RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“हौसले की कोई कमी नहीं, आचार्य जी, विचलित मन को एक आसरे की जरूरत थी जो हासिल हो गया । दिशाज्ञान की जरूरत थी जो अर्जित कर लिया, आप जैसे प्रतापी पुरुष के आशीर्वाद की जरूरत थी जो प्राप्त हो गया । मैं अभी दादर का रुख करता हूं और डीसीपी नितिन पाटिल के आफिस में जाकर अपनी स्वीकृति दर्ज कराता हूं ।”
“हम दिन प्रतिदिन तुम्हारी सफलता के लिये प्रार्थना करेंगे ।”
“अहोभाग्य, आचार्य जी । प्रणाम !”
“जीते रहो, बेटा ! सफलता तुम्हारे चरण चूमे ।”
***
नीलेश गोखले को कोनाकोना आइलैंड पर बारह दिन हो चुके थे ।
उसकी मुलाजमत - जो कि बिना दिक्कत उसे पहले ही दिन हासिल हो गयी थी - उस बार में थी जो कि कोंसिका क्लब के नाम से जाना जाता था । बार की सारी रौनक शाम को ही होती थी अलबत्ता खुल वो ग्यारह बजे जाता था जबकि इक्का दुक्का टूरिस्ट की आवाजाही वहां चल पड़ती थी ।
उस वक्त दोपहरबाद के चार बजे थे जबकि बार में बियर चुसकने मुश्किल से चार पांच लोग मौजूद थे ।
उसको वहां बतौर बाउंसर रखा गया था लेकिन वहां वो उसका इकलौता काम नहीं था, बारमैन गोपाल पुजारा - जो कि बार का मालिक भी था - की गैरहाजिरी में - या रश आवर्स में उसकीमौजूदगी में - उसे बारमैन का रोल अदा करना पड़ता था जिसमें बार सर्विस के अलावा भीतर से धुल कर आये गीले गिलास सुखाने, चमकाने की ड्यूटी भी शामिल थी; पढ़ा लिखा था, इसलिये कभी चिट क्लर्क को रिलीफ की जरूरत हो तो उसकी जगह भी बैठना पड़ता था ।
मुम्बई के पिकाडली बार की अपनी डेली वेजिज वाली जिस एम्पालायमेंट को वो निरंतर कोसता था, वो ही अब उसके काम आयी थी और उसकी मौजूदा मुलाजमत की बुनियाद बनी थी । दूसरे, पुजारा ने उसे खुद बताया था कि उसकी ‘पिकाडली’ से बहुत व्यापक पड़ताल करवाई भी जा चुकी थी ।
अपना घर का पता वहां उसने खार का आचार्य अत्रे के सेवा आश्रम का बताया था जहां कि आचार्य जी के उसके पिता के जीवन में पिता से दोस्ती के मुलाहजे में उसे रहने को एक कमरा स्थायी रूप से मिला हुआ था जिसके बदले में वो आश्रम के कई छिटपुट काम बतौर वालंटियर करता था । उसने पहले से सुनिश्चित किया हुआ था कि वहां से उसकी बाबत कोई पड़ताल होती तो माकूल जवाब मिलता ।
खामोशी और शांति की बार की उस घड़ी के माहौल में तब वो शीशे के प्रवेश द्वार के पीछे खड़ा था और बाहर सड़क पर झांक रहा था जहां कि उसे बावर्दी हवलदार जगन खत्री अलसाये भाव से कभी एक कभी दूसरा हाथ हिलाता सड़क पर ट्रैफिक को डायरेक्ट करता दिखाई दे रहा था । उसकी अपनी ड्यूटी में कितनी तवज्जो थी, कितनी जिम्मेदारी थी वो इसी से जाहिर था कि उसके होंठों में सुलगता सिग्रेट लगा हुआ था ।
