Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
10-27-2020, 12:48 PM,
#8
RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
सब एक एक करके वहां से खिसकने लगे ।
“ख-खाना !” - श्‍यामला के मुंह से निकला ।
“इनको भूख नहीं हैं । तुम्‍हारे लिये पैक हो जायेगा ।”
“मु-मुझे भी भूख नहीं है ।”
“फिर क्‍या वांदा है ! पुजारा, खाने का बिल...”
“नो बिल, बॉस ।” - पुजारा तत्‍पर स्‍वर में बोला - “ऐवरीथिंग आन दि हाउस ।”
“गुड ! चलो !”
सब वहां से रुखसत हो गये ।
“फोन किसने किया ?” - पीछे पुजारा बड़बड़ाया ।
“स्‍टाफ में से किसी ने ?” - नीलेश ने सुझाया ।
“नहीं । अव्‍वल तो मेरे से पूछे बिना कोई ऐसा कर नहीं सकता, फिर भी जोश में कोई ऐसा कर बैठा हो तो तब भी मेरे को न बोले, ये नहीं हो सकता ।”

“फिर तो उस ग्रुप में से ही किसी ने...”
“ऐसा ही जान पड़ता है ।”
“पूछा होता ।”
“तब न सूझा । भले ही महाबोले कोई जवाब न देता लेकिन...पूछना ही न सूझा ।”
“इन्स्पेक्टर लड़की का ऐसा सगा बनके क्‍यों दिखा रहा था ?”
पुजारा हंसा ।
“कोई खास बात है ?” - नीलेश उत्‍सुक भाव से बोला ।
“है तो सही ?”
“क्‍या ?”
“तेरे को बोलना ठीक होगा ?”
“मैं किसी को नहीं बोलूंगा । कसम गण‍पति‍ की ।”
“लड़की पर लट्टू है ।”
“कौन ? एसएचओ ! महाबोले ।”
“और किसका जिक्र है इस वक्‍त ?”

“ओह !”
“शादी बनाना मांगता है ।”
“कमाल है ! शादीशुदा नहीं है ।”
“नहीं है इत्तफाक से ।”
“की ही नहीं या...कुछ और हुआ ?”
“हुई ही नहीं ।”
“लेकिन वो तो उम्र में लड़की से बहुत बड़ा है !”
“कम से कम नहीं तो सोलह सत्‍तरह साल बड़ा है ।”
“लड़की को मंजूर होगी शादी ?”
“बाप को मंजूर होगी तो होगी ।”
“क्‍या बात करते हो !”
“आज्ञाकारी बच्‍ची है ।”
“बच्‍ची कहां है ? अपना भला बुरा खुद विचारने की क्षमता रखने वाली नौजवान वाली लड़की है ।”
“तू समझता नहीं है ।”
“क्‍या ? क्‍या नहीं समझता ?”

“शादी - अगर हुई तो - के पीछे की वजह । खास वजह ।”
“मैं समझा नहीं कुछ ।”
“अरे, पुराने जमाने में राज रजवाडे़ आपस में बहन बेटियां ब्‍याहते थे कि नहीं । राणा साहब जवान बालबच्‍चेदार बुजुर्गवार, होने वाली रानी षोड़षी बाला । ताकत बनाने, ताकत बढ़ाने के लिये ऐसे गठबंधन किये जाते थे, एक और एक ग्‍यारह हों इसलीये ऐसे गठबंधन किये जाते थे । ताकत बनाने, बढ़ाने का जो रिवाज गुजरे जमाने में था, उस पर अमल आज नहीं हो सकता ?”
“ओह !”
“लगता है अभी समझा कुछ !”
नीलेश ने संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया ।

“दो ही तो पावरफुल भीङू हैं यहां जिनका कि आइलैंड पर कब्जा है । जब वो दो भीङू करीबी रिश्‍तेदारी में बंध कर एक हो जायेंगे तो सोचो, क्‍या कहर ढ़ायेंगे !”
“जब त‍क वो नौबत नहीं आती, वो दोनों एक नहीं होते, तब तक इधर भारी कौन पड़ता है ?”
“महाबोले बिलाशक ।”
“हूं । उस लड़के का क्‍या होगा जिसे पकड़ के ले गये ?”
“बुरा ही होगा ।”
“काहे को ? चाकू की - हथियार की - बरामदी तो हुई नहीं ।”
“वो बरामदी हो गयी होती - तूने भले वक्‍त चाकू उठा लिया - फिर तो बला का बुरा होता । लेकिन बुरा तो अब भी होगा बराबर ।”

