Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
10-27-2020, 12:47 PM,
#6
RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“क्‍यो नहीं ! क्‍यों नही !”
“जो मैंने किया, जो उस भीङू के साथ हुआ, उससे तेरे को क्‍या प्राब्‍लम है ? तेरे इधर में” - नीलेश ने ठि‍ठक कर उसके उन्‍नत वक्ष पर निगाह डाली - “क्‍यों कुछ होता है ? होता है तो साला ये टेम ही क्‍यों होता है ?”
“मेरे को वांदा नहीं । मेरे को सब चलता है इधर । बहुत टेम हो गया न ! पर तुम्‍हें तो अभी टू वीक्‍स भी नहीं हुआ इधर ! इसी वास्‍ते सोचती थी कितनी जल्‍दी इधर के रंग में रंगा । साला तेरे जैसा डीसेंट भीङू...”
“कौन बोला मैं डीसेंट भीङू ?”

“क्‍या ! नहीं है ?”
“नहीं है । अब नक्‍की कर ।”
उसका कंधा थाम के उसको एक बाजू करता वो वापिस बार के पीछे पहुंचा गया ।
जो नाइंसफी उस बेवडे़ के साथ हुई थी, वो उसका दिल तो कचोटती थी लेकिन जिम्‍मेदार, वो खुद भी तो था ! क्‍यों वो बारबाला को ‘ईजी ले’ समझता था जो उसके एक लम्‍पट इशारे पर बिछने को तैयार हो सकती थी ! मुफ्त में‍ कहीं कुछ मिलता था ! हर चीज की कीमत होती थी जो कि अदा करनी ही पड़ती थी । उसने अदा न की, यासमीन ने खुद वसूल ली । बस इतनी सी बात थी ।

खुद को बहलाना भरमाना कितना आसान था !
और दो घंटे बाद कोंसिका क्‍लब में भीड़ का ये आलम था कि वहां‍ तिल धरने को जगह नहीं थी । अधिकतर मेहमान नशे की एडवांस स्‍टेज में पहुंच चुके हुए थे और उनके अट्टहासों का और कानफाङू म्‍यूजिक का ऐसा असर था कि आप‍स में वार्तालाप करने के लिये एक दूसरे के कान के पास मुंह ले जाकर ऊंचा बोलना पड़ता था । बार के सारे बूथ फुल थे और उनकी सैमी-प्राइवेसी में रंगरेलियों का और भी ज्‍यादा बोलबाला था । तरंग में लोग बाग खुश थे, आपे से बाहर हो रहे थे तो गमगीन भी थे जो जज्‍बाती हो कर अपने जाम में आंसू टपका रहे थे । एक झांकी जैसी जेवरों से लकदक किटी पार्टी मार्का महिला अपने पति के साथ थी, पति जब उठ कर टायलेट में गया था तो वो बाकायदा नीलेश पर डोरे डालने लगी थी । लेकिन वो शो थोड़ी देर ही चला था, पति लौट आया था तो उसने तुरंत अपनी सैक्‍स अपील का स्विच आफ कर दिया था और सम्‍भ्रांत ‘बहनजी’ बन गयी थी ।

आधी रात होने तक वहां तीन बार झगड़े फसाद का माहौल बना था । एक में दो मर्द, एक ही औरत के पीछे थे और के उस पर अपना अपना एक्‍सक्‍लूसिव दावा ठोकने की कोशिश में आपस में लड़ पडे़ थे । दूसरे में एक बारबाला ने नशे की एडवांस्‍ड स्‍टेज पर पहुंचे एक मेहमान को धुन दिया था जो कि उसको वहीं, मेज पर लिटाने कि कोशिश करने लगा था । तीसरा मामला गम्‍भीर था जिसमें चार जनों बियर की बोतलों से एक दूसरे के सिर फोड़ने में कसर नहीं छोड़ी थी ।
तीनों बार नीलेश ने स्थिति को बड़ी दक्षता से हैंडल किया था और बाकायदा अपने एम्‍पलायर गोपाल पुजारा की तारीफी निगाहों का हकदार बना था ।

वैसे जो कुछ भी हुआ था, वो रोजमर्रा का वाकया था, नया उसमें कुछ नहीं था ।
ऐसी ही रौनक जगह थी कोंसिका क्‍लब ।
बारह बजे के बाद भीड़ छंटने लगी थी और एक बजने तक कोई इक्‍का दुक्‍का बेवड़ा ही किसी टेबल पर बैठा रह गया था । रोमिला, यासमीन और बाकी बारबालायें वहां से जा चुकी थीं । बाहर का विशाल नियोन साइन आफ कर दिया गया था और भीतर की भी अधिकतर बत्तियां बुझा दी गयी थीं ।
एक बजने के पांच मिनट बाद एकाएक मेन डोर खुला और छ: जनों की एक पार्टी ने एक साथ भीतर कदम रखा । ग्रुप में तीन खूबसूरत नौजवान, माडर्न लड़कियां थीं जिनमे से कोई भी उम्र में बीस-बाइस साल से ज्‍यादा की नहीं जान पड़ती थी । साथ मे उनकी उम्र को मैच करते तीन लड़के थे ।