अपनी आइलैंड की बाहर दिन की संक्षिप्त हाजिरी में ही नीलेश इस हकीकत से वाकिफ हो चुका था कि पुलिस को वो बावर्दी हवलदार एक छोटे लैवल का बुकी भी था - मटके और सट्टे के दांव भी कलैक्ट करता था, नीलेश को मालूम हुआ था कि पांच साल में दो बार सस्पेंड हो चुका था लेकिन विभागीय कार्यवाही में दोनों बार उसके खिलाफ कुछ साबित नहीं हुआ था - दोनों बार खुद एसएचओ अनिल महाबोले उसकी कर्मठता और कर्तव्यपरायणता का जामिन बना था, नतीजतन हवलदार जगन खत्री का सस्पेंशन वापिस हो गया था और वो उसी ड्यूटी पर बहाल कर दिया गया था जो उसके बुकी वाले साइड रोल के लिये बहुत सुविधाजनक थी ।
उसके द्वारा तब तक जमा की जानकारी मुम्बई पुलिस हैडक्वार्टर के टॉप ब्रास तक पहुंच भी चुकी थी लेकिन - वो खुद ही जानता था कि - वो अभी किसी एक्शन के लिये काफी नहीं थी । बहरहाल बॉल का लुढ़कना शुरू हो चुका था और जाहिर था कि देर सबेर उसने रफ्तार भी पकड़नी थी ।
उसकी निगाह हवलदार जगन खत्री पर से उचटी तो पैन होती जाकर सड़क के पार की विशाल, भव्य, विक्टोरियन स्टाइल में अंग्रेज के जमाने की बनी - आखिर वो आइलैंड भी तो एक ब्रिटिश गवर्नर की खोज था - एक विशाल दोमंजिला इमारत पर पड़ी जो कि आइलैंड का सबसे बड़ा और इकलौता स्टार रेटिंग वाला होटल था । स्थापना के वक्त से होटल का नाम ड्यूक्स था लेकिन हाल ही में उसे पणजी की इम्पीरियल रिजार्ट्स नाम की एक कम्पनी ने खरीदा था और सौ साल पुराने उस नाम को बदलकर ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ रख दिया था ।
फ्रांसिस मैग्नारो इम्पीरियल रिजार्ट्स नामक कम्पनी का मैनेजिंग पार्टनर बताया जाता था । उस होटल की पहली मंजिल के लैफ्ट विंग में उसका आफिस था जहां वो हमेशा पाया जाता था अलबत्ता रहता वो झील के करीब के पहाड़ी इलाके के एक कॉटेज में था । होटल में उसका ‘ब्लू डायमंड’ नाम का अपना बार था जो शाम सात बजे के बाद कैब्रे जायंट में तब्दील हो जाता था और जब तक कस्टमर्स चाहें - कई बार तो सवेरे के चार बजे जाते थे - चलता था । जानकार कहते थे कि ज्यों ज्यों रात ढ़लती जाती थी, कैब्रे बोल्ड होता जाता था, लिहाजा आधी रात के बाद कैब्रे जायंट नहीं, स्ट्रिप जायंट बन जाता था - डांसर्ज अपने तन के आखिरी दो कपड़े - बिकिनी ब्रा और जी-स्ट्रिंग - भी उतार फेंकती थीं ।
ये सब वहां राज्य के कायदे काननू की धज्जियां उड़ाते शरेआम, बेखौफ होता था ।
वजह का नाम अनिल महाबोले था जो कि आइलैंड के इकलौते थाने का थानेदार था और ‘ब्लू डायमंड’ के प्राफिट में शेयरहोल्डर था ।
गोवानी रैकेटियर के लिये उसका दर्जा ‘सैय्यां भये कोतवाल’ का था ।
कैब्रे जायंट के स्ट्रिप जायंट बन जाने के बाद वहां सर्विस का स्टाइल ये था कि मेहमान का गिलास खाली दिखते ही उसको नया जाम सर्व हो जाता था, भले ही वो उसने आर्डर किया हो या न किया हो शराब के साथ साथ शबाब के नशे में झूमते मेहमान को तब वो जाम वैलकम जान पड़ता था, ये बात दीगर थी कि जब बिल आता था तो कितने ही मेहमानों के दोनों नशे हवा हो जाते थे ।
‘वांदा नहीं’ - तब उनका फिलासोफिकल कमैंट होता था - ‘एनजाय तो फुल किया न !’