“अब किसलिये ?”
“समझ, भई । मगज से काम ले । उस छोकरे ने थानेदार के माल पर हाथ डाला था । थानेदार बख्‍श देगा ?”
“माल !”
“बराबर । अपना माल ही समझता है वो श्‍यामला को । देखा नहीं, कैसे रौब से, कैसी धौंसपट्टी से इधर से ले के गया ! लड़की की मजाल हुई न बोलने की ? इतने चाव से इधर खाना खाने आयी थी, उसकी तरफ झांकने भी न दिया ? हिलसा रो रही है केबिन में पड़ी बेचारी ।”
“ठीक ।”
“बिल के बारे में पूछने का ढ़ण्‍ग देखा था ! जैसे चेता रहा हो ‘पुजारा, मजाल न हो तेरी बिल का नाम भी लेने की’ ।”

“कमाल है ! बॉस, ताकत के नशे में चूर किसी शख्‍स का किसी शै पर अपना नाजायज, नापाक दावा ठोकना समझ में आता है लेकिन उस दावे की आगे से बाकायदा एनडोर्समेंट भी हो, ये समझ में नही आता । श्‍यामला एक पढ़ी लिखी, बालिग, खुदमुख्‍तार लड़की है, कैसे कोई बाप ऐसी किसी लड़की से बकरी की तरह पेश आ सकता है, उसके गले में बंधी रस्‍सी किसी को भी थमा सकता है ।”
“मुश्किल सवाल है, भई, किसी मेरे से ज्‍यादा काबिल भीङू से जवाब का पता कर ।”
“आप जवाब को टाल रहे हैं । खैर, अब मैं जा सकता हूं ?”

“हां, जा । बहुत रात खोटी हुई तेरी आज इधर !”
“वांदा नहीं ।”
“जाने से पहले एक बात और सुन के जा ।”
“क्‍या ?”
“जब तक आइलैंड पर है, महाबोले की परछाईं से भी बच के रहना, हमेशा वो कहावत याद रखना जो कहती है समंदर में रहने का तो मगर से बैर नक्‍को । क्‍या ।”
“बरोबर, बॉस ।”
***
हकीकतन नीलेश पुजारा की सलाह को-वार्निंन जैसी सलाह को-थोड़ी देर के लिये भी लिये गांठ बांध कर न रखा सका । वापिसी में उसके कदम अपने आप ही उस सड़क पर मुड़ गये जिस पर कि थाना था ।

थाना एक ऐसी सैमीखण्‍डहर एकमंजिला इमारत में था जो लगता था कि इकठ्ठी बनने की जगह जैसे जैसे जरुरत पड़ती गयी थी, वैसे वैसे कमरा कमरा करके बनाई गयी थी और जब से बनी थी, रखरखाव से ताल्‍लुक रखती कोई तवज्जो उसे नसीब नहीं हुई थी ।
थाने की इमारत के फ्रंट में एक कम्‍पाउंड था जिसका लकड़ी का टूटा फूटा फाटक उस घडी़ पूरा खुला था ।
कम्‍पाउंड में दायीं ओर एक सायबान था जिसके नीचे वो जीप खड़ी थी जिस पर एसएचओ महाबोले कोंसिका क्‍लब पहुंचा था । दाईं ओर एक बडे़ से कमरे की दो सींखचों वाली रौशन खिड़कियां थीं जो उस घड़ी खुली थीं । उस कमरे का प्रवेश द्वार जरुर भीतर कहीं से था । उसने कुछ क्षण उन खिड़कियों की तरफ देखा तो पाया कि उनके पीछे कमरे में कोई था । उसने गौर से उन पर निगाह गड़ाई तो उसे उस ‘कोई’ की एक स्‍पष्‍ट झलक मिली ।

