विनीता प्रसाद ग्रहण करके चली गई, मुझे उसके जाने के बाद ध्यान आया कि बेताल ने मुझे विनीता के बारे में चेतावनी दी थी। तो क्या विनीता का जीवन संकट में पड़ गया है। वह किसी प्रकार का नाटक नहीं कर सकती थी।
आधी रात के वक्त वे लोग पुनः आ गए। मैं तब तक जाग रहा था। निरंजन दास ने बताया कि घर जाते ही उसे फिर से दौरा पड़ गया। मंदिर के पूजा गृह में आने के बाद यह हुआ एक बार फिर बेहोश हुई और जब होश में आई तो सामान्य थी, मेरी समझ में कुछ भी नहीं आया कि उसे हो क्या रहा है।
मुझे एक ही बात सुझाई दी।
“निरंजन दास जी, आप विनीता को यही छोड़ दे - मुझे ऐसा लगता है कोई दुष्ट आत्मा इसका पीछा कर रही है। आप भी यहीं रुक जाइए। विनीता पूजागृह में ही रहेगी। यहां कोई दुष्टात्मा नहीं आएगी।”
“लेकिन कब तक ?”
“जब तक दुष्टात्मा विनीता का पीछा नहीं छोड़ देती।”
“ठीक है महाराज ! जैसा आप हुकुम करें।” निरंजन दास ने मुरझाए स्वर में कहा - “मेरी बेटी को ठीक कर दीजिए, अन्यथा मैं मुंह दिखाने योग्य नहीं रहूंगा। न जाने भगवान मुझसे क्यों रुठ गए हैं ?”
“आप फिक्र न कीजिए।”
विनीता पूजा कक्ष में ही रह गई। निरंजन दास बाहर के कमरे में लेट गए। प्रारंभ में तो मैं विनीता के रुप पर ही गया था परंतु अब मैं अपने को काफी हल्का महसूस करता था और मेरे भीतर किसी नारी के रूप की कशिश समाप्त होती जा रही थी, मेरा मन सांसारिक बातों से दूर भगवान की उपासना में लगा रहता। विनीता के प्रति मेरे मन में जो भावना पहले उत्पन्न हुई थी, वह अब धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही थी, परंतु पूजा कक्ष मैं उसे अपने इतने समीप देख एक बार फिर मन डोल उठा। उसकी मदभरी आंखों में ना जाने कैसा नशा था जो बड़े से बड़े शरीर योगी धर्मात्मा का मन डोल जाए।
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