दूसरे, वहां मुम्बई स्टाइल में नोट उड़ाने के लिये भी मेहमानों को प्रोत्साहित किया जाता और जैसे नोट मेहमान उड़ाना चाहे, वैसे उसे सप्लाई भी मैनेजमेंट करता था जो कि बाद में उसके बिल में चार्ज हो जाते थे । उस प्रोत्साहन में सारे मेहमान तो नहीं फंसते थे लेकिन आधे भी फंस जाते थे, एक चौथाई भी फंस जाते थे तो मैनेजमेंट की चांदी थी ।
मैनेजमेंट की डांसर बालाओं की नहीं ।
मेहमान को यही बताया जाता था कि उसके डांसरों पर उड़ाये नोट डांसरों के ही हिस्से में आते थे लेकिन हकीकत ऐसा नहीं था । डांसर बालायें वहां फिक्स्ड सैलेरी पर काम करती थीं, स्टेज पर बरसे नोटों को हाथ लगाने की भी उनको इजाजत नहीं थी । अगर वो एक्स्ट्रा इंकम चाहती थीं तो उसके लिये एक जुदा जरिया था । किसी खास कद्रदान, शौकीन मेहमान के लिये होटल के एक प्राइवेट रूम में उसकी स्ट्रिपटीज की प्राइवेट परफारमेंस का - और भी जैसी परफारमेंस मेहमान चाहे - इंतजाम किया जाता था जिसका इकलौता दर्शक वो मेहमान होता था । नशे और अमीरी के मद में ऐसा कोई कोई मेहमान तो लड़की पर इतनी बड़ी रकम न्योछावर कर जाता था कि खुद उसकी आंखें फट पड़ती थीं ।
वो तमाम जानकारी गुजश्ता बारह दिनों में नीलेश ने बड़ी एहतियात से, बड़ी मेहनत से हासिल की थी । तब उसने ये तक कोशिश की थी कि कोंसिका क्लब की जगह उसे होटल में नौकरी मिल जाती लेकिन वो मुमकिन नहीं हो सका था । होटल की मुलाजमत के जुदा ही रूल थे जिनके तहत खड़े पैर किसी ‘नवें भीङू को’ वहां नौकरी मिल पाने की कोई गुंजायश नहीं थी । होटल का निजाम बहुत ही भरोसे के मुलाजिमों के आसरे चलता था जो कि - भरोसे का मुलाजिम - खड़े पैर कोई ‘नवां भीङू’ नहीं बन सकता था ।
बावजूद अपनी इस नाकामी के नीलेश इतना भांपने में कामयाब हो गया था कि उस विशाल होटल की दूसरी मंजिल की बहुत खास अहमियत थी । वहां एक बिलियर्ड रूम था जो कि असल में एक मिनी कैसीनो था । वैसे दिखावे को वहां दो बिलियर्ड टेबल्स थीं लेकिन वहां का प्रमुख आकर्षण ब्लैकजैक नाम के जुए की कुछ टेबल थीं, एक रॉलेट व्हील था और कई स्लॉट मशीन थीं ।
कथित बिलियर्ड रूम की बाजू में एक कदरन छोटा कमरा और था जो कि खास तौर से रम्मी और तीन पत्ती के शौकीनों के लिये था । अमूमन वीकएण्ड्स पर या छुट्टी वाले दिनों में ही कोई नामलेवा रौनक हो पाती थी लेकिन बिलियर्ड रूम की रौनक छुट्टी या वीकएण्ड की मोहताज नहीं थी ।
उन दो कमरों की सुरक्षा और अमनचैन को सुनिश्चित करने के लिये वहां होटल के मसलमैन तो होते ही थे, सादे कपड़ों में थाने के स्टाफ के चंद लोग भी वहां कोई बद्इंतजामी, कोई गलाटा न होने देने के लिये तैनात होते थे ।
ये एक बहुत चौंकाने वाली जानकारी थी जो नीलेश के हाथ लगी थी और हैडक्वार्टर को भेजी अपनी रिपोर्ट में जिसे उसने खासतौर से हाईलाइट किया था ।
वहां के मसलमैन के इंजार्ज, सिक्योरिटी चीफ कहलाने वाले, शख्स का नाम रोनी डिसूजा था ।
आइलैंड की इकलौती झील वहां से करीब ही थी । उस झील के उस ओर के वैस्टएण्ड कहलाने वाले किनारे के करीब खुश्की का एक विशाल खण्ड पानी में से सिर उठाये था जिस पर शीशे के खिड़की दरवाजों वाली एक इमारत स्थापित थी जिसके चारों तरफ रंग बिरंगे फूलों और मखमली घास से सजे लान थे । वो जगह मनोरंजन पार्क कहलाती थी और खुश्की से उस तक पहुंचने के लिये एक लोहे का संकरा पुल उपलब्ध था जो संकरा होने के कारण पैदल पारपथ के रूप में उपयोग में लाये जाने के ही काबिल था ।
“है न टांग देने के काबिल, साला हलकट !”