जैकी !
वो भीतर पिंजर में बंद जानवर की तरह बेचैनी से चहलकदमी कर रहा था । लगता था कि अभी कोई खास पुलिसिया खिदमत उसकी नहीं हुई थी ले‍किन बाकी की रात यकीनन उसकी वहीं कटने वाली थी।
उसकी फौजदारी जैसी मिल्कियत कमानीदार चाकू उसने रास्‍ते में एक गटर में फेंक दिया था ।
कम्‍पाउंड के सामने एक मेहराबदार ड्योढ़ी थी जिसमें एक आफिस टेबल लगी हुई थी जिस पर एक फोन पड़ा था और एक लकड़ी का तिकोना नामपट पड़ा था जिस पर लिखा था: ड्‍यूटी आफिसर । मेज के पीछे एक‍ और सामने तीन लकड़ी की कुर्सियां पड़ी थीं लेकिन ड्यूटी आफिसर के नाम को सार्थक करने वाला वहां कोई नहीं था । पीछे एक खुला दरवाजा था जिसके आगे आजूबाजू जाता एक गलियारा था ।

वो उस गलियारे में पहुंचा तो उसे वहां चार बंद दरवाजे दिखाई दिये । उनमें से दायीं ओर के एक दरवाजे के रोशनदान से रोशनी बाहर फूट रही थी और पार की दीवार पर पड़ रही थी ।
दबे पांव वो उस दरवाजे पर पहुंचा और कान लगा कर कोई आहट लेने की कोशि‍श करने लगा । कोई आहट तो उसे न मिली लेकिन ऐसा अहसास उसे बराबर हुआ कि वो कमरा खाली नहीं था । उसने दरवाजे पर हथेली टिका कर उसे हल्का सा धकेला तो पाया वो भीतर से बंद नहीं था । हिम्‍मत करके उसने दरवाजे को खोला और भीतर कदम डाला ।

भीतर, दरवाजे के बाजू में, उसे हवलदार जगन खत्री खड़ा मिला । आगे, कमरे के बीचोंबीच, एसएचओ महाबोले और श्‍यामला आमने सामने खडे़ थे । श्‍यामला का चेहारा फक था, नेत्र दहशत में फैले हुए थे और वो पत्‍ते की तरह कांप रही थी । उसके सामने सकते की सी हालत में खड़ा महाबोले अपना दायां गला सहला रहा था । नीलेश की आहट पाकर उसने गाल से हाथ हटाया तो वो सेंका गया होने की चुगली करते उंगलियों के निशान नीलेश को गाल पर साफ दिखाई दिये ।
“क्‍या है ?” - महाबोले कड़क कर बोला - “कहां घुसे चले आ रहे हो ?”

“जनाब” - नीलेश अतिरिक्‍त सम्‍मान से बोला - “मैं श्‍यामला को घर लिवा ले चलने के लिये आया था ।”
“क्‍या !” - महाबोले के मुंह से निकला ।
“यस, प्‍लीज ।” - नीलेश के फिर बोलने से पहले अतिव्‍यग्र, अतिआंदोलित श्‍यामला बोल पड़ी - “प्‍लीज, मेरे को घर ले के चलो ।”
“ये क्‍या हो रहा ? क्‍या बकवास है ये ?”
“जनाब, कोई बकवास नहीं है” - नीलेश विनयशील स्‍वर में बोला - “जो कुछ हो रहा है, आप के सामने हो रहा है, आपकी इजाजत से हो रहा है ।”
“मेरी इजाजत से हो रहा है ।”

“जो आप अभी देंगे न ! आइये, मैडम ।”
श्‍यामला उसकी तरफ बढ़ी ।
हवलदार झपट कर दरवाजे के आगे तन कर खड़ा हो गया ।
“रास्‍ता छोड़, भई ।” - नीलेश पूर्ववत् विनयशील स्‍वर में बोला - “गुजरना है ।”
हवलदार के चेहरे पर स्‍पष्‍ट उलझन के भाव आये ।
“साहब, ये क्‍या ...”
“जाने दे ।” - महाबोले बोला ।
एसएचओ का जवाब इतना अप्रत्‍याशित था कि पहले से हकबकाया हवलदार और ह‍कबका गया । उसके चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे कोई असम्‍भव बात सुनी हो ।
“जाने दूं ?” - उसके मुंह से निकला ।
“हां, जाने दे ।”
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RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट - by desiaks - 10-27-2020, 12:48 PM

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