पुजारा ने खुद आगे बढ़ कर उनका स्‍वागत किया और एक वेटर को एक बड़े बूथ की टे‍बल को नये मेजपोश, नये नैपकिन, नयी क्रॉकरी, कटलरी से संवारने का हुक्‍म दिया ।
स्‍टाफ का हर कोई उनसे अदब से पेश आ रहा था, यहां तक कि कुक भी भीतर से निकल आया, उस ग्रुप के करीब पहुंचा और ग्रुप की एक लड़की का - जिसके बाल लाली लिये हुए भूरे थे और जो सबसे अधिक खूबसूरत थी - उसने बहुत खास, बहुत स्‍पेशल अभिवादन किया ।
नीलेश ने पुजारा को उस लड़की को श्‍यामला के नाम से पुकारते सुना । कुक अभिवादन करते वक्‍त उसको मिस मोकाशी कह कर पुकारा था ।

श्‍यामला मोकाशी !
म्‍युनीसिपैलिटी के प्रेसीडेंट बाबूराव मो‍काशी की इकलौती बेटी !
मुम्‍बई के टॉप के कालेज में शिक्षा प्राप्‍त !
नीलेश ने उसका चर्चा बराबर सुना था । लेकिन सूरत पहली बार देख रहा था ।
पुजारा परे खड़े नीलेश के करीब पहुंचा ।
“जाना नहीं अभी ।” - वो दबे स्‍वर में बोला ।
नीलेश की भवें उठीं ।
“भाव मत खा । ओवरटाइम मिलेगा ।”
“मैं कुछ बोला ?”
“अच्‍छा किया नहीं बोला ।”
“सबको ?”
“क्‍या सबको ?”
“जो अभी रुकेंगे, सबको ओवरटाइम !”
“नहीं । खाली तेरे को । स्‍पेशल करके तेरे को । अब खुश !”

“हां ।”
“मालिक की बेटी है । स्‍पेशल करके ट्रीट करने का कि नहीं करने का ?”
नीलेश के होंठ भिंचे । बेध्‍यानी में पुजारा के मुंह से एक बड़ा सच उजागर हो गया था ।
तो असल में कोंसिका क्‍लब का मालिक बाबूराव मोकाशी था, गोपाल पुजारा खाली उसका फ्रंट था ।
“जा के बार का आर्डर ले !” - पुजारा बोला ।
नीलेश ने सहमति में सिर हिलाया और उनके केबिन पर लौट कर आर्डर लिया ।
लडकियों के लिये वाइन, लड़कों के लिये वोदका विद टॉनिक वाटर । नीलेश बार पर गया, आर्डर के मुताबिक छ: ड्रिंक्‍स तैयार किये और उनको एक ट्रे पर सजा कर केबिन पर वापिस लौटा । उसने ड्रिंक्‍स सर्व किये ।

थैंक्‍युज की बुदबुदाहट हुई ।
उन लोगों को चियर्स बोलता छोड़कर नीलेश वहां से परे हट गया ।
श्‍यामला की खूबसूरती का नीलेश को ऐसा धड़का लगा था कि वो किसी न किसी बहाने उन‍के केबिन के गिर्द ही मंडराता रहा था और चोरी छुपे श्यामला को निहारता रहा था ।
क्‍या लड़की थी !
कॉनमैन की बेटी !
जो नीलेश के प्रयत्‍नों से निकट भविष्‍य में जेल जाने वाला था ।
एक बार श्‍यामला की निगाह नीलेश से मिली तो नीलेश को ऐसा लगा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो । वो बौखलाया और तत्‍काल परे देखने लगा ।

श्‍यामला के चेहरे पर उलझन के भाव आये, भवें सिकोडे़ वो कुछ क्षण उसकी तरफ देखती रही, फिर एकाएक उठी, केबिन से निकली और नीलेश के सामने आ खड़ी हुई ।
नीलेश और बौखला गया । वो पहलू बदलने लगा और उससे निगाहें चुराने लगा ।
“हल्‍लो !” - वो मुस्‍कराती हुई बोली - “मैं श्‍यामला मो‍काशी ! यहां नये हो ?”
नीलेश ने जल्‍दी से सहमति में सिर हिलाया ।
“नाम भी इशारे से ही बता सकते हो ?”
“नी-नीलेश ! नीलेश गोखले !”
“हल्‍लो, नीलेश !”
“ह-हल्लो मिस मोकाशी !”
“श्‍यामला ।”
“हल्‍लो, श्‍यामला !”
“दैट्स मोर लाइक इट । कहां से हो ?”

“मुम्‍बई से ।”
“इधर आल दि वे जॉब करने आये ?”
“हां ।”
“वहां कोई जॉब न मिली ?”
“मिली । लेकीन मै मुम्‍बई से आजिज था । कहीं बाहर निकलना चाहता था । चांस लगा, इधर आ गया ।”
“आई सी ! कब से हो यहां ?”
“कल टू वीक्‍स हो जायेगा ।”
“कैसा लगा हमारा आइलैंड ?”
हमारा आइलैंड !
साली के बाप का आइलैंड !
“बढिया !” - प्रत्‍यक्षत: वो बोला ।
“गुड ! आई एम ग्‍लैड ।” - वो एक क्षण ठि‍ठकी फिर बोली - “हम लोगों की वजह से तुम्‍हें रुकना पड़ा, उसके लिये सारी । हमें इतना लेट नहीं आना चाहिये था ।”
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RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट - by desiaks - 10-27-2020, 12:47 PM

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