नीलेश हड़बड़ाकर वापिस घूमा ।
मेन डोर से शुरू होने वाली केबिनों की कतार के पहले केबिन के साथ पीठ टिकाये रोमिला सावंत खड़ी थी और मुस्कराती हुई उसकी तरफ देख रही थी । वो खुले खुले हाथ पांव वाली, कटे बालों वाली, लम्बी ऊंची, गोरी, खूबसूरत लड़की थी, उस घड़ी वो घुटनों तक आने वाली टाइट स्कर्ट और मैचिंग स्कीवी पहने थी जिसमें वो खूब जंच रही थी । उसका वक्ष उन्नत था, कमर पतली थी और कूल्हे भारी थे । नीलेश का उसकी उम्र का अंदाजा पच्चीस-छब्बीस का था । कहने को वो वहां की होस्टेस थी लेकिन हकीकत में उस जैसी और कई नौजवान लड़कियों की तरह बारबाला, एंटरटेनर, पार्ट टाइम प्रास्टीच्यूट, कालगर्ल, सब कुछ थी । बार की ऐसी लड़कियों का प्रमुख काम मेहमानों की जेब हल्की करना था - जैसे भी वो कर पायें ।
“हल्लो !” - नीलेश बोला ।
वो और मुस्कराई ।
“किसकी बात कर रही हो ?”
“तुम्हें मालूम है ।”
“फिर भी !”
“जो अभी तुम्हारी निगाह में था ।”
“कौन ?”
“मेरे से ही कहलवाओगे ! वो घोड़े की दुम हवलदार !” - उसने बाहर की तरफ उंगली उठाई - “जगन खत्री !”
“ओह !”
“इतनी देर से नोट कर रही हूं, क्यों ताड़ रहे थे उसे ? क्या भा गया उसमें ?”
“कुछ नहीं ।”
“खामखाह कुछ नहीं ! कोई दो हफ्ते यहां हो, मैंने पहले भी दो तीन बार तुम्हें उसको ताड़ते देखा है ।”
“माई डियर, क्योंकर तुम्हें ये बात मालूम है ? क्योंकि तुम मुझे ताड़ती हो !”
“मैं क्या अकेली ? यहां की सारी लड़किया तुम्हें ताड़ती हैं । जादू कर दिया हुआ है तुमने सब पर । जिसको बोलोगे - इशारा भी करोगे - तुम्हारी खाट बनने को तैयार हो जायेगी ।”
“क्या बात करती हो !”
“आजमा के देखो ।”
“भले ही तुम्हें आजमा के देखूं ?”
“मेरे को मंजूर !”
नीलेश हंसा ।
वो उनतालीस साल का था, विधुर था, सात साल पहले, शादी के दो साल बाद उसकी बीवी उसे औलाद का मुंह दिखाने वाली थी तो चाइल्डबर्थ की कम्पलीकेशंस में जच्चा बच्चा दोनों मर गये थे । तब से आज तक उसने घर बसाने की कोई कोशिश नहीं की थी, फीमेल अटेंशन से, फीमेल कम्पेनियनशिप से कोई परहेज अलबत्ता उसे नहीं था ।
“पास आ ।” - वो बोला ।
“क्या इरादा है ?” - रोमिला ने नकली हड़बड़ाहट जताई - “क्या यहीं...”
“स्टूपिड !”
कुटिल भाव से मुस्कराती वो उसके करीब आकर खड़ी हुई ।
“इस आदमी का किरदार अनोखा है” - नीलेश दबे स्वर में बोला - “मेरे जेहन से निकलता ही नहीं । पुलिस का मुलाजिम ! बावर्दी, तीन फीतियों वाला हवलदार ! साथ में मटका कलैक्टर ! सट्टा आपरेटर ! सोचने भर से दिमाग घूम जाता है ।”
“अभी तो तुमने कुछ भी नहीं देखा । ये लंका है, यहां सारे बावन गज के हैं ।”
“हैरानी है !”
“हो लो हैरान ! हैरान होने की कौन सी फीस लगती है !”
“ठीक ।